खेल-खेलमें / शम्भु पी सिंह
लाख प्रयास के बाद भी गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई। बहुत बार यह कम्बख्त धोखा दे चुकी है। चाहकर भी नयी गाड़ी लेने की हिम्मत नहीं हो रही है। इस खटारा को लेकर जहाँ भी जायें, मजाक का पात्र बनते देर नहीं लगती। आज भी वही हुआ जिसका डर था। अपने दोस्तों में चार चक्का तो दो ही के पास है। अपनी खटारा और उस्मान भाई की नयी नवेली मारूति जेन। रमेश पाठक तो अभी तक बाइक से ही काम चला रहा है। तीनों की दोस्ती बरसों की है, एक दूसरे के यहाँ पैदल ही चले जाते हैं, सरिता बिहार और बदरपुर की दूरी ही कितनी है। अब तो मैट्रो भी चल पड़ी है। इसलिये रमेश पाठक को कभी चार चक्के की आवश्यकता नहीं पड़ी। कभी जरूरत भी आन पड़ी तो इसी खटारा से ही काम चला लेते हैं। पिछले ही महीने जब रमेश का बाईक से एक्सीडेंट हो गया तो मैंने ही अस्पताल पहुँचाया।
"चलो आज क्लब जाने के लिये रमेश की ही मदद ली जाय" सोचते हुए महेन्द्र कौल रमेश के घर की ओर बढ़ गये। वे तो तैयार बैठे थे। भारत और पाकिस्तान का मैच एक साल बाद हो रहा था। पिछले वर्ल्ड कप में सेमीफाइनल मैच के बाद आज तक दोनों देशों के बीच मैच नहीं हुआ। क्रिकेट की दीवानगी तो दोस्तों के सर चढ़ बोलती है। तीनों का मानना है कि क्रिकेट मैच का आनंद तो बड़े स्क्रीन पर दोस्तों के साथ ही लिया जा सकता है। उस पर भी भारत और पाकिस्तान का मैच। एक-एक रन की चोरी का खिलाडि़यों को कितना मजा आता है ये तो पता नहीं, लेकिन इन दीवानों की तो कई बार सासें अटक जाती है। दरवाजे पर दस्तक देते ही दरवाजा खुला-
"आ गये जनाब अपनी खटारा से" रमेश की आँखें खटारा ढूंढ़ने लगीं।
"नहीं भाई! आज गाड़ी ने फिर धोखा दे दिया। बहुत प्रयास के बाद भी स्टार्ट नहीं हुई। मैं तो पैदल ही आ रहा हूँ। सोचा आज आपकी बाईक से ही क्लब चलते हैं।" महेन्द्र कौल हाँफने लगे। एक तो गाड़ी स्टार्ट करने का टेंसन और दूसरा रमेश के घर पैदल आने का।
"मैं कितनी बार कह चुका हूँ। हटाइये इस खटारा को और लीजीये कोई अच्छी-सी गाड़ी। कब तक इस खटारा को आप खटाते रहेंगें। बेचारी को अब आराम करने दीजीये।" रमेश ऐसी सलाह दसियों बार दे चुका हैं। लेकिन आज तक कौल ने कभी जवाब नहीं दिया।
"हाँ भाई। बोलने में थोड़े ही कुछ लगता है। मैं तो कम से कम कश्मीर से सौगात में अपनी खटारा लेकर आया हूँ। आया क्या, भागने को विवश हुआ। आज इसी गाड़ी से बीबी बच्चे साथ-साथ बाज़ार तो घूम आते हैं। आप तो पटना से बीमार बाईक मंगवा ली। पता नहीं सड़क किनारे पड़ी मिली थी या किसी यजमान ने दान में दे दी।" कौल का यह मजाक शायद चुभ गया। रमेश ने कोई जवाब नहीं दिया तो कौल को लगा कुछ गलत कह गया।
"क्या बात है आप सीरियस हो गये।" " नहीं कौल साहब! आपने गलत थोड़े ही कहा है। लेकिन क्या करें, ये बच्चों की पढ़ाई और बेटी के शादी की चिंता, पांव पसारने की इजाजत ही नहीं देता और उपर से साली मंहगाई चैन ही नहीं लेने दे रही।
