गंगि ब्वारि / महेशा नंद

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दानसिंगै नौन्यू ब्यौ हूणू छौ। ब्यौ दिनमन्यू छौ बरात अयीं छै जैंत्वलि बटि झालु गौंम्। फ्यारा-भौंरा हूणा छा। बेदि मा जनऽनौं कु भरि भिबड़ाट मच्यूं छौ। रुसऽड़म् बटि क्वी पर्वसऽ ल्हिजाणा, क्वी तैल्या पुंगड़ा पंगीतम् बैठी पौंणै जिम्णा छा। एक टाक जिम्णी अर हैंकि बैठि जाणी। मैपालसिंगै आँखि पक्यां आमू मा सि टपराणि छै। एक्कि छ्वाळी हुरपुरि-फुरपुरि नौनि फुलर्य समौ कि रंगिलि-पिंगलि पुतळ्यूं जन दिखेणी छै। पण मैपाला सरेलम् छप्प क्वी नौनि नि बैठणी छै। नौनि गोरि उदंकार त् छैं छै पंण कैकु नाक कुद्यसि त् कैकि आँखि। बाजि नौनि स्वाणि पण वूंकु लांणु-पैनु, ब्वन्नु-बच्याणु त् बाज्यूं कु खिगचाट-घिकचाट सरेलम् नि अडगुणु छौ। मैपाल चौका तिर्वळि कनाता तौळ खुर्सिम् बैठी सौब रौ-भौ दिखण फर छौ लग्यूं। पाछ एक नौनि पर्वसु ल्हिजांद द्येखि द्या वेन। नौनी एक खंड्यलि अपड़ि मुंडि मा फुळीं। वींयि खंड्यलिल् वींकि अपड़ि गति बि त् पर्वसै भांडि बि ढकंयीं। जरा झळकां द्येखि छै मैपालन् वऽ अर वेकु सरेल रंगत्ये ग्या। वु चुड़्क उठी अर नौन्या पिछ्वड़ि नपड़्क-नपड़्क मैल्य खोळ वूंकऽ चौकै दिवलिम् माल्टा डाळा घैणा छैलम् झपड़्क बैठि ग्या। गंगि चितांणी त् छैंछै कि वींकऽपैथर क्वी आणू छ पण वीन पैथर फर्की सप्पा नि द्येखि। मैपाल खांसि-खंखणै छ। भ्वींत्वळा भितनै बटि एक अदघड़ जनऽनु भैनै आ। मैपालन् स्यवा लगा- ‘‘सिमन्या! सिमन्या! मिजाज परसन भलु छ।’’ ‘‘सिमन्या, भल्वी चा, बिचरौं! बाळा-गुफळा राजि-खुसि खूब छन। बरऽतिम् अयां ह्वेल्या।’’ जनऽनल् सटऽपटि कै दिवलि मा दन्ना फोळ अर मैपाल थैं दन्नम् बैठणू बोलि। अफु बि वऽ चौका फटऽळौंम् घुंड्डा बोटी बैठि ग्या। भितनै गंगि थैं धै लगैनि- ‘‘हे गंगी! बुबा, एक कुळा चाऽ धैरि जरा यूं खुणै।’’ गंगिन रुसऽड़म् जैकि चाऽ धैरि। रुसऽड़म् जांदि दौं मैपालन गंगि अब द्येखि करकुरु कै। वेन पितर द्यब्तौं थैं सुमिरि। सरेलम् ढ्यूंण धैरि द्या- ‘‘पितर द्यब्तौं! हे परमेसुर! यीं नौन्यू संजोग मिसै दियां।’’ गंगि पैलि एक ल्वट्या कै पांण्यू ल्हा। वीन मैपाल थैं पांणि पीणू द्या। वेकि जैं नौनी मणमण छै, गंगि वन्नि छै। लम्बी-छड़छड़ि। मुख्ड़ि कुंदील धौ छै हुयीं पण स्वाणि छै। ब्वादन बल कि नौन्यू चलेतर बिंग्ये जांद बल हिटणी बटि। भरि घैक अर निमणि नौनि छै गंगि। मनिख बणौदरल् वींकि उंठणि इन बणैनि कि द्यख्दरु बिंगदु छौ कि वऽ मुल्ल मुलकुणि छ। पण आँखि त् गम्म हुयीं छै। आँखि निहुण्य हुंदन। वु जिकुड़ा कुबठ्यरौं कि लुकीं बथ बि मुख्ड़ि मा ऐना सि जन बिंगै दिंदन। आँख्यूंम् ज्वन्यू खिबळाट जन ब्वलेंद बिरूट सि हुयूं छौ। न गत्यू चबळाट छौ, न आँख्यूंम् रगर्याट। न ज्वन्यू उलार छौ, न खुट्यूं कु