गति काल रोॅ के जानै / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
ई सीता के अग्निपरीक्षा ही छेलै। बापोॅ से जादा मान-सम्मान आरो प्यार दै वाला ससुर, ओकरा साथें पाललोॅ-पोसलोॅ तीन-तीन कोखी रोॅ लाल गोदी सुन्नोॅ करी केॅ दुनिया सें हमेशा लेली विदा होय गेलोॅ छेलै मतुर अतनौं पर भी सीता नें नै सिर्फ़ जी कड़ा करलकै बलुक गड़बड़ होय रेल्होॅ पति केॅ संभारै लेली घरोॅ के सब काम पहैलका नांकी करेॅ लागलै। लोर नै रोकेॅ पारै तेॅ सूना में जबेॅ बिहारी नै रहै तेॅ भोकार पारी केॅ कानै। छाती पीटै। बेटा रे, सोनमा रे, सुग्गा रे, कही-कही केॅ विलाप करै। खास करी केॅ साँझ होतै सौसे गाँव कानै, कपसै, विलाप करै। ऐन्हां में बिहारी बथानी पर सें ऐंगना में आवी केॅ पूवारी घरोॅ के ठाठ पकड़ी केॅ जौं कानैं लागै भोकार पारी केॅ तेॅ सीतोॅ के भी बूक नै रहै।
बुलाकी काका के जैवोॅ बीस-बाइस रोज होय गेलोॅ रहै। हुनी कहनें छेलै कि हम्में घोॅर मिर्जापुर होयकेॅ ही जैबोॅ आरो केकरोॅ नै केकरौेॅ ई विपतोॅ में वहाँ से ज़रूर भेजी देभौं। मतुर कोय टपी नै रेल्होॅ छेलै।
बिहारी सोचना छोड़ी देलै छेलै। उ$ कानै-कपसै आरो एक्केॅ बातोॅ केॅ रट लगावै-"ई जघ्घोॅ ठीक नै छै। ई जघ्घोॅ बदलोॅ। ई जघ्घेॅ नें हमरोॅ माय-बाप, तीन-तीन बेटा केॅ खाय गेलै। ई जघ्घोॅ पर एैतें हमरोॅ मोॅन केनां-केनां नें करेॅ लागै छै। लागै छै घरोेॅ में, ओसरा पर, ओहारी कोन्टा में लाल-लाल लपलप लहुऔ सें रंगलोॅ जी लेनें, मुँहोॅ केॅ बैनें काली माय खाड़ी छै। हमरा यें खाय जैतों, खाड़े-खाड़ निगली जैतोॅ।" आरो अतना कही केॅ ऐंगना में बच्चा नांकी लोटी-लोटी केॅ बिहारी कानै लागै।
सीता भी कानै। कानी-कानी समझावै। मतुर होशोहवास में बिहारी कहै-"ठीं, ठीं करी केॅ हाँसै छै काली माय। देखोॅ न, कोन्टा में माय-बाबू आरो हमरोॅ तीनूं बच्चा केॅ साथें लैकेॅ खाड़ी छै काली माय।"
सच तेॅ ई छेलै कि अपना आँखी के समनां में बिहारी सबकेॅ कौलट करीे केॅ तड़पी-तड़पी केॅ मरतैं देखलेॅ छेलै। उ दिरिस छहाछत ओकरा आँखी में नाचै। साँझ होतैं गाँव भरी में आभियो अतना दिन गुजरला के बादोॅ पाँच-दस घरोॅ सें जबेॅ माय-बहिन के बिनाय-बिनाय केॅ कानै के आवाज शांत भयावह रात के वातावरण में गूँजै तेॅ बड़का-बड़का करेजोॅ वाला केॅ करेजोॅ फाटी जाय। बिहारी केॅ बापोॅ के बहुत जादा भरोसोॅ छेलै। पैंतीस वरसोॅ के उमर में बापोॅ के सहारा छीनी गेलै। बाप छेलै तेॅ घोॅर चलाबै के जिम्मेदारी से बिहारी पूरेॅ मुक्त छेलै। यहू लेली जबेॅ आगू-पीछू निहारै तेॅ उ$ हहरी जाय।
मतुर सीता केॅ वेशी फिकर छेलै बुलाकी काका के. विपत में जे हुनी साथ देनें छेलै उ$ भुलवा नै भूलै पारेॅ छेलै सीता। साथें सीता ने भी पति केॅ कानबोॅ-विलपवोॅ देखी केॅ गाँव छोड़ै केॅ मोॅन बनाय लेनें छेलै। बुलाकी का रोॅ याद के यहोॅ एक ठो कारण छेलै। संवाद सुनी केॅ बाबू-भैया दू में सें कोय नै एैतेॅ, ई बात सीता के गलोॅ नै उतरै छेलै।
