गंगू तेली की दहाड़ / सुशील यादव
गंगू तेली को उसके कुछ साथियों ने ये मुगालता दे दिया कि उसमे ‘राजा’ बनने का पूरा ‘मटेरियल’ है|
कुछ एक साथी विरोध और मुखालफत भी करते रहे| एक तरफ खामियां ढूढने वाले उसके विरोधी गुट के लोगों ने खामियों का इतिहास खंगालना जोर-शोर से चालू कर दिया| तो दूसरी तरफ खूबियां भी ढूढ़ी जाने लगी|
उसके जमाने के गुरुजनों की तलाश हुई जिससे उसका ‘पास्ट’ लोगों को परोसा जा सके|
बहुत मुशक्कत के बाद एक जर्जर हालत में, प्रायमरी स्कूल का मास्टर जी मिला|
मास्टर जी को, फ़्लैश-बैक में ले जाने का प्रयास किया गया| वो अपना सर धुनता| गंगू तेली... .गंगू तेली...? ऊ हूँ... याद नहीं आ रहा है|
कोई बताता,गुरुजी... वो समझू तेली का बेटा|
समझू तेली... समझू...?मास्टर जी सर को धुनते... .नई भइ नई... याद नहीं आ रहा है|
मीडिया वालों को ये धुन सवार हो गया कि मास्टर जी को गंगू तेली की हिस्ट्री याद करा के दम लेंगे|
वे बकायदा न्यज बुलेटिन में ब्रेकिंग न्यूज देते रहे|
-“मास्टर जी को गंगू तेली के बारे में कोई जानकारी नहीं या वे जानबूझ कर जानकारी नहीं देना चाहते?” –
-बकायदा चार-पांच गपोड़ियों को चैनल वाले पकड़ लाते और चैनल पर बहस करवाते|
मीडिया के इस ब्रेकिंग न्यूज से नित नए चैनल वाले प्रभावित होते रहे|
उनमे होड होने लगी,हमारे चैनल ने सबसे पहले मास्टर जी को पकड़ा है|
लोग मास्टर जी के घर के सामने सुबह से इक्कठे होने लगते| खोमचे वाले,चाय की गुमटियां खुल गई| हर शख्श,गुरुजी के बयान का प्रत्यक्ष गवाह बनाना चाहता था|
कृशकाय मास्टर जी ने, कभी जिंदगी में, इतने बड़े हुजूम की कल्पना, सपने में नहीं की थी|
वे सोचने लगे,सावित्री अगर आज ज़िंदा होती, तो देख के दंग रह जाती| जिंदगी भर ‘मास्टरनी’ होने के अपने भाग को कोसते रही बेचारी| उसकी याद में मास्टर जी,उसकी फोटो के सामने पुलकित से होते| आँख के एक कोर में अपनी उगली रख के,जमा, लुढकने वाले आंसुओ को रोककर, एक ठंडी आह भर के,मास्टर जी सोचते, इस भीड़ को गंगू तेली का क्या इतिहास बताऊँ?
आज अगर इतिहास बता देता हूँ तो कल ये फुर्र हो जायेंगे| मगर बताना तो कुछ न कुछ तो पडेगा ही|
गंगू तेली,वल्द समझू तेली,इस नाम का एक लड़का पढता तो था|
वे गणित पढाते थे,बच्चो का मनोविज्ञान जानते थे,अखबार,टी व्ही,पढ़-सुन के सामाजिक सारोकार वाले भी हो गए थे, इसलिए मनन –चिंतन करके गंगू तेली का पच्चास साल पुराना, अपना स्टूडेंट –नुमा स्केच बनाने में लग गए|
स्केच बनाते वक्त वे आज के गंगू तेली को ध्यान में रखना नहीं भूले|
गंगू तेली,एक दुबला –पतला,इंट्रोवर्ट किस्म का लड़का था| पढ़ने में तेज,कुशाग्र बुध्धि थी| जो भी एक बार सिखा दो,अच्छे से सीख जाता था| उसे गलत बाते बर्दास्त नहीं होती थी| वो अपने हक के लिए किसी से भी अकेले भिड जाता था| उसमे नेतृत्व की अदम्य क्षमता थी| अपना होमवर्क अच्छी तरह से करके आता था,यही उसकी खासियत थी| उसे दीगर बच्चो को चैलेन्ज देते कई बार देखा गया था| उसकी चेलेंज देने की आदत के चलते एक बार उसके पिता समझू को स्कुल आना पड़ा| वे वचन दिए कि अगली बार उनका बेटा कोई शैतानी नहीं करेगा| प्रधान पाठक उनके आश्वाशन पर बमुश्किल विश्वास कर सके थे|
गंगू तेली को ‘माडल’ बनाने का शौक था वो अपने धुन का पक्का था| बाद में पता चला कि वो अपने बनाए माडल पर फक्र करता था|
तात्कालिक भाषण में, एक बार ‘मेरे सपनों का ‘राज’ ’ में,गंगू तेली ने राजा जी की बखिया ही उधेड़ दी थी|
उसके बाल-मन में शायद,जो बाते रही, वही, आज दहाड़ बन के सुनी जाती है,वे चैलेन्ज दे के कहते हैं;
सुनो राजाजी,आपके राज में,खजाना लूटा जा रहा है? कुछ खबर है आपको?
आपके राज में,गरीबों को सपना दिखाया जाता हैं|वोट पाने के लिए लेपटाप बांटे जाते हैं|
आप अपने ‘पूर्वजों की शिकार-गाथा’ बताते नहीं अघाते| मगर आप एक पडौसी की धमकी से दुम दबा के बैठ जाते हैं? पडौसियों को हड़काते क्यों नहीं?
आपके राज में आपके मंत्री,फूल रहे हैं, आप इनका ईलाज क्यों नहीं करवाते? आपने मर्ज को जानने की कभी इच्छा जाहिर की है? क्या ये मंत्री ‘ओव्हर-डाइटिंग’ के शिकार हैं| आपने ऐसे मंत्री को कभी डाक्टर के पास भेजने का कष्ट किया है?
आपके राज में,लोग प्याज को तरस रहे हैं| आप उन्हें बिना प्याज आंसू दिए जा रहे हैं| आपके किसान नरेगा,और कम कीमतों में मिले अनाज से आलसी हो गए कि उन्हें फसल उगाने की सुध नहीं,या आप अपने राज का माल दूसरे राज में भेज पैसा कमा रहे हैं?
राजा जी सुनो| जनता हिसाब मागती है| पिच्छले दस सालो से आपने किया क्या है? राजमहल की सड़क के मरम्मत के अलावा आपने कोई सड़क पर ध्यान दिया है?
राजा जी,एक ही परिवार के गुण गाने के दिन लद गए| जनता पुराने घिसे रिकार्ड को सुनना पसंद नहीं करती|
ऊ... ला... . ला... के जमाने में आप केवल ला ला करते रहेंगे, ये अच्छी बात नइ है... .