गढवाली भाषा साहित्य में साक्षात्कार की परम्परा / भीष्म कुकरेती

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(गढवाली गद्य -भाग ३)

साक्षात्कार किसी भी भाषा साहित्य में एक महत्वपूर्ण विधा और अभिवक्ति की एक विधा है. साक्षात्कार कर्ता या कर्त्री के प्रश्नों अलावा साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति के उत्तर भी साहित्य हेतु या विषय हेतु महत्वूर्ण होते है. अंत में साक्षात्कार का असली उद्देश्य पाठकों को साक्षात्कारदाता से तादात्म्य कराना ही है व प्रसिद्ध व्यक्ति विशेष की विशेष बात पाठकों तक पंहुचाना होता है.. अत : साहित्यिक साक्षात्कार समीक्षा में यह देखा जाता है कि साक्षात्कार से उदेश्य प्राप्ति होती है कि नही .


गढवाली भाषा में पत्र पत्रिकाओं की कमी होने साक्षात्कार का प्रचलन वास्तव में बहुत देर से हुआ. यही कारण है कि गढवाली भाषा में प्रथम लेख ' गढवाली गद्य का क्रमिक विकास (गाडम्यटेकि गंगा -सम्पादक अबोध बंधु बहुना , १९७५) में कोई साक्षात्कार नही मिलता और डा अनिल डबराल ने अपनी अन्वेषणा गवेषणात्मक पुस्तक 'गढवाली गद्य की परम्परा :इतिहास से वर्तमान तक (२००७ ) में केवल चार भेंट वार्ताओं का जिक्र किया

गढ़वाली में साक्षात्कार दो प्रकार का है :

१- किहि विशेष विषय पर वार्ता केन्द्रित हो ;जैसे अर्जुन सिंह गुसाईं, भीष्म कुकरेती के बहुगुणा के साथ वार्ताएं , मदन डुक्लाण का ललित मोहन थपलिया के साथ भेंटवार्ता या वीरेन्द्र पंवार की स्टेफेनसन के साथ वार्ता .

२- जनरलाइज किसम की वार्ताएं : जिसमे बातचीत बहुविषयक हुयी हैं साहित्यिक दृष्टि से भीष्म कुकरेती गढवाली भाषा में साक्षात्कार का सूत्रधार : वास्तव में भेंटवार्ता व साक्षात्कार प्रकाशन कि परम्परा लोकेश नवानी के प्रयत्न से ही सम्भव हुआ. लोकेश नवानी धाद मासिक का असली कर्ता धर्ता था किन्तु पार्श्व में ही रहता था. सन् १९८७-८८ में जब मेरी लोकेश से बात हुयी तब यह भी बात हुई कि गढवाली में भेंटवार्ताएं नही हैं. मै भीष्म कुकरेती के नाम से व्यंग्य विधा में आ ही चुका था अत ; मैंने साक्षात्कार हेतु 'गौंत्या ' नाम चुना जिससे धाद में भीष्म कुकरेती के नाम से दो लेख ना छपें . यही कारण है कि धाद (मर्च १९८७ ) में हिलांस के सम्पादक अर्जुन सिंह गुसाईं के साथ मेरा साक्षात्कार 'गौंत्या' नाम से से प्रकाशित हुआ. इस साक्षात्कार का जिक्र डा अनिल डबराल ने अपनी उपरोक्त पुस्तक में किया व साक्षात्कार का विश्लेष्ण भी किया. यह साक्षात्कार गढवाली का मानकीकरण विषय की ओर ढल गया था. अत : इस साक्षात्कार ने गढवाली मानकीकरण बहस को आगे बढाया . डा अनिल का मत इस साक्षात्कार पर इस प्रकार है

" मानकीकरण के क्रम में यह साक्षात्कार मूल्यवान है. इसलिए कि इसमें मध्यमार्ग अपनाया हुआ है , और विवेचन बहुत नापा तुला है. अर्जुन सिंह गुसाईं का मत है कि मानकीकरण से पहले प्रत्येक क्षेत्र की शब्दावली साहित्य रूप में आ जानी चाहिए. यही बात डा पार्थ सारथी डबराल ने अंतर्ज्वाला में अपने साक्षात्कार में चुटकी लेते कहा " सासू क नौ च रुणक्या , ब्वारी क नौ च बिछना , सरा रात भड्डू बाजे, खाण पीण को कुछ्ना"

डा डबराल आगे लिखता है , " प्रश छोटे हैं 'क्या', किलै', जन कि ?. सम्पूर्ण वाक्य ना होने से साक्षात्कार का सौन्दर्य घटा है.