साँझ केॅ झलफलोॅ होय के पैन्हेॅ बिहारी बथानी पर गाय-माल लैकेॅ आबी जाय छेलै। मालोॅ केॅ पानी पिलाय केॅ ऐंगना में खटिया पारी केॅ बैठी जाय मनझमान उदास। बोलै कुछ्छु नै। हमेशा बोलै में चरफरोॅ बिहारी के बोली ई दुख नें हरी लेनें छेलै। सीता चूल्हा ठियां बैठली नरुआ के आँचोॅ सें खाना पकाय रेल्होॅ छेलै। ऐंगनैं के एक कोना में मांटी केॅ चूल्होॅ बनलोॅ छेलै, दू चूल्हिया। एक पर भात डबकी रेल्होॅ छेलै आरो दोसरा पर अलुआ केॅ झोर वाला तियौन।
चूल्हेॅ ठिंया से सीता पुकारलकै-"माघोॅ के कड़कड़िया ठंडा में ऐंगना में बैठेॅ के छेकै? ठार लागी जैतौं।"
"तोरा ठार नै लागतौं? रोजे देर रात तक सीतोॅ में बैठी केॅ खाना बनाय छोॅ।" अनमनैं भाव सें बिहारी बोली गेलै।
"जनानी केॅ जाड़-ठार नै लागै छै। पत्थरोॅ के काया भगवानें बनैलेॅ छै जनानी के." सीता ऐन्हेॅ बोली गेलै।
हिन्नें कुछ दिनोॅ से सीता जादा रोगोॅलौ जाय रेल्होॅ छेलै। सुन्नर गोरोॅ देहोॅ परकोॅ साड़ी चिथ्थी-चिथ्थी होय रेल्होॅ छेलै। अंगिया फाटी गेलोॅ रहै। एक ठोॅ चद्दर छेलै देहोॅ पर पुरानोॅ रंग जेकरा सें ठारोॅ सें बचेॅ के कोशिशोॅ में संभारलौं पर माथोॅ-कान बार-बार उघरी जाय छेलै।
आय पैल्होॅ दिन सीता केॅ यै हालतोॅ में देखी केॅ बिहारी केॅ बड्डी दया ऐलै। यै सीनी के ध्यान बाबू राखै छेलै। केकरा की ज़रूरत छै तुरत कोय नै कोय उपाय सें पूरा करी दै छेलै।
खाना होय गेलोॅ रहै। चूल्हा के आगिन बुताय केॅ सीता बिहारी ठिंया ऐलै आरो हुनकोॅ गोड़ोॅ के नगीचोॅ में जमीनै पर चुकुमुकु बैठी रहलै। बिहारी आभियो आसमान ताकी रेल्होॅ छेलै। सीता के एैला के बादोॅ उ$ कुछ्छु नै बोललै। ई बात सीता केॅ अखरी गेलै।
"सुनी लेॅ जी. ई रंग मनझमान होयकेॅ बैठलोॅ रहबोॅ। हाँसभोॅ-बोलभोॅ नै, बीतला के विसारभोॅ नै तेॅ हम्में जहर खाय लेभौं।" सच में सीता आय बहुतेॅ गंभीर छेलै। हँसमुख चेहरा पर रूठै के अभिनय के साथ बोली में कुछ अंतिम निर्णय करै केॅ साफ संकेत छेलै। बिहारी सीता के ई बदललोॅ रूप देखी केॅ भीतर सें डरी गेलै। हाँसै के प्रयास करतें हुअें बोललै-"रहलै आबेॅ की दुनिया में। दूनोॅ जीवें एक्केॅ साथ मिली केॅ ई काम करी लेॅ।"
तिलमिलाय गेलै सीता। हाँसै वाला चेहरा पर घृणा आरो क्रोध सीधेॅ उभरी गेलै। सीता केॅ बिहारी सें ऐन्होॅ जवाब के आशा नै छेलै। छोॅ-नौ आय करिये लेना छै। अंतिम निर्णय करै के विचारोॅ के साथ उ$ बोललै-"ई मरदोॅ के बोली नै छेकै। ई तेॅ जीवन सें भागवोॅ छेकै। कायरता सें भरलोॅ ई थकचुरुवोॅ बोली हमरा अच्छा नै लागलौं। जीवन सीधेॅ लड़ाय छेकै। ऐकरा सें लड़ोॅ, हारोॅ नै, भागोॅ नै। छिः, छिः ऐन्होॅ बोली फेरू कहियोॅ नै बोलिहौ।" सीता जीवन युद्ध के सधलोॅ खिलाड़ी नांकी
सीधा तनी केॅ बैठी गेली छेलै।
