खो जाते हैं घर / सूरज प्रकाश
बब्बू क्लिनिक से रिलीव हो गया है और मिसेज राय उसे अपने साथ ले जा रही हैं। उन्होंने क्लिनिक का पूरा पेमेंट कर दिया है। -ओ के डाक्टर, तो फिर मैं इसे ले जा रही हूँ। कोई भी बात होगी तो मैं आपको फोन पर बता दूँगी। वे चलते समय डॉक्टर की अनुमति लेती हैं।
डॉक्टर ने उन्हें निश्चिंत किया है-ठीक है मैडम, आप इसे दवाएँ देती रहें। कुछ ही दिनों में बिलकुल ठीक हो जाएगा। ओ के बब्बू, बाय। आंटी को परेशान नहीं करना।
बब्बू ने कमज़ोर आवाज़ में कहा है-नहीं करूँगा।
डॉक्टर ने बब्बू के गाल सहलाकर उसे गुड बाय कहा है।
वे एक बार फिर डॉक्टर को याद दिला रही हैं-अगर वह आदमी आए, इस बच्चे के बारे में पूछने तो मुझे तुरंत खबर करें। प्लीज़।
डॉक्टर ने उन्हें आश्वस्त किया है-श्योर, श्योर, हालाँकि अब इतने दिन बीत जाने के बाद उसके आने की बाद उम्मीद कम ही है, लेकिन जैसे ही वह आया, मैं आपको तुरंत खबर कर दूँगा। मुझे अभी भी यही लग रहा है कि उसने इस बच्चे को कहीं बुखार में तड़पते देख लिया होगा और खुद इसका इलाज कराने की हैसियत नहीं रही होगी; इसलिए इसे यहाँ छोड़ गया। -मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है। उसका अपना बच्चा होता कि कैसे भी करके एक बार तो ज़रूर ही मिलने आता ही। लेकिन बीच-बीच में ये दूसरे बच्चों की कहानियाँ सुनाता रहा है, उससे मामला और उलझ गया है। मिसेज राय ने अपनी आशंका व्यक्त की है। -मेरे ख्याल से बच्चे के पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद ही सारी बातों के बारे में बेहतर ढंग से पता चल सकेगा। -हाँ, मेरा भी यही ख्याल है कि बच्चा अभी भी सारी बातें सिलसिलेवार नहीं बता पा रहा है। कुछ दिन तो इंतजार करना ही पड़ेगा।
मिसेज राय ने ड्राइवर से सारा सामान उठाने के लिए कहा है और वार्ड बॉय को इशारा किया है बच्चे को कार में बिठा देने के लिए।
बब्बू को कार में आराम से बिठा देने के बाद वे खुद कार में आई हैं।
बब्बू जिंदगी में पहली बार किसी कार में बैठा है और हैरानी से सारी चीजें देख रहा है। बहुत ज्यादा आरामदायक सीटें, ठंडी-ठंडी हवा, बहुत हौल हौले बजता संगीत और पानी पर चलती-सी कार। वह शीशे से आँखें सटाकर बाहर का नज़ारा देखना चाहता है।
मिसेज राय उसे आराम से बिठाकर खिड़की के नजदीक सरका देती हैं।
वह अचानक कार में से अनुपस्थित हो गया है और बाहर भागती दौड़ती दुनिया में शामिल हो गया है। मिसेज राय उसके सिर पर हौले-हौले उँगलियाँ फिरा रही हैं। वे अपनी तरफ से कुछ कहकर या पूछकर बच्चे और उसकी दुनिया में बाधक नहीं बनना चाहतीं। उन्हें कोई जल्दी नहीं है।
बब्बू थोड़ी ही देर में कार के भीतर की दुनिया में लौटता है और उनसे आँखें मिलाता है।
वे मुस्कुराती हैं।
बब्बू भी उनकी मुस्कुराहट के बदले अपने चेहरे पर कीमती मुस्कुराहट लाने की कोशिश करता है।
उसका गाल सहलाते हुए पूछती हैं वे-बेटे, अब कैसा लग रहा है?
