खेलकूद पृष्ठभूमि पर बनी कुछ फिल्में / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 14 अगस्त 2019
अनुजा चौहान के उपन्यास 'जोया फैक्टर' से प्रेरित फिल्म पूजा एवं आरती शेट्टी ने अभिषेक शर्मा के निर्देशन में बना ली है और सितंबर में प्रदर्शित की जाएगी। इस फिल्म की पृष्ठभूमि क्रिकेट विश्वकप प्रतियोगिता है। कथासार यूं है कि एक पत्रकार को भारतीय टीम के लिए लकी मान लिया जाता है, क्योंकि उसकी मौजूदगी में टीम हार की कगार से लौटकर जीत गई थी। इस बात को बार-बार आजमाया जाता है और वह हर बार लकी सिद्ध होती है। इस सारी कवायद में क्रिकेट टीम के कप्तान और लकी पत्रकार का प्रेम हो जाता है।
ऑस्ट्रेलिया में खेली जा रही प्रतिस्पर्धा में कप्तान को लगता है कि सारे खिलाड़ियों की वर्षों की गई मेहनत का श्रेय लकी पत्रकार को दिया जा रहा है। अत: इस अंधविश्वास से मुक्ति के लिए वह पत्रकार को भारत जाने के लिए बाध्य करता है। अपने प्रेमी के इसरार को वह टाल नहीं पाती। उसके भारत आते ही क्रिकेट के हजारों दीवाने उसके घर पर धरना देते हैं कि उसे वापस जाना चाहिए। बहरहाल, लकी पत्रकार की गैर-हाजिरी के बावजूद भारत फाइनल जीत जाता है।
हमने टीवी प्रसारण में देखा है कि मोहिन्दर अमरनाथ हर मैच में एक लाल रूमाल अपनी जेब में रखते हैं। सुना है कि एक अन्य खिलाड़ी ने पहला शतक मारते समय जो अंडरवियर पहनी थी उसके फट जाने के बाद भी बल्लेवाज उसी अंडरवियर को पहनता रहा है। प्राय: बल्लेबाज शतक पूरा होते ही सूर्य को प्रणाम करता है। कुछ खिलाड़ी जमीन को सजदा करते हैं। क्रिकेट को किस्मत का खेल भी माना जाता है परंतु विराट कोहली, सचिन तेंडुलकर, सुनील गावस्कर जैसे बल्लेबाज प्राय: सफल हुए हैं और उनके परिश्रम, प्रतिभा और एकाग्रता का श्रेय किस्मत को दिया जाता है। द्रविड़ तो इतने निष्ठावान रहे हैं कि उन्हें क्रिकेट का संविधान मानकर खिलाड़ी शपथ लेकर खेलते हैं। यह बात अजीब है कि इन महान खिलाड़ियों को क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड खेल की बागडोर नहीं सौंपता। कपिलदेव निखंज को गेंदबाजी का कोच नियुक्त किया जाना चाहिए। क्रिकेट संगठन उन लोगों के हाथ में है, जो संगठन के चुनाव में वोट कबाड़ना जानते हैं। वोट कबाड़ना एक कला और विज्ञान बन चुका है। इस विज्ञान की प्रयोगशाला भारत की जाति प्रथा और धार्मिक आख्यानों के गलत अनुवाद हैं। साहित्य जगत में जिन लेखकों की रचनाओं पर फिल्में बनती हैं, उनका स्थान उन लेखकों से ऊपर है, जो सचमुच में कालजयी रचनाएं लिखते हैं। एक लेखक तो पुरानी सफल फिल्म की कथा में थोड़ा-सा परिवर्तन करके उपन्यास लिख देता है। लुगदी साहित्य और साहित्य का चरबा आजकल लोकप्रिय है। यह संभव है कि युवा पाठकों को लुगदी का अर्थ ज्ञात न हो। एक जमाने में पुराने अखबारों को पानी में डुबाकर रखते थे और कुछ दिनों बाद उसे आटे की तरह गूंथते थे। फिर उसके खिलौने बनाए जाते थे। आजकल खिलौने मशीनगन और एके 47 नुमा बनाए जाते हैं। आतंकवाद ने खिलौना बाजार को बदल दिया है। बार्बी डॉल के हाथ बंदूक पकड़ा दी जाए तो कैसा लगेगा?
खेल-कूद पृष्ठभूमि पर 'भाग-मिल्खा भाग' अत्यंत रोचक फिल्म बनी। एमएस धोनी का बायोपिक भी बना। हिटलर के दौर में बर्लिन में आयोजित ओलम्पिक पर 'ओलम्पिया' नामक वृत्तचित्र को उस श्रेणी का क्लासिक माना जाता है। हिटलर के मातहतों ने ध्यानचंद को बहुत से लोभ दिए थे कि वह न खेले। ध्यानचंद ने सभी प्रस्ताव अस्वीकार किए। उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न दिया जाना चाहिए। क्रिकेट के ग्लैमर ने शेष सभी खेलों को हाशिये में फेंक दिया।
अक्षय कुमार अभिनीत 'गोल्ड' में खेल छोड़े हुए लोगों को एकत्रित करके टीम बनाई जाती है। खेलकूद पृष्ठभूमि पर शाहरुख खान अभिनीत 'चक दे इंडिया' महान फिल्म है। यह महिला हॉकी विश्वस्पर्धा की पृष्ठभूमि पर बनी है। विभिन्न प्रांतों से आई लड़कियां प्रांतीय संकीर्णता के साथ आई है और उनमें व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा जागृत हो जाती है। वे एक-दूसरे के साथ नहीं खेलते हुए एक-दूसरे के खिलाफ खेलने लगती हैं। कोच अपने प्रयास से उनमें एकजुटता व राष्ट्रप्रेम जगाता है। एक खिलाड़ी फाइनल में गोल करने का अवसर अपने साथी खिलाड़ी को यह कहते हुए देती है कि अपने अहंकारी और आत्म-मुग्ध प्रेमी को बता दे कि तू भी किसी से कम नहीं है। ज्ञातव्य है कि इस फिल्म में कोच का नाम कबीर है और यह एक प्रतीक की तरह फिल्मकार ने इस्तेमाल किया है कि महाकवि कबीर की रचनाएं एक चादर है, जो पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधती है।