खोया हुआ आदमी / सुशांत सुप्रिय
वह आदमी न जाने कहाँ से भटकता हुआ दूर-दराज़ के उस गाँव में पहुँचा था। गाँव के कुत्तों ने जब चीथड़ों में लिपटे उस आदमी को देखा तो उन्हें वह कोई पागल लगा। वे उस पर बेतहाशा भौंकने लगे। कुत्तों की देखा-देखी गाँव के बच्चे भी पूरी दोपहर उसे छेड़ते और तंग करते रहे। संयोग से किसी बड़े आदमी ने गाँव के बच्चों को उस पर पत्थर फेंकते हुए देख लिया। जब वह उस आदमी के क़रीब गया तो उसके चेहरे पर मौजूद खोएपन के भाव के बावजूद उसे उस आदमी में गरिमा के चिह्न दिखे। यह आदमी पागल नहीं हो सकता—उसने सोचा। गाँव के उस बड़े व्यक्ति ने उस आदमी से उसका नाम-पता पूछा, पर वह कोई उत्तर नहीं दे सका। वह केवल इतना बोल पाया—शायद मैं खो गया हूँ! यह सुनते ही गाँव के उस बड़े व्यक्ति ने निश्चय किया कि वे सब उसे 'खोया हुआ आदमी' कह कर बुलाएँगे।
खोया हुआ आदमी इतना खोया था, इतना खोया था कि उसकी पूरी स्मृति का लोप हो चुका था। उसके ज़हन से उसका नाम और पता पूरी तरह खो चुके थे। न उसे अपनी जाति पता थी, न अपना धर्म। लेकिन अपने खोएपन में भी उसमें परिचित-जैसा कुछ था, जो उसे अपना-सा बना रहा था। लिहाज़ा जब उसे गाँव के अन्य लोगों के पास ले जाया गया, तो उसे देखते ही सभी एक स्वर में बोल उठे—अरे, यह खोया हुआ आदमी तो बेहद अपना-सा लग रहा है। उन्होंने उसे अपने ही गाँव में रख लेने का फ़ैसला किया।
खोये हुए आदमी की आवाज़ बहुत मधुर थी। कभी-कभी वह अपनी सुरीली आवाज़ में कोई खोया हुआ गीत गाता था तो उस गाँव की गाय-भैंसें जैसे उसके गीत की स्वर-लहरियों से मंत्रमुग्ध हो कर ज़्यादा दूध देने लगतीं। गाँव के बच्चे उसका गीत सुनकर उसकी ओर खिंचे चले आते। गाँव के बड़े-बुज़ुर्गों को भी उसके गीत उनकी युवावस्था के सुंदर अतीत की याद दिलाते। गाँव के लोगों ने पाया कि जब से वह खोया हुआ आदमी वहाँ आया था, गाँव के फूल और सुंदर लगने लगे थे, गाँव की तितलियाँ ज़्यादा मोहक लगने लगी थीं, गाँव के जुगनू ज़्यादा रोशन लगने लगे थे। गाँव के बच्चे भी अब ज़्यादा खुश रहने लगे थे क्योंकि बच्चों को वह सम्मोहित कर देने वाले कमाल के गीत सुनाता था। गाँव के कुत्ते अब उसके सगे हो गए थे। वे उसके आस-पास ऐसे चलते जैसे उसे 'गार्ड ऑफ़ ऑनर' दे रहे हों।
उन्हीं दिनों गाँव की एक वृद्धा को सपना आया कि वह खोया हुआ आदमी दरअसल उसका बेटा था जो बचपन में कहीं खो गया था। तब से वह उस खोए हुए आदमी को अपना बेटा मानने लगी। वह एक ग़रीब स्त्री थी जो घास काटकर, उपले थापकर और पेड़-पौधों की लकड़ियाँ इकट्ठा कर के अपना जीवन चलाती थी। उसने खोए हुए आदमी को अपने सपने के बारे में बताया। खोए हुए आदमी ने ख़ुशी-ख़ुशी उस वृद्धा को अपनी माँ मान लिया और उसके साथ रहने लगा। उसने अपनी
'माँ' की इतनी सेवा की कि वृद्धा को लगा कि उसका जीवन धन्य हो गया।