"अरे। छोड़िये। जिन्दगी ऐसे ही चलती है। देर हो रही है। एक बज चुका है। दो बजे से मैच है। चलिये अपनी बाईक उठाइये और सीधे क्लब चलते हैं।"
"क्यों। उस्मान भाई भी तो चलेंगें। चलिये उन्हें भी साथ ले लेते हैं।"
"साथ क्या लेना। हमदोनों बाईक से चलते हैं। बाईक उनके घर छोड देंगें और तीनों उनकी कार से ही क्लब चलेंगें।"
"हाँ यही सही होगा। चलिये।" बाईक स्टार्ट कर दोनों दोस्त बदरपुर की ओर चल पड़े। पन्द्रह मिनट में ही उस्मान भाई के दरवाजे पर हाजिर थे। हमेशा की तरह आज भी दरवाजा बेगम ने खोला-
"आइये भाई साहब। बैठिये। लेकिन मियाँ तो अभी तक तैयार ही नहीं हुए हैं। मैं भी आश्चर्यचकित थी कि आज भारत और पाकिस्तान का मैच है और ये जनाब भारत का नक्शा लेकर बैठे हैं। पता नहीं क्या ढूँढ़ रहे हैं।" बैठने का इशारा कर बेगम किचन की ओर बढ़ गयी।
"मैडम। एक कप चाय पिला दें। तभी हमलोग जाने वाले हैं।"-रमेश ने आवाज तो बेगम को लगायी, लेकिन नजरे टिकी थी मियाँ उस्मान पर। आहट से ही दोनों के पदार्पण की जानकारी उस्मान भाई को हो चुकी थी, लेकिन नक्शा देखने में इतना मशगूल थे कि हाथ के इशारे से बैठने के अतिरिक्त उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उनका आज का व्यवहार पहले से बिल्कुल अलग था। पहले तीनों जब भी मिले तो बिना गले मिले नहीं रहते, लेकिन आज ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। आश्चर्य तो दोनों को हो रहा था, लेकिन सामने नक्शा होने के कारण दोनों ने इस बात को कोई तबज्जो नहीं दी।
"जी बैठिये। अभी हाजिर हुई।" बेगम को ये पता है कि ये दोनों बिना कुछ खाये पिये यहाँ से डिगने वाले नहीं हैं।
"क्यों मियाँ तुम भारत के नक्शे में क्या ढूँढ़ रहे हो। कहीं दूसरे शहर में कोई पुस्तैनी मकान का हवाला तो नहीं मिल गया है?"-सेंटर टेबुल पर फैले भारत के नक्शे पर उस्मान को आखें गड़ाये देखकर रमेश बैठते हुए बोले।
"क्या भाई! उस्मान। यार आप तो तैयार भी नहीं हुए। आज क्लब जाने का इरादा नहीं है क्या।" रमेश के साथ सोफे पर बैठते हुए कौल ने कुरेदने की कोशिश की।
"क्या ढूँढ़ रहे हैं नक्शे में?" रमेश भाई से रहा नहीं गया।
"अरे। ढू़ंढ़ना क्या है। आज बेटे से बहस हो गयी। हिमालय को लेकर। इसके विस्तार को लेकर"
"मियाँ। आज आप कहाँ हिमालय के चक्कर में फंस गये हैं। अरे भाई! आज एक दिवसीय क्रिकेट है। भारत और पाकिस्तान के बीच। पूरे एक साल बाद दोनों टीमें आपने सामने है। आप जानते हैं आज का मैच बहुत ही क्रूसियल होगा। आज हर हालत में भारत को जीतना ही होगा। अन्यथा कप गया हाथ से।" कौल को लग रहा था कि शायद उस्मान भाई इन बातों से बेखबर हैं।
"हाँ भाई। क्या फर्क पड़ता है। मैच तो आखिर एक खेल ही है न, जो अच्छा खेलेगा, वह जीतेगा। इसमें नया क्या है?" उस्मान भाई पर दोनों के बखान का कोई खास असर नहीं पड़ा।
