गणना मास्टर / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'

Gadya Kosh से
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मनोरंजनजी की भतीजी की शादी थी। मेरे पहुँचने में रात हो गई थी। मुझे देखकर मनोरंजनजी काफ़ी ख़ुश हुए। हाथ पकड़कर आंगन के एक किनारे ले गये और बैठाकर हाल-चाल पूछने लगे। मैंने कहा, "मैं तो काफ़ी पहले पहुँच जाता सर, मगर बीच में रास्ता भटक गया था।"

"आप ही नहीं, सभी लोग रास्ता भटके हुए हैं जी।"

हमलोग चौंक गये। कौन बोला? देखा, दस क़दम दूर, एक कुर्सी पर एक आदमी पसरा हुआ था। माथा एक तरफ़ लुढ़क गया था। मनोरंजन जी ने धीरे से बताया कि उसका स्क्रू ढीला है। पागल है। फिर हमलोग उधर से ध्यान हटाकर, बातचीत में मशगूल हो गये।

कुछ ही मिनट हुआ था कि एक सज्जन का आगमन हुआ। उनके अंग-अंग से भद्रता टपक रही थी। मनोरंजनजी ने उनसे हाथ मिलाया और आदर पूर्वक लाकर मेरे बगल में बैठा दिया। उन्होंने परिचय कराते हुए कहा, "ये हैं श्रीमान् संजीत दूबे। मैथ और साइंस के प्रकांड विद्वान। लोग इन्हें गणित मास्टर के रूप में जानते हैं।"

उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया और बोली में मिश्री घोल-घोलकर बात करने लगे। तभी मनोरंजनजी ने मुझे सम्बोधित करते हुए कहा, "जानते हैं सर, मैं इनकी शादी पाठक जी की भतीजी से लगवा रहा था। मगर...।"

"मगर ...? लेन-देन में नहीं पटा क्या?"

"नहीं, नहीं। गणना नहीं बैठी।"

"गणना नहीं बैठी... मतलब?"

"मतलब, पंडित जी ने जब दूल्हा-दुल्हन की कुंडली का मिलान किया तो...।"

"ओ... । यह तो सही बात है भाई, जब गणना ही नहीं बैठेगी तो शादी कैसे होगी?" कहते हुए मैं मुस्कुरा दिया। मनोरंजन जी भी मुस्कुरा दिये। गणित मास्टर हमारी टोनबाजी समझ गये थे। मगर कुछ बोल नहीं पाये। कसमसाकर रह गये।

"इन्हें गणित मास्टर नहीं, गणना मास्टर कहना चाहिए। हूँह... ! साइंस पढ़ा है... !"

इस कड़वी बात ने हमें एक बार फिर चौंका दिया था। उस पागल की तरफ़ नज़र चली गई। ...वह कुर्सी पर पसरा हुआ था।