गठरी / ममता व्यास
मनु प्लेटफॉर्म पर बैठी थी। अपने सामान की गठरी संभाले, सकुचाई-सी वह अपनी गाड़ी का इंतज़ार कर रही थी। ये बात अलग थी कि उसे कहाँ जाना है उसे ख़ुद ही नहीं पता था। वह वहीं बैठ गयी गठरी को नवजात शिशु की तरह सीने से चिपकाये हुए।
पूरा प्लेटफॉर्म भीड़ से अटा पड़ा था, लेकिन उसे सब अजनबी ही लगते थे। कोई भी चेहरा देख ऐसा नहीं लगा, जो अपना-सा हो।
तभी उसके ठीक बगल में एक नौजवान आकर बैठ गया। सिगरेट पर सिगरेट फूंकते उस लड़के को देख पलभर में उसने सोच लिया। "बहुत जल्दी मरेगा ये, देखो तो कैसे फूंकता है जिगर को।" वह हर सिगरेट आधी ही पीता था। आधी लापरवाही से फेंकता जाता था।
वह न जाने क्या सोचकर (शायद थोड़ी-सी बैठने की जगह देख) उसके पास आकर बैठ गया और बार-बार मोबाइल में कुछ लिखता जाता था। कभी टाइम देखता था। मतलब बड़ा ही बेचैन-सा दिखता था वह।
मनु उसे बड़े ग़ौर से देख रही थी। उसने देखा, अब उसका गला सूखने लगा था। उसके सूखे होंठ देख अपनी गठरी में से पानी की बोतल निकाली और उसकी ओर बढ़ा दी।
अब उस लड़के ने पहली बार उस गठरी वाली औरत को देखा और हैरानी से मुस्काया। शायद ये सोचकर कि इसे कैसे पता मेरा गला सूख रहा है।
उसने ध्यान से देखा, बैग और पर्स के ज़माने में ये गठरी क्यों लिए हुए है। चेहरे से तो पागल नहीं दिखती।
आखिर संकोच छोड़ वह बोल पड़ा "क्या है इसमें और इसे सीने से क्यों चिपकाये हुए हो?"
जवाब में वह चुप हो गयी।
"इस गठरी को यहाँ रख दो, क्यों बोझ उठाना?" उसने पानी के बदले हमदर्दी दिखाई।
"मैं ठीक हूँ।"
"लेकिन इसमें है क्या ऐसा?"
"कुछ नहीं खास।"
"देखो मुझे बताओ, इसमें क्या है ऐसा।"
लड़का तो जैसे ज़िद पर ही अड़ गया था, उसे अब जानना ही था उस गठरी के रहस्य को। लेखक होना भी मुसीबत ही है। हर जगह मेरे दिमाग़ में कहानी, कविता क्यों बनने लगती है। क्यों सोच रहा हूँ इस अजीब-सी औरत के बारे में। वह मन ही मन बड़बड़ाया।
लड़के से फिर भी रहा नहीं गया। उसने बात शुरू करने की सोची और उसने बातें शुरू कीं, कहाँ से आई हो? कहाँ जा रही हो, नाम क्या है, क्या करती हो, जैसे तमाम प्रश्न ज़रा देर में उस बातूनी लड़के ने उस गठरी वाली औरत के मन की सभी गांठें खोलनी शुरू कर दीं और वह स्त्री उसे तोते की तरह सब कुछ सुनाने लगी। कमाल ये कि स्त्री ने उस लड़के से कोई भी सवाल नहीं किया न नाम, न पता, न काम, वह बस उसकी बात का जवाब देती रही। शायद कई जन्मों से उससे किसी ने कुछ यूं पूछा ही नहीं था।
उस लड़के ने कहा, "देखो हर गांठ या गठरी हमेशा खुलने के इंतज़ार में रहती है। इस गठरी को खोल क्यों नहीं देतीं? खोलकर फिर चाहे तो बाँध देना, लेकिन एक बार खोलो तो सही।" वह ग़ज़ब का जिज्ञासु था। उसे उस वक़्त उस स्त्री के बारे में सबकुछ जान लेना था। स्त्री समझ नहीं पा रही थी कि ये लड़का सच में दिल का भला है, उससे सहानुभूति रखता है या यूं ही अपना वक़्त काटने के लिए बात कर रहा है। न जाने क्या सोचकर उसने गठरी को उठाकर सामने रखा और उसमें पड़ी गाठें गिनने लगी, जो अनगिनत थीं।
मनु को वह लड़का भला-सा ही लगा और उसने धीरे-धीरे एक-एक करके गठरी की गांठें खोलनी शुरू कर दी। साथ में वह भी उसकी मदद कर रहा था।
थोड़ी-सी देर में उसकी पूरी गठरी खुल गयी। खुलते ही जन्मों के सोये अहसास, पीड़ाएँ बिखरने लगीं। पलभर में भाव तितलियाँ बनके इधर-उधर उड़ गए। उसके पास अनगिनत ख़त थे, जिन्हें उसने कभी पोस्ट नहीं किया था। वे सब यहां-वहाँ बिखर गए। पलभर में उसकी छोटी-सी गठरी समंदर जैसी फैल गयी थी, जिसे अब समेटना असम्भव था।
वह उड़ते हुए अहसासों को देख रही थी। बिखरते खतों को पकड़ रही थी। उसकी सभी पीड़ाएँ प्लेटफॉर्म पर आ-जा रही भीड़ के पैरों के नीचे कुचल गयी थीं। उसका प्रेम उड़कर रेल की पटरी पर चिपक गया था।
उसने जल्दी-जल्दी अपनी गठरी को फिर से बाँधने का प्रयास किया, लेकिन सब बुरी तरह बिखर चुका था। कितने बरसों से उसने एक-एक चीज को तह करके जमाया था। प्रेम को सबसे नीचे दबाया था, उस पर पीड़ा और दर्द का भारी पत्थर रख छोड़ा था।
आसपास कोमल अहसास और ख़त भर दिए थे और फिर तरीके से इस मन की गठरी पर सौ गांठें लगायी थीं। उसने भागते-दौड़ते-हांफते हुए अपने बिखरे सामान को समेटना जारी रखा।
"क्यों किसी अजनबी के कहने पर उसने अपनी गठरी को खोल दिया। क्यों इस लड़के की बातों में आ गयी। उसे पहले ही समझ जाना चाहिए था, भला कोई अजनबी ऐसे आत्मीय होता है क्या? जब तक गठरी खुली नहीं थी, तब तक तो ये बहुत आत्मीयता से बात कर रहा था, गांठें खुलवाने में भी मेरी मदद कर रहा था और अब देखो मेरे उड़ते-बिखरते सामान को समेटने में मेरी कोई मदद भी नहीं कर रहा।" वह मन ही मन ख़ुद पर नाराज हो गयी और बड़बड़ाई।
तभी रेल की आवाज़ आई, सभी यात्री प्लेटफॉर्म पर बदहवास से यहां-वहाँ भागने लगे। मनु ने दर्द और हैरानी से उसे देखा, लड़का अभी भी अपने मोबाइल में व्यस्त था।
ट्रेन रुकते ही, वह लड़का भागते हुए बोला-"यार मेरी ट्रेन आ गयी, मुझे जाना होगा।"
मनु वहीं ठहर गयी उसी प्लेटफॉर्म पर और आज तक गठरी नहीं बाँध पायी।