पराशर गौड़ : इसी समय पाराशर गौड़ की 'जीत सिंह नेगी दगड द्वी छ्वीं ' भी प्रकाशित हुयी. इसमें जीत सिंह नेगी के कई चरित्र सामने आये जैसे जीत सिंह नेगी की संकोची प्रवृति . डा अनिल ने इस भेंटवार्ता को सामान्य स्तर का साक्षात्कार बताया . भीष्म कुकरेती का मानना है कि गढवाली भाषा में साक्षात्कार जन्म ल़े ही रहा था तो इस गढवाली साक्षात्कार के उषा काल में कमजोरी होनी लाजमी थी .

भीष्म कुकरेती का दूसरा साक्षात्कार : ' गौन्त्या 'के ही नाम से भीष्म कुकरेती का (धाद १९८८) दूसरा साक्षात्कार मुंबई के उद्योगपति गीत राम भट्ट से प्रकशित हुआ. इस साक्षात्कार में उद्योगपति बनने की यात्रा व गढवाली भाषा का प्रवासियों के मध्य बोलचाल के प्रश्न जैसे विषय है.

भीष्म कुकरेती का अबोध बंधु बहुगुणा से 'गढवाळी साहित्य मा हास्य' एक यादगार साक्षात्कार : गढ़ ऐना (१३-१६ फरवरी १९९१ व धाद मई १९९१ ) में भीष्म कुकरेती का अबोध बंधु बहुगुँ के साथ गढवाली साहित्य में हास्य पर वार्तालाप गढवाली साहित्य व समालोचना साहित्य हेतु एक कामयाब व लाभ्दाये साक्षात्कार है . इस साक्षात्कार में गढवाली साहित्य के दृष्टि से हास्य-व्यंग्य की परिभाषा ; गढवाली लोक गीत, एवम लोक कथाओं में ; गढवाली कविता (१७५०-१९९०, १९०१-१९५०, १९५१-१९८०, १९८०-१९९० तक ) में युग क्रम से हास्य, हिंदी साहित्य का गढवाली हास्य पर प्रभाव; गढवाली गद्य में हास्य (१९९०-१९९०); गढवाली नाटकों में हास्य (१९००-१९९०); गढवाली कहानियों में हास्य (१९००-१९९०); गढ़वाली, गढ़वाली में लेखों में हास्य व्यंग्य; गढवाली कैस्सेटों में हास्य; गढवाली फिल्मों में हास्य व गढवाली साहित्य में भविष्य का हास्य जैसे विषयों पर लम्बी सार्थक, अवेषणात्मक बातचीत हुए. सक्सात्कारों में यज एक ऐतिहासिक साक्षात्कार माना जाता है.

भीष्म कुकरेती व अबोध बंधु बहुगुणा के साथ बातचीत ( २००५ में प्रकाशित ): भीष्म कुकरेती द्वारा बहुगुणा के साथ बहुगुणा के कृत्तव पर आत्मीय बातचीत बहुगुणा अभिनन्दनम में प्रकाशित हुआ.

समालोचना पर भीष्म कुकरेती व अबोध बंधु बहुगुणा के मध्य 'मुखाभेंट ' एक अन्य ऐतिहासिक साक्षात्कार: सं २००३ में भीष्म कुकरेती ने अबोध बहुगुणा से 'गढवाली समालोचना' पर एक साक्षात्कार किया था जो 'चिट्ठी पतरी' के अबोध बंधु बहुगुणा स्मृति विशेषांक (२००५) जाकर प्रकाशित हुआ. इस साक्षात्कार में गढवाली आलोचना व समालोचकों की स्तिथि व वीरान पर एक ऐतिहासिक बातचीत है. गढवाली साहित्य इतिहास हेतु यह मुखाभेंट अति महत्वपूर्ण साक्ष्य है. इस साक्षात्कार में भीष्म कुकरेती ने अबोध अबन्धु बहुगुणा को गढवाली का राम चन्द्र शुक्ल, व बहुगुणा ने गोविन्द चातक को भूमिका लिखन्देर, भीष्म कुकरेती को घपरोळया अर खरोळया , राजेन्द्र रावत को सक्षम आलोचक, महावीर प्रसाद व्यासुडी को विश्लेषक लिख्वार, डा नन्द किशोर ढौंडियाल को जणगरु अर साहित्य विश्लेषक, वीरेन्द्र पंवार को आलेख्कार व आलोचक, सुदामा प्रसाद प्रेमी को छंट्वा खुजनेर , डा हरि दत्त भट्ट शैलेश को जन साहित्य का हिमैती , सतेश्वर आज़ाद को मंच सञ्चालन मा चकाचुर, उमा शंकर समदर्शी -किताबुं भूमिका का लेखक, डा कुसुम नौटियाल को हिंदी में शोधकर्ता की उपाधि से नवाज़ा था .