"हम्में सच्चेॅ में हारी गेलोॅ छियै सीता। जिनगी जियै के बाजी हमरा हाथोॅ सें निकली चुकलोॅ छै। हम्में हतास निराश, बेसहारा महसूसै छियै अपना-आप केॅ। हिम्मत आरो उत्साह लानै के कोशिश करै छियै मतुर की कहियौं, लाचार होय जाय छियौं।" बिहारी के बोली में काहीं सें कोय उत्साह सच्चेॅ में नै छेलै।
कुछ देर तांय दूनोॅ चुप्पेॅ रहलै। जिनगी के गाड़ी रोॅ रास्ता केनां आगू बढ़तै शायद यहेॅ विचारोॅ में दोनों प्राणी डुबलोॅ छेलै। आकासोॅ में शरद के माघी चान भी शांत, चुपचाप, शीतोॅ सें भरलोॅ लागै छेलै टुकुर-टुकुर ऐकरैह दूनोॅ प्राणी केॅ ताकी रेल्होॅ छेलै। बातोॅ में सीता केॅ माघोॅ के कनकनी, कंपाय दै वाला ठारोॅ के पता नै चललै। सीतोॅ सें कान, नाक सुरसुराबै लागलै। "चलोॅ, घरोॅ में बैठवोॅ, नरम-नरम नरुवा के गरम बिछौना पर। तोरा तेॅ लागै छै जाड़-ठार लागथैं नै छौं। ई रंग भी कोय दुखोॅ में डूबै छै।" सीता पति के हाथ पकड़लकै आरो घरोॅ में जाय केॅ नरुवा लागलोॅ बिछौना पर बैठाय देलकै। गेनरा सें बनलोॅ सुजनी बिहारी केॅ ओढ़ाय देलकै आरो बगलोॅ में गेनरा सें आपन्होॅ देहोॅ केॅ झांपी-तोपी केॅ बैठी गेलै।
बिहारी केॅ अतनौं पर भी कुछ्छु नै बोलतें देखी केॅ सीता हाँसतेॅ हुअें बोललैं-"मांटी के मुरुत होय गेलोॅ छै ई मरद। आय तेॅ छोॅ-नोॅ करिये केॅ खैवेॅ।" "करना की छै। हम्में आपनोॅ जिनगी तोरा सौंपी देलिहौं। जेनां चलाबोॅ। बीच मंझधार में फंसलोॅ हमरो जिनगी के गाड़ी केॅ हाँकना आबेॅ तोरोॅ काम। हमरा जेनां चलैबोॅ, हम्में ओनेॅ चलभौं।" बिहारी के चेहरा पर प्रेम आरो समर्पण के भाव छेलै।
पति के ई रूप पर सीता केॅ दया आबी गेलै। कठिन सें कठिन परिस्थिति में हिम्मत नै हारै वाला ई आदमी मांटी के लोइया नांकी लुंजपुंज तुड़ी-मुड़ी गेलोॅ छै। हँसी आबी गेलै सीता केॅ-"चलोॅ, अपनें के सब शर्त स्वीकार छै। पैल्होॅ काम, बुलाकी काका के पता करोॅ। मिर्जापुर हमरोॅ नैहरोॅ हुनी जाबेॅ पारलै की नै। ई हुअेॅ नै सकेॅ कि हुनकोॅ संवाद सुनी केॅ हमरोॅ माय-बाप, भाय चुपचाप घरोॅ में बैठलोॅ रही जैतेॅ। या तेॅ हुनी जाबेॅ नै पारलै या हमरोॅ नैहरा कोय बड़ोॅ विपत में छै।"
... आरो सुनी लेॅ, अपनेॅ केॅ इच्छा हमरा लेली सबसे जादा महत्त्व राखै छै। ई जघ्घोॅ हम्में बदलै केॅ पूरे मोॅन बनाय लेनें छियै। "
"इै तेॅ तोय हमरोॅ मनोॅ के बात कहलोॅ। जै जघ्घा एक साथें हमरोॅ माय-बाप आरो तीन-तीन करेजोॅ के टुकड़ा केॅ खाय गेलै वहाँ मोॅन लागै नै पारे मतुर जैभोॅ कहाँ?" जघ्घोॅ बदलै के नाम लेला भर सें बिहारी अतनैं खुश होय गेलोॅ रहै कि लागलै क्षणमात्रा में ओकरा माथा पर सें सभ्भेॅ टा दुख-विपत खतम होय गेलोॅ रहेॅ।
सीता ने महसूस करलकै कि ओकरोॅ दुलहा के आधोॅ से अधिक दुख-संताप अतन्हेॅ टा बातोॅ सें दूर होय गेलोॅ छै यै लेली लागलेॅ प्रश्न करी देलकै-"अपनें बतावोॅ ई जघ्घोॅ छोड़ी केॅ कहाँ जाना ठीक रहतै?"
