गद्य कोश पहेली 10 अक्तूबर 2013
पहचानिये कि जीवन के प्रति ऐसा दर्द भरा दृष्टिकोण किसका हो सकता है?
यह मेरी देह है। क्या ज़रूरी है कि यह आग चिता की आग हो? क्या यह यज्ञ की ज्वाला नहीं हो सकती? चिति दोनों में है। आग के लिए मैंने क्या जुटाया, इससे क्या? यह तो सिर्फ जलने के लिए है। आग में मैं आहुति क्या दे रहा हूँ, इसी पर तो सब-कुछ है। क्या मैं फूँक रहा हूँ, या किसी चीज़ को शोध रहा हूँ? थोड़ा-सा अस्वस्थ होता हूँ तो लोग चिन्तित हो उठते हैं। जो चिन्तित नहीं होते-यानी जिन्हें इससे वास्तव में कोई प्रयोजन नहीं है, वे भी ‘हाल पूछना’ अपना कर्तव्य समझते हैं और पूछ-पूछ कर बेहाल कर देते हैं। सोचता हूँ : इस शरीर के थोड़े कष्ट की इतनी चिन्ता, और इसके भीतर जो जीव घुटन से छटपटा रहा है, धीरे-धीरे मर रहा है, उसके कष्ट का किसी को पता भी नहीं है! नीम-बेहोशी के पार से डॉक्टर की आवाज़ (नीम-बेहोशी में ऐसा लगता है, जैसे गहरी डुबकी के दौरान कुछ सुन रहे हों-एक तरफ़ तो ठीक से सुनाई नहीं देता, दूसरी तरफ ऐसा लगता है कि सिर्फ कान से नहीं, सारी देह से सुन रहे हैं!) पूछती है : ‘दर्द कैसा है?’ मैं कहता हूँ, “बहुत है।” “इज इट इंटालरेबल्? (क्या असह्य है?)” मैं फिर कहता हूँ, “इट इज़ सिवीयर। (तीखा है।)” वह ज़िद करते हैं “इज़ इट इंटालरेबल्?” नशे की झील में मुझे लगता है, वह व्यर्थ का सवाल पूछ रहे हैं-अर्थहीन सवाल। मैं चिढ़-सा कर उत्तर देता हूँ : “कहा तो, डॉक्टर, कि सिवीयर है। इंटालरेबल् का मतलब है कि या तो मैं चीखूँ-चिल्लाऊँ, या फिर बेहोश हो जाऊँ। आप देख रहे हैं कि होश में हूँ, और सह रहा हूँ।” डॉक्टर थोड़ी देर अचकचाये-से मेरी ओर देखते हैं। फिर सिर एक ओर को झुका कर चल देते हैं। बाद में मुझे बताया गया, डॉक्टर कह रहे थे, “अजीब पेशेंट है। दिल के दौरे में और मार्फ़िया के नशे में लफ़्ज़ों पर बहस करता है।” क्यों न करूँ? इंटालरेबल् : यानी जो सहा न जाए। सह तो रहा हूँ-भाषा के साथ आप का अन्याय भी तो सह ही रहा हूँ! |
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- ........यह कथा आख्यान आर्यों के प्रसिद्ध प्राचीन दंतकथाओं में से एक है .
- यह उदात्त और अमर प्रेम की आदि कथा है .
- यह कथा महाभारत में भी (महाभारत, वनपर्व , अध्याय 53 से 78 तक) वर्णित है .
- यह इतनी सुन्दर,सरस और मनोहर है कि कई विद्वान् इसे महर्षि वेद व्यास रचित मानते हैं .
- इस कथा पर राजा रवि वर्मा के साथ ही अनेक चित्रकारों ने अपने चित्र/तैलचित्र बनाये हैं .
- यह अमर कथा अपनी नाट्य प्रस्तुतियों से कितनी बार ही मंचों को सुशोभित कर गयी है .
- 1945 में इस कथा पर फिल्म बनी थी ....
- मुज़फ्फर अली ने इस कथा पर टीवी सीरिअल भी निर्देशित किया था ........