खोया पानी / भाग 25 / मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी / तुफ़ैल चतुर्वेदी

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वारदात में शामिल

ताजा वारदात की सूचना पा कर रिपोर्टर की बांछें खिल गयी। इस खुशी में उसने एक सिग्रेट और दो मीठे पानों का आर्डर दिया। जेब से पिपरमेंट और नोट बुक निकाली। लंबे समय बाद एक चटपटी खबर हाथ लगी थी। उसने फैसला किया कि वो इस केस का प्लाट अपने कहानीकार मित्र सुल्तान को दे देगा जो रोज रीयल लाइफ ड्रामे का तकाजा करता है। बलात्कार के इस केस का विवरण सुनने से पहले ही दिमाग में सुर्खियां सनसनाने लगीं। अब की बार हैडिंग में ही कागज पे कलेजा निकाल के रख दूंगा। उसने दिल में निश्चय किया 'सत्तर वर्षीय बूढ़े ने सात वर्षीय लड़की से मुंह काला किया' यह हैडिंग जमाने की खातिर पिछले साल उसे लड़की की उम्र से दस साल निकाल कर बूढ़े की उम्र में जोड़ने पड़े थे ताकि उसी अनुपात से जुर्म की संगीनी और पाठक की रुचि बढ़ जाये। मिर्जा अब्दुल वुदूद बेग कहते हैं कि यह कैसी बदनसीबी है कि सीधे-सादे और सपाट शब्द rape के जितने विकल्प हमारे यहां प्रचलित हैं, उनमें एक भी ऐसा नहीं जिसमें स्वतः आनंद न आता हो। कोई सुर्खी, कोई-सा वाक्य उठा कर देख लीजिये, यौनानंद के रस में डूबा नजर आयेगा। 'सत्तर वर्षीय बूढ़ा रात के अंधेरे में मुंह काला करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया।' 'पैंसठ साला बूढ़ा रात भर कमसिन युवती की इज्जत से खेलता रहा।' जैसे कि अस्ल एतराज पैंसठ बरस पर है जिसमें अपराधी का कोई दोष नहीं (दरअस्ल इस सुर्खी में नैतिकता, आश्चर्य, कुरेद और जलन समानुपात में मिले हुए हैं, अर्थात नैतिकता सिर्फ नाम की) 'चारों आरोपियों ने नवयुवती को अपनी हवस का निशाना बनाया। हैवान बार-बार पिस्तौल दिखा कर आबरू पर डाका डालता रहा, पुलिस के आने तक धमकियों का सिलसिला बराबर जारी रहा।' यह हैडिंग और वाक्य हमने अखबारों में से हू-ब-हू नक्ल किये हैं, कुछ टर्म्ज और पूरे-के-पूरे वाक्य ऐसे हैं जिन्हें हम नक्ल नहीं कर सकते, जिनसे लगता है कि बयान करने वाला Voyeur मन के साथ वारदात में शामिल होना चाहता है। नतीजा यह कि पढ़ने वाले की कानूनी हमदर्दियां युवती के साथ, परंतु दिल आरोपी के साथ होता है।

'समझो वहीं हमें भी दिल हो जहां हमारा'

कोयले की इस खान से और नमूने बरामद करना आवश्यक नहीं है कि हाथ काले करने के लिए यही काफी है। संक्षेप में इतना बता दें कि जरा खुरचिये तो आपको यौन अपराध से संबंधित कोई वाक्य आनंद से खाली नहीं मिलेगा। हर शब्द सिसकी और हर वाक्य चुस्की लेता दिखाई देगा।


कुत्ता क्यों काटता है ?

काफी देर तक तो बिशारत को विश्वास नहीं आया कि सब कुछ सच हो सकता है। परंतु जब रात के नौ बज गये तो मामला सचमुच गंभीर नजर आने लगा। ए.एस.आई. ने कहा 'आज की रात, कल का दिन और रात आपको हवालात में गुजारने पड़ेंगे। कल इतवार पड़ गया। परसों से पहले आपकी जमानत नहीं हो सकती' उन्होंने पूछा 'किस बात की जमानत?' उन्हें फोन भी नहीं करने दिया। उधर हवालात की कोठरी में जिसके जंगले से पेशाब की खरांद भक-भक आ रही थी, खलीफा थोड़ी-थोड़ी देर बाद हथकड़ी वाला हाथ आसमान की ओर उठाता और ही ही ही ही करके इस तरह रोता कि लगता हंस रहा है। बिशारत का गुस्सा अब एक अपंग और गूंगे का गुस्सा था। इतने में थाने के मुंशी जी इशा (रात) की नमाज से फारिग होकर उनके पास आये। सूख कर बिल्कुल टिड्डा हो गये थे, मगर ऐनक के पीछे आंखों में बला की चमक थी। स्वर में ममता और मिठास घुली हुई थी। एक बोतल लेमोनेड की अपने हाथ से गिलास में उड़ेल कर पिलाई। इसके बाद दोनों ने एक-दूसरे को अपनी डिबिया से पान निकाल कर खिलाया।