वह हौले से कहता है-ठीक।
बदले में वह उनसे पूछता है-हम कहाँ जा रहे हैं? -घर, क्यों? -किसके घर? -अपने घर और किसके घर? -आपका घर कहाँ है? -लोखंड वाला में।
बब्बू चुप हो गया है। उसे सूझ नहीं रहा कि बात को आगे कैसे बढ़ाये। कभी किसी से उसने इतनी और इस तरह की बातें की ही नहीं हैं।
वह कुछ सोच कर अपने आप ही कहने लगता है-मेरा घर तो बहुत दूर है। -कहाँ है तुम्हारा घर मेरे बच्चे? उन्हें उम्मीद की कुछ किरणें नज़र आयी हैं। -पता नहीं। बच्चे ने एक बार फिर उन्हें मझधार में छोड़ दिया है। -अच्छा वह आदमी कौन था जो तुम्हें अस्पताल में छोड़ गया था? -मुझे नहीं पता। -अच्छा इतना तो पता होगा कि तुम कहाँ रहते थे और किसके साथ रहते थे? -दोस्तों के साथ। -कहाँ? -पुल के नीचे। -जगह याद है? -नहीं। -कोई खास बात याद है उस पुल के बारे मे? -उधर मच्छर बहुत थे। रात भर काटते रहते थे। -बंबई आये कितने दिन हुए होंगे तुम्हें? -पता नहीं। -खाना कहाँ खाते थे? -कहीं भी खा लेते थे। -सारा दिन क्या करते रहते थे? -कुछ भी नहीं। -तुम्हारे वह दोस्त कहाँ मिल गए थे, जिन्हें तुम्हें रोज याद करते थे? -वहीं पुल के नीचे। -क्या करते थे वह लोग? -सब अलग-अलग काम करते थे। -तो तुम्हारा ख्याल कौन रखता था? -सब रखते थे। -खाना पीना? -सब मिल कर खाते थे। -तो तुम क्या करते थे? -कुछ नहीं, मैं तो बहुत छोटा हूँ ना... । -लेकिन हो उस्ताद। छोटू उस्ताद। -मैं उस्ताद थोड़ी हूँ। -अच्छा, अपने घर की याद है तुम्हें? -हाँ। -कौन कौन हैं तुम्हारे घर में? -बाबू, अम्मा, दीदी... भाई.।। -तुम बंबई में कैसे आ गए? -ट्रेन में। -कब की बात है? -पता नहीं। -तुम लोग बंबई क्या करने आ रहे थे? -शादी में। -और कौन थे साथ में? -सब थे। -तो तुम उनसे अलग कैसे हो गए? -पता नहीं। -तुम्हारे माँ बाप तुम्हें ट्रेन में छोड़ गए थे क्या? -मुझे क्या पता। -तुम कितने भाई-बहन हो? -चार। -अच्छा ... । तो तुम्हें बिलकुल याद नहीं है कि कहाँ पर है तुम्हारा घर? -बहुत दूर। -लेकिन कहाँ? -गाँव में। -गाँव का नाम याद है? -ज्वालापुर। -और स्कूल का? -आदर्श स्कूल। -और पिता जी का नाम? -बाबू। -और माँ का? -पता नहीं। -बाबू क्या करते हैं? -दुकान है। -तुम्हें तो बेटे कुछ भी अच्छी तरह याद नहीं या पता नहीं। ऐसे में अपने घर कैसे जाओगे? -पता नहीं। -अपने बाबू अम्मा से कैसे मिलोगे? -पता नहीं।
बब्बू इतने सारे सवालों से थक गया है और फिर उसे अपने घर की भी याद आने लगी है। उसने अपनी आँखें मूंद ली हैं। मिसेज राय भी समझ रही है कि उससे इतने सारे सवाल एक साथ नहीं पूछने चाहिए थे।
