गजरा / शोभना 'श्याम'
कभी इस सिग्नल, पर तो कभी उस सिग्नल पर, आँखे चार हो ही जाती हैं, उन दोनों की। कभी-कभी तो अनजाने में ही, सिग्नल पर रुकी एक ही कार पर दोनों लपक पड़ते हैं-एक इस ओर से तो-तो दूसरा, दूसरी ओर से। वह कारों में इस्तेमाल होने वाली छोटी मोटी चीजें जैसे कार हेंगिंग, चार्जर, खिड़की पर लगाने वाली जाली वगैरह बेचता है और यह उन कारों में बैठने वालियों के लिए गजरें।
वह बमुश्किल सोलह-सत्रह साल का है और यह तेरह-चौदह साल की। उसकी तरुणाई पूरे उबाल पर है और यह अपने नए-नए उभारों पर सकुचाई, झुंझलाई और हर नज़र के प्रति शंकालु। वह अक्सर कोई ऐसा फ़िल्मी गीत गुनगुनाता इसके पास से निकल जाता है, जिसमें गोरी शब्द आता हो और यह कट के रह जाती है। ऐसे में इसे अपनी माँ पर बहुत गुस्सा आता है, क्या ज़रूरत थीं ऐसा नाम रखने की?
एक दिन तो उसने हद ही कर दी। इसके पास से निकलते-निकलते कह गया-"कभी ये गजरा अपने बालों में भी लगा कर दिखा न!"। उसे खूब खरी खोटी सुनाकर यह घर आयी, तो चार दिन तक काम पर नहीं गयी।
आज माँ की मनुहार पर बेमन से आयी और दूर एक नए सिग्नल पर जाकर गजरे बेचने लगी।
अभी आधा दिन भी नहीं बीता था कि अचानक किसी ने पीछे से इसका हाथ पकड़ लिया। पलट कर देखा, तो जैसे, सारा खून सूख गया। एक गुण्डेनुमा लड़के ने उसका हाथ पकड़ रखा था और उसे खींचते हुए पास की गली की ओर ले जा रहा था। इससे पहले यह उस गुंडे की मजबूत पकड़ से खुद को छुड़ाने की कोशिश भी करती, वह जाने कैसे वहाँ आ पहुँचा और अपने बेचने वाले समान के झोले से दनादन उसको पीटना शुरू कर दिया। दोनों के बीच थोड़ी देर की मारपीट के बाद गुंडा भाग निकला और वह बिना इसकी ओर देखे म्युनिस्पैलिटी के नल से अपने मुँह और हाथ पर लगी मिटटी और लहू धोने लगा।
शाम ढल रही थी, सिग्नल पर सामान बेचने वाले सारे नन्हे दूकानदार अपनी-अपनी दिन भर की कमाई संभाल रहे थे, तभी ये वहाँ आ पहुँची। उसने उड़ती-सी नज़र इस पर डाली... इसने गजरा लगा रखा था।