मुंशी जी बड़ी विनम्रता से कहने लगे कि हमारे सरकार (एस.एच.ओ.) बड़े भले आदमी हैं - शरीफों के साथ शरीफ और बदमाशों के हक में हलाकू। यह मेरी गारंटी है कि आपका चोरी हुआ माल तीन दिन में बरामद करा दिया जायेगा। सरकार अंतड़ियों में से खींच कर निकाल लाते हैं। इलाके के हिस्ट्री शीटर उनके नाम से थर-थर कांपते हैं। वो रेडियोग्राम, जेवरात और साड़ियां जो उस कमरे में आपने देखीं, आज सुब्ह ही बरामद की गयी हैं। कहने का मकसद यह है कि हूजूर की गाड़ी में जो लकड़ी पड़ी है, वो सरकार के प्लाट पर डलवा दीजिये, आपकी इसी मालियत की चोरीशुदा लकड़ी सरकार तीन दिन में बरामद करवा देंगे यानी आपकी जेब से तो कुछ नहीं गया। मैंने इसकी उनसे बात नहीं की, हो सकता है सुन कर खफा हो जायें। बस यूं ही आपकी राय ले रहा हूं। सरकार की साहबजादी का रिश्ता खुदा-खुदा करके तय हुआ है बिटिया तीस बरस की हो गयी है। बड़ी नेक और सुशील है। आंख में मामूली-सा टेढ़ापन है, लड़के वाले दहेज में फर्नीचर, रेडियोग्राम और वैस्ट ओपन प्लाट में बंगला मांगते हैं। खिड़की-दरवाजे उम्दा लकड़ी के हों अगर चूक जायें तो फिर यह सब कुछ भोगना-भुगतना पड़ता है वरना हमारे सरकार इस किस्म के आदमी नहीं। आज कल बहुत परेशान और चिड़चिड़े हो रहे हैं। यह तो सब देखते हैं कि बावला कुत्ता हरेक को काटता फिरता है यह कोई नहीं देखता कि वो अपनी मर्जी से बावला थोड़े ही हुआ है। आपने उनकी बातों से खुद स्वभाव का अनुमान लगा लिया होगा। तीन बरस पहले तक शेर कहते थे। शाम को थाने में शायरों की ऐसी भीड़ होती थी कि कभी-कभी तो हवालात में कुर्सियां डलवानी पड़ती थीं। एक शाम बल्कि रात का जिक्र है - घमासान का मुशायरा हो रहा था। सरकार तरन्नुम से ताजा गजल पढ़ रहे थे। सारा स्टाफ दाद देने में जुटा हुआ था। मकते (गजल का आखिरी शेर) पर पहुंचे तो संतरी जरदार खां ने थ्री नाट थ्री राइफल चला दी। उपस्थितगण समझे, शायद कबाइली तरीके से दाद दे रहा है, परंतु जब वो शोर मचाने लगा तो पता चला कि गजल के दौरान जब मुशायरा अपने शबाब पर पहुंचा तो डकैती केस में शामिल एक आरोपी जो हवालात का जंगला बजा-बजा के दाद दे रहा था, भाग गया। शायरों ने उसका पीछा किया। मगर उसे तो क्या पकड़ के लाते, खुद भी नहीं लौटे। खुदा जाने, कांस्टेबलों ने पकड़ने में काहिली बरती या उसने पकड़ाई नहीं दी, मगर, सरकार ने हिम्मत नहीं हारी। रातों-रात उसी नाम के एक छंटे हुए बदमाश को पकड़ के हवालात में बंद कर दिया। कागजों में फरार आरोपी के पिता का नाम बदल दिया लेकिन उसके बाद शेर नहीं कहा। तीन बरस से सरकार की तरक्की और शेर की आमद बंद है। अदम साहब से यारी है पिछले बरस अपने मासूम बच्चों के हल्क पे छुरी फेर कर ऊपर के अफसरों को डेढ़ लाख की भेंट चढ़ायी तो 'लाइन हाजिरी से छुटकारा मिला और इस थाने में तैनाती मिली। अब सरकार कोई वली-औलिया तो हैं नहीं कि सलाम फेर कर नमाज की चटायी का कोना उलट कर देखें तो डेढ़ लाख के नोट आसमान से धरे मिलें। दूध तो आखिर थनों से ही निकालना पड़ता है, भैंस न मिले तो कभी-कभी चुहिया ही को पकड़ के दुहना पड़ता है।