वे उसे चुप ही रहने देती हैं।
अचानक बब्बू ने आँखें खोली हैं-आंटी आप क्या करती हैं? -क्यों बेटे? -वैसे ही पूछा, आपकी गाड़ी बहुत अच्छी है। ठंडी ठंडी। -तुम्हें अच्छी लगी? -हाँ, आप भी। -अरे बाप रे, हम भी तुम्हें अच्छे लगे, भला क्यूँ? -आप रोज आती थी हमसे मिलने। इत्ती सारी चीजें लाती थीं और मारती भी नहीं थी। -मैं क्यूं मारने लगी तुम्हें मेरे बच्चे? तुम तो इतने प्यारे, इतने अच्छे बच्चे हे, भला कोई तुम्हें क्यों मारने लगा? -बाबू नहीं मारते थे। अम्मा मारती थी, दीदी, भइया मारते थे। -बहुत खराब थे वह लोग। तुम्हें तो कोई मार ही नहीं सकता।
तभी उन्होंने ड्राइवर से कहा है-ड्राइवर, जरा सामने रेडीमेड कपड़ों की दुकान के आगे गाड़ी तो रोकना। अपने राजा बाबू के लिए कुछ कपड़े तो ले लें। -मैं क्या करूंगा कपड़े? बब्बू ने अपना जिक्र सुन कर पूछा है। -क्यों, कपड़ों का क्या करते हैं? -पहनते हैं। मैंने भी तो पहने हुए हैं। -तुम इतने दिन से अस्पताल में थे ना, अब घर जा रहे हो इसलिए अच्छे कपड़े तो चाहिए ही ना और खिलौने भी। बोलो कौन-सा खिलौना पसंद है? -हम घर पर खिलौनें से थोड़े ही खेलते थे। -तो किस चीज से खेलते थे मेरे बच्चे? -वैसे ही खेलते रहते थे। -बहुत भोले हो तुम बेटे, बच्चें के तो खिलौनों से खेलना ही चाहिये। है ना?
गाड़ी एक स्टोर के सामने रुकी है। मिसेज राय बच्चे को ड्राइवर के साथ वहीं कार में ही छोड़ कर भीतर जा कर बच्चे के लिए ढेर सारे कपड़े और खिलौने ले कर आयी हैं।
कार में आते ही उन्होंने ड्राइवर से कहा है-अब सीधे घर चलें। हमारे बेटे को भी आराम करना चाहिये। है ना मुन्ना? वे उसकी तरफ देख कर पूछती हैं।
वह सिर हिलाता है।
गाड़ी लोखंड वाला कॉम्पलैक्स में एक बहुत ही बड़ी और भव्य इमारत के आगे रुकी है। वे बच्चे को आराम से नीचे उतारती हैं। दोनों लिफ्ट तक आते हैं। बच्चा हैरानी से सारी भव्यता देख रहा है। उसके लिए ये दुनिया बिलकुल अनजानी और अनदेखी है।
लिफ्ट आने पर दोनों भीतर आये हैं।
बच्चा लिफ्ट में पहली बार आ रहा है और हैरानी से पूछता है-आंटी, ये कमरा क्या है?
वे हँसकर बताती हैं-बच्चे ये कमरा नहीं है। ये लिफ्ट है। इससे ऊपर जाते हैं। -अच्छा ये लिफ्ट है। टीवी पर एक बार पिक्चर में देखी थी।
वे अपनी मंजिल पर पहुँच गए हैं।
वे एक दरवाजे की घंटी बजाती हैं। दरवाजा बाइ ने खोला है। वे उसे ले कर भीतर गई हैं।
नौकरानी ने उनके हाथ से सामान ले लिया है और बच्चे को देख कर कहती है-हाय, किती छान मुलगा आहे। किसका है मेमसाहब?