ठुमठ्याट। मैपाल थैं जु वींकु सुभौ भलु लगि, वु वींकि हिटै छै। जन ब्लदन कै बोड़ थैं छुबड़े हो। चा बोड़ थैं वेकु गोसि लपलपि सुटगिन किलै नि सट्यन्नू हो, वु सिस्त अर स्यूँ फर हिटद। गंगी हिटै मैपाल थैं वींकु सैरु चरेतर बिंगै ग्या। मैपालौ सरेल सगऽडगि फर ऐ ग्या। वेन मणमण घालि द्या- ‘‘मि लंग्गा-फंग्गा नि लगांदु। गिच्चौ फड़फुड़ु छौं। लबड़तळा मिसाण सप्पा नि आंदा।’’ तबऽरि गंगि चाऽ लेकि ऐ ग्या। वीन चाऽ मैपाला हत फर चिपटाणी लै छै कि मैपाला गिच्चा बटि गंग्यू खुणै भरि नख्रि गाळि छुटि ग्येनि। ‘‘समधणि जी! मि तुमऽरि यीं नौनि थैं अपड़ा नौनौ मंगणू छौं। ना नि ब्वल्यां, तुम थैं तुमऽरा भै कऽ सौं छन।’’ गंग्या हत बटि खटम्म चाऽ कु गिलास चौका फटऽळौंम् इन छुटि जन ब्वलेंद कैन वींकऽ हत फर खैट खैड़ै मारि हो। गंगि रूंद-रूंद भितर अट्गि ग्या। उना वे जनऽनौ बि टुंट्याट पोड़ि ग्या। मुंड बटि टल्खु रुंगड़ी वे जनऽनन् तपराट कै चूंदि आँख्यूं पर चट्ट कै घालि द्या। मैपाल नि बींगि। वु जनऽना थैं भिटगद दिखणू। भितर बटि नौनी किरकिरी भौंण सुणेणि। जन ब्वलेंद कैन वींकि गौळ चट्ट कै कीटि यालि हो। अकळऽ-चकळि यु तब रा जब वे जनऽनल् कारणा कैनि भुकरा-भुकरि कै- ‘‘हे निरभगी! कक्ख ग्ये तु! कै जलमौ बैरि रै रै छ्वारा तु! मैं थैं बि ल्ही जा रै, अफु दग्ड़ि। हे गजपाला! कन ह्वे बाबा तु भग्यान! म्यारा गजपाला सोग कै गै रै! छ्वारा तु मैकु। कम्मबक्ता! म्यारु त्वै खुणै स्वाणु फूल ल्हयूं छौ। हे, यु फूल घामल् भणगट ह्वे ग्या रै निहुण्या। ये फूल थैं कक्ख चुलाण मिन। म्यारु चूंडी ल्हयूं छौ। हे छ्वारा, कन अफरबाज रै तु!’’ भरि भिटगण बैठि ग्या वऽ कज्याण। मैपाल सात खोला एक्कि खोल पोड़ि ग्या। खुट्टौं कि पौंजि थुथराण बैठि ग्येनि। वु अदऽग्वदिम् पोड़ि ग्या कि क्य कैरु। भितर बटि नौन्यू बि किराट जूदा सुणेणु। मैपाला घटपिंडा बटि वे खुणै गाळ आणी गिच्चम्- थुपण्य त्वे उंद, तिल यूंकु सरेल दुखै यालि जणि। वूंकऽ दुख्दा थैं ठसोळ यालि। पण चिच्चऽ बटि खत्यां बोल कैएन नि उक्रि सकिनि। अब हतजुड़ै कैर। मुंड नवौ तैं ब्वे कऽ अगड़ि। मैपाल परबसम् सि वे जनऽना खुटौं मा लम्पसार ह्वे ग्या।- ‘‘तुम म्यरि ज्येठि बैंण्या जन छंवा। मै स्ये भूल ह्वेगि, मै थैं भुला जाणी छमा कै द्या।’’ मैपाल वन्नि लम्पसार हुयूं। ‘‘द बिचरौं, ततरि बात किलै ब्वन्ना छंवा। आबत नि द्यख्द बल पर्या घौर अर बाळु नि द्यख्द अपड़ु घौर। तुमऽरु क्वी दोस नी, परमेसुर छ मै थैं लिकांणू। भरि टौक्यै कै द्या वेन मै दग्ड़ि।’’ ‘‘मिन तुमऽरा खुट्टौं बटि तबी उठंण जब तुम मै थैं छमा कै द्येल्या।’’ वेन जनऽना खुट्टा चट्ट कै ऐंठि द्येनि। जनऽनन् धौ सिनकै अपड़ु उमाळ कीटि साकि। मैपाला हत छडैनि। ‘‘तुमुन बि कक्ख बटि बिंगण छौ। म्यारा भागै भताग च य। निरभगि रा वु। म्यारु सात काळ्यू बैरि रा वु।’’ फेर वींकु उमाळ भिबळै ग्या। टोप मारी वीन कळ्यूर कारणा कै द्येनि। मैपाल बींगि ग्या- य नौनि यूंकि ब्वारि छ। हे निरभगी कन गिच्चि सौढ़ि त्यरि। सरेलम् वेन अफु थैं छकण्य जुत्ये द्या। जनऽनै कारणा सूणी वु जिकुड़ै-जिकुड़म् भिटगुणु। अस्यौ-पस्यौ छुटि ग्या गति उंद। आँखौं बटि अंसधरि चूंण बैठि ग्येनि। वुक्खुम् बटि छिंछ्याट कै अटगुणौ ज्यू कैरि पण खुट्टा जन ब्वलेंद कैन ज्यूड़न् मस्कै ह्वाला। जनऽनौ रूंण पड़खोळम् बि सुण्या। वूंकु सोरु किसरु आ वुक्खुम्। लाठु फटऽळौम् धैरी घुंज्जा बोटी बैठि ग्या। मैपालन् किसर्वा खुटौं मा बि मुंड नवै द्या। किसरुन् वेम सकळु ह्वेकि छ्वीं लगै द्येनि- ‘‘हजि कक्ख लगाण तुम्मा छ्वीं। जैकऽ बल अढ़ौंदरा नि हूंदा सि बिग्चि जंदन। गजपाल डरैबर छौ, वू बि अदखिचरु। डरदा-मरदि बैठां वेकि गाडिम् एक दिन। अढ़ै च मिन वे थैं- हे ब्यट्टा, अत्ति फुंफ्याट अर भुंब्याट कक्ख छौ भलु। अबेर ह्वे जालि त् रुमुक पोड़ी जौला पण बची ड्यार जौला, अंक्वै चलौ। काल जब कैकऽ कपाळा पेट बैठि जांद तब वु कैकि नि धरांद। जैन कैकि अढ़यीं नि धरा त् स्यु धरऽधरि ग्या। एक अद्या प्येकि स्यु गाडि दनकाणू छ त् तुमी ब्वाला तैन बचण छ ? फुंड फूका, वु त् मोरि अपड़ा कर्मुन, यऽ नौनि कनकै निमालि अपड़ा दिन। यूं बौ जी खुणै ह्वे ग्या दुंद। जै दिन य नौनि ये गौंमा आ त् यऽ बौजी कि गौळै घंडुलि छै, अब गौळै गिंद्वड़ि बणि ग्या। खौरि कैमा लगाणै। बरात पैटंण बैठि ग्या, तुम जैल्या। यूं थैं मि अफी बुथ्यांदु।’’ मैपालन् इक्खम् बटि सटगण्मी भलु चिता। खड़ु इन ह्वा जन ब्वलेंद धौंणिम् दस दूण धर्यां हून। हिटणै छौ त् खुट्टा ऐथर सर्कि नि सकिनि। गर्रा सरेल लेकि वु उंद आ। ढोल-दमौ बजणा छा पण वेकऽ कंदूड़ बैरा ह्वे ग्ये छा। कंदूड़ुम सासु-ब्वार्यूं कि किल्ला-बिब्रि घमकणि सि मन्नि छै। मैपाल बरात दग्ड़ि घौर आ। सरेलम् वै कुरगुळ कुर्यौ लगाण बैठि ग्या। ब्यखुन्यू खुणै सुमऽतिन् खाणु सौंरि। बिक्की गौं मा पौंणै जिम्णू जयूं छौ। मैपाल रुफणयूं सि छौ। वे थैं करकुरु कै द्येखी बोलि वीन- ‘‘क्य ह्वा ? सरेल कुंदील सि हुयूं च तुमऽरु, कक्खि बरतिम् मार-फौंदरि त् नि ह्वा ?’’ ‘‘बिक्की ब्वे, मार-फौंदरि त् नि ह्वा पण मिन जुत्ता खाणा काम कैर्यालि छा।’’ ‘‘क्य ह्वा? अंक्वै ब्वालदि।’’ सुमऽति वे थैं भुज्जि दीणी छै कि डडुळु भदऽळमी रै ग्या। मैपालन् झालु गौं कि सैरी कथ्था वीं मा लगै द्या। ‘‘हे रां दा! यीं कुंगळि ज्वनिम् कन फतूर ह्वा वीं छोरी। निमालि, बिचरि रांडा दिन निमालि। जनऽनौ जोग खुट्टन लेखि परमेसुरन।’’ सुमऽतिन् अफु खुणै बि एक कट्वरम् भुज्जि सौंरि अर रुट्टि खाण बैठि ग्या। ‘‘हे भै, इतका बरस कनकै निमालि वऽ नौनि। अजि त् वींकि ताळा मंगै लू बि नि उबा। सैसुर मा कनकै रालि ?’’ ‘‘जबऽरि तकै ठिल्यालि, ठेललि। पाछ भाजी मैत जालि। कूल टुटि बल गाड अर बेटी भाजी मैत।’’ ‘‘हे रां द! वीं नौन्यू ब्यौ ह्वे जांदु त् कन भलि बात छै।’’ मैपालन् सुमऽती जिकुड़ि खरोळि। ‘‘अछीकि जु तन ह्वे जांदु त् कनि भलि बात छै। कक्ख छन यना भला मनिख। सैसुर मा जसि टुकर्याणा राला वीं थैं- द य लोळि फुट्यां गूदै आ ऐ गौंमा, रूंदि रांड अर चूंदु भांडु कक्ख छौ भलु, ब्यौ-कारिजम् कन नि फटगर्यालु वींकु सरेल जसि वींकि सौंजड़्या लै-पैरी बाना द्यालि अर वीं थैं फुंड धिकालि। पिर्वळीं आग निम्जि जांद अर उळ्यीं ब्वरि भाजि जांद।’’ रांडा जनऽना छकण्य दुख बिंगै द्येनि सुमऽतिन्। मैपाल थैं जरा ढीटु ऐ ग्या। ‘‘बिक्की ब्वे, अर जु हम वीं थैं बिक्यू खुणै मांगि द्यां त कन रालु ?’’ ‘‘त् कन जणमंगि आ ऐ बुढ्ये। गिच्चि फर तैं बुरळा प्वाड़ला। म्यारा न्याणा-क्याणा नौना फर छयां वीं रांड थैं सुबर्याणा। यांक्वी गियां तुम वे ब्यौ मा। नौनि हर्चि ग्येनि हमू खुणै। इतरि मुंथा भुरीं छ। काळी भुताड़ ल्हौला, पण न्याणि-क्याणि ल्हौला। एक दां बोल्यालि, अब नि ब्वल्यां। निथर द्येखि लियां डडुळु।’’ ‘‘हे वीं, अजि त् ते भरि दरमरि लगणी छै वीं फर। कक्ख ‘छन भला मनिख’ ब्वन्नि रै। हम बणि जंदां वीं नौन्या बान भला, क्य गाळ लगणीन।’’ ‘‘मित इन रौं ब्वन्नु कि जालि कै बुढ्य-खुड्यौ, रंड्वा-मुंडौ। हमन् क्यौ ल्हाण।’’ मैपाल निरऽस्ये ग्या। वेकऽ सरेलम् सुक्तौ यु बैठि कि वेन वूं जनऽनौं कु सरेल दुखा। वीं कज्याण थैं बेखाद-बादौ भै कऽ सौं द्येनि। गंगि स्वाणि अर कुंगळि नौनि छ। सैरि रात वु गंगि कै सुपिन्या दिखणू रा। कुरड़ि आँख्यूं ले वु बिनसिरिम् बिजि ग्या। बिक्की रात आ। वे दग्ड़ि सला नि ह्वे साकि। मैपाल जग्वंळुं कि सुमऽति डांडा जौ अर वु बिक्या सरेले बि खरऽखोज लगौ। घाम-तीम आ। सुमऽति डांडा ग्या। मैपालन् चौका तिर्विळ बिक्की थैं भट्या। ‘‘बिक्की मि त्यारा ब्यौ कऽ बान भरि दंदोळम् पुड़्यूं छौं। झणि कतगा जगौं रीटि ग्यौं पण मै थैं मनमौण्या नौनि नि मीलि।’’ ‘‘बाबा जी, ब्यौ ह्वे त् जालु। तुम क्यौ छंवा निरऽसेणा। ब्यौ खुणै कमाण त् द्या।’’ ‘‘बिक्की म्यरि भरि मणमण छ। म्यरि ब्वारि ये चौकुम ऐ जा। बिनसिरिम् मै थैं चाऽ बणै कि द्या। म्यारा छैंद यु कारिज ह्वे जा त् मैकु निस्तोक ह्वे जालु। हां बोलि दि म्यारा छौना।’’ ‘‘जन तुमऽरि गौं मा आणि छ बाबा जी।’’ ‘‘त्वे थैं कनि नौनि चयेणि छ। मि त्यारै पसंदै नौनि ल्हौलु।’’ ‘‘बाबा जी, तुम थैं ज्व नौनि पसंद आलि, मि वीं यि दग्ड़ि ब्यौ कै द्यूलु। कौन स्ये तुमुन म्यारु बुरु कन तब।’’ बिक्की चड़्म्म उठि अर मुल्य खोळौ अटगण बैठि। मैपालन वु उंड भट्या- ‘‘बैठ त् सै घड़ेक, इना सूण। म्यरि एक नौनी दिखीं छ त्वे खुणै। पण वऽ काळी निभूर छ। छ भरि गुणत्यिळ छ। बोल वुक्खौ हां बोलि द्यूं ?’’ ‘‘हां बाबा जी, नौनि चा जन्नि बि हो, गुणत्यिळ हूण चयेणि छ। रंग क्य मिन चटंण छ।’’ ‘‘म्यारा बच्छा, एक फौज्यू सैरु जीवन क्यां खुणै हूंद ?’’ ‘‘बाबा जी, म्यरु सैरु जीवन देसा बान च। देसै स्यवा कन म्यारु पैलु धरम छ। देस जु कै बिखा मा रालु त् मि बैर्यूं गिंडै द्यूलु। मि भग्यान छौं जु फौजुम छौं।’’ बिक्की गढ्वाळ रैफलौ ज्वान छ। वु गौं मा अपड़ा दगड़्या ब्यौमा द्वी मैनै छुट्टि लेकि अयूं छौ। बिक्की खळखळा सरेलौ स्वाणु बैख छ। क्वी नौनि जब वे थैं द्यख्द त् भैस द्यख्दि रै जांद। ‘‘बिक्की, अजि त् एक नौनि छ बिखा मा। वींकऽ मत्थि खौर्या कुरड़ा बादळ लौंक्यां छन। वूं बादळू थैं त्वी अतराड़ि सक्दि। पण मि इन मकरोड़ बि नि घालि सक्दु कि तु वीं दग्ड़ि ब्यौ कैरी-कैर। त्यरि गौं नि आणि छ त् तु ना बि बोलि सक्दि।’’ पाछ मैपालन् झालु गौं कि वीं नौनी कथ्था वेमा लगै द्या। घड़ेक तकै वु हां-ना नि बोलि साकि। धौसिनकै बोलि वेन- ‘‘बाबा, ब्वे मा बि बोलि तुमुन ?’’ ‘‘हां, पण वऽ सप्पा ना ब्वन्नि छ। तु पैलि वीं नौनि थैं द्येखी औ। मै थैं ढीटु च कि वीं द्येखी तू बि ना नि ब्वन्य।’’ मैपाल बिक्या जिकुड़ै सौब बथ वेकऽ मुक मा बिंगणू। "बिक्की, पल्यूंण कै दिन जाण तौंकि ?’’ ‘‘परस्यौं जाण वून।’’ ‘‘त्वे खुणै वून पल्यूंणम् जाणू ब्वन्न। तु झालु गौं जा अर वीं नौनि द्येखी अयौ। वींकु नौ गंगि छ। मैला खोळ जै घौरा ऐथर त्वे झपन्याळ माल्टौ डाळु दिख्येलु, वी छ वूंकु ड्यार। अपड़ि ब्वे मा सप्पा नि सुणै। अपड़ा दगड़्यौं मा बि नि बोलि। गंगि अर वींकि सासु मा बि नि सुणै कि तु वूंकऽ ड्यार क्यांकु अयीं छै। बिक्की, तिल यु ब्यौ म्यरि खुस्यू खुणै कन। मिन परमेसुर मां ढ्यूंण धैरि द्या अजण्दा मा। म्यारु सरेल ब्याळि बटि क्यापणि सि हुयूं छ। मि इन चिताणू छौं जन ब्वलेंद क्वी असकु फंच्चु म्यारा जिकुड़म् धर्यूं हो।’’ मैपालन् अपड़ा जिकुड़ौ उत्गि गर्रु फंच्चु बिक्की धौंणिम् बि धोळि द्या। पण बिक्की नौन्याळी ठैर, वु उंद मुल्या खोळ जना अट्गि ग्या। पलुंण्या दिन ग्यारा पौंणा ब्यौलि-ब्यौला दग्ड़ि झालु गौं कु पैटि ग्येनि। ब्यखुनि दां ग्ये सकिनि वु वुक्ख। रात भर बिक्की भरमणौम् बिज्यूं रा। गुण्याणु रा कि सुबेरम् क्य कन। कन कै वीं नौन्या जिकुड़ौ भेद उफर्ये जौ। रात खुलि। सुबेरै नौ बजि ग्येनि पण वे गौं मा घामी नि बैठि। बिक्की सैरा गौंमा रैच्वळु लगाणू ख्वळु-ख्वळु दनकण बैठि ग्या। वु औड़कीटी मैला खोळ सग्वड़ौं-सग्वड़ौं फळि मन बैठि। गंगी सासुन द्येखि द्या वु। ‘‘हे बुबा! तु तौं सग्वड़ौं क्यौ छै फळि मनी। इना च बाठु। भैरथब जाणि ह्वेलि। ओ, तै करळा जना जा।’’ बिक्की भीटौं उगड़द नळबट वूंकऽ चौकुम आ। दिवलिम् खड़ु ह्वा। आँखौं फर हत लगै कि पुरब दिसा जना धै सि लगैनि वेन- ‘‘झालु!