बिशारत को अस्ल नुकसान से अधिक इस अपमान भरी मिसाल पर क्रोध आया। बकरी भी कह देता तो चल जाता (वैसे छोटी है जात बकरी की) लेकिन सूरते-हाल कुछ-कुछ समझ में आने लगी। उन्होंने कहा मैं अपनी रपट वापस लेता हूं। ए.एस.आई. ने उत्तर दिया कि दिन दहाड़े चोरी ऐसा अपराध है कि जिस पर राजीनामा नहीं हो सकता यानी पुलिस का हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है। रपट वापस लेने वाले आप कौन होते हैं? अगर आपने वापस लेने पर जोर दिया तो झूठी रपट कराने पर आपका यहीं 'आन दि स्पाट' चालान कर दूंगा। इज्जत के लाले पड़ जायेंगे। आपका वकील बहुत योग्य हुआ तो तीन महीने की होगी। एस.एच.ओ. साहब सोमवार को निर्णय लेंगे कि आप किस-किस दफा के तहत शामिल पाये गये हैं।

उन्हें ऐसा लगा जैसे उनका प्रत्येक कर्म, उनका सारा जीवन पुलिस-हस्तक्षेप के योग्य रहा है और यह सरासर पुलिस की गफलत का नतीजा था कि वो अब तक जिंदगी इज्जत आबरू से बसर कर रहे थे।

उन्होंने तैश में आकर धमकी दी कि मुझे फिजूल में कैद किया गया है, यह गैर कानूनी हिरासत है। मैं हाईकोर्ट में Habeas Corpus Petition पेश करूंगा। ए.एस.आई. बोला, 'आप पिटीशन क्या पेश करेंगे। हम खुद आपको हथेली पर धर के अदालत में पेश कर देंगे। धड़ल्ले से दस दिन का जिस्मानी रिमांड लेंगे, देखते जाइये।'


आपबीती लिखने की खातिर जेल जाने वाले

ए.एस.आई. यह धमकी दे कर चला गया। कुछ मिनट बाद उसका बॉस एस.एच.ओ. भी अपना डंडा बगल में दबाये अहम-ओहम-आहम, खांसता-खंखारता अपने घर चला गया। ठीक उसी समय मिठाई वाला वकील न जाने कहां से दोबारा आन टपका। रात के ग्यारह बजे भी उसने काला कोट और सफेद पतलून पहन रखी थी। वकीलों का विशेष कलफदार सफेद कालर भी लगाये हुए था। कहने लगा, 'भाई! बेशक मेरा इस मुकदमे से कोई संबंध नहीं, महज इंसानी हमदर्दी की बिना पर कह रहा हूं कि आप अनेक अपराधों में फंसाये जा सकते हैं। खुदा न करे अभी दफा 164 फौजदारी अधिनियम के तहत आपके ड्राइवर का इकबाले-जुर्म कलमबंद हो जाये तो लेने-के-देने पड़ जायेंगे। आप सूरत से बाल-बच्चेदार आदमी मालूम होते हैं - लीडर तो हैं नहीं जो राजनैतिक कैरियर बनाने और आत्मकथा लिखने के लालच में जेल जायेंगे। विभाजन से पहले बात और थी। लीडर बागियाना तकरीर करके जेल जाते तो सारा देश इंतजार में रहता कि दो-तीन बरस बाद छूटेंगे तो कोई व्याख्यान, कोई आपबीती, कोई रचना पूरी करके निकलेंगे। बहरहाल वो समय और था आजकल वाला हाल नहीं था कि भाषण देने से पहले ही धर लिए गये और छूटे तो जेल के दरवाजे पर कोई फूलमाला पहनाने वाला तक नहीं। विश्वास कीजिये, मैं यह सजेस्ट नहीं कर रहा कि आप मुझे वकील कर लें, हालांकि मैं आपको मना भी नहीं कर सकता। महज आपके भले की खातिर कह रहा हूं, मुझे प्रेक्टिस करते पच्चीस बरस एक महीना बीता, मैंने आज तक कोई कानूनी गुत्थी ऐसी नहीं देखा जिसे नावां रुपया न सुलझा सके। सारे सिम-सिम इसी से खुलते हैं। आगे जैसी आपकी मर्जी अल्बत्ता इतना फूड फार थॉट रात बिताने के लिए छोड़े जाता हूं कि इस समय रात के साढ़े ग्यारह बज रहे हैं, आपने इन आठ घंटों में पुलिस का क्या बिगाड़ लिया जो आगे आठ घंटों में पुलिस का बिगाड़ लेंगे। कल इतवार है, आप इसी तरह हवालात में उकड़ूं बैठे अपने संवैधानिक अधिकारों और फौजदारी अधिनियम के हवाले देते रहेंगे। अदालत अधिक-से-अधिक यही तो तीर मार लेगी कि आपको सोमवार के दिन रिहा कर देगी, सो हम तो सोमवार से पहले ही आपको इस चूहेदान से बाहर देखना चाहते हैं। आप हिरासत में हैं। अच्छा बहुत रात हो गयी। मैं चलता हूं मुंशी जी को मेरे घर का फोन नंबर मालूम है।'