स्व' अदित्य्राम नवानी से जगदीश बडोला की बातचीत (चिट्ठी १९८५) : डा अनिल के अनुसार यह वार्तालाप ऐतिहासिक है किन्तु इसमें कोई विशेष बात नही आ पायी है

अनिल कोठियाल की साहित्यकार गुणा नन्द 'पथिक' से बातचीत (चिट्ठी १९८९) : डा अनिल का कथन कि कि यह वार्तालाप महत्वपूर्ण है एक सही विश्लेष्ण है क्योंकि इस वार्तालाप सेगढवाली जन व उसके साहित्य के नये आयाम सामने आये हैं.

देवेन्द्र जोशी के बुद्धि बल्लभ थपलियाल से वार्ता (चिट्ठी पतरी १९९९) : इस वार्ता में देवेन्द्र जोशी की साक्षत्कार की कला तो झलकती है बुद्धि बल्लभ की गढ़वाली भाषा से प्यार भी झलकता है तभी तो बुद्धि बल्लभ थपलियाल ने खा " गढवाळी कविता , हिंदी कविता से जादा सरस, उक्तिपूर्ण अर आकर्षक लगदन".

डा नन्द किशोर ढौंडियाल का संसार प्रसिद्ध इतिहासकार डा शिव प्रसाद डबराल के साथ साक्षात्कार (चिट्ठी पतरी, २०००) यह एक साक्षात्कार तो नही किन्तु डबराल के साथ लेखक का व्यतीत एक दिन का ब्योरा है.

वीणा पाणी जोशी का अर्जुन सिंह गुसाईं से साक्षात्कार (चिट्ठी पतरी , २०००) जिस समय हिलांस सम्पादक अर्जुन सिंह गुसाईं कैंसर से लड़ रहा था उस समय वीणा पाणी ने अर्जुन सिंह से साक्षात्कार 'मनोबल ऊँचो छ, लड़ाई जारी छ' नाम से लिया जिसमे गुसाईं द्वारा मुंबई में गढवाली भाषा, सांस्कृतिकता में गिरावट पर चिंता प्रकट की गयी थी. गुसाईं का यह कथन एक मार्मिक वाक्य ," यख (मुंबई) श्री नन्द किशोर नौटियाल, डा शशि शेखर नैथानी, डा राधा बल्लभ डोभाल, श्री भीष्म कुकरेती बगैरह गढवाली सांस्कृतिक गतिविध्युं पर रूचि ल्हेंदा छाया पर अब त सब्बी चुप दिखेणा छन " मुंबई में भाषा, साहित्य व संस्कृति के प्रति चेतना में गिरावट को दर्शाता भी है व भविष्य पर प्रश्न चिन्ह भी खड़ा कर्ता है.

मदन डुकलाण का जग प्रसिद्ध नाट्यकार ललित मोहन थपलियाल से साक्षात्कार (चिट्ठी-पतरी २००२): ललित मोहन थपलियाल इस सदी के १०० महान नाटककारों की श्रेणी में आता है. किन्तु खडू लापता जसे नाटकदाता थपलियाल का विदेश में रहने के कारण ललित मोहन के विचारों से कम ही लोग परिचित थे. मदन का ललित मोहन थपलिया से वार्तालाप गढवाली साहित्य हेतु एक मील का पत्थर है जिसमे थपलियाल ने गढवाली नाटकों के लिए दर्शकों के जमघट हेतु 'एक मानक गढवाळी भाषा बणोउण की अर वां पर सहमत होणे पुठ्या जोर /कोशिश' की वकालत की. वार्तालाप गढवाली नाटकों के कई नए आयाम कि तलाश भी करता है. साधुवाद !

आशीष सुंदरियाल का स्वतंत्रतासेनानी व गढवाली के मान्य साहित्यकार सत्य प्रसाद रतूड़ी से वार्तालाप (चि.पतरी २००३) : इस वार्तालाप में रतूड़ी णे स्वतंत्रता आन्दोलन के समय साहित्य के प्रति चिंतन व आज के चिंतन , स्थानीय भाषाओं के महत्व आदि विषयों पर चर्चा की और कहा कि ' पौराणिक व पारंपरिक रीति रिवाज, तीज, त्यौहार आदि पर लिखे सक्यांद अर लिखे जाण चएंद'.

मदन डुकल़ाण की मैती आन्दोलन प्रेणेता कल्याण सिंह से वार्ता (चिट्ठी पतरी , २००३ ) : यह वार्तालाप एक सार्थक वार्तालाप है जिसमे पर्यवार्न के कए नये पक्ष सामने आये हैं.