धीरे-धीरे गाँववालों को खोये हुए आदमी के कई गुणों के बारे में पता चलने लगा। वह पशु-पक्षियों से बातें करता प्रतीत होता। लगता था जैसे वह पशु-पक्षियों की भाषा जानता था। वह आँधी, तूफ़ान, चक्रवात् आने, ओले पड़ने या टिड्डियों के हमले के बारे में गाँववालों को पहले ही आगाह कर देता। उसकी भविष्यवाणी के कारण गाँववाले मुसीबतों से बच जाते। जब एक बार गाँव में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई तो खोए हुए आदमी ने आकाश की ओर देखकर न जाने किस भाषा में किस देवता से प्रार्थना की। कुछ ही समय बाद गाँव में मूसलाधार बारिश होने लगी। सूखी मिट्टी तृप्त हो गई और बच्चे-बड़े सभी इस झमाझम बारिश में भीगने का भरपूर आनंद लेने लगे। उस दिन से खोया हुआ आदमी गाँव में सबका चहेता हो गया।
गाँव के किनारे कुछ घर दलितों के थे और कुछ मुसलमानों के. गाँव की ऊँची जाति के लोग उनसे अलग रहते थे। खोए हुए आदमी ने दलितों और मुसलमानों से भी मित्रता कर ली। वह रोज़मर्रा के कामों में उनकी मदद कर देता। उन्हें उनके अधिकारों के बारे में बताता। देखते-ही-देखते गाँव के दलित अपने हक़ की माँग करने लगे। उधर गाँव के बड़े-बूढ़ों पर भी खोए हुए आदमी के समझाने का असर
हुआ। धीरे-धीरे दलितों का शोषण बंद हो गया। आपसी भाईचारा बढ़ने लगा। गाँव के दलितों और मुसलमानों के प्रति ऊँची जातियों के लोगों का व्यवहार सुधरने लगा। गाँव के दलितों को गाँव के कुएँ से पानी लेने की सुविधा मिल गई. उन्हें गाँव के मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार मिल गया। गाँव के हिंदू और मुसलमान मिल जुल कर ईद और होली-दीवाली मनाने लगे। इस तरह गाँव में साम्प्रदायिकता और जातिवाद को दूर करने में खोए हुए आदमी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.
उसके आने से गाँव में एक और बदलाव आया। गाँव में स्त्रियों की दशा ठीक नहीं थी। खोए हुए आदमी ने स्त्रियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया। गाँव की सभी स्त्रियाँ पुरुषों की ज़्यादतियों के ख़िलाफ़ एकजुट हो गईं। खोए हुए आदमी के समझाने का असर भी हुआ। धीरे-धीरे स्त्रियों के विरुद्ध अत्याचार समाप्त हो गया। उन्हें भी सम्मान मिलने लगा।
इस गाँव से क़रीबी क़स्बे की दूरी तीन दिन की थी। गाँव में खेती की ज़मीन तो थी पर कभी बीज नहीं मिलता, कभी खाद नहीं मिलता। खोए हुए आदमी ने गाँववालों को प्रेरित किया कि वे गाँव में ही अच्छे बीज और जैविक खाद की दुकान खोल लें। वह खुद लोगों के खेत में मेहनत करता, खेती-बाड़ी में उनकी मदद करता।
लगता जैसे उसके हाथों में जादू था। उसकी मदद गाँववालों के लिए ख़ुशहाली ले आई. गाँव का तालाब मछलियों से भर गया। गाँव में उगे फलों के पेड़ फलों से लद गए. खेतों में फ़सलें लहलहाने लगीं। मौसम अच्छा बना रहा। गाँव वालों ने इन सब का श्रेय खोए हुए आदमी को दिया। उन्हें लगा जैसे उसकी मौजूदगी में बरकत थी। धीरे-धीरे वह पूरे इलाक़े में लोकप्रिय हो गया। पड़ोस के अन्य गाँवों के लोग भी उसके मुरीद बन गए.