वे गर्व से बताती हैं-हमारा मेहमान है। अभी हमारे साथ ही रहेगा और सुनो, ये बाबा बीमार है। इसके लिए हलका खाना बनाना। पूरा ख्याल रखना इसका। ठीक । -ठीक है मेमसाहब। उसके हाथ बच्चे के गाल सहलाने के लिए मचलते हैं लेकिन वह खुद पर कंट्रोल करती है। बहुत मौके आयेंगे इसके। वह चुपचाप भीतर सामान रखने चली गई है।
अपने कमरे में जाते ही उन्होंने बच्चे को भींच कर अपने सीने से लगा लिया है। वे ज़ोर-ज़ोर से रोये जा रही हैं। वे उसे भींचे भींचे-मेरे लाल, मेरे लाल कहे जा रही हैं। उन्हें रोते देख बच्चा घबरा गया है और वह भी रोने लगा है। -आंटी आप रो क्यों रही हो? -अरे पागल, मैं रो कहाँ रही हूँ, ये तो ... ये तो... खुशी के आँसू हैं। -आंटी, खुशी के आँसू कैसे होते हैं। -बहुत सवाल करता है रे। आदमी जब बहुत खुश होता है ना, तब भी रोता है। -मैं तो जब भी रोता हूँ तो खुशी के आँसू थोड़े ही आते हैं। जब गिर जाता हूँ या भूख लगती है तो मैं तो सचमुच रोता हूँ। आंटी, आपको चोट लगती है तो आप रोती हैं क्या? -पगले, बड़ों को जब चोट लगती है ना... तो वह चोट नजर नहीं आती। बस, पता चल जाता है कि चोट लग गई है। समझे बुद्धू राम । -नहीं। -तू नहीं समझेगा मेरे लाल। आ मैं तुझे समझाती हूँ।
उसे ले कर एक तस्वीर के सामने ले कर आती हैं, लगभग पांच साल के एक गदबदे बच्चे की तस्वीर है। मुस्कुराते हुए बच्चे की तस्वीर। -आंटी, ये किसकी तस्वीर है? -बेटे, ये मेरे पोते की तस्वीर है। -पोता क्या होता है? -अरे बाप रे, कैसे बताऊँ कि पोता क्या होता है। अच्छा देख। तू बेटा तो समझता है ना। जैसे तू अपने बाबू का बेटा है। -हाँ। -तो जो तेरा बेटा होगा ना वह तेरे बाबू का पोता होगा। -मेरा बेटा कैसे होगा? मैं तो इतना छोटा-सा हूँ। -अरे जब तेरी शादी होगी तब तेरा बेटा होगा ना वह तेरे बाबू का पोता होगा। समझे? -नहीं समझा। -कोई बात नहीं। ये मेरे पोते की तस्वीर है। -क्या नाम है आपके पोते का? -मेरे पोते का नाम है रिक। -आंटी ये कैसा नाम है रिक? -बेटे, जहाँ वह रहता है वहाँ ऐसे ही नाम होते हैं। -कहाँ रहता है वह? -फ्लोरिडा में। -ये कहाँ है? -बहुत दूर। सात समंदर पार। -आंटी समंदर क्या होता है? -समंदर माने, समंदर माने... चलो, एक काम करते हैं, तुझे शाम को समंदर दिखाने ले चलेंगे। अपने आप देख लेना। -आप उसे अपने पास क्यों नहीं रखतीं आंटी?
वे फिर से रोने लगी हैं-पगले मैंने उसे आज तक देखा ही नहीं है। कितनी अभागी हूँ। मेरा पोता पांच साल का हो गया और आज तक मैंने उसे देखा ही नहीं। पास रखने का बात तो दूर है। कभी-कभी फोन पर उसकी आवाज सुन लेती हूँ तो मेरे कलेजे में ठंडक आ जाती है। -आपने उसे देखा क्यों नहीं है आंटी? -मेरा बेटा कभी उसे यहाँ ले कर आया ही नहीं। -क्यों? -उसके पस टाइम ही नहीं है। वह खुद भी अब यहाँ नहीं आता। -क्यों नहीं आता? -इन सारे सवालों का जवाब मेरे पास नहीं है बेटे। होता तो क्या तुझे अपने सीने से लगा कर रोती पगले।
बच्चा समझ नहीं पाता इतनी सारी बातें और उनके बंधन से अपने आप को मुक्त कर लेता है। अब अलग होने के बाद उसका ध्यान घर पर, वहाँ रखे इतने सारे सामान पर और शानो-शौकत पर गया है। उसने पूरे घर का एक चक्कर लगाया है और लौट कर उनके पास वापिस आया है। -आंटी इतने बड़े घर में आप अकेली रहती हैं?
