गंजेपन पर दो फिल्मों का प्रदर्शन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 17 अक्तूबर 2019
गंजेपन से प्रेरित दो कथा फिल्मों का प्रदर्शन एक ही दिन होने जा रहा है। अनुमान है कि ये हास्य फिल्में हैं। गंजापन अब कोई बड़ी समस्या नहीं है। बालों का प्रत्यारोपण किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में होने वाले दर्द से बचना हो तो विग पहना जा सकता है। हमारा एक लोकप्रिय सितारा तो विगत बीस वर्षों से विग पहन रहा है। उसने अपना विग लंदन में बनवाया है। काम इतना बढ़िया हुआ है कि विग पहचाना ही नहीं जाता। महिला कलाकार भी विग पहनती हैं। एक दौर में जज सफेद रंग का विग पहनकर अदालत में बैठते थे। आशय यह था कि जज के पास उम्र का अनुभव है।
राकेश रोशन ने अपने अभिनय करने वाले कालखंड में ही विग पहनना शुरू कर दिया था। एक दिन उन्होंने विग त्याग दिया और सरेआम अपने गंजेपन के साथ सार्वजनिक स्थान पर जाना शुरू किया। इसी दौर में उन्होंने फिल्म निर्देशन प्रारंभ किया। इसके पूर्व भी वे फिल्म निर्माण प्रारंभ कर चुके थे। एस.एस राजामौली की 'बाहुुबली' की बॉक्स ऑफिस सफलता का आणविक विकिरण यह हुआ कि मानवीय करुणा की फिल्में बनना बंद करके, राकेश रोशन विज्ञान फंतासी बनाने लगे। 'कृष' का अगला भाग उनके सुपुत्र के मित्र संजय गुप्ता निर्देशित करेंगे, परंतु नियंत्रण राकेश रोशन का ही होगा। ज्ञातव्य है कि वे गले के कैंसर का इलाज करा रहे हैं। उन्हें उपचार से लाभ हो रहा है। राकेश रोशन के परम मित्र ऋषि कपूर भी कैंसर मुक्त होकर स्वदेश आ गए हैं और शूटिंग भी कर रहे हैं।
राज कपूर की फिल्म 'बूट पॉलिश' में डेविड अब्राहम अभिनीत पात्र गंजा है और बाल उगाने के लिए नई औषधियां बनाता रहता है। जेल के कक्ष में सभी कैदी गंजे हैं। उस कक्ष में अधिक बार सजा पाने वाला व्यक्ति सीनियर माना जाता है और सभी उसका सम्मान करते हैं। जेल कक्ष में डेविड से बाल उगाने के नए नुस्खे के बारे में पूूछा जाता है। उस अवसर पर शंकर जयकिशन का मन्ना डे द्वारा गाया गीत है- 'लपक झपक तू आ रे बदरवा, तेरे घरे में पानी नहीं है, तू पनघट से भर ला' अत्यंत लोकप्रिय हुआ। मन्ना डे ने कहा कि गीत में हास्य के साथ करुणा का भाव लाना आसान नहीं था। गीत गाते ही बारिश होने लगती है और डेविड को उन बेघरबार लोगों की याद आती है, जिन्हें सिर छिपाने के लिए छत उपलब्ध नहीं है। आज भी लोग बेघरबार और बेरोजगार हैं। एक अमीर ने अपनी भव्य अट्टालिका की छत पर रेन मशीन लाई है। वह जब चाहे बरसात में पकौड़े खा सकता है। इस तरह निदा फाजली को गलत साबित किया है 'बरसात का आवारा बादल क्या जाने, किस छत को भिगोना है, किस छत को बचाना है। अब साधन संपन्न व्यक्ति मौसम बदल सकता है।
यह गौरतलब है कि गरीबी से जूझते हुए भारत के दो अर्थशास्त्रियों को नोबेल पुरस्कार मिला है। अमर्त्य सेन की थीसिस थी कि अकाल मनुष्य का बनाया हुआ है। हाल ही में बनर्जी को नोबेल प्राइज मिला है। उनका मत है कि गरीबी एक सोचा-समझा षड्यंत्र है, गरीबी मनुष्य रचित प्रोडक्ट है। यह खेदजनक है कि बनर्जी महोदय की आलोचना इसलिए की जा रही है कि उन्होंने व्यवस्था के एक गलत निर्णय की बात की। भांग की पकौड़ी खाई जा रही है और पूरे कुएं में ही भांग पड़ी है। व्यक्ति पूजा भारतीय अवाम के मन में अवतार अवधारणा के साथ ही जमी हुई है।
नपुंसकता के हव्वे पर फिल्म बनी है। विज्ञान की खोज से कुछ फिल्में प्रेरित होती रही हैं। स्पर्म पर शोध के बाद ही 'विकी डोनर' संभव हो पाई। सौंदर्य शल्य चिकित्सा ने फेस लिफ्ट संभव कर दिया और उम्रदराज व्यक्ति अपने चेहरे पर आई झुर्रियों से मुक्त हो सकता है। उम्र और अनुभव की इबारत होती है झुर्रियां। हर तरह का पढ़ना-लिखना भुलाए जाने का रिवाज बन गया है। समय की दीवार पर लिखी इबारत पढ़ने की किसी को रुचि ही नहीं है। एक व्यंग्य में कही बात कि 'पढ़ोगे-लिखोगे, होवोगे खराब, खेलोगे-कूदोगे, बनोगे नवाब' अब सत्य सिद्ध होती जा रही है। कुछ खिलाड़ी सौ करोड़ रुपए हर वर्ष कमा रहे हैं। पढ़े-लिखे को प्रभावहीन बना दिया गया है। अनपढ़ अभियान जारी है। सत्य है कि कैंसर के इलाज के समय बाल झड़ने लगते हैं। एक विज्ञापन फिल्म में एक व्यक्ति कहता है कि कैंसर उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता, क्योंकि वह पहले ही गंजा है। एक पुरानी कहावत है कि ईश्वर गंजे को नाखून नहीं देता, वह अपना सिर जख्मी कर सकता है। अब गंजापन कोई समस्या नहीं रही और नाखून काटे जाते हैं। व्यवस्था के नाखून हथियार की तरह हैं और उनका गंजापन उन्हें अपने दल की टोपी पहनने में सहायता करता है।