शुरू-शुरू में कुछ लोग उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देखते थे। पर खोए हुए आदमी कि का चेहरा इतना विश्वसनीय था और उसका व्यवहार इतना सरल और सहज था कि धीरे-धीरे उसके आलोचक भी उसके प्रशंसकों में बदल गए. लोगों को लगता था कि उसके पास कोई जादुई शक्ति थी जिससे वह आसानी से समस्याओं के हल ढूँढ़ लेता था। हालाँकि खोए हुए आदमी ने हमेशा इस बात का खंडन किया।
वह लोगों से कहता—" आप सब के पास भी वही शक्तियाँ हैं। खुद को पहचानो।
अपनी ऊर्जा को रचनात्मक और सकारात्मक कामों में लगाओ. जुड़ो और जोड़ो। "
इस तरह खोए हुए आदमी ने इलाक़े के लोगों में नया विश्वास भर दिया। लोगों में नया जोश, नया उत्साह आ गया।
पर अंत में वह दिन भी आ पहुँचा। एक रात मौसम बेहद ख़राब हो गया। बादलों की भीषण गड़गड़ाहट के साथ पूरे आकाश में बिजली कड़कने लगी। तभी कई सूर्यों के चौंधिया देने वाले प्रकाश ने रात में दिन का भ्रम उत्पन्न कर दिया।
फिर वज्रपात जैसी भयावह गड़गड़ाहट के साथ गाँव में कहीं बिजली गिरी। लोग अपनी साँसों की धुकधुकी के बीच अपने-अपने घरों में दुबके हुए थे। सारी रात मौसम बौराया रहा। लोगों का कहना है कि उस रात गंधक की तेज़ गंध पूरे गाँव में फैल गई थी और मकानों की खिड़कियों-दरवाज़ों की झिर्रियों में से घुस कर यह तीखी गंध सभी घरों में समा गई थी।
सुबह जब मौसम साफ़ हुआ तब गाँववालों ने पाया कि वह खोया हुआ आदमी अब उनके बीच नहीं था। वह ग़ायब हो चुका था। गाँववालों ने उसे बहुत ढूँढ़ा पर उसका कोई पता नहीं चला। न जाने उसे ज़मीन निगल गई थी या आसमान खा गया था। उसकी तलाश में आसपास के गाँवों में गए सभी लोग ख़ाली हाथ वापस लौट आए. गाँव की गलियाँ उसके बिना सूनी लगीं। पशु-पक्षी उसके बिना उदास लगे। गाँव के बच्चे उसके बिना बेचैन लगे। गाँव के कुत्तों की आँखों में भी आँसू थे।
दुखी गाँववालों ने खोए हुए आदमी की याद में उसकी एक मूर्ति बना कर गाँव के बीचोंबीच स्थापित कर दी। पंचायत की सभी बैठकें अब इसी मूर्ति के पास हुआ करतीं। गाँववालों ने प्रण लिया कि वे उस खोए हुए आदमी के दिखाए मार्ग पर चलेंगे। आज भी यदि आप उस गाँव में जाएँगे, तो आपको उस खोए हुए आदमी की वहाँ स्थापित मूर्ति दिख जाएगी।
लेकिन अापको असली बात बताना तो मैं भूल ही गया। खोए हुए आदमी के ग़ायब होने के कुछ समय बाद जब जनगणना अधिकारी सेंसस के काम से इस गाँव में पहुँचे, तो वे यह देख कर हैरान रह गए कि गाँव में किसी को भी न तो अपनी जाति याद थी, न अपना धर्म याद था। धर्म और जाति के बारे में उनकी स्मृतियाँ उस खोए हुए आदमी के साथ ही जैसे सदा के लिए खो चुकी थीं। काश, अपने शहर में हमें भी ऐसा खोया हुआ आदमी मिल जाता ...