सिर हिला कर बताती हैं-हाँ। -आपको डर नहीं लगता? -लगता है। -किससे? -बेटे, एक डर हो तो बताऊँ। कभी अपने आपसे डर लगता है तो कभी अपने अकेलेपन से डर लगता है। कभी अपने बुढ़ापे से डर लगने लगता है। बोल तू मेरे साथ यहाँ रहेगा मेरा डर दूर करने के लिए? -मेरे रहने से आपका डर दूर हो जाएगा आंटी? -तू नहीं जानता मेरे बेटे तू कितना प्यारा है तेरे यहाँ रहने से इस घर का सारा अँधेरा दूर हे जाएगा। -आंटी आप जोक मारती हैं। घर में अँधेरा कहाँ है। इतनी रोशनी है। -हाँ बेटे, बाहर से ही तो रोशनी नजर आती है। भीतर का अँधेरा ऐसे ही थोड़ी नजर आता है। बोल ना रहेगा मेरे पास। मैं तुझे खूब पढ़ाऊँगी। अच्छे स्कूल में तेरा एडमिशन कराऊँगी। तू खूब पढ़ लिखकर फिर मेरी मदद करना। मेरा डर दूर करना। करेगा? -लेकिन मेरे दोस्त? -दोस्त तो ठीक हैं बेटे; लेकिन हम उन्हें ढूँढें कहाँ? तुम्हें सिर्फ पुल के अलावा कुछ भी तो याद नहीं? कितना अच्छा होता तुम्हारे माँ बाप भी मिल जाते। -लेकिन मैं दोस्तों के पास ही जाऊँगा। -अच्छा एक काम करते हैं। तुम जरा ठीक हो जाओ तो बंबई में जितने भी पुल है हम सब जगह जाएँगे और तुम्हारे दोस्तों का पता लगाएँगे। चलोगे न हमारे साथ? -चलूँगा। आंटी कबीरा मेरा बहुत ख्याल रखता है और फिर मोती भी तो है। मैं आपको सबसे मिलवाऊँगा। -ये मोती कौन है? -आंटी मोती हमारा कुत्ता है। बहुत सयाना है। झट से बता देता है कि दोस्त कौन है और दुश्मन कौन। -अरे वाह कैसे बता देता है भाई? -आंटी, वह जब किसी को देखकर सिर हिलाए, तो इसका मतलब है कि वह दोस्त है और जब किसी को देखकर भौंकना शुरू कर दे, तो इसका मतलब है कि सामने वाला दुश्मन है। -अरे वाह, ये तो बहुत मजेदार बात है। हमें मिलवाएगा तू मोती से? -हाँ आंटी और एक गप्पू भी है हमारे साथ। हर समय उसकी निकर नीचे उतरती रहती है। खूब मजा आता है। -अरे वाह, चल बेटे अब तू आराम कर ले जरा। मैं भी कुछ काम धाम निपटालूँ। जब भूख लगे तो मुझे या माया आंटी को बता देना। ठीक है। लो इस कमरे में आराम करो, ठीक है। बाद में बात करेंगे। -अच्छा आंटी। -अब से तुम इसी कमरे में रहोगे। -ये इत्ता बड़ा कमरा मेरे अकेले के लिए? -क्यों? डर लगता है क्या? -नहीं। ठीक है आंटी।
बब्बू लेट तो गया है; लेकिन उसे नींद नहीं आ रही। ये सारी चीजें, यहाँ का माहौल और तामझाम उसकी कल्पना से परे हैं। वह उठ बैठा है। वह पूरे घर में घूम-घूमकर देख रहा है। सारी चीजें उसके लिए नई हैं और उसने पहले कभी नहीं देखी हैं। वह कभी स्टीरियो देखता है, तो कभी रंगीन टेलिफोन। कभी-कभी तस्वीरें देखता है और मूर्तियाँ। जब चारों तरफ की चीजें देख चुका तो वह आंटी के दिए खिलौने से अकेले खेलने लगा। वह देर तक अकेले बैठे उन सारे खिलौनों को उलटता-पलटता रहा। उसकी दिक्कत ये है कि ज्यादातर खिलौने या तो बैटरी वाले हैं या उन्हें चलाना उसके बस में नहीं। थक-हारकर उसने सारी चीजें एक तरफ सरका दी हैं।