"हाँ। भाई साहब मेरी भी समझ में नहीं आ रहा है। कि आज जनाब को क्या हो गया है। एक भी क्रिकेट मैच ये घर पर नहीं देख सकते। कहते हैं कि क्रिकेट मैच का आनंद तो बड़े परदे पर ही है। क्लब में दोस्तो के साथ मैच का मजा ही दुगुना हो जाता है और यदि भारत और पाकिस्तान के बीच मैच हो तो क्या कहना। लेकिन आज तो मियाँ सुस्त पड़े हैं। बार-बार सिगरेट पीये जा रहे हैं और पता नहीं इस नक्शे में पिछले एक घंटे से क्या ढूँढ़ रहे हैं।" बेगम सेंटर टेबुल के एक किनारे चाय रख वापस जाते हुए क्या कहती गयी।
"ऐसा मैं पहले कहता था। अब नहीं कहूंगा।" उस्मान भाई अचानक बेगम पर फट पड़े। दोनों दोस्त भी हक्का-बक्का थे। आज क्या हो गया है उस्मान भाई को, बड़ी उखड़ी-उखड़ी बातें करने लगे हैं। बेगम की समझ में भी नहीं आ रहा था। वह कुछ बोली तो नहीं, लेकिन एक टक उन्हें देखती रहीं।
"क्या बात है उस्मान भाई। आज आप कुछ अपसेट लग रहे हैं। किसी से कोई गुस्ताखी हो गयी है।" रमेश की समझ में नहीं आ रहा था।
"नहीं। रमेश भाई! ऐसा कुछ नहीं है। मेरी तबीयत थोड़ी नासाज है। आप लोग क्लब जायें। मैं लेटे-लेटे घर में ही मैच देख लूंगा। अरे! आपलोग चाय तो लें।" उस्मान ने चाय का कप आगे बढ़ाया।
"उस्मान भाई! क्या बात करते हैं आप? आज तक ऐसा हुआ। जब क्रिकेट मैच हम तीनों ने शहर में रहते हुए एक साथ न देखी हो और वह भी भारत पाकिस्तान का मैच सिर्फ खेल नहीं है, जंग है।" कौल को आवेश में आते देख रमेश ने टोका-
"बस। बस। रहने दीजीये ये जंगे-आजादी का फलसफा। हमें तो मैच का आनंद लेना है। चलिये उस्मान भाई! तैयार होइये। क्लब में मैच का आनंद लिया जाये।"
"आज तो रहने ही दीजीये। क्लब जाने का आज मेरा मूड नहीं है। आप दोनों हो आइये।" उस्मान भाई नक्शे पर नजरें गड़ाये, बाहर जाने में अपनी असमर्थता जता रहे थे।
"ऐसा कैसे हो सकता है। जायेंगें तो तीनों। नहीं तो फिर हमदोनों भी वापस घर जाते हैं। बिना आपके क्लब में मैच देखने का मजा ही क्या है। आपकी दीवानगी देखते बनती है उस्मान भाई।" कौल हर हालत में हामी चाहते थे।
"क्यों। कौल साहब। सिर्फ मेरी दीवानगी दिखती है। मेरे पर लोगों का कटाक्ष नहीं दिखता है आपको।" उस्मान के चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कान तैर रही थी।
"कैसा कटाक्ष?।"-रमेश को समझ में नहीं आ रहा था।
"अब रहने दीजीये, रमेश भाई। सारी चीजों से अवगत है आप। अनजान बनने का नाटक मत कीजीये।" उस्मान पूरे तैश में थे। "क्या बात करते हैं उस्मान भाई। हमलोग नाटक करते हैं।" कौल को भी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