झालू इक्ख घाम कब आलु ? ह्यूंदुम् इक्ख मनिख ऐड़ल अड़गटे जालु। कक्ख मनिख हगणू जालु, कक्ख न्हयालु-धुयालु। बसग्याळम् जु डांडु टूटी आलु त् यु गौं त् दब्ये जालु। झालु झालु जन ब्वलेंद कैएन यु गौं लाठन घुच्ये ह्वालु।’’ गंगी सास्वी हैंसारत पोड़ि ग्या। भितर गंगिन बि सूणि, वा बि मोरि बटि ये थैं दिखण बैठि ग्या। बिक्किन वूं मा हत-खुट्टा छळ्याणु पांणि मांगि। बुढड़िन् वे थैं पांणि द्या। ‘‘दडबड़ि-सड़बड़ि चरगट्ट चाऽ पींणौ ज्यू ब्वन्नु छौ। पण इक्ख कैकु लैंदु-दुदिंध त् फुंड फूका, कुक्कुर तका नि पळ्यां छन।’’ ‘‘हे बुबा, कुकरा दूधै चाऽ प्येलि।’’ बुढड़िन् वे थैं चुकलेर चिता। वऽ बि वे लिकांण सि बैठि। ‘‘तुम जै कै दूधै चाऽ पिलैल्या, मैं थैं टापि लगीं छ।’’ ‘‘हे गंगी! ब्यटी, धैरि द्ये ये नौनौं खुणै एक कुळा चाऽ।’’ घड़ेकम् गंगि वे थैं चाऽ द्ये ग्या। ‘‘हां, ये ह्वे चाऽ। एक तौन् बणा जन घळतंण्या चाऽ। जन ब्वलेंद आँखा फुट्यां कु पांणि टांकि हो।’’ गंगि खितड़्क हैसि ग्या। बुढड़ि बि खतखत-खतखत हैंसि। बिक्की बुढड़ि दग्ड़ि छुयूं मा इन मिस्या कि वेन बेळ नि चिता। मैंडुळ पकाणै बेळ ह्वे ग्या। बिक्की उक्खुम् बटि ठस्गि नी च। वेकु बुढीड़ दग्ड़ि खिगचाट पुड़्यूं। औड़कीटी वेन टपगरा मारी बोलि- ‘‘अहा! चैंसि अर झंग्वरु खाणै स्वत्य जाणि छ। मुल्या खोळ करौं कि त् पौंणै पकीं ह्वलि। तुम बि त् जैल्य वुक्ख खाणू?’’ ‘‘बुबा, मि त अण्थ कक्खि जांदु नि छौं। स्य गंगि जालि, एक गफ्फा मैकु उब्बि ल्है जालि।’’ ‘‘कक्ख लग्यां तुम वूंकऽ साऽस। इन कुसग्वर्या तबा, उगट्यां मनिख बल खीरम् लूंण। अच्छा, तुमी ब्वाला, तुमुन कबि भिंड्यूं कऽ भुज्जा दग्ड़ि भट्टा बि खैनि। तौन हम थैं इनि भुज्जि खला ब्याळि।’’ बुढीड़ फेर खुगतै ग्या। वेन यूं फर ज्य मंत्तर फेरि ह्वला। वु अपड़ि जैंयि मणमण घनु, यि चट्ट वन्नि कै दींणा। बुढड़िन् खम्यळा फरै एक कुटरी गाडि, वां फर उड़द्वी दाळ छै। दाळ गाडी वऽ सिल्वटु डिसाण बैठि। बिक्की सरबट भितर आ, वेन बुढड़़्या हत बटि कट्वरा लूछी अर सिल्वटा मा ऐकि चैंसि पिसंण बैठि ग्या। गंगि अर बुढीड़ भरि धंधेणी ये द्येखी। वूं थैं यु उप्रि से नि लगि। जन ब्वलेंद कतगा बर्सू बटि जण्दु धौं यूं थैं। बुढीड़ थैं वेकु इन अपड़ैंस दिखाण भुल बि लगणू। वेन वूं थैं हैंसै-खिलै कि चैंसि अर झंग्वरु पकै द्या। ग्या वु वूंकऽ सग्वड़ा। एक मूळौ घींट उपाड़ी ल्है ग्या। रजतज कै वेन चैंसि, झंग्वरु अर मूळै कछब्वळि खा। बुढीड़ ज्व एक करछुलि भातै खांदि छै, द्वी डळकंणा झंग्वरा कळकै ग्या। वेकऽ दगड़्या मुल्य खोळ स्याळ्यूं दग्डि़ चुकल्यौ कना, वु यूं द्वी सासु-ब्वारि थैं पुळ्याण फर लग्यूं। पाछ लगैनि कैन मुल्या खोळ बटि ये थैं धै। तब धौसिनकै ग्ये साकि वु उंद। उंद जांदि दां वेन गंगि थैं कळ्यूर आँख्यूंन द्येखी बोलि- ‘‘झालु-झालू रौंत्यला मुलुकौ ब्यटुलु त् इक्ख खुदे जालु।’’ वऽ निरभाग बींगि ग्या। वेकि आँखि वीं फर बांणै सि तरां बिनै ग्येनि। खंतड़ा पेट घुंड्डा बोटी ज्व र्वा त् परमेसुर बि ढुड्डि घाली र्वे ग्ये रै ह्वलु। हैकऽ दिन पल्यूंण बटि वु घौर आ। वेन अपड़ा बाबम् गंगि खुणै बगछट्ट ह्वेकि हां बोलि द्या। सैदा बि ल्है ग्या कि गंग्यू मैत खात्यूं च। वींकऽ बाबौ नौ सितार च। वूंकु अग्य-मुख्य ऊळ्यू मुस्सा पट्वरि छ। बुढड़्यू भै च रिंग्वड़्यू जगति। अर गौं मा किसरु वूंकु सोरु छ। मैपालन् चटचटाग बोलि द्या- ‘‘अर जु मुस्सा पट्वरी, जगति अर किसरु थैं क्वी भकलै साक त् यु काम स्वां ह्वे जौ। बिक्की, अब ऐथरै मि सुत्यळदु।’’ मैपाल अर बिक्किन रात सुमऽति थैं इतगा अढ़ै द्या कि वऽ ना नि बोलि साकि। मैपालन् सौब निड़ैनि अर वूं लेकि वु झालु कौं रुमकां पौंछि ग्येनि। परमेसुरौ जैकऽ जोगम् जन लिख्यूं ह्वलु वे थैं क्वी कीस बरौबर बि नि सौंटाळ सकद। वन्नि ह्वा। जन्नि गंगिन् सूंणि कि पल्यूंणा दिन जु अयूं छौ वे खुणै हूणी बात त् वीन बि ना नि बोलि। बुढड़िन् बि गुण्या कि गंग्यू भलु हूणु छ। भैर-भितर जांदि दां कुम्मुर सि करकणि रांदि। वींकि त् मींढा मंगै फाळ च। कन रालि ये कूढ़ा फर यकुलकार। वीन बि हां बोलि द्या। सबेरौ अणघमि झालु गौं बटि मैपाल, सितार, मुस्सा पट्वरि अर जगति गंगि लेक खात्यूं ऐ ग्येनि। खात्यूं मा सला ह्वा कि ब्यौ गजै-बजै कि कन कि सुरक। खात्यूं कऽ भला-भलौंन् सला द्या- ‘‘तुम जैंत्वलि मा ज्ये कर्यां। फेर यीं थैं चौकुला मा न्हवाण जरा बुरु सि लगण। यीं कु जोग खिलपत हुयूं छ, न हो क्वी उपरचिंडु उबड, सिनक्वळि जा।’’ गंग्यू सरेल चैतै पोतळ बण ग्या। सगळि रात वऽ बिक्या सुपिन्या दिखण बैठि। मुख ऐथर पसर्यूं फुलू बग्वान वीं थैं लल्याण बैठि। मुंथौ छिछगर्या नौ पोड़ि ग्ये छौ वींकु। भोळ सुबेरम् वींकि बि रात खुलि जालि। फुस्रपट्ट उज्यळु वींकि खुचिलिम् बि खत्यालु। वीं खुणै बि मुंथा उदंकार ह्वालि। वा बि हुरपुरि-फुरफरि बणी रालि। हैकऽ दिन ब्यखुन्यू जैंत्वलि गौंम् मैपाल दग्ड़ि उप्रि मनिख अर वूं दग्ड़ि उप्रि नौनि अंदरा-जंदरौंन् द्येखि। एकिन हैंकि मा बोलि- त्वेमा ब्वन्नु छौं, कैमा नि बोलि। बिक्यू बल.......। वीन बि हैंकिम् बोलि- त्वेम ब्वन्नु छौं, कैमा नि बोलि। नि ब्वन्नि नि ब्वन्नम् रातौं रात सैरा गौंमा खक्कल-बक्खल मचि ग्या। बिक्या अर मैपाला सौंजड़्या मिमरै ग्येनि। वु उठिनि उब्बऽरी अर रण्णु क्यप्ट्यना ड्यार। वुक्ख वून सैरा गौंकऽ निड़ै द्येनि। जु क्वी भ्वळकुणौ कक्खि जाणु रै ह्वलु वू बि थम्ये ग्या। गंवड़्या खकळाणा कि गौं मा मैपालन् अदरि कै यालि। जैंत्वलि गौं मा क्वी क्यप्ट्यन त् क्वी सुबदार। क्वी हौळदार, क्वी पिररिंसपिल त् छकण्य गुरु लोग। क्वी ब्वन्नु- मै ऐसा