खेल-कूद आधारित फिल्में / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 06 जुलाई 2018
रूस में प्रायोजित फुटबॉल कुम्भ में फ्रांस के 19 वर्षीय खिलाड़ी कीलियन मबाप्पे लोटिन ने अर्जेंटीना की टीम को तीन के मुकाबले चार गोल मारकर विजय दिलाई। अर्जेंटीना में अघोषित राष्ट्रीय शोक मनाया जा रहा है और फ्रांस में खुशी कुछ इस तरह मनाई जा रही है जैसे एफिल टावर बनने पर मनाई गई थी। इस खिलाड़ी की प्रेमिका एलिसा आइलीस ने भी मैच देखा। वे विगत वर्ष फ्रांस की सौंदर्य प्रतियोगिता में सरताज हासिल कर चुकी हैं। इस तरह समां कुछ यूं था मानो 'जमीं पर हो रहा है सितारों का मिलन'। 19 वर्ष के खिलाड़ी ने कहावतों के संसार में भी उलटफेर किया कि युवा गति ने अनुभव को मात दे दी। उसे फुटबॉल किवदंती पेले के समान प्रतिभाशाली माना जा रहा है। वह खेल द्वारा अर्जित धन के मामले में भी पहले पांच खिलाड़ियों के दल में शामिल हो गया है।
फुटबॉल के द्रोणाचार्य प्राय: दस वर्ष के बालक को चुनकर विशेष प्रशिक्षण देने लगते हैं, क्योंकि इस गति व ऊर्जा केंद्रित खेल में खिलाड़ी की सुबह भी जल्दी प्रारंभ होती है और सूर्यास्त भी जल्दी होता है। हमारे क्रिकेट खिलाड़ी कर्नल नायडू ने साठ वर्ष की वय में उत्तर प्रदेश की टीम से रणजी ट्रॉफी मैच खेला था। उनके अपने गृहनगर इन्दौर की टीम में उन्हें शामिल नहीं किया गया था। संकीर्ण राजनीति से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है। हर क्षेत्र में उभरते हुए सितारे को इतनी दावतें दी जाती हैं, इतने अधिक सम्मान समारोह में वह जाता है कि यह सेलेब्रिटी सर्कस उसकी प्रतिभा को लील जाता है। ईश्वर कीलियन मबाप्पे लोटिन को इस चक्र से बचाए।
भारत में खेलकूद पर कुछ फिल्में बनी हैं जिनमें राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फरहान अख्तर अभिनीत 'भाग मिल्खा भाग' सफल रही। उसमें भी निर्देशक ने तथ्यों से थोड़ी छेड़छाड़ की थी। फुटबॉल की पृष्ठभूमि पर राकेश शर्मा ने नसीरुद्दीन शाह अभिनीत 'सितम' नामक फिल्म बनाई थी। केरल में गृहिणियों द्वारा खेले गए फुटबॉल पर भी एक फिल्म कुछ दिन पूर्व ही सफल रही है। दशकों पूर्व देव आनंद-माला सिन्हा अभिनीत फिल्म 'लव मैरिज' में नायक क्रिकेट खिलाड़ी है। स्वयं देव आनंद ने 'अव्वल नम्बर' नामक खेल आधारित फूहड़ता रची थी। कुछ ही दिनों में अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म 'गोल्ड' की पृष्ठभूमि हॉकी का खेल है। बेचारी शेट्टी बहनें जाने कब से 'ध्यानचंद बायोपिक' बनाने का प्रयास कर रही हैं। दिलीप कुमार की 'गंगा जमुना' में कबड्डी के रोमांच को ऐसा प्रस्तुत किया है जैसे बेनहर की रथों की दौड़ को किया गया था।
आमिर खान द्वारा निर्मित फिल्म 'दंगल' भी खेलकूद आधारित फिल्म है। दूसरे विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर एक अमेरिकन फिल्म बनी थी 'एस्केप टू विक्ट्री' जिसमें जेल में बंद लोगों की फुटबॉल टीम विजय प्राप्त करती है। भारतीय क्रिकेट टीम ने इंग्लैंड में आयोजित विश्वकप जीता था और इस पर भी फिल्म बनाने की तैयारी चल रही है। उस टीम के अधिकांश खिलाड़ी आज भी मीडिया में दिखाई पड़ते हैं। इस कारण अभिनेताओं का चयन करना कठिन होगा। विश्वसनीयता स्थापित करना कठिन होगा।
हमारे संगीतकार राहुल देव बर्मन को फुटबॉल का जुनून था। अगर आज वे जीवित होते तो संगीत सृजन छोड़कर रूस में फुटबॉल देख रहे होते। फुटबॉल के टीवी प्रसारण में दर्शक प्रतिक्रिया बखूबी दिखाई जा रही है। यह इतना बखूबी किया जा रहा है कि दर्शक का चेहरा फुटबॉल ग्राउंड की तरह हो जाता है और खेल के सारे उतार-चढ़ाव इस चेहरे रूपी दर्पण में दिखाई देते हैं। बहरहाल ब्राजील के मैच में दर्शक दीर्घा में राहुल देव बर्मन की आत्मा मौजूद होगी, क्योंकि वह उनकी प्रिय टीम रही है। उनको निकट से जानने वाले दर्शक दीर्घा में उनकी आत्मा का ताप महसूस कर सकते हैं। उनकी आत्मा जाने कौन-सा शरीर धारण किए वहां आएगी।
यह भी विचारणीय है कि क्या इस खिलाड़ी की प्रेमिका एलिसा आइलीस को मबाप्पे से प्रेम उसके खेल कौशल के कारण हुआ? अगर ऐसा है तो टीम के पराजित होने पर वह सगाई की अंगूठी उतार कर फेंक देगी। इससे याद आता है कि एक फिल्म की कश्मीर में हो रही शूटिंग के दिनों शम्मी कपूर मित्रों सहित डल झील में नौका विहार करते थे। उनके एक मित्र ने नौका विहार के समय बार-बार हीरे की उस अंगूठी की प्रशंसा की जिसे शम्मी कपूर पहने थे। अतिप्रशंसा से नाराज शम्मी कपूर ने अंगूठी निकालकर डल झील में फेंक दी। यह कपूराना मिजाज की एक झलक है। इस तरह से मबाप्पे लोटिन को न केवल फ्रांस को जिताना है वरन् अपनी प्रेम-कहानी की रक्षा भी करनी है। आप जीवन के किसी भी क्षेत्र में सक्रिय हो, प्रेम ही असल प्रेरणा एवं ऊर्जा है। हर क्षेत्र में प्रेम कहानियां घटित होती हैं परंतु सभी लिखी नहीं जातीं।
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कथा 'उसने कहा था' भी युद्ध-कथा नहीं वरन् एक प्रेम-कथा है। बिमल रॉय ने इस कथा से प्रेरित फिल्म का निर्माण किया था परन्तु फिल्म में वह प्रभाव नहीं आ पाया।
आजकल राजकुमार हिरानी की 'संजू' बॉक्स ऑफिस पर नया इतिहास रच रही है परंतु प्रीतीश नंदी ने विलक्षण बात कही है कि हिरानी आज के सर्वश्रेष्ठ फिल्मकार हैं लेकिन, उनमें उस गुण का अभाव है जो संजय की एक विनाश से दूसरे विनाश की ओर अत्यधिक शांति के साथ जाने वाली ज़िंदगी को समझने के लिए जरूरी है। प्रीतीश नंदी का यह लेख गुरुवार को दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ है। आज के नक्कारखाने में इस तरह की आवाज कम ही लोग सुन पाते हैं। वे सुनना ही नहीं चाहते।