"क्या हो गया है आपको? ऐसी उल्टी-सीधी बातें क्यों कर रहे हैं?" रमेश को आज उस्मान बिल्कुल बदले-बदले से नजर आ रहे थे। थोड़ी देर के लिये बिल्कुल खामोशी छा गयी। रमेश और महेन्द्र कौल एक दूसरे को देख इशारों में कुछ समझने और समझाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर माजरा क्या है। कल तक तो ऐसा कुछ भी नहीं था। आज अचानक कोई ऐसी घटना भी नहीं घटी, जो हालात को यहाँ तक पहुँचाने के लिये जिम्मेदार हो। बेगम पर नजर पड़ते ही महेन्द्र कौल ने इशारे से जानना चाहा। इशारों में ही बेगम ने भी अनभिज्ञता प्रकट की। रमेश से रहा नहीं गया। "आखिर बात क्या है उस्मान भाई। आप साफ-साफ क्यों नहीं बताते। हमारी समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा है।"
"रमेश भाई। बात इतनी-सी है कि क्लब में भारत पाकिस्तान के बीच मैच देखते हुए मैं अनकम्फर्टेबुल फील करता हूँ। अगर भारत के फेवर में ताली बजाता हूँ तो बनावटी और ढोंग करने का व्यंग्य किया जाता है। यदि पाक खिलाड़ी के अच्छे खेल की तारीफ करता हूँ तो पाकिस्तानी करार दिया जाता हूँ। अब बताइये मैं क्या करूं। मैच देखूंगा तो कोई प्रतिक्रिया तो होगी। कैसी प्रतिक्रिया करूं मैं?" उस्मान की आवाज में तल्खी थी। "किसने मना किया है आपको प्रतिक्रिया देने से। उस्मान भाई! अच्छे खेल की तारीफ हर कोई करता है, वह भारतीय खिलाड़ी हो या पाकिस्तानी। आप अपने-आपको अलग क्यों मानते हैं और ये सब तो खेल की बाते हैं। खेल-खेल में तो ये सब चलता है उस्मान भाई!" कौल ने समझाने का प्रयास किया।
"खेल-खेल में क्या किसी की चड्डी उतारेंगे आप या किसी की राष्ट्रीयता पर सवाल उठाएंगे या विदेशी जासूस बनाएंगे? कौल साहब ये सब नहीं चलेगा। आप यदि कश्मीर छोड़ने को विवश हुए तो इसके लिये भारतीय मुसलमान जिम्मेदार नहीं है। आप इसे बखूबी जानते हैं। अब आप मुझे खेल भावना सिखाएंगे?" गुस्से से कांपने लगे उस्मान।
"मैं क्या राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाऊँगा उस्मान भाई। मेरी राष्ट्रीयता की रक्षा तो आपने की है। कश्मीर से दिल्ली आने पर सबसे पहले मैंने आपको ही स्टेशन बुलाया था। मैं अपने रिश्तेदार के यहाँ जाना चाहता था, लेकिन आपने मेरी एक नहीं सुनी और सीधे अपने घर लेते आये। क्या परिचय था मेरा और आपका। सिर्फ एक सेमिनार में मिले थे। कैसे भूल सकता हूँ आपके एहसान को। लेकिन मैच देखने के दौरान किये गये कमेंट को सीरियसली नहीं लेना चाहिये।"
"चूंकि व्यंग्य आप पर नहीं होता है, इसलिये आपने इन बातों पर कभी गौर नहीं किया। मैं पूरे मैच के दौरान न ताली बजा सकता हूँ, न ही गम प्रकट कर सकता हूँ। आपको याद होगा 2011 के वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल, जब सचिन तेंडुलकर का चौथी बार कैच ड्रॉप हुआ था। तब मैंने कमेंट किया था कि सचिन अब तो कम से कम शतक जरूर बनाना। चार जीवन दान मिल चुका है। आपको याद है 85 रन पर सचिन आउट हो गये थे, तो आपके भाइयों ने पीछे से क्या कमेंट किया कि 