वकील के जाने बाद हेड कांस्टेबल एक चटाई, एल्यूमीनियम का लोटा और खजूर का हाथ का पंखा ले आया और खुली वाली हवालात की ओर इशारा करके बिशारत से कहने लगा, 'दिन भर बैठे-बैठे आपकी कमर तख्ता हो गयी होगी। अब आप यह बिछा कर वहां लेट जाइये, मुझे जंगले में ताला लगाना है। मच्छर बहुत हैं, यह कंबल ओढ़ लीजियेगा। अधिक गर्मी लगे तो यह पंखा है। बाथरूम की आवश्यकता हो तो बेशक वहीं... बारह बजे के बाद हवालात का ताला नहीं खोला जा सकता' उसने बत्तियां बुझानी शुरू कर दी।

मगर कारूरा (पेशाब) कुछ और कहता है

बत्तियां बुझने लगीं तो खलीफा जोर-जोर से 'सरकार! सरकार!' करके रोने लगा। हवालात की दीवारों पर खटमलों की कतारें रेंगने लगीं और चेहरे के चारों ओर खून के प्यासे मच्छरों का दायरा घूमने लगा। इस मोड़ पर मुंशी जी अचानक फिर प्रकट हुए और मलबारी होटल से मंगवाया हुआ कीमा जिसमें पड़ी हुई हरी मिर्चों और हरे धनिये की अलग से खुशबू आ रही थी और तंदूर से उतरी नान बिशारत के सामने रखी। गरम नान से भूख को बावला कर देने वाली वो लपट आ रही थी जो हजारों वर्ष पूर्व मनुष्य को आग की खोज करने के बाद गेहूं से आई होगी। इसे खाने से इनकार करने के लिए बिशारत ने कुछ कहना चाहा तो कह न सके कि भूख से बुरा हाल था और सारा मुंह लार से भर गया था। हाथ के एक लिजलिजे से इशारे से इनकार किया और नाक दूसरी ओर फेर कर बैठ गये। इस पर मुंशी जी बोले, 'कसम खुदा की! मैं भी नहीं खाऊंगा। इसका अजाब (ईश्वरीय दंड) आपकी गर्दन पर। तीन बजे एक 'बन' चाय में डुबो के खाया था बस! डाक्टर आंतों की टी.बी. बताता है, परंतु हकीम साहब को दिखाया तो वो कहने लगे कि ये बीमारी जियादा खाना खाने से होती है। लो और सुनो! मैंने कहा, हकीम साहब मेरा यह शरीर, कद-काठी तो देखिये। बोले, मगर कारूरा कुछ और कहता है।'