"तोरोॅ दिमाग यै सीनी में बेशी चलै छौं। हमरा नजरोॅ में तेॅ मिर्जापुर छोड़ी केॅ बढ़ियां आरो काहीं नै होतौं। वहाँ करोॅ जमीन भी उपजाउ$ छै। गाय-मालोॅ केॅ चरी के भी कमी नै छै। वहाँ के लोग भी बढ़िया छै। खास करी केॅ सास-ससुर, सारोॅ कहियोॅ अनादर नै करतै। आबेॅ तोंय जैन्होॅ सोचोॅ, तोरोॅ नैहरोॅ छेकौं। हमरा सें बेशी तोंय जानै, समझै छोॅ।" बिहारी एक्केॅ सांसों में आपनोॅ मनोॅ के बात कहि गेलै।
"आपने बहुत अच्छा सोचने छोॅ। अपना लोगोॅ के बीचोेॅ में ही नया आदमी केॅ बसना चाहियोॅ। रहलै बात मान-सम्मान के. हम्में केकरोॅ बोझोॅ बनबै तबेॅ नी भारी लागतै। आपनोॅ कमैबेॅ-खैबेॅ। पैचोॅ उधार दुनियैं चलै छै।"
जघ्घोॅ बदलै के निर्णय होय गेलै। साथें यहोॅ निर्णय होय गेलै कि भियानी लौआ खबर लैकेॅ मिर्जापुर जैतेॅ। बिहारी के आँखी में छैलोॅ उत्साह सें सीता के दुख दूर होय गेलोॅ रहै। अत्तेॅ दिनोॅ के बाद बिहारी केॅ स्वादोॅ सें खैतें देखी केॅ सीता निहाल होय गेलै।
खैतें हुअें बिहारी बोललै-"कनियां, एक बात आरो ज़रूरी छूटी गेलोॅ छै। अब तांय ई विपतें में सब टा रूंजी-पूंजी खतम होय गेलै। दुनूं जीवोॅ केॅ जाड़ोॅ के कपड़ा नै छौं। फाटलोॅ-चीटलोॅ तोरा देहोॅ में अच्छा नै लागै छै। बथानी पर पाँच-सात छोटोॅ-बड़ोॅ लगाय केॅ मवेशी छै। एक ठो बेची केॅ सब ज़रूरत पूरा करी लेॅ।"
खुशी सें सीता रो आँख लोरोॅ सें छलकी गेलै। कत्तेॅ परिवर्तन होय गेलै ओकरा मालिकोॅ में। बूड़ी रेल्होॅ ओकरा संभारै वाला आबेॅ संभरी गेलोॅ छेलै। जनानी के सबसें बड़ोॅ यहेॅ जीवनधन छेकै। अमरलत्ता नांकी मरदरूपी वृक्ष के सहारा लैकेॅ जीयै में औरत केॅ जै सुख छै उ$ स्वर्गोॅ सें बढ़ी केॅ छै।
रात बीतलै। भियान भैलै। आयकोॅ भियान आनन्द, उर्जा आरो स्फूर्ति सें भरलोॅ छेलै। जिनगी जीयै के प्रति दोनों जीव उत्साहित छेलै। सब चीजेॅ अच्छा लागेॅ लागलोॅ छेलै। एक प्राण दू देह के पैहिलकेॅ वाला भाव जागी गेलोॅ रहै।
मतुर काल के गति के कै जानेॅ सकेॅ। सीता के अग्निपरीक्षा रोॅ समय अभी खतम ने होलोॅ छेलै। लौआ (खबरिया) खबर लैकेॅ जाय लेली दुआरी पर बैठलेॅ छेलै कि सीता रोॅ भाय शिंभू रौत आबी गेलै। सॉरौ रंग, लंबा-छरहरा बीस-बाईस वरसोॅ रोॅ तड़तड़िया जवान तिनडरिया उगै के पैन्हेॅ चललोॅ होतै तबेॅ नें एक हाथ सुरुज उपर होय कें पैन्हेॅ पहुँची गेलै। भाय केॅ देखतैं भोकार पारी केॅ कानै लागलै सीता। धीरज के बाँध एकवारगिये टूटी गेलै।
