खौफ़ / गणेश जी बागी
ट्रेन तकरीबन आधी रात के समय स्टेशन पर पहुंची, राजीव एक हाथ में सूटकेस संभालते पत्नी निधि को साथ लेकर जल्दी से ट्रेन से उतरा, अमूमन चहल पहल वाले इस स्टेशन पर सन्नाटा पसरा था, वहां केवल तीन चार ऑटो रिक्शा वाले ही मौजूद थे किन्तु उनमे भी सवारी बैठाने की कोई चिल्ल-पौं न थी। राजीव ने बारी बारी सभी से कृष्णा कालोनी चलने को कहा, लेकिन कोई जाने को तैयार ही नहीं हुआ, तो उसने पूछा,
"आखिर बात क्या हैं, क्यों नहीं जाना चाहते ?"
"शहर के हालत अच्छे नहीं है बाबूजी, आज कुछ असामाजिक तत्वों ने काफी हंगामा किया है कई टैक्सी, बस, ऑटो, बिजली ट्रांसफार्मर और सरकारी कार्यालयों में आग लगा दी है."
बहुत समझाने बुझाने पर एक ऑटो वाला कालोनी से एक किलोमीटर पहले मुख्य सड़क तक जाने को तैयार हुआ। पूरा शहर अँधेरे में डूबा था, मुख्य सड़क पर उतर कर वे दोनों पैदल ही कालोनी की तरफ बढ़े, निधि को डरा हुआ देखकर राजीव ने उसको हौसला देते हुए कहा, "डरो मत, हम लोग दूसरे चौक से होकर चलते हैं, वहां से नज़दीक भी पड़ेगा"
"नहीं नहीं हम लोग गली से चलते है"
"निधि तुम समझ नहीं रही हो, इस गली से जाने में डर है, चौक पर हमेशा पुलिस वाले मौजूद रहते हैं, इसलिए उधर से जाना ही ठीक होगा।"
"उधर पुलिस वाले रहते है, तभी तो कह रही हूँ कि इस गली से चलों।"