एकाएक मुंशी जी ने बात का रुख मोड़ा। बिशारत के घुटने छू कर कहने लगे, 'मैं आपके पैरों की खाक हूं, पर दुनिया देखी है। आप इज्जतदार आदमी हैं, परंतु मामले की नजाकत को नहीं समझ रहे कि कारूरा क्या कह रहा है। मैं आपके ससुर का मुहल्लेदार रह चुका हूं। देखिये! मान-सम्मान माल से बढ़ कर नहीं होता, लकड़ी दे दिला के रफा-दफा कीजिये। कुछ दो-तीन हजार की दूसरी लाट मिल जायेगी, फिर झगड़ा किस बात का! सरकार शेर के मुंह से शिकार ही नहीं छीनते, उसके दांत भी उखाड़ लाते हैं। इलाके में कहीं कोई वारदात हो, सरकार को मानों पूर्वाभास हो जाता है कि किस का काम है। किसी-किसी को तो महज अनुमान पर ही धर लेते हैं जैसा कि माफ कीजिये! हुजूर के साथ हुआ। पिछले साल इन्हीं दिनों की बात है सरकार ने एक व्यक्ति को गाली-गलौज से आम रास्ते पर रुकावट पैदा करने पर गिरफ्तार किया। देखने में तो यह जरा-सी बात थी, मगर कारूरा कुछ और कह रहा था। सब को आश्चर्य हुआ, परंतु दो घंटे बाद सरकार ने उसके घर से व्हाइट हार्स व्हिस्की की तीन सौ बोतलें, दो घोड़ा बोस्की के थान, चोरी के गहने, दर्जनों रेडियोग्राम और दुनिया-भर का चोरी का माल बरामद कर लिया। घर में हर चीज चोरी की थी। बाप के अलावा एक चीज भी अपनी नहीं निकली, जिसने कहा कि मैं इस नालायक का त्याग करता हूं। परंतु हमारे सरकार दिल के बहुत अच्छे हैं। पिछले वर्ष इसी जमाने में मेरी बेटी की शादी हुई, सारा खर्च सरकार ने स्वयं उठाया, इन्हीं में से एक रेडियोग्राम भी दहेज में दिया। मैं इसकी गारंटी देता हूं कि चोरी हुई लकड़ी और ट्रक की रजिस्ट्रेशन बुक आपको तीन दिन के अंदर-अंदर दुकान पर ही डिलीवर हो जायेगी। मेरी मान जाइये, वैसे भी बेटी की शादी के लिए रिश्वत लेने और देने का शुमार नेग-न्योते में करना चाहिये। आप समझ रहे हैं?


रोटी मेरी काठ दी , लावण मेरी भुक्ख

अब प्याज से सब छिल्के एक-एक करके उतर चुके थे, बस आंखों में हल्की-हल्की जलन बाकी रह गयी थी। अपमान का अस्ल कारण समझ में आ जाये तो झुंझलाहट जाती रहती है, फिर इंसान को चुप लग जाती है। मुंशी जी अब उन्हें अपने ही आदमी लगने लगे।

'मुंशी जी! यहां सभी?'

'हुजूर! सभी।'

'वकील साहब भी?'

'मुंशी जी! फिर आप...?'

'हुजूर! मेरे सात बच्चे हैं। बड़ा बेटा इंटर में है। पत्नी को भी टी.बी. बतायी है। दिन में दो-तीन बार खून डालती है। इलाज में अच्छा खाना भी शामिल है। तन्ख्वाह इस साल की तरक्की मिला कर अट्ठाइस रुपये पांच आने बनती है।'

बिशारत ने ट्रक में लदी हुई लकड़ी एस.एच.ओ. को भेंट करने की स्वीकृति दे दी। आधी रात इधर, आधी रात उधर, बारह बजे खलीफा की हथकड़ी खुली तो वहीं यानी मोरी के मुहाने के बीच सिजदे में चला गया। शुक्राने के सजदे से अभी पूरी तरह नहीं उठा था कि हाथ फैला कर हेड कांस्टेबल से बीड़ी मांग ली। इधर बिशारत को भी कमरे से बाहर निकलने की अनुमति मिली। मुंशी जी ने मुबारकबाद दी। अपनी पीतल की डिबिया से निकाल कर दुबारा पान की कतरन यह कह कर पेश की कि यह गिलोरियां आपकी भाभी ने खास तौर पर बनायी थीं। हेड कांस्टेबल ने बिशारत को अलग ले जाकर मुबारकबाद देते हुए कहा 'खुशी का मौका है, मुंशी जी को पच्चीस रुपये दे दीजिये। गरीब, बाल-बच्चेदार, ईमानदार आदमी है और जनाबे-आली! अब हम सब का मुंह मीठा कराइये। ऐसे खुशी के मौके बार-बार थोड़े ही आते हैं। आप बेशक घर फोन कर लें। घर वाले परेशान होंगे कि सरकार अब तक क्यों नहीं लौटे। एक्सीडेंट तो नहीं हो गया। ढुंड़ैया मच रही होगी। अस्पतालों के केजुअल्टी वार्ड में हर मुर्दे की चादर हटा-हटा के देख रहे होंगे और निराश लौट रहे होंगे।' बिशारत ने सौ रुपये जेब से निकाल कर मिठाई के लिए दिये। थोड़ी देर बाद एस.एच.ओ. के कमरे से वही वकील साहब मिठाई के वैसे ही चार डिब्बों का मीनार गोद में उठाये और ठुड्डी के ठोंगे से उसे संतुलित करते हुए प्रकट हुए। उन्होंने भी बड़ी गर्मजोशी से मुबारकबाद दी और उनकी समझदारी को सराहा। तीन डिब्बे स्टाफ को बांटे और चौथा बिशारत की ओर बढ़ाते हुए बोले, यह हमारी तरफ से भाभी साहिबा और बच्चों को दे दीजियेगा। डिब्बा हवाले करने के बाद उन्होंने अपना कलफदार कालर उतार दिया और काला कोट उतार कर हाथ पर लटका लिया।