मिसेज राय बच्चे को जुहू घुमाकर लाई हैं। उसने अपनी ज़िंदगी में पहली बार समुद्र देखा है। बेशक वह तीन महीने से मुंबई में भटक रहा था; लेकिन पता नहीं कैसे वह समुद्र तक पहुँच नहीं पाया। उसे कोई भी उस तरफ नहीं लेकर गया। वह समुद्र से मिलकर बहुत खुश हुआ और पानी में खूब अठखेलियाँ कीं उसने। बेशक मिसेज राय डर रहीं थी कि बच्चा अभी तो बीमारी से उठा है, कहीं समुद्र की ठंडी हवा उस पर कोई असर न कर दे, लेकिन बच्चा मस्त होकर पानी से खूब खेलता रहा। वह कभी लहरों से दूर भागता, तो कभी पानी के एकदम पास जाना चाहता। मिसेज राय खुद भी उसके साथ झूले में बैठीं, घोड़ा गाड़ी की सवारी की और गुब्बारे लेकर उसे साथ-साथ गीली रेत पर दौड़ती रहीं। उन्होंने अरसे बाद अपने आप को पूरी तरह से भूलकर, बच्चे के साथ बच्चा बनकर एक नया अनुभव लिया।
घर पहुँचकर बच्चा बिफर गया है। उसे अपने दोस्तों की याद आ गई है। वह रुआँसा हो गया है-आंटी, मुझे कबीरा के पास जाना है।
मिसेज राय की परेशानी बढ़ गई है-देखो बेटे, अभी तुम्हारी तबीयत पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है। अभी तो कुछ दिन तुम्हें दवा खानी है। हम तुम्हें इस तरह से बाहर नहीं भेज सकते। एक काम करते हैं हम; कल हम गाड़ी में जाकर पूरे शहर में कबीरा को खोज निकालेंगे। तब हम उसे कहेंगे कि तुमसे रोज मिलने आया करे या हम ड्राइवर से कह देंगे, वह कबीरा को ले आया करेगा।
बच्चे को आशा की किरण दिखी है-मोती को भी लाएगा?
बच्चे को इतनी आसानी से मान जाते देख मिसेज राय सहज हो गई हैं। लपककर आश्वस्त किया है उसे-ठीक है मोती को भी लाएँगे। बस, अब तुम आराम करो बेटे। इतनी देर पानी में खेले तुम।
लेकिन बच्चे की लिस्ट अभी पूरी नहीं हुई है-गप्पू को भी?
मिसेज राय को यह शर्त भी महँगी नहीं लगी-ठीक है गप्पू को भी, हम भी देखें कि उसकी नेकर कैसे नीचे उतरती है। चलो अब आप आराम करो। आपकी दवा का भी टाइम हो रहा है।
अब बच्चे अपने सवालों की दुनिया में वापिस आ गया है। पूरी शाम जुहू पर जो सवाल पूछता रहा, फिर से उसके ध्यान में आ गए हैं-आंटी, समुद्र में इतना पानी कहाँ से आता है?
मिसेज राय ने उसे समझाने की कोशिश कर रही हैं-अरे बेटा, तुम अभी भी वहीं अटके हो। देखो ऐसा है कि समुद्र में पहले से ही इत्ता सारा पानी है। -आंटी, समुद्र सब जगह क्यों नहीं होता? -अगर समुद्र सब जगह होगा मेरे भोले बेटे, तो हम रहेंगे कहाँ? -सब जगह पानी रहेगा तो कित्ता मजा आएगा, पानी में खेलते रहेंगे हम। -तो स्कूल कब जाएँगे, काम कब करेंगे और दवा कब खाएँगे नटखट राम जी? -हम दवा नहीं खाएँगे, कड़वी लगती है। -दवा नहीं खाओगे तो ठीक कैसे होवोगे, बोलो, तब कबीरा और गप्पू के साथ कैसे खेलोगे। उन्होंने उसे ब्लैकमेल किया है। -ठीक है खाऊँगा। वह अपने ही फंदे में फँस गया है।
सवेरे का समय है। वह सो रहा है। मिसेज राय ऑफिस जाने की तैयारी कर रही हैं। उसके पास आकर प्यार से वे उसे चूमती हैं।