'भारत में भी बहुत पाकिस्तानी हैं। आखिर सचिन को नजर लग ही गयी।' कौन था पाकिस्तानी। उस्मान की नजर सचिन को लग गयी? इसलिये सचिन आउट हो गये। कभी आपने पूछने की जरूरत समझी, किस पाकिस्तानी की ओर इशारा है, कौन है वह पाकिस्तानी। नहीं। क्योंकि आप पर कोई कमेंट नहीं था। इस बात को आप जानते थे। क्षमा कीजीये रमेश भाई! भारत पाकिस्तान का मैच देखने मैं क्लब में नहीं जा सकता। आप दोनों जायें।" उस्मान भाई बोलते-बोलते हांफने लगे।
"एक दो सरफिरों की वजह से आप क्लब जाना छोड़ देंगें तो ऐसे लोगों का तो मनोबल ही बढ़ेगा न। हम ऐसे लोगों को नोटिस ही क्यों करें। साले बड़-बड़ करते हैं, करने दीजीये। हम अपना हर्ट बीट क्यों बढ़ायें?" रमेश ने स्थिति नार्मल करने का प्रयास किया। "जी हाँ। वे जो भी बोलना चाहें बोलें, उन्हें तो पूरा अधिकार है। आप तो उन्हें कुछ कह नहीं सकते। आपके अपने हैं न। गाली तो हमें सुननी है। पाकिस्तानी जो ठहरे! अरे! हमने भी इस देश को बनाने में उतनी ही मेहनत की है जितनी आपने। आजादी आपकी थाली में सजाकर नहीं दी गयी थी। हमसब ने इसे मिलकर हासिल किया था और अब अपने ही देश में हम पाकिस्तानी हो गए और आप अपने। क्षमा कीजिए मैं आपलोगों के साथ नहीं जा सकता।" तल्ख आवाज कमजोर पड़ गयी थी। लेकिन अपने दोस्त के सामने कमजोर नहीं दिखना चाहते थे। उठ खड़े हुए, शायद बाथरूम जाना चाहते थे। माहौल गमगीन हो चला था। दोनों दोस्त भी खड़े हो गये। एक कोने में बेगम भी खड़े माजरे को समझने का प्रयास कर रही थी। उस्मान भाई जैसे ही जाने को मुड़े, रमेश गले से लिपट गये।
"कौन कहता है आप पराये हैं। अरे। आप तो हमारे अजीज हैं। पिछले पच्चीस सालों की दोस्ती है हमारी। आप पराये कैसे हो सकते हैं? अरे इस तरह के कमेंट करने वाले साइलेंट कम्यूनल हैं। इनका जवाब हमें इनकी भाषा में ही देना होगा। प्लीज उस्मान भाई! आप ऐसी बातें न करें।" रमेश भी रूआँसें हो चले थे। रमेश के गले लगते ही उस्मान भाई फूट-फूट कर रोने लगे। रमेश भी आंसुओं को नहीं रोक पाये। दोनों की सिसकियाँ पूरे माहौल को गमगीन बना चुकी थी। दोनों के गिरते आँसू सेंटर टेबुल पर पड़े भारत के नक्शे पर गिर रहा था। दोनों के आंसुओं से भारत का नक्शा भींगा था या इस धरती का कलेजा फटा था, जो अपने बच्चों को रोते नहीं देखना चाहती थी, पता नहीं, लेकिन जो जहाँ था उसका साथ देने वाला कोई और नहीं उसके आंसू थे। किसी का दुपट्टा भींगा तो किसी ने रूमाल को भिंगोया। रमेश और उस्मान भाई को धीरे से कौल ने अलग किया। बिना कुछ बोले सभी अपनी जगह सर झुकाये खड़े थे। चुप्पी उस्मान भाई ने तोड़ी-
"बेगम चाभी देना मैंच देखने तो क्लब ही जाना है।" सभी के गमगीन चेहरे पर हल्की मुस्कराहट की रेखाएँ तैर गयी और चल पड़े तीनों दोस्त मैंच देखने क्लब की ओर। मैच कोई भी जीते, लेकिन यहाँ तो भारत की जीत हो चुकी थी।