भिखारी कौन ?

वकील साहब ने सलाह दी कि लगे-हाथों लकड़ी एस.एच.ओ. साहब के प्लाट पर डालते जाइये। नेक काम में देर नहीं करनी चाहिये। गाड़ी में एक कांस्टेबल राइफल संभाले खलीफा के पहलू में बैठ गया। खलीफा ने इस बार 'पिदर सोख्ता' कह कर एक ही गाली से गाड़ी स्टार्ट कर दी। कोई बहुत पढ़ा-लिखा या प्रतिष्ठित आदमी पास बैठा हो तो वो गाड़ी को फारसी में गाली देता था। गाली देते समय उसके चेहरे पर ऐसा भाव आता कि गाली का अर्थ चित्रित होकर सामने आ जाता था। थाने वालों ने एक गैस की लालटेन साथ कर दी ताकि अंधेरे में प्लाट पर माल उतरवाने में आसानी रहे। गाड़ी के पिछले हिस्से में लकड़ी के तख्तों पर लालटेन हाथ में लिए बिशारत बैठ गये। झटकों से मेंटल झड़ जाने के डर से उन्होंने लालटेन हाथ में उठा रखी थी। खलीफा ऐसा बन रहा था जैसे गाड़ी हमेशा ही आहिस्ता चलाता है। कांस्टेबल ने झुंझलाते हुए उसे दो बार डांटा 'अबे ट्रक चला रहा है या अपनी बीबी के जनाजे का जुलूस निकाल रहा है!' बिशारत की आंखें नींद से बंद हो चली थीं, मगर शहर की सड़कें जाग रही थीं। सिनेमा का अंतिम शो अभी समाप्त हुआ ही था। पैलेस सिनेमा के पास बिजली के खंबे के नीचे एक जवान अर्धनग्न पागल स्त्री अपने बच्चे को दूध पिला रही थी, बच्चे की आंखें दुखने आई हुई थीं और सूजन और चीपड़ों से बिल्कुल बंद हो चुकी थीं। नंगी जतियों पर बच्चे ने दूध डाल दिया था जिस पर मक्खियों ने छावनी छा रखी थी। हर गुजरने वाला उन हिस्सों को जो मक्खियों से बच रहे थे न केवल गौर से देखता बल्कि मुड़-मुड़ के ऐसी नजरों से घूरता चला जाता कि यह फैसला करना कठिन था कि दरअस्ल भिखारी कौन है? पास ही एल्युमीनियम के बिना धुले पियाले में मुंह डाले एक कुत्ता उसे जबान से चाट-चाट कर साफ कर रहा था। उससे जरा दूर एक सात-आठ साल का लड़का अभी तक मोतिया के गजरे बेच रहा था। उन्होंने तरस खा कर एक गजरा खरीद लिया और कांस्टेबल को दे दिया। उसने उसे राइफल की नाल पर लपेट लिया। बिशारत सर झुकाये, विचारों में खोये प्लाट पर पहुंचे तो एक बजा होगा। उन्होंने लालटेन गाड़ी के बोनट पर रख दी और उसकी रोशनी में वो लकड़ी, जो चोरों से बच गयी थी, अपने हाथों से थानेदार के प्लाट पर डाल आये।

