गद्य की विभिन्न विधाएँ: एक अनिवार्य पुस्तक / स्मृति शुक्ला
हिन्दी साहित्य में कवि, उपन्यासकार, लघुकथाकार, बालसाहित्यकार, व्यंग्यकार, आलोचक और हिन्दी चेतना जैसी अन्तरराष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका सहित 39 पुस्तकों के संपादक के रूप में ख्यात रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ प्रतिष्ठित रचनाकार हैं।
अयन प्रकाशन, नई दिल्ली से उनकी सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘गद्य की विभिन्न विधाएँ’ को केन्द्र रखकर लिखी गई एक स्तरीय पुस्तक इस अर्थ में है कि यह रचनात्मक लेखन की विभिन्न विधाओं के स्वरूप को बखूबी प्रस्तुत करती है। पुस्तक में हर विधा के सभी आयामों पर सम्रगता से विचार किया गया है। किसी भी विधा के रचनात्मक लेखन की उत्कृष्टता उसकी भाषा के निर्धारण में अहं भूमिका होती है। एक साहित्यकार के रूप में रामेश्वर काम्बोज जी यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं; इसलिए इस पुस्तक का प्रारंभ ही उन्होंने रचनात्मक लेखन और भाषिक प्रयोग से किया है। वे लिखते हैं - ‘‘जब हम अच्छी रचना (सभी विधाओं) की बात करते हैं, तो अच्छी भाषा की बात अनायास सामने आ जाती है। .... भाषा जड़ नहीं होती, क्योंकि वह प्रवहमान समाज की जीवनी शक्ति है। एक बात और रेखांकित करने योग्य है कि शब्दकोशीय भाषा की एक सीमा है, वाक्-भाषा इससे कहीं इससे कहीं और आगे है, कहीं अधिक बहुवर्णी और नवीनतम भावबोध की अनुचरी है। यह वही गोमुख है, जिसका जल शब्दकोश में आकर मिलता है और उसको सागर बनाता है।’’ आगे उन्होंने प्रत्येक रचनाकार को अपनी भाषा और शैली निर्मित करने का मशविरा दिया है। सामाजिक परिवर्तनों का प्रभाव भाषा पर भी होता है। साहित्यकारों को सकारात्मक चीजों को ग्रहण करना पड़ेगा। लेकिन भाषा का भ्रष्ट प्रयोग नहीं करना चाहिए। उन्होंने लिखा है - ‘‘हड़बड़ी में लिखना, छपने के लिये तुरंत प्रेषित कर देना, किसी भी लेखक की बड़ी दुर्बलता है। जो लिखा जाए, उसे शांत मन से कई-कई बार पढ़ा जाए। वर्तनी की अशुद्धियाँ लेखक को पाठकों में सम्मान नहीं दिला सकतीं।’’ यह बात सच है हिन्दी के जितने महान साहित्यकार हुए हैं उन सभी ने अपनी भाषा पर बहुत काम किया है। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी के बड़े-बड़े लेखकों की भाषा का परिष्कार किया है। मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद, पंत, निराला से लेकर अज्ञेय तक सभी ने अपनी काव्यभाषा निर्मित करने हेतु अथक परिश्रम किया है, तभी वे श्रेष्ठ साहित्यकारों में परिगणित हुए हैं।
गद्य की रचनात्मक विधाओं में आत्मकथा, जीवनी, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, यात्रा-संस्मरण, पुस्तक समीक्षा, डायरी-लेखन, साक्षात्कार, परिचर्चा, फीचर तथा प्रतिवेदन, गद्यकाव्य, लघुकथा और व्यंग्य जैसी विधाओं के स्वरूप के साथ विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं को शामिल करते हुए रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ ने इन विधाओं पर सम्यक् विचार करते हुए स्वयं के मत भी प्रस्तुत किए हैं। इन विधाओं की विकास यात्रा पर भी गंभीर चर्चा की है। यहाँ काम्बोज जी का प्रयास यह रहा है कि वे हर विधा में प्रकाशित नई से नई पुस्तकों को इसमें शामिल करें और इसमें वे पूर्णतः सफल भी हुए हैं।
इस पुस्तक में ‘आत्मकथा’ विधा पर बात करते हुए काम्बोज जी ने लिखा है - ‘‘आत्मकथा कोई स्वप्न सृष्टि न होकर जीवन के मधुर-तिक्त अनुभवों का स्मरण और उनकी प्रस्तुति है। आत्मकथा जीवन की वह फिल्म है, जिसमें कल्पना की गुंजाइश नहीं, यथार्थ का खुरदरापन हर कदम पर है। आत्मकथा लेखन अतीत की समस्याओं के लिए भावी समाधान के बारे में कल्पना ज़रूर कर सकता है।’’ हिन्दी की चर्चित आत्मकथाओं के विषय में भी लेखक ने महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ पुस्तक में दी है।
पुस्तक की सबसे खास बात यह है कि रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ का गहन अध्ययन उनके लेखन में झलकता है। सभी रचनात्मक विधाओं की सैकड़ों पुस्तकें उन्होंने पढ़ी हैं; इस कारण उन्होंने ‘गद्य की विभिन्न विधाएँ’ पुस्तक में नए से नए रचनाकार की पुस्तकों का जिक्र भी ख्यात साहित्याकारों की पुस्तकों के साथ किया है। विभिन्न विधाओं की ऐसी श्रेष्ठ पुस्तकें प्रायः हिन्दी साहित्य में अलक्षित रह जाती है, जिनके लेखक स्वयं उनका प्रचार-प्रसार नहीं करते या किसी लेखकीय गुट के सदस्य नहीं होते, पर रामेश्वर काम्बोज जी की गुण ग्राहकता तथा जौहरी की- सी पारखी दृष्टि इन पुस्तकों पर गई है और आपने विभिन्न रचनात्मक विधाओं की ऐसी पुस्तकों को उल्लेखित किया है।