कर दूंगा। क्वी ब्वन्नु मै तैसा कर दूंगा। क्वी ब्वन्नु कि गवा बि त् चयेणा छन। बिनसिरिम् रण्णु क्यप्ट्यनन् ज्वान नौना क्वी कक्खि फट्येनि त् क्वी कक्खि। दाना सयणा ऐनि पंचेती चौकुम् बिक्कि कौंकऽ सौब भितर बैठ्यां। कैकु भैनै आणौ सांस्वी नि ह्वे सकणु। ग्यारा बजिनि अर जैंत्वलि गौंमा चार द्वाळ्या ढोल-दमौ, कुस्कुबाजौं कु घमघ्याट-छमछ्याट सुण्या। घ्वाड़ौं मा रासन आणि छ। क्वी बेदि चिंण्णू छ। चर-चर बामण पुथड़ौं लेकि खड़ा हुयां छन। क्वी रुसऽड़ु लगाणू छ। बिक्कि कौं दग्ड़ि क्वी नि बच्यांणु छ। मैपाल यूंकऽ हफराट-फफराट द्येखि, वूंकऽ अंगळति पिरेम द्येखि खलपत्ता आँसु चुवाणु छ। सुमति अब चिता कि वीन कतगा भलु कारिज का। गंगी, सितार, जगति अर मुस्सा ये गौं अर इक्खा लुक्खु द्येखी भरि धंधेणा छा। सितारौ अर गंग्यू सरेल बगछट्ट ह्वे ग्या। जैंत्वल्या भला मनिख्यूंन बिक्कि अर गंग्यू ब्यौ वन्नि ऊरा-धूरा कै कैरि जन हूंद्वी च। क्वी टूट नि कैरि। जण बीसेक जनऽना-बैखुन बिक्कि थैं वूंकऽ चौकुम न्हवा अर ब्यौला बणा। गंगि थैं न्हवा पंचेती चौकुम। जतगा धांण ब्यौ कि हुंदन सौब ल्हयूं छ। मैपाल ग्हैंणा दींणू पंचेति चौकुम जाणु छ। पंचेति चौकुम मंडाण लग्यूं छ। चौकुम् ब्यौला-ब्यौल्यू खुणै ठौ गच्छ्यूं छ बकिबातौ। रण्णु क्यप्ट्यन न्यूतु लिखाणु- चार द्वाळ्या ढोल-दमौ, मुस्कुबाजु। खंत्ती सुबदार लिखाणू -भुज्जी अर रासन। क्वी टैंटौ सामान त् क्वी भैलिबाड़्यू खर्च लिखाणु। तीन बजणी रै ह्वलि अर सैरा गौं कऽ जनऽना-बैख घमघ्याट-छमछ्याट कैकि ब्यौलि-ब्यौला लेकि मैपाला ड्यार ऐनि। गंगी अर बिक्की गौलि रुप्यौं कि माळौंन तणसट्ट बणी छ। जन्नि गंगि चौकुम आ तन्नि वऽ चट्ट खदि मैपाल फर इन भिंट्ये ग्या जन ब्वलेंद अपड़ा बाबा फर चिप्टि हो। ‘‘बाबा जी, जतगा रूंण छौ मि र्वै ग्यों, अब मिन खिगचाट कन। म्यरि खौरि तुमुन जन ब्वलेंद आड़ा मा सि फूकि हून। कतगा खुलबिति हूं मि तुमु खुणै। मै कुरच्यां-अळस्यां फूल थैं तुम अपड़ा बग्वान मा ल्है ग्यां, मै थैं असिस्या द्या मि इक्ख भुक्क बिफर्यूं रौं। मै थैं तुमुन अपड़ि स्यवा कनौ उमैलु घत द्या, म्यरि मुंडि मा अपड़ि जसिलि हति धैरा। कतगा भग्यान छंवा तुम। ये गौं कऽ कतगा भला मनिख छन।’’ मैपालन वींकि खिलपत मुख्ड़ि थै। चुट्ट अपड़ि हतगुळ्यूंम् धारी बोलि- ‘‘तु म्यरि लाडै नौनि छै पण त्वै चुलै बिंड्डि लाडौ म्यारु बिक्की छ। वेन यु ब्यौ मै थैं खिलपत रखणा बान कैरि।’’ गंगि झुप्प घुघति सि वे परमेसुरा खुट्टौं मा पोड़ि ग्या। पाछ सैरा गौंन् धीत तोड़ी पौंणै-भात खा। सैरा गां करौं खुणै गंगि सब्यूं कि अंगळति अर खुलबिति ब्वारि ह्वे ग्या। मुल्या-मैल्या, वल्या-पल्या खोळ बटि वीं खुणै धै लगणी राउन- ‘‘हे गंगि ब्वारी! उंड औदि।’’ ‘‘गंगि ब्वारी! हम दग्ड़ि औ, डांडा जौला।’’