गढवाली भाषा में समीक्षाएं / वीरेन्द्र पंवार

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डा वीरेन्द्र पंवार गढवाली समालोचना का महान स्तम्भ है . डा पंवार के बिना गढवाली समालोचना के बारे में सोचा ही नही जा सकता है . डा पंवार ने अपनी एक शैली परिमार्जित की है जो गढवाली आलोचना को भाती भी है क्योंकि आम समालोचनात्मक मुहावरों के अतिरिक्त डा पंवार गढवाली मुहावरों को आलोचना में भी प्रयोग करने में दीक्षित है. डा वीरेंद्र पंवार की पुस्तक समीक्षा का संक्षिप्त ब्यौरा इस प्रकार है

आवाज- खबर सार (२००२)

लग्याँ छंवां - खबर सार (२००४)

दुनया तरफ पीठ' - खबर सार (२००५)

केर'- खबर सार (२००५)

घंगतोळ -खबर सार (२००८)

टुप टप -खबर सार (२००८)

कुल़ा पिचकारी -खबर सार (२००८)

कुल़ा पिचकारी -खबर सार (२००८)

डा. आशाराम ' -खबर सार (२००८)

अडोस पड़ोस - खबर सार (२००९)

मेरी पूफू - खबर सार (२००९)

दीवा दैणि ह्वेन -खबर सार (२०१०)

खबर सार दस साल की - खबर सार (२०१०)

ज्यूँदाळ - खबर सार (२०११)

पाणी' - खबर सार (२०११)

गढवाली भाषा के शब्द संपदा - खबर सार (२०११)

सब्बी मिलिक रौंला हम - खबर सार (२०११)

आस - रंत रैबार (२०११)

फूल संगरांद - खबर सार (२०११)

चिट्ठी पतरी विशेषांक - खबर सार (२०११)

द्वी आखर - खबर सार (२०११)

ललित मोहन कोठियाल की भी दो पुस्तकों की समीक्षा खबर सार में प्रकाशित हुईं हैं.

संदीप रावत द्वारा उमेश चमोला कि पुस्तक की समालोचना खबर सार (२०११) में प्रकाशित हुयी

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