खोखा बाबू / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Gadya Kosh से
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जोॅन दिन सोनमनी के छठी छेलै वहेॅ दिन साल भर बाद जमींदार सूर्यमोहन सिन्हा केॅ बेटा जनम लेलकै। रातोॅ के अंतिम पहर में, एकदम भोरैं। फैरछोॅ होयके एक घंटा पैन्हेॅ। जमींदारिन केॅ बाल-बच्चा होय वाला छै, ई केकरौह मालूम नै छेलै। परदा में रहै के कारण ई जानवोॅ भी मुश्किले काम छेलै। बड़ोॅ आदमी के बड़ोॅ बात। ई ज़रूर सभ्भें जानै छेलै कि जमींदारिन हमेशा बीमारेॅ रहै छै आरो बिमारिये हालतोॅ में हवा बदलै लेली यहाँ लानलेॅ छै। साथोॅ में डागडर आरो गाड़ी पर एक ठो छोटो-मोटोॅ अस्पतालनुमा व्यवस्था भी छेलै। लागले चार बेटिये होय गेला के कारण जमींदार दुखी छेलै। पीर-मजार, काशी करपट करी केॅ जमींदार थक्की गेलोॅ रहै। ई तेॅ घुरतें-बुलतें एक ठो औघड़ एैेलोॅ रहै जें कहलकै कि नया राज जमींदारी झौआ कोठी खरीदोॅ आरो चंगेरी में बढ़िया पक्का के कचहरी बनावोॅ, यही राजोॅ के पैरा बेटा लिखौ छौं। यही लेली महँगा दाम सात लाखोॅ में ई जमींदारी हुनी खरीदनेॅ छेलै। सब काम पूरा होय गेलोॅ छेलै। औघड़ेॅ के अनुसार बच्चा जनम के जघ्घोॅ मौजा चंगेरी मिर्जापुर राखलोॅ गेलोॅ छेलै।

जमीन्दारें सोनमनी जनम केॅ भी यै शुभ दिनोॅ सें जोड़ी केॅ देखै छेलै। जमींदारें आपनोॅ बेटा के नाम खोखा बाबू राखलकै। बढ़तें हुअें दूनोॅ बच्चा जबेॅ छोॅ-सात सालोॅ के होय गेलै तेॅ खोखा जहाँ भी रहै, खेलै लेली भागी केॅ सोनमनी ठियां ही आबी जाय। खोखा के सोनमनी के प्रति लगाव देखी केॅ जमींदारें सीता आरो बिहारी सें कहि केॅ सोनमनी केॅ आपनोॅ घरोॅ पर कचहरी आबै-जाय केॅ पूरे छूट दै देलकै। दूनोॅ साथें खेलेॅ-बढ़ेॅ लागलै। खोखा के पढ़ाय-लिखाय वास्तें जे गुरूजी राखलोॅ गेलोॅ छेलै ओकरै ठियां सोनमनी भी पढ़ेॅ लागलै। सोनमनी के तेज बुद्धि आरो जे गुरूजी पढ़ाबै ओकरा तुरत याद करी केॅ लिखी दै आरो सुनाय दै। तीनेॅ-चार बरसोॅ में सोनमनी अच्छा लिखेॅ-पढ़ेॅ लागलै। खोखा तें खोखा छेलै। पियार-दुलारोॅ सें जिद्दी होय गेलोॅ छेलै आरो पढ़ै में धियान नै के बराबर दै छेलै। एकाध बरस आरो केन्होॅ केॅ चललै। बारह बरसोॅ केॅ दूनोॅ छैला जबेॅ गाँमोॅ में चलै तेॅ देखबैया कृष्ण सुदामा केॅ जोड़ी कहै। छेवोॅ करलै वहेॅ रंग। लेकिन यहाँ थोड़ोॅ उलटा यहेॅ छेलै कि गरीब सुदामा सोनमनी देखै में कारो छेलै आरो कृष्ण रूप में खोखा बाबू झकझक दूध रंग उजरोॅ गोरोॅ।

मतुर ई साथ बेशी दिन चलै वाला नै छेलै। कहाँ एक तरफ पैसा के पूंज पर बैठलोॅ जमींदार आरो दोसरोॅ तरफ गरीब एक-एक पैसा जोड़ी केॅ चलै वाला बिहारी। सब तेॅ ठीके-ठाक छेलै मतुर जमींदारिन केॅ सोनमनी के पढ़वोॅ, खोखा सें बेशी तेज होबोॅ खटकै लागलोॅ छेलै। मतुर सीधे कुछ्छु कहना जमींदारिन केॅ वशोॅ के बात नै छेलै। बढ़िया पढ़ाय के नामोॅ पर जमींदारें खोखा केॅ कलकत्ता भेजी देलकै।

सोनमनी कानतें रहलै। दू दिन खैलकै-पिलकै नै। खोखा भी कम विरोध नै करलकै मतुर माय-बापोॅ के इच्छा के सामना में कोनोॅ वश नै चललै। सीता के पढ़ाय रो मोॅन छेलै मतुर गाँमोॅ में एक्कोॅ ठो ऐन्होॅ कोय व्यवस्था नै छेलै। आरो बाहर भेजी केॅ काहू पढ़ाय के औकात नै छेलै। सोनमनी के मोॅन मसोसी केॅ रहि गेलै। सीतां चारोॅ तरफ हियैलकेॅ, मतुर पैलकै यहेॅ कि गाँव वाला केॅ रोग, बिमारी, गंदगी, गरीबी, अशिक्षा भगवानोॅ सें वरदानेॅ रूपोॅ में मिललौ छै। ऐकरा सें लड़ी केॅ जे जियेॅ पारोॅ ओकरा सें भगवंतोॅ कोय नै। खेती, मजूरी, गाय-भैंस, होॅर-बैल यहेॅ गाँव के ज़िन्दगी छेकै। ऐकरा मानी केॅ सीतोॅ सोना नांकी बेटा सोनमनी केॅ गाँमोॅ के यहेॅ जीवन में रहै केॅ उपदेश भारी मोॅन सें बाँचलकेॅ।