पुस्तक चार अध्यायों में विभक्त है। पहले अध्याय में रचनात्मक लेखन के सोपान के अन्तर्गत ‘भाषा एक संस्कार है’, ‘साहित्य और काव्य-भाषा’ तथा ‘कहानी की कहानी’ के अन्तर्गत तीन लेख हैं। अध्याय दो गद्य की विभिन्न रचनात्मक विधाओं का संक्षिप्त परिचय है तथा अध्याय तीन में विभिन्न रचनात्मक विधाओं का विस्तार से परिचय दिया गया है। अध्याय चार में रामेश्वर काम्बोज जी ने हिन्दी के सुधि पाठकों, जिज्ञासुओं और विद्यार्थियों के लिए कुछ विधाओं की परिचायात्मक अध्ययन सामग्री शामिल की है, जो विभिन्न विधाओं की स्तरीय रचनाओं से पाठक का परिचय कराती है। इसमें डॉ. सुषमा गुप्ता की डायरी ‘दुनिया को प्यार से ही बचाया जा सकता है’, रामेश्वर कांबोज ‘हिमांशु’ की बहुपठित, बहुचर्चित और पठनीयता के रिकॉर्ड तोड़ने वाली पर्यावरण संरक्षण को केन्द्र में रखकर लिखी गई पुस्तक ‘हरियाली और पानी’ पर समीक्षा है। यह समीक्षा हिन्दी की चर्चित साहित्यकार विभिन्न विधाओं की विदुषी लेखिका डॉ.कविता भट्ट द्वारा की गई है। रश्मि शर्मा का यात्रा-वृत्तांत ‘गरुड़ पीढ़ी : अपनेपन की खुशबू’ भी पुस्तक में शामिल है।
प्रियंका गुप्ता का संस्मरण ‘उन आँखों का भूलना आसान है क्या’ और निर्देश निधि का संस्मरण ‘टहनी सचमुच माँ को बुला लाई’ ऐसे संस्मरण हैं, जिनमें अनुभूति का ताप और स्मृतियों का प्रत्यक्षीकरण पूरी जीवंतता से हुआ है। ‘अनुवाद भी सृजन होता है’ इस विषय पर डॉ. कुँवर दिनेश सिंह एवं रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ की सार्थक बातचीत परिचर्चा के उदाहरण के रूप में रखी गयी है। कुँवर दिनेश ने हाइकु का हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद और इसमें आने वाली कठिनाइयों का जिक्र करते हुए कहा है - ‘‘प्रत्येक विधा में अनुवाद का मेरा अपना एक अलग अनुभव रहा है। हाइकु को हिन्दी से अंग्रेजी में इसके प्रतीप क्रम में अनुवाद करना बहुत ही जटिल और श्रमसाध्य कार्य है। इसका सबसे बड़ा कारण है- हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में हाइकु के छंद, स्वरूप एवं संरचना में मूलभूत अंतर।’’ उन्होंने हाइकु अनुवाद के कुछ सुंदर उदाहरणों से अपनी बात स्पष्ट की है। गोपालबाबू शर्मा के हाइकु - ‘जीता या हारा/अकेला पड़ गया/ भोर का तारा’ का अनुवाद- victory or defeat/ solitary in the sky/ The bright morning star जैसे कई उदाहरण इस परिचर्चा में दिये हैं। डॉ. कुँवर दिनेश ने अनुवाद को पुनःसृजन माना है। निःसंदेह रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ की यह पुस्तक हिन्दी गद्य की रचनात्मक विधाओं की समग्रता में पहचान कराने वाली अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। पाठक पुस्तक को पढ़कर विधा और शैली के अन्तर को बखूबी समझ सकता है।
लेखक का यह मानना उचित है कि ज्ञान-विज्ञान का, भाषा का और विचार का निरंतर विकास हो रहा है; इसलिए विधाओं का स्वरूप भी स्थिर नहीं है। यह भी एक तथ्य है कि एक ही विधा में दो-तीन विधाओं की आवाजाही हो सकती है या वे एक-दूसरे में घुलमिल सकती हैं। प्रायः संस्मरण और रेखाचित्र विधा में यह बात देखी जा सकती है।
गद्य की विभिन्न विधाएँ पुस्तक प्रत्येक विद्यालय और महाविद्यालय के पुस्तकालयों में होनी चाहिए, ताकि विद्यार्थी हिन्दी गद्य की विभिन्न विधाओं की रचनात्मकता से परिचित हो सकें और लेखन में भाषा के महत्त्व को जान सकें। भाषा के प्रयोग में प्रायः जो अशुद्धियाँ और असावधानियाँ हम करते हैं, उन पर भी रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी ने हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। ‘हिमांशु’ जी लम्बे समय तक केन्द्रीय विद्यालयों में प्रवक्ता और प्राचार्य पद पर कार्य करते हुए हिन्दी भाषा और साहित्य के अध्ययन को सदैव महत्त्व देते रहे हैं तथा इस दिशा में विद्यार्थियों की अभिरुचि में अभिवृद्धि करने के सार्थक प्रयास करते रहे हैं; इसलिए पुस्तक उनके व्यावहारिक जीवन के अनुभवों से संपृक्त होकर और मूल्यवान् हो गई है।
गद्य की विभिन्न विधाएँ-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, मूल्य :260, पृष्ठ :120 संस्करण : 2022, प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 19/39, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059
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