बातचीतोॅ में शिंभू बतैलकै कि बुलाकी काका समय पर ही पहुँचलै मतुर बूढ़ोॅ आदमी थक्की केॅ चूर होय गेलै रहै। आबै लेॅ तैयार होलियै कि काका बीमार होय गेलै। बुखारोॅ सें तड़पै। वैदें टायफर बतैलकै, असकल्लोॅ आदमी, तरह-तरह के बात। टोला में कुछ्छु लोग यहोॅ कही केॅ रोकेॅ लागलै कि "रोग अरियाती के आपनोॅ गाँव लानबेॅ। जे होलै से होय गेलै। काली माय के रंथोॅ केॅ पूरेॅ थमेॅ दहेॅ। दसमोॅ रोज काका इंतकाल होय गेलै। आवेॅ लहास धरलोॅ छौं। गंगा-कोशी नद्दी रोॅ पार ठठ्ठा दीरोॅ हुनकोॅ घोॅर। जैतें-एैतें, बेटा केॅ बोलेॅतें कमोॅ सें कम चार-पाँच दिन लागतिहेॅ। लहास सड़ी केॅ महांकी जैतियै। सोची-विचारी केॅ बाबू आगिन देलकै। ठठ्ठा, काका के घोॅर केकरोॅ देखलोॅ नै, कोय जाय वाला तैयार नै होलै। आखिरसोॅ में बेटा केॅ बिना उतरी देनें किरिया केना होतियै। बाबू बूढ़ोॅ, हरदम खों, खों करतेॅ रहै छै। हमरै जाय लेॅ पड़लोॅ।"
दुख सहतें सीता केॅ आँखी रो लोर सुक्खी गेलोॅ रहै। बीचेॅ में भाय केॅ टोकलकै-"गोतिया या गामोॅ सें कोय जाय लेली तैयार नै होलेॅ।"
"अरे विपत में कोय केकरोॅह साथ नै दै छै। आपनें मरनैं सरंग देखनें। घाटोॅ पर पूड़ी-जिलेबी नै मिलेॅ तेॅ घाट जबैया नै मिलथौं। छोड़ोॅ ई बातोॅ केॅ। अखनी रास्ता पकड़ोॅ तुरत मिर्जापुरोॅ केॅ। बाबू यै दुनिया में नै रैल्हों। तोरा बिना गेलें लहास नै उठतै। बाबू रोॅ मरलोॅ मुँह तेॅ देखी लेॅ।" कहतें शिंभू अपना केॅ रोकेॅ नै पारलै, छर-छर आँखी सें लोर बहेॅ लागलै।
सीता तेॅ सीधे धरती पर पछाड़ खाय केॅ गिरी गेलै। ओकरोॅ बिनाय-बिनाय केॅ कानबोॅ सें गाँमोॅ के शाँत वातावरण हिली गेलै। पास-पड़ोस, गोतिया, परिजनोॅ सें सीता के घोॅर-ऐंगना भरी गेलै। केकरा आँखी में लोर नै आवी गेलोॅ होतेॅ सीता के छाती पीटी-पीटी केॅ ई विलाप सुनी केॅ। सीता हकरै आरो कानी-कानी केॅ कहैेॅ-" संसारोॅ के सबटा दुख हमरै कपारोॅ में लिखलै छै देवा कसैयां की हो ... हाय हो बाबू ... इ ... ई ...?
