गढ़तंत्र की झांकी / पंकज प्रसून
हमारे उत्तर आधुनिक संविधान ने इंसान को बनावटी बना दिया है और अधिकारों को मौलिक। ये अधिकार, अधिकारियों की बपौती, जन सामान्य की चुनौती और और लोकतंत्र के नुमाइंदों के लिए चरित्र की कसौटी हैं। यह बात दीगर है कि जब प्रवृत्ति गुणग्राही हो जाय तो चरित्र का विसर्जन करना ही पड़ता है। आज धांधली ‘धर्म और अर्थ ‘गुण’ का पर्याय है। इन्ही गुण धर्मों के आधार पर पद रूपी मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रस्तुत हैं ऐसे ही दृश्य।
वैधानिक चेतावनी-पात्र एवं घटनाओं को काल्पनिक समझने की भूल कदापि न करें।
दृश्य १: २६ जनवरी की सुबह
गणतंत्र दिवस की सुबह सेना की एक टुकड़ी, टिकाऊ पुर ओवरब्रिज से होकर गुजरी। धारा से संविधान रूठ गया और पुल किसी कानून की तरह टूट गया। ठेकेदार जेल में, चीफ इंजीनियर की छुट्टी, सरकान ने पिलाई जांच आयोग की घुट्टी। आनन-फानन में जांच आयोग की रिपोर्ट आयी। पुल टूटने का कारण तो मार्चपास्ट था। पुल की आवृत्ति का क़दमों की आवृत्ति से अद्भुत नाता है दोनों बराबर हों तो पुल टूट जाता है। विज्ञान की भाषा में इसे ‘रीजोनेन्स’ कहा जाता है। नतीजा। ठेकेदार बहाल। इंजीनियर खुशहाल, मेजर का कोर्ट मार्शल सैनिकों को सजा। भाई ये है असल गणतंत्र का मजा। असल में लोकतंत्र के टिकाऊ खम्भों पर बिकाऊ पुल बनाए जाते हैं। जिनसे समाज की इंजीनियर और ठेकेदार मन से लूटते हैं। वैसे भी पक्ष –विपक्ष के लेफ्ट-राईट से लोकतंत्र के पुल अक्सर टूट ही जाते हैं।
विकट रहस्यमय स्थिति है भ्रष्टाचार हमारे देश का राष्ट्रीय विचार हो गया है और घोटाले मोनालिसा की मुस्कान। भष्टाचार के संरक्षण, संवर्धन और पोषण के लिए ‘सतर्क भष्टाचार’ की लोकतंत्र में बहुत आवश्यकता है।
दृश्य २: गणतंत्र दिवस की दोपहर
विरोधी पार्टी के किन्तु एक ही परिवार के भाई –भतीजे, चाचा-चाची एक ही छत के नीचे जमा होकर समतामूलक परिवार की अखण्डता का व्रत ले रहे हैं।
“क्यों चाची जी, मजा आ गया बीते वर्ष के चुनाव में। चित भी अपनी, पट भी अपनी। इस बार मैं पार्टी बदल रहा हूँ, आपको जिताने के वास्ते, आखिर कहीं तो ईमानदारी कायम होनी चाहिए। ”
“हाँ भतीजे, पत्नी को रणछोड़ पुर से खडा कर देना। वहां तुम्हारे चाचा विपक्ष में रहकर जीत दिला देंगे। अब तो जिताऊ पार्टी के लिए दलबदलू होना वांछनीय किन्तु डकैत होना अनिवार्य योग्यता हो गयी है। मुझे खुशी है की तुम इन मापदंडों पर खरे उतर रहे हो”
“सब आपका आशीर्वाद है चाचीजी”
“भतीजे, मुझे तुम्हारे पिताजी से शिकायत है, वो इनदिनों स्विट्ज़रलैंड की बर्फ में फिसल रहे हैं, यहाँ उनका वोट बैंक फिसला जा रहा है। साल में एक बार रोज़ा-इफ्तार पार्टी कराते हैं, फिर ईद का ही चाँद हो जाते हैं। कार्यकाल का अंतिम साल है, आश्वाशनों और वायदों का मौसम आ गया है। ”
“आप चिंता का करें, अपनी बहन नैना है न। उसका बनावटी अपहरण किराए के आतंकवादियों से करा देंगे। फिर नैना को छोड़ने की एवज में साथी आतंकवादियों की रिहाई की मांग, देश के लिए बेटी की कुर्बानी का ढोंग, भावनात्मक नाटक, फिर एक आध फर्जी एनकाउन्टर, नैना की सुरक्षित रिहाई, जनता की संवेदनाएं यानी वोट बैंक पर कब्ज़ा। ”
“ह्वाट एन आइडिया सर जी, नेताजी के पीए का साथ सभी का जोरदार अट्टहास।
वाह रे गणतंत्र, तू तो वंशवाद के खात्मे हेतु बना था। पर तू तो परिवार के दलील दलदल में चूजे की तरह फंस गया है। देश और समाज विघटनशील पर राजनैतिक परिवार विघटनहीन हैं। ऐसे विघटनहीन परिवारों से अखंड राष्ट्र का निर्माण कैसे हो, यह समाजशास्त्रियों के लिए शोध का विषय है। इसके बावजूद जनता को यह देख अपने लोकतंत्र पर गर्व करना चाहिए कि नेताओं और अफसरों के बीच एकता, घोटालों को लेकर अखंडता, चोरी में समग्रता एवं कालेधन को लेकर संप्रभुता कायम है।
दृश्य ३: गणतंत्र दिवस की शाम
छुट्टी के दिन छुट्टा घूमते रईसजादों की नशेमन टोली पूरे शबाब में।
“हिप हिप हुर्रे, यार नए साल के बाद इतनी मस्ती आज नसीब हुयी है।”
“पर मस्ती अभी सस्ती है दोस्त, अपन तो महंगी मस्ती का आदी है”
“तो शुरू कर, आज तो आज़ादी है”
तभी उनकी वासनासिक्त नज़रें ट्यूशन पढ़ा कर वापस लौटती मध्यम वर्गीय सायरा पर पड़ गयीं। और उच्च वर्ग की नीचता परवान चढ़ गयी। सायरा पलट कर भागी तभी एक रईसजादे की चेतना जागी।
“यार गणतंत्र दिवस है, देश पर उपकार कर। आज कानून के दायरे में रहकर बलात्कार कर। ”
गिरफ्त में सायरा, और बगल में टीकमगढ़ थाने का दायरा। गणतंत्र की आवाज़ घुट गयी। आज़ादी संविधान के दायरे में रहकर लुट गयी। लोकतंत्र के उड़ते चीथड़ों के बीच सायरा मीडिया की ब्रेकिंग न्यूज, महिला संगठनों का मुद्दा, परिवार का कलंक, संसद का शून्यकाल एवं समाज का शून्य बन गयी थी।
तभी आज़ाद हवाओं का एक तेज़ झोंका आया और सायरा का फटा दुपट्टा तिरंगे से लिपटकर चौक पर लहराने लगा।
तो यह थी गणतंत्र के अन्दर पल रहे गढ़तंत्र की झांकी।