गजानन वर्मा / कथेसर
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चावा गीतकार गजानन वर्मा
राजस्थानी भाषा रा चावा गीतकार अर कवि गजानन वर्मा लारली 17 मई नै चल बस्या। वां रो जलम 23 मई 1927 नै चूरू जिलै रै रतनगढ़ कस्बै मांय हुयो। लोक री सबदावली, सुर अर लय रै पाण आपरी कविता लोक में घणी चावी व्ही। आप कला रा पारखी अर निरत अनै लोकनाट्य री परम्परा रा जाणकार हा। 'सोनो निपजै रेत में’, 'बारहमासा’, 'हेलो मार : सुण सिणगार’ अर 'हळदी रो रंग सुरंग’ आपरी चावी कृतियां हैं। आप बंगला, असमिया अर हिंदी री कई फिल्मां रा गीत भी आप लिख्या अर आपनै प्रसिद्धि मिळी। आप काव्य अर दूजी कलावां नै पनपावण खातर कलकत्ता री 'जनपथ’ अर बीकानेर सूं निकळण वाळी 'नई चेतना’ पत्रिका रै संपादन सूं जुड़्या। कई संस्थावां री थापना कीनी। अेक लोककवि रै रूप में आपरी जबरी प्रतिष्ठा है। आपरै गीतां रै अेक-अेक बोल में राजस्थानी लोकगीतां री सौरम अर लोकजीवण रा चितराम मिळै। राजस्थानी ग्राम जीवण री झांकी लियोड़ी आपरी कविता आज भी लोगां रै कंठहार बण्योड़ी है। 'कथेसर’ कानी सूं निवण अनै सरधांजळी। अठै पेस है आं माथै के.सी. मालू अर इकराम राजस्थानी जी रा विच्यार 'अनै 'सोनो निपजै रेत में’ संग्रै सूं आं रो अेक श्रमगीत।
सामरथवान सिरजणधर्मी - के.सी. मालू
'बाजरै री रोटी पोई/ फोफळियां रो साग जी/ जीमण बैठी गोरड़ी जद/ बोलण लाग्यो काग जी।’
1960-61 में जद मैं 15-16 बरसां रो हो, गजानन जी वर्मा रो ओ गीत गाया करता। गाती टेम लागतो कोनी कै ओ कोई कवि रो लिख्योडो गीत है। इयां ई हर ब्याह में लुगायां विदाई री टेम अवस गाया करती- 'मैं तो बाबल रै/ बागां री चिड़कली/ परदेसी सूवटियै रै लार/ बाबल गठ-जोड़ो कर्यो।’ ओ गीत सुण्यां हियो भर जावतो अर आंख्यां मे आंसू आ जावता। वर्मा जी रो कविता संग्रै 'सोनो निपजै रेत में’ आं ई दिनां बाजार में आयो हो। साहित्य में रूचि राखणिया मोट्यार तो गजानन जी रा दीवाना हुयग्या।
फरवरी 1962 में इन्टरमीडियेट और साहित्य रत्न कर्यां पछै पुस्तैनी बौपार में नेपाल (बिराटनगर) जावणो हुयो। संजोग सूं गजानन रो अेकल कवि सम्मेलन बठै राखीज्यो। म्हनै चोखी तरियां याद है खचाखच भर्योडै़ कं कराणी जी रै गोळै में आखी रात गजानन जी आपरा गीत अर कवितावां सुणाई। प्रवासी राजस्थानी भाई खुसी सूं अभिभूत हुयग्या। गजानन जी रा गीत हर मिनख री आत्मा रा गीत है। लोक रै सुख रो उछाह और दु:ख की पीड़ है वां रै गीतां में। बै राजस्थान रै जीवण नै, अठै री प्रकृति नै अर जीवा-जूण नै बहोत नजदीकी सूं देखी अनै मैसूस कीनी। उणां री हरेक सांस में अठै रो लोक सांस लेवतो। जणां ही उणां रा गीत उणां रै जीवण काळ में ई लोकगीत बणग्या। गीत लिखणो अेक बात है पण बां गीतां रो जण-जीवण में प्रचलन हुय जावणो- बहोत गहरी बात है। वर्मा जी रै गीतां में हर आदमी खुद नै मैसूस करण लागग्यो। आ बां री बहोत बड़ी सफ लता ही।
गजानन जी कवि- गीतकार रै सागै नाट्य-बैले, लेख, पटकथा लेखन, संगीत संयोजन, नृत्य अर मंचन सारी प्रदर्शनीय विधावां में सिद्ध-हस्त हा। मंच रा तो सिरमौर हा। मंच पर उणा री हाजरी देखणिया-सुणनियां नै बांधनै राखण में कामयाब ही। भूपेन हजारिका, उदयशंकर, सलिल चौधरी जिस्या कलाकारां रै सागै बां काम कर्यो अर बां रो सैयोग लियो अर कर्यो। आसाम मे आज भी राजस्थानी गीत रो नांव आयां असमी लोग गजानन नै याद करै।