टोला भरी के जनानी सें घिरलोॅ सीता आरो बड़ोॅ-बूढ़ोॅ मरदोॅ बीचोॅ में दुआरी पर बिहारी। बिहारी केॅ तेॅ नै आँखी में लोर छेलै नै मुँहोॅ में बोली। टुकुर-टुकुर, सबकेॅ मुँह ताकै। सीता के कानबोॅ सें भीतरे-भीतर हुमड़ै, लागै करेजोॅ मुँहोॅ सें निकली जैतेॅ।
सीता जबेॅ जोॅर-जनानी के चुप करैला सें चुप नै होलै तेॅ सुरती दादी शिंभू केॅ हाथ पकड़ी केॅ कहलकै-"बेटा, आबेॅ बहिन केॅ तोंही चुप करेॅ पारोॅ। बड्डी दुखियारी छै बेचारी। पाँच-पाँच लहासोॅ केॅ यै घरोॅ सें निकलतैं यें बेचारी देखनें छै। अक्कच होय गेलै दुख सहतें-सहतें।" आरो पलटी केॅ आपनोॅ बूढ़ा हाथोॅ केॅ पातरोॅ लाठी चमकैतें हुअें जमा हुजुमोॅ केॅ सखियारतें बोललै-"ई हुजुम खतम करोॅ। सभ्भेॅ आपनोॅ-आपनोॅ घोॅर जा। ई भीड़ रहतें कोय ऐकरा चुप नै करेॅ पारतेॅ। तोंय सीनी चुप की करभोॅ, उलटेॅ मिली केॅ कनाबै छोॅ। ई रंग मरी जैतेॅ बेचारी।"
नब्बेॅ पार के उमर जीबी रेल्होॅ सुरती दादी के बातोॅ रोॅ ऐन्होॅ असर होलै कि ऐंगना-दुआरी पर के भीड़ बालू रो भीत नांकी ढही गेलै। ऐकरोॅ बाद सुरती दादी लोटा में भरी केॅ पानी लैकेॅ सीता के मुँह धोय देलकै आरो ठोरोॅ सें लोटा लगैतें हुअें कहलकै-"प्यास लागी गेलोॅ होतौं बेटी. पानी पीबी लेॅ।" सीता घट-घट सब पानी पीबी गेलै। चुप होतैं दादी नें आपनोॅ बात जल्दी-जल्दी कहलकै, यै लेली कि वें जानैं छेलै कि पानी पीला के बाद ई फेरू कानेॅ लागतै आरो कानै वाला केकरोॅ बात नै सुनै छै-"दुख आवै छै तेॅ दुख खतमोॅ होय छै। तोरोॅ दुख खतम होतै बेटी. कानोॅ नै जल्दी में तैयार हुओॅ। मरलेॅ मुँह सही, बापोॅ के देखभेॅ तेॅ। बात-विचार करोॅ। बात मेरियावोॅ। अखनिहोॅ निकलभोॅ तेॅ संझा-सांझ होय जैतों। शास्तरोॅ में कहनें छै, बेशी दुखें कानियोॅ नै, वेशी सुखें हाँसियोॅ नै। कानतैं रहवोॅ तेॅ बापोॅ केॅ देखै लेॅ कखनी जैभोॅ। भाय एैलोॅ छों, लोटा-पानी दहोॅ। हाल समाचार पूछोॅ।" अतना कही केॅ दादी सीता के दुनू कानोॅ में की-की पढ़लकै आरो बारी-बारी सें कान फूंकी देलकै।
सीता पर दादी के बातोॅ रोॅ जादू नांकी असर होलै। सीता उठी केॅ बैठी गेलै आरो लोटा में पानी दैकेॅ भाय केॅ नगीचोॅ में बैठी केॅ पूछलकै-"क्षणेॅ में ई बज्जर केना केॅ गिरी गेलै भाय रे। हमरा केन्होॅ केॅ खबर तेॅ करतिहें।"
दादी जाबेॅ लागलोॅ छेलै। बिहारी जेॅ दुआर खाली होय गेला पर ऐंगना में आबी केॅ खाड़ोॅ रहेॅ दादी केॅ रोकलकै-"तोंय रूकोॅ दादी। बैठोॅ, घरोॅ केॅ चाभी आरो सब देखरेख रामवरण काका केॅ देखैं लेॅ कहियोॅ।"
