खोज / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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1930 सें 1950 कुल मिलाय केॅ बीस बरसोॅ के समय जैवा पर बड़ी भारी बितलै। धर्म आरो राजनीति के बीच त्रिशंकु नांकी झूलतें रहलै। मनोॅ के शांति लेली आकुल-व्याकुल जैवा केॅ रात-रात भर नीन्द नै आवै। नैहरा में सुख आरो अराम ही अराम छेलै। जै पति केॅ पुरुष के रूप में नैं पैनें छेलै आरो जेकरा मात्रा एक झलक मड़वा पर देखनें छेलै उनको याद सुतलेॅ-जागनें घेरी लै छेलै। छोटका भाय अधिकोॅ के पास सेथरोॅ धर्म आरो क्रांतिकारी साहित्य के किताब छेलै। भागवत, पुराण, गीता, महाभारत, रामायण एक पर एक ग्रंथ आलमारी में राखलोॅ, मतुर पढ़तें चित्त स्थिर नै रहै छेलै। चकरधरें रोज बैठावेॅ आरो महाभारत पढ़ि केॅ सुनाबै देर रात तांय, मतुर सब बेकारे, चित्त पर स्थायी प्रभाव छोड़ै में सब व्यर्थ होय जाय।

जैवा के ई स्थिति रोॅ आभास लालजी आरो अधिक दूनोॅ भाय केॅ होय रेल्होॅ छेलै मतुर यै विषय में खुली केॅ दोनों भाय बीचोॅ में बात नै हुअेॅ पारै।

माघोॅ के कपाय दै वाला ठंडा समाप्ति पर छेलै। लालजी मड़रोॅ के चारों धाम तीरथ जायके तैयारी होय रैल्होॅ छेलै। माघी पूर्णिमा के दिन जैवोॅ निर्धारित छेलै। लालजी जैवा केॅ बोलाय केॅ कहलकै, "जैवा, अशांत मनोॅ के शांति लेली, काम, क्रोध, आलस्य भय केॅ मारै लेली तीरथ के भ्रमण करोॅ। बनवास के दुख भगवान रामें आरोॅ पांडवेॅ तीरथ भ्रमण करी केॅ ही काटलकै। तीरथ में भगवान बसै छै। भगवान के चरण में ही शांति मिलतौं, दुख, शोक, मोह, माया सें छुटकारा उनके किरपा सें मिलेॅ पारै छै।" अतनां कहि केॅ लालजी मड़रोॅ केॅ लागलै कि मनोॅ पर बहुत दिनां सें राखलोॅ-धरलोॅ एक बड़का बोझोॅ उतरी गेलोॅ छै।

जैवा केॅ माथा के पियार सें सहलैतें लालजी आगू बोललै, "चिन्ता तोरा कुछ्छु नै करना छै। तोय अधिकोॅ सें पूछी केॅ स्वीकृति लै लेॅ। घरोॅ रोॅ आधोॅ गारजन वहोॅ छेकै। हुनी जे कहतौं अच्छेॅ कहतौं। धर्मशास्त्रा के गियान हमरा सें बेशी अधिकैं जानै छै। देखै नै छोॅ, पूवारी बीचला घरोॅ में भगवान राम सीता आरो शिव-पार्वती के बिना पूजा करनें हुनी कहियोॅ खाना नै खाय छै। दिन भर बैठी केॅ कुछ न कुछ हुनी दुवारी पर पढ़तैं रहै छै।"

बड़ोॅ भाय लालजी के विचारोॅ सें जैवा केॅ कुछ्छू शांति के एहसास होलैं। उनका वै ठिंया सें गेला के बाद जैवा केॅ ठोरोॅ पर हल्का हँसी थिरकी गेलै। "भैयां, हमरा मनोॅ के अच्छा खराब सब स्थिति केॅ केनां जानी गेलै। चलोॅ ठीक्के छै, बाकी बात छोटका भाय सें बतियैलोॅ जाय।"

साँझ होय गेलोॅ छेलै। छोटकी भौजी रमनकावाली साँझ देखाय केॅ लालटेन जलाय रैल्ही छेलै। जैवा केॅ ऐतें देखी केॅ कहलकै, "जैवा! भैया केॅ लालटेन दै आभोॅ। अन्हारैं में बैठलोॅ छौं।"

जैवा तेॅ यै अवसर के ताक में छेलवेॅ करलै। लालटेन आगू में राखी केॅ हुनका गोड़थारी में राखलोॅ बेंत लकड़ी के बनलोॅ आसनी पर बैठी गेलै। जैवा केॅ बैठतें देखी केॅ अधिक मड़रें बूझी गेलै कि कोय बात छै। छोटोॅ भाय होयके कारण कोय भी बात जैवां खुली केॅ दुखोॅ-सुखोॅ के उनका सें बतियावै छेलै।

अधिक हाँसिये केॅ बोललै, "कोय बात छै की जैवा? बड्डी जमी केॅ बैठलोॅ।"

जैवा बड़का भाय लालजी साथें होलोॅ सब बात बतैलकै। अधिक थोड़ोॅ देर लेली गंभीर होय गेलै। अधिकें सोची रैल्होॅ छेलै कि "जैवा केॅ लैकेॅ दुनोॅ भाय के मनोॅ में एक्केॅ बात चली रैल्होॅ छै। मोह, माया, चिन्ता, भय, काम, क्रोध सें छुटकारा पावै लेली एकरा सें सुन्दर कोय दोसरोॅ रास्ता नै छै।"

"तोरोॅ की मोॅन छौं?" अधिकें प्रश्न करलकै।

"अपनें जे कहोॅ। हम्में मथभौरी, दुखियारी जेनां ई भवसागर पार उतारोॅ।" जैवा दूनोॅ हाथ जोड़नें प्रार्थना के अंदाज में बोललै।

"भैया एकदम ठीक कहै छौं। यही माध्यम सें तोरोॅ दुख निवारण होतौं। हम्में जानै छियै कि हैजा में हुनी अकाल मौत मरलोॅ छै। हुनकोॅ आत्मा तोरा हर समय पिछुवैतें होतौं। हुनका प्रेतयोनि से मुक्ति लेली भगवानोॅ सें प्रार्थना करिहोॅ। लौटतें हुअें गया में पिंडदान करी दिहोॅ। उनका शांति मिली जैतेॅ आरो तोरोॅ पत्नीधर्म पूर्ण होय जैतौं।" अधिकें रहलोॅ-सहलोॅ बाकी बचलोॅ सब बात कहि देनें छेलै।

जैवा अचरज आरो विस्मय सें छोटका भाय अधिकोॅ रोॅ मुँह ताकतैं रहि गेलै। जे बीती रैल्होॅ छै पल-पल ओकरा साथें उ$ सब बात हिनीसीनी केनां जानी जाय छै।

ओकरोॅ बाद अबोध बच्चा नांकी टुकुर-टुकुर ताकतें जैवा केॅ हुनी महाभारत के शांति पर्व रोॅ दानी वीर कर्ण के श्राद्ध कथा सुनावेॅ लागलोॅ छेलै। जैवा जे खोजी रैल्होॅ छेलै, जोंन तत्व ज्ञान के उनका ज़रूरत छेलै, उ$ मिली गेलोॅ छेलै।