खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे नवाब / जयप्रकाश चौकसे

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खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे नवाब
प्रकाशन तिथि : 18 दिसम्बर 2021


गौरतलब है कि इन दिनों क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की चाय की प्याली में तूफान आया है। क्रिकेटर विराट कोहली का कथन है कि उन्होंने सोचा था कि वे टेस्ट मैच में कप्तानी नहीं करेंगे लेकिन उनकी ओर से इस बारे में कोई अधिकृत बयान नहीं दिया गया था। दूसरी ओर रोहित शर्मा को कप्तानी देने की बात भी कही जा रही है। साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि सब कुछ सुलझ गया है। भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना हो गई है। अत: खिलाड़ियों के सामान में यह समस्या अतिरिक्त बोझ की तरह है। इस अतिरिक्त सामान को फ्लोट जैम कहते हैं। दरअसल, हर जहाज में कुछ रेत से भरी बोरियां होती हैं, जिन्हें समंदर के मिजाज के अनुरूप अनावश्यक पाए जाने पर फेंक दिया जाता है। लग्जरी जहाज पर सफर करने वाले लोगों के जीवन से प्रेरित फिल्म ‘टाइटैनिक’ इस श्रेणी की महानतम फिल्म मानी जाती है।

बहरहाल, दक्षिण अफ्रीका की टीम अपने विभाजित प्रतिभागियों के भीतरी तनाव का लाभ उठा सकती है। रोहित शर्मा और विराट कोहली दोनों ही प्रतिभाशाली हैं। मेजबान देश को अपने अपने अनुरूप पिच तैयार करने का अधिकार है। दक्षिण अफ्रीका की पिच पर गेंद अतिरिक्त उछाल लेती है और स्विंग भी करती है। मैदान में चलने वाली हवा के रुख पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। ज्ञातव्य है कि दक्षिण अफ्रीका ने रंगभेद की नीति के कारण अपेक्षाकृत कम मैच ही खेले हैं। रंगभेद के कारण कई देश दक्षिण अफ्रीका जाने से बचते रहे हैं। नेल्सन मंडेला को दक्षिण अफ्रीका का महात्मा गांधी माना जाता है। जीवन के दो दशक उन्होंने जेल में काटे हैं। क्रिकेट नहीं खेलते हुए भी कुछ लोगों की जीविका क्रिकेट से जुड़ी है। मैच के दौरान कमेंट्री करने वालों को भी धन मिलता है। इंदौर में प्रोफेसर रहे सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी क्रिकेट के जानकार हैं और उन्होंने इस विषय पर सारगर्भित किताबें भी लिखी हैं। इंदौर के राजघराने ने क्रिकेट को बढ़ावा दिया है। कर्नल नायडू और कैप्टन मुश्ताक, फौज में नहीं रहे लेकिन होलकर राज ने उन्हें आदर देकर मानद पद पर सुशोभित किया। क्रिकेट आधारित आमिर खान की फिल्म ‘लगान’ सफल रही है। इसी माह फिल्म ‘83’ का प्रदर्शन होने जा रहा है। क्रिकेट, हॉकी और फुटबॉल जैसे विषयों पर फिल्म बनाना कठिन होता है। बैडमिंटन और टेबल टेनिस पर फिल्म बनाना अपेक्षाकृत आसान होता है। शाहरुख खान अभिनीत ‘चक दे इंडिया’ हॉकी पर श्रेष्ठ फिल्म है।

प्रियंका चोपड़ा अभिनीत ‘मैरी कॉम’ भी रोचक फिल्म रही। इन दिनों बोनी कपूर की फुटबॉल केंद्रित आने वाली फिल्म ‘मैदान’ की बड़ी चर्चा है। फुटबॉल के बाद देखा जाए तो क्रिकेट के खेल में बहुत धन है। धन प्राय: राजनीतिक अखाड़े की रचना करता है। हर टीम के साथ फिजियोथेरेपिस्ट जाते हैं। मांसपेशियों में प्राय: खिंचाव होने पर सही नस पर दबाव पड़ते ही खिलाड़ी चंगा हो जाता है। प्रकाश के अभाव में और बूंदाबांदी होने पर क्रिकेट का खेल रोक दिया जाता है लेकिन फुटबॉल का खेल झमाझम बारिश में भी खेला जाता है। क्रिकेट में दुविधाग्रस्त निर्णय के निपटारे के लिए थर्ड अंपायर को निर्णय देने का अधिकार होता है। इधर राजनीति में आम जनता थर्ड अंपायर की भूमिका में होती है लेकिन गलतियां वहां भी हो जाती हैं। कल्पना करें कि अवाम से किए गए सारे वादे अगर पूरे हो जाते तो समानता आधारित आदर्श व्यवस्था अपना स्थान बना लेती। रक्तरंजित युद्ध से बेहतर होता कि प्रकरण खेल के मैदान पर निपट जाते। तब भी थर्ड अंपायर की नीयत पर बहुत कुछ निर्भर होता। एक दौर में स्कूल और कॉलेज की स्थापना करते समय खेल-कूद की सहूलियत पर ध्यान दिया जाता था। आज तो वहां खेल-कूद की कोई व्यवस्था ही नहीं है वो भी तब जब लोकोक्तियां बदल गई हैं मसलन, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब, आज खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे नवाब हो गया है। क्रिकेट ने नए धनिक वर्ग को जन्म दे दिया है।