मदन डुकल़ाण व गिरीश सुंदरियाल की महाकवि कन्हया लाल डंडरियाल से भेंटवार्ता (चिट्ठी पतरी २००४): चिट्ठी पतरी के डंडरियाल स्मृति विशेषांक में यह वार्ता प्रकाशित हुई है .दिल्ली में गढवाली साहित्यिक जगत के कई रहस्य खोलता यह वार्तालाप एक स्मरणीय व साहित्यिक दृष्टि से प्रशंशनीय, वांछनीय वार्तालाप है .

आशीष सुंदरियाल का जग प्रसिद्ध गायक जीत सिंह नेगी से साक्षात्कार (चिट्ठी पतरी , २००६)आशीष ने जीत सिंह नेगी का विशिष्ठ गायक कलाकार बनने के कथा की प्रभावकारी ढंग से जाँच पड़ताल की है.

गढवाली का संवेदनशील वार्ताकार वीरेंद्र पंवार : गढवाली भाषा में सबसे अधिक साक्षात्कार गढवाली के प्रसिद्ध कवि, समालोचक वीरेंद्र पंवार ने सन २००० से निम्न साहित्यकारों के साक्षात्कार लिए है और प्रकाशित किये हैं :

जीवा नन्द सुयाल (खबर सार, २०००): इस साक्षात्कार में जीवानंद सुयाल ने छंद कविता का सिद्धांत, उपयोगिता व पाठकों की छंद कविता में अरुचि की बात samjhaai

महेश तिवाड़ी ((खबर सार) महेश तिवाड़ी के साथ संगीत व कविताओं पर वार्ता तर्कसंगत बन पायी है

रघुवीर सिंह 'अयाळ ' : ((खबर सार, २००१) आयल ने व्यंग्य विधा पर साहित्य में जोर देने की वकालत की

मधु सुदन थपलियाल ((खबर सार, २००२) थपलियाल ने गढवाली भाषा विकास हेतु राजनैतिक लड़ाई की हिमायत की

कुमाउनी साहित्यकार मथुरा प्रसाद मठपाल ((खबर सार, २००३) मठपाल ने कुमाउनी साहित्य में कमजोर गद्य के बारे में कारण व साधन बताए

अबोध बंधु बहुगुणा ((खबर सार, २००४ ); गढ़वाली अहिटी क्योकर अभिवक्ति के मामले में हिंदी से बेहतर है पर जोरदार वार्ता है

लोकेश नवानी ( खबर सार , २००५) भाषा विकाश में धाद सरीखे आन्दोलन की महत्ता पर बातचीत हुयी

अमेरिकन लोक साहित्य विशेषग्य स्टीफेनसन सिओल ((खबर सार, २००५ ) गढ़वाली लोक वाद्यों पर विशेष चर्चा हुयी एवम वार्ता में अल्लें विश्व विद्यालय के प्रोफेस्सर ने कहा कि गढवाली लोक साहित्य अधिक भावना प्रधान है है

नरेंद्र सिंग नेगी ( खबर सार २००६) नौछमी नारेण गीत के प्रसिद्ध होने पर अफवाह थी कि नेगी राजनीती में जा रहा है. उस समय नरेंद्र सिंह नेगी ने इस साक्षात्कार में स्पष्ट किया वह राजनीती में नही जायेगा व गीतों में ही रमा रहेगा

राजेंद्र धष्माना (खबर सार, २०११) वार्तालाप में गढवाली को सम्पूर्ण भाषा सिद्ध करते हुए राजेंद्र धष्माना ने विश्वाश दिलाया कि भाषा विकाश या संरक्षण हेतु पाठ्यक्रम, भाषा पर शोध नहीं अपितु लोगों की मंशा जुमेवार है.

बी.मोहन नेगी (खबर सार , २०११ ) इस वार्ता में टेक्नोलोजी, कला व कलाकार के बावों के मध्य संबंधों की जाँच पड़ताल हुयी

भीष्म कुकरेती (खबर सार, २०११ ) वार्ता में भीष्म कुकरेती के साहित्य पर बेबाक, बिना हुज्जत की लम्बी बातचीत हुयी

कुमाउनी साहित्यकार शेर सिंह बिष्ट ( (खबर सार २०११ ): शेर सिंह ने कुमाउनी साहित्य के कुछ पक्षों को पाठकों के समक्ष रखा

इस तरह हम पाते हैं कि १९८७ में भीष्म कुकरेती द्वारा पहल की गयी वार्तालाप/साक्षात्कार विधा गढवाली साहित्य में भली भांति फली व फूली है. वार्तालापों में क्रमगत विकास भी देक्गने को मिल रहा है. वर्तमान में संकेत हैं कि गढवाली में साक्षात्कार विधा का भविष्य उज्वल है.