तोते की भविष्यवाणी

ढाई बजे रात को जब वो घर पहुंचे तो निर्णय ले चुके थे कि इस ऑटोमेटिक छकड़े को औने-पौने ठिकाने लगा देंगे। घर, घोड़े, घरवाली, सवारी और अंगूठी के पत्थर के सिलसिले में वो शुभ और अशुभ के कायल थे, उन्हें याद आया कि 1953 में मोटर साइकिल-रिक्शा की दुर्घटना में घायल होने के पश्चात जब वो नगर-पालिका के सामने बैठने वाले एक ज्योतिषी के पास गये तो उसने अपने सधाये हुए तोते से एक लिफाफा निकलवा कर भविष्यवाणी की थी कि तुम्हारे भाग्य में एक पत्नी और तीन हज हैं। संख्या क्रम इसके विपरीत होता तो क्या ही अच्छा होता, उन्होंने दिल में कहा। वैसे भी हज जीवन में एक ही बार अनिवार्य है। पुण्य लूटने के मामले में वो लालची बिल्कुल नहीं थे। ज्योतिषी ने कुंडली बना कर और हाथ की लकीरें मैग्निफाइंग ग्लास से देख कर कहा कि दो, तीन और चार पहियों वाली गाड़ियां तुम्हारे लिए अशुभ रहेंगी। यह बात वो कुंडली और मैग्निफाइंग ग्लास के बिना सिर्फ उनके हाथ और गर्दन पर बंधी हुई पट्टियां देख कर भी कह सकता था। बहरहाल, अब वो इस नतीजे पर पहुंचे कि जब तक एक या पांच पहिये की गाड़ी का आविष्कार न हो, उन्हें अपनी टांगों पर ही गुजारा करना पड़ेगा। ऐसा लगता था कि इस गाड़ी को खरीदने का उद्देश्य लकड़ी को चोरों और एस.एच.ओ. तक सुरक्षा-पूर्वक पहुंचाना था जो खुदा के करम से बिना देरी और रुकावट के पूरा हो चुका था।

बंगाल टाइगर गया , बब्बर शेर आ गया

सुब्ह जब उन्होंने खलीफा को सूचित किया कि अब वो उसकी सेवाओं से लाभान्वित होने योग्य नहीं रहे तो वो बहुत रोया गाया। पहले तो कहा मैं गाड़ी को अकेला छोड़ कर कैसे जाऊं? फिर कहने लगा, कहां जाऊं? बाद में उसने मालिक और नौकर के अटूट रिश्ते और नमक खाने के नतीजों पर भाषण दिया। जिसका सार यह था कि उसे अपनी गलती का अहसास है और जो भारी नुकसान उनको पहुंचा है, उसकी भरपाई वो इस तरह करना चाहेगा कि साल भर में उनकी हजामत की जो रकम बनती है, उसमें से वो लकड़ी की रकम काट लें। इस पर वो चीखे, 'खलीफे! तू समझता है कि मैं साढ़े-तीन हजार सालाना की हजामत बनवाता हूं?' खलीफा ने दोबारा अपनी गलती को खुले दिल से स्वीकार किया और साथ ही गाड़ी को मोबाइल हेयर कटिंग सैलून बनाने का मूर्खतापूर्ण प्रस्ताव पेश किया, जो उतने ही अपमान के साथ रद्द कर दिया गया। तंग आ कर उसने यहां तक कहा कि वो तमाम उम्र - यानी गाड़ी की या उसकी अपनी स्वाभाविक उम्र तक, जो भी पहले दगा दे जाये, बिल्कुल मुफ्त ड्राइवरी करने के लिए तैयार है, अर्थात जो नुकसान पहले तन्ख्वाह लेकर पहुंचाता था वो अब बिना तन्ख्वाह लिए पहुंचायेगा। गर्ज कि खलीफा देर तक इसी प्रकार के प्रस्तावों से उनके जख्मों पर फिटकरी छिड़कता रहा।

वो किसी तरह न माने तो खलीफा ने हथियार डाल दिये, मगर उस्तरा उठा लिया। मतलब यह कि अंतिम इच्छा यह प्रकट की कि इस संबंध-विच्छेद के बावजूद, उसे कम-से-कम हजामत के लिए तो आने की इजाजत दी जाये जो बिशारत ने सिर्फ इस शर्त पर दी कि अगर मैं आइंदा कोई सवारी, किसी भी प्रकार की सवारी रखूं तो हरामखोर उसे तुम नहीं चलाओगे।

कुछ दिन बाद खलीफा यह खबर देने आया कि साहब जी! यूं ही मेरे दिल में उचंग हुई कि जरा थानेदार साहब बहादुर के प्लाट की ओर होता चलूं। मैं तो देख के भौंचक्का रह गया। क्या देखता हूं कि अपनी रिश्वत में दी हुई लकड़ी के पास अपनी चोरी-शुदा लकड़ी पड़ी है! हमारा माल एक शेर दूसरे शेर के मुंह में से निकाल कर डकार गया। हमें क्या अंतर पड़ता है कि धारीदार शेर (Bengal Tiger) चला गया और बब्बर शेर आ गया। मेरा यकीन नहीं तो खुद जा के देख लीजिये।