दादी रूकी केॅ बोललै-"हम्में फेरू आबी जैभौं। तोंय चिन्ता नै करोॅ। कानोॅ-पीटोॅ नै। एकान्त में बैठी केॅ बात-विचार करोॅ। बहुत जादा दुखोॅ में कभी-कभी सुखोॅ के बीया छिपलोॅ रहै छै। देवोॅ के माया छेकै, ऐकरा हम्में तोय नरी जनें नै समझेॅ पारभोॅ। हमरोॅ-तोरोॅ काम सिर्फ़ ऐकरा सें लड़ना छेकै। ऐकरा मानोॅ जिनगी जीवोॅ एक लड़ाइये छेकै।" अतना कही केॅ सुरती दादी रूकलै नै, झुकी गेलोॅ डाड़ोॅ केॅ सीधा करलकै आरो लाठी ठक-ठक करनें चल्ली गेलै।
ओकरोॅ बाद शिंभू बहिन-बहनोय दोनूं केॅ बैठाय केॅ कहना शुरू करलकै-"बाबू के उमर नब्बेॅ-पंचानबेॅ से कम नै होतै। उमर पर मरलोॅ छै यै लेली चिन्ता नै करोॅ। खांसी, दम्मा के रोगी दस बरस पैन्हेॅ सें छेलै। ई उमरोॅ में मरन उत्सव होय जाय छै। बुलाकी काका सें तोरोॅ संवाद, हाल-समाचार जानी केॅ हुनी बच्चा नांकी भोकरी-भोकरी कानै लागलै। आबी तेॅ बुलाकी का, के बीमार रहतैेॅ जैतिहौं मतुर गाँव, टोला, परिवारोॅ के बंदिश, हैजा वाला गाँवोॅ में जायकेॅ हैजा लानभेॅ। वहाँ तेॅ जे होलै होवेॅ करलै, यहु परिवारोॅ केॅ नाश करला सें की फायदा। बाबू कत्तेॅ मानै छेलों तोरा। आवेॅ तोहीं समझै पारे छोॅ की हुनका करेजा पर की गुजरलोॅ होतै। एक साथें तीन नाती, समधी, समधिन ... काल के गालोॅ में चल्लोॅ गेलै। की कहियौं, एक तेॅ महिना सें डेढ़ महिना बीतला पर संवाद मिललै। माय, बाबू तेॅ खैबेॅ त्यागी देलकौं। आवेॅ लेॅ तैयार छेलिहौं, बुलाकी काका मरी गेलै। माघोॅ रो ठार, हाड़ कँपाय दै वाला जाड़ा। बाबू आगिन दैकेॅ जिदोॅ पर अड़ी गेलै। किरिया-सराधोॅ के एक रोजोॅ के बाद आय राती बारह बजे के बाद हुनकोॅ दम टूटी गेलै। बस, वेशी कुछ नै कहवौं, मरै तक हुनको एक्केॅ रट छेलै कि" हमरोॅ बेटी सीता आवेॅ वै जघ्घा पर नै रहतै। उ$ जघ्घोॅ ठीक नै छै। हमरा बेटी-जमाय केॅ उ$ जघ्घोॅ नै धारलकै। जोॅ, जल्दी जोॅ, आरोॅ ओकरा लानी केॅ याहीं आपने ठिंया, आपने गाँमों में बसाव। आवेॅ तोंय जैन्होॅ सोचोॅ। "
सीता एक दाफी फेरू हुकरलै। आँखी सें बाबू के नेहोॅ रो लोर सौेॅन-भादो नांकी वरसेॅ लागलोॅ छेलै। समय नै छेलै। दुपहर होय में आभी डेढ़-दू घंटा केॅ देरी छेलै।
तय होलै, बाबू के अंतिम इच्छा रो पालन होतै। बैलगाड़ी पर जत्तेॅ सामान जावेॅ पारै यहाँ सें लैकेॅ ही चलना छै। बिहारी गाय-भैंस लैकेॅ बादोॅ में ऐतेॅ। रामवरन काका जाति रोॅ बनिया छेलै। एक नम्बर के गाड़ी हाँकै वाला। सुरती दादी कहलकै-"हमरोॅ बेटा बिहारी के बच्चा रोॅ संगतिया। गाड़ी लैकेॅ वहेॅ जैतेॅ।"
तुरत-फुरत में सब तैयारी होलै। सीता धरती केॅ आरोॅ सुरती दादी केॅ गोड़ें लागलकै। सीता के ई चौतरा गाँव के धरती केॅ अंतिमें प्रणाम छेलै।