नौकरानी को आवाज देती हैं-माया, सुनो, हमें शाम को वापिस आने में देर हो जाएगी। बच्चे का पूरा ख्याल रखना। मैं बीच-बीच में फोन करती रहूँगी। -ठीक है मेम साहब -जब बच्चा जग जाए, तो उसे गरम पानी से नहला देना। उसे अपने आप खेलने देना। खाना वक्त पर खिला देना। -अच्छा मेम साहब -बच्चे को टाइम पर दवा दे देना। मालूम है ना, कौन-सी गोली देनी है। -मालूम।
मिसेज राय एक बार फिर बच्चे के गाल चूमकर जाती हैं।
बच्चे ने जागने के बाद सबसे पहले पूरे घर में आंटी को ढूँढा है।
कहीं नहीं मिलीं उसे। रुआँसा हो गया है वह। उसे रसोई में माया नजर आई हैं। अब वह उसे भी पहचानने लगा है–आंटी कहाँ है? -काम पर गई मेम साब। -कहाँ? -आपिस। -आपिस क्या होता है? -आपिस माने कचेरी। -कचेरी क्या होता है? -वह सब हमको मालूम नईं। मेमसाब रोज जाता आपिस। शाम कू आता। बाबा, तुम दूध पीयेंगा अब्भी। फिर तुम नहाकर खेलना। -आज कबीरा आएगा? -हाँ, मेमसाहब बोला कि ड्राइवर जाके कबीरा को खोजेंगा और फिर मुन्ना बाबा और कबीरा एक साथ खेलेंगा।
बच्चा खुश हो गया है। अब उसे आंटी नहीं चाहिए-मोती भी आएगा ना? -हाँ मोती भी आएगा।
लेकिन माया के आश्वासन के बावजूद कबीरा नहीं आया है। वह कई बार बाल्कनी में, बड़े वाले कमरे में और पूरे घर में टहलते हुए अपने दोस्तों का इंतजार कर रहा है। ड्राइवर भी अब तक वापिस नहीं आया है। उसे बेशक स्नान कर लिया है, दूध पी-पी लिया है, दवा भी खा ली है; लेकिन उसका ध्यान लगातार दरवाजे पर ही लगा रहा है और एक पल के लिए भी वह आराम नहीं कर पाया है। माया के बार-बार कहने के बावजूद वह सोने के लिए तैयार नहीं हुआ है। कहीं ऐसा न हो कि कबीरा वगैरह आएँ और उसे सोया पाकर लौट जाएँ।
वह अकेले बोर हो रहा है। सारे कमरे में खिलौने बिखरे पड़े हैं। वह कभी बालकनी में जा रहा है और कभी भीतर आ रहा है। उसका मूड बुरी तरह से उखड़ा हुआ है। वह इस बीच कई बार रो चुका है। उसे समझ में ही नहीं आ रहा कि क्या करे।
तभी फोन की घंटी बजी है। उसे समझ नहीं आता कि फोन की आवाज सुनकर क्या करे। उसे फोन उठाना नहीं आता। तभी लपकती हुई माया आई है और उसने फोन उठाया है। वह फोन सुनते हुए लगातार हा-हा कर रही है। फिर उसने उसे बुलाया है-बाबा मेमसाहब का फोन है। आप से बात करेंगा।
बच्चा फोन लेता है; लेकिन समझ में नहीं आता उसे कि कैसे पकड़ना है। माया उसे बताती है और कहती है-हैलो बोलने का। -हैलो, आंटी आप जल्दी आओ। कबीरा नहीं आया।
मिसेज राय उसे बताती हैं-हम जल्दी आएँगे बेटा। तुम आराम करो। ठीक है। -ठीक है। फोन माया को लौटा देता है।
बच्चे का मूड बुरी तरह बिगड़ा हुआ है। वह ज़ोर-ज़ोर से रोए जा रहा है। माया उसे कभी गोद में उठाकर चुप कराने की कोशिश करती है, तो कभी खिलौने दे कर बहलाना चाहती है; लेकिन बच्चा है कि एकदम बिफर गया है और किसी भी तरह से काबू में नहीं आ रहा है। माया इस बीच कई बार कोशिश कर चुकी है कि मेमसाहब को फोन पर बताए कि बच्चा किसी भी तरह से काबू में नहीं आ रहा है, वह करे तो क्या करे; लेकिन वे किसी मीटिंग में हैं और उन तक वह कैसे भी करके संदेश नहीं दे पा रही। आज तक उसके सामने ऐसी स्थिति नहीं आई थी। उसने कभी अपनी तरफ से मेम साहब को फोन ही नहीं किया है।