खलीफा हंसने लगा उसे अपनी ही बात पर बेमौका, बेअख्तियार और लगातार हंसने की बुरी आदत थी। सांस टूट जाता तो जरा दम लेके फिर से हंसना शुरू कर देता। वो हंसी अलापता था। दम लेने के अंतराल में आंख मारता जाता। सामने का एक दांत टूटा हुआ था। इस समय वो अपनी हंसी को रोकने की कोशिश कर रहा था और बिल्कुल क्लाउन मालूम हो रहा था।


यह ट्रक बिकाऊ है

गाड़ी एक महीने तक बेकार खड़ी रही। किसी ने झूठों भी दाम न लगाये। उपहास और अपमान के पहलू से बचने की खातिर हमने उसे गाड़ी कहा है। बिशारत बेहद भावुक हो गये थे। कोई इसे कार कहता तो उन्हें लगता कि व्यंग्य कर रहा है और ट्रक कहता तो उसमें अपमान का पहलू नजर आता। वो स्वयं Vehicle कहने लगे थे। वो मायूस हो गये थे कि अचानक एक-एक दिन के गैप से इकट्ठी तीन 'ऑफर्ज' आ गयीं। पड़ोस में सीमेंट डिपो के मालिक ने उस तिरपाल के, जो कभी गाड़ी पर चढ़ा रहता था, तेरह रुपये लगाये, जबकि एक गधा गाड़ी वाले ने बारह रुपये के बदले चारों पहिये निकाल कर ले जाने की ऑफर दी। उन्होंने उस जाहिल को बुरी तरह लताड़ा कि यह भी एक ही रही। तेरा खयाल है कि यह गाड़ी पहियों के बिना भी चल सकती है! उसने जवाब दिया, 'साईं! यह पहियों के होते हुए कौन-सी चल रही है!' रकम के लिहाज से तीसरी ऑफर सब से अच्छी थी। यह एक ऐसे व्यक्ति ने दी जो हुलिए के लिहाज से स्मगलर लगता था। उसने गाड़ी की नंबर प्लेट के दो सौ रुपये लगाये।

इन अपमानजनक आफर्ज के बाद बिशारत ने गाड़ी पर तिरपाल चढ़ा दिया और तौबा की कि आइंदा कभी कार नहीं खरीदेंगे। आगे चल कर आर्थिक स्थिति और तबीयत का चुलबुलापन वापस लौटा तो इस तौबा में इतना संशोधन कर लिया कि आगे किसी स्वर्गवासी गोरे की गाड़ी नहीं खरीदेंगे, चाहे उसकी विधवा मेम कितनी ही खूबसूरत क्यों न हो। मिर्जा ने सलाह दी कि अगर तुम्हारी किसी से दुश्मनी है तो गाड़ी उसे उपहार में दे दो। बिशारत ने कहा 'पेश है' कुछ रोज बाद उन्होंने तिरपाल उतार दिया और एक गत्ते पर 'बिक्री के लिए' लिख कर गाड़ी पर टांग दिया। दो-तीन दिन में गाड़ी और गत्ते पर गर्द और आरा मशीन से उड़ते हुए बुरादे की मोटी परतें चढ़ गयीं। मौलाना करामत हुसैन ने जो अब फर्म के मैनेजर कहलाते थे, विंड स्क्रीन की गर्द पर उंगली से Vehicle और 'यह ट्रक बिकाऊ है' लिख दिया, जो दूर से नजर आता था। रोज दोपहर की नमाज को जाते तो वजू के बाद अक्षरों पर गीली उंगली फेर कर उन्हें रोशन कर देते। नमाज के बाद मस्जिद से आ कर गाड़ी पर फूंक मारते। कहते थे कि ऐसा जलाली वजीफा पढ़ रहा हूं कि जिस चीज पर भी फूंक मार दी जाये वो या तो चालीस दिन के अंदर-अंदर बिक जायेगी, वरना वजीफा पढ़ने वाला खुद अंधा हो जायेगा। दिन में तीन-चार बार अपनी आंखों के सामने हाथ की कभी दो, कभी तीन या चार उंगलियां दायें-बायें घुमाते, यह देखने के लिए कि रोशनी जाती तो नहीं रही। वजीफे के बाद मस्जिद से दुकान तक रास्ते भर जलाली फूंक को अपने मुंह में बड़ी एहतियात से कैद रखते कि 'लीक' हो कर गलती से किसी और चीज पर न पड़ जाये।