बहुमुखी प्रतिभा संपन्न हुवणै अर इत्ती प्रसिद्धि पावणै रै बाद भी जीवण रा छेहला 20 बरसां में लोग उणां रा गीत तो याद राख लिया, पण उणां नै भुला दिया। साहित्य री राजनीति चालतां अकादमियां भी उणां नै भुला दिया। हद तो जद हुई कै रतनगढ़ मे रैवता थकां भी रतनगढ़ रा लोगां नै ओ मालूम कोनी हो कै गजानन जी अबार तांई जीवता है कांई! खैर, सिरजणधर्मी लोग आं बातां री परवा कोनी करै। गजानन जी री कलम आखिरी सांस तांई चालती रैयी। जीवण रै छेहलै सप्ताह में उणां भूपेन हजारिका रै साथै आपरा संस्मरणां री आखरी किस्त मय फोटोग्राफ हाथ सूं लिख’र भेजी। हजारिका जी केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी रा अध्यक्ष रैया जणां आपरो फरज निभा’र वर्मा जी नै अकादमी पुरस्कार दियो, पण राजस्थान सरकार तो उणां रो नांव ही भूलगी। रचनाकारां रै साथ आ बात हुवती रैयी है। आपरी जवानी रा दिनां में लोग जिणां नै देखण नै तरसै, बुढापै में अभावां मे जीवणै खातिर मजबूर हो ज्यावै। गजानन जी आखिरी सांस तांई स्वाभिमानी रैया अर आपरी सामरथ सूं सम्मान पूर्वक जीया। कैंसर रो इलाज भी करायो। कलम भी चलावता रैया अनै भायलाचारो भी निभावता रैया। गजाननजी नै निवण।
गूंजैला गीत गजानन रा -इकराम राजस्थानी
गजानन वर्मा कोनी रैया, म्हनै आ खबर ई झूठी लागै। ज्यां लोगां रै हाथ में कलम रैवै, वां की कलम री नोक तो समाज रै मांय दिवला री जियां सदां ही जळती रैवै। कदे-कदे तो वा दिवला री लोय अस्यो सूरज बण ज्यावै जीं का प्रकास रै मांय पूरो जग ही जगमग करतो रैवै। आ बात सांची है कै वां रै पार्थिव सरीर रै गयां पाछै वै आपणै लारै तो नईं चाल रैया, पण वां रा पगां री चाप अब भी पल-पल सुणाई देती रैवै। गजानन जी रा गीत तो झीणा घूंघटा की ओट कै मांय सूं गूंजै है। आंख्यां रा काजळ मांय लिख्योड़ा है। कामण्यां री कणकती माळै बैठा मुळकै है। बिछियां मांय झमकै है। बाजूबंद रै माळै झूमै है अर पगां री पायलियां मांय छमकै है। गौरा धोरां री धरती रा ये गीत बाळू रेत मांय सोना की जियां दमक रैया है।
वां रै सागै बीतियोड़ा कई दिन, कई कवि सम्मेलन, कई मंच आज भी म्हारै कानां मांय गूंजता रैवै है। आकाशवाणी पर जद म्हैं काम करै हो तो वां सूं कई बारी मिलतो रैतो। राजस्थान री धरती रा मीठा, लूंठा अर फूठरा गीतकार गजानन वर्मा नै म्हारै कानी सूं अर राजस्थान का पूरा साहित्य जगत कानी सूं घणी-घणी आंसूड़ा भरी सरधांजळी। अंत में कैवूंला-
आणै वाळी पीढी में सब
पूछैला गीत गजानन रा
जुग आवैला-जुग जावैला
गूंजैला गीत गजानन रा॥
गीत
चाल म्हारा भायला
चाल म्हारा भायला तू आज म्हारै खेत
हर्या-हर्या रूंखड़ा है गोरी-गोरी रेत
झाला देवै लुळ-लुळ डैर्यां री जुंआर
फूल्यो न समावै म्हारो काछीड़ो गुंआर
मोठ-मुस्कावै तिल सांगणी समेत
हर्या-हर्या रूंखड़ा है गोरी-गोरी रेत
चाल म्हारा भायला तू आज म्हारै खेत
हर्या-हर्या रूंखड़ा है गोरी-गोरी रेत
मूळां में मतीरा मीठा मिसरी की जात
काकड़ी खिरण लागी पैली बरसात
खेत की धिरांणी सिट्टा मोर-मोर देत
हर्या-हर्या रूंखड़ा है गोरी-गोरी रेत
फसल फळन लागी सुभ दिन मांन
धजा-ए फरूकै म्हारी आज असमांन
होग्या है मजूर-किरसाण सावचेत
हर्या-हर्या रूंखड़ा है गोरी-गोरी रेत
चाल म्हारा भायला तू आज म्हारै खेत
हर्या-हर्या रूंखड़ा है गोरी-गोरी रेत