माया उसे बहलाने की कोशिशें कर रही है; लेकिन उसे समझ में नहीं आता कि क्या करें। तभी माया ने उसे पैंसिल और कागज लाकर दिया है। बच्चा उस पर आड़ी-तिरछी रेखाएँ खींचने लगा है। कुछ देर के लिए वह बहल गया है। ये देखकर माया की जान में जान आई है। वह रेखाएँ खींच रहा है। कभी गोल, कभी सीधी। उसका मन बहल गया है और वह अब उसी में मस्त है। कागज रँगते-रँगते उसे नींद-नींद आ गई है और वह वहीं सो गया है।
वह बालकनी में खड़ा है। नीचे पार्क में बच्चे खेल रहे हैं। वह थोड़ी देर उन्हें खेलते देखता रहता है। फिर माया से पूछता है-मैं नीचे खेलने जाऊँ। -जाओ बाबा, लेकिन जल्दी आ जाना।
माया उसके कपड़े बदलती है, जूते पहनाती है और उसके लिए दरवाजा खोल देती है।
माया को नहीं मालूम कि यह बच्चा इस दुनिया का नहीं है। वह जहाँ से आया है, वहाँ लिफ्ट, बहुमंजिला इमारतें, चिल्डर्न पार्क और ये सारे ताम-झाम नहीं होते। वह बच्चा इस दुनिया में खुद नहीं आया, बल्कि लाया गया है और उसे कई सारी चीजों के बारे में बिलकुल भी नहीं पता।
माया ने तो ये देखा कि बच्चा घर में बैठे-बैठे बोर हो रहा है, तो थोड़ी देर नीचे खेलकर लौट आएगा। माया को ये बात सूझ ही नहीं सकती कि बच्चे को खुद नीचे ले जाए और अपने सामने थोड़ी देर तक खिलाकर वापिस ले आए।
वह थोड़ी देर तक लिफ्ट के आगे खड़ा रहता है, लेकिन उसे समझ में नहीं आता कि इसे कैसे खोले। इधर माया ने भी दरवाजा बंद कर दिया है। उसे डोर बैल के बारे में पता है, लेकिन उस तक उसका हाथ नहीं पहुँचता। वह तीन-चार बार हौल-हौले से दरवाजा थपकाता है; लेकिन भीतर काम कर रही माया तक आवाज नहीं पहुँचती।
वह धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगता है।
वह बच्चों के पार्क में पहुँच गया है और उन्हें खेलता हुआ टुकुर-टुकुर देख रहा है। वैसे भी वह उन बच्चों के सामने अपने आपको बौना महसूस कर रहा है। धीरे-धीरे वह सामने आता है; लेकिन तय नहीं कर पाता कि कौन—सा खेल खेले या किस खेल में शामिल हो जाए। अचानक एक गेंद लुढ़कती हुई उसके पैरों के पास आती है और वह उसे उठा कर एक लड़के को दे देता है। पता नहीं कैसे होता है कि वह भी उनके खेल में शामिल हो जाता है। उसे अपना लिया गया है और उसे अच्छा लगने लगता है। वह सब कुछ भूलकर खूब मस्ती से खेल रहा है।
काफी देर तक वह उनके साथ खेलता रहता है।
इस बीच अँधेरा घिरने लगा है और सारे बच्चे अकेले वापिस जा रहे हैं या अपनी-अपनी आयाओं, बहनों, माताओं के साथ लौट रहे हैं।
वह भी खेलकर थक गया है और लौटना चाहता है।
वह कदम बढ़ाता है, लेकिन उसे याद ही नहीं आता कि वह किस बिल्डिंग में से निकलकर आया था। कभी एक बिल्डिंग की तरफ जाता है और कभी दूसरी की तरफ। वह लड़खड़ा रहा है और घबराकर रोने लगा है। वह अपना घर भूल गया है। वह रोते-रोते भटक रहा है और अपनी इमारत से काफी दूर आ गया है।
अँधेरा पूरी तरह घिर चुका है।
सड़क पर रोता हुआ अकेला बच्चा चला जा रहा है।
बच्चा वापिस सड़क पर आ गया है।