गद्य कोश पहेली 13 अक्तूबर 2013
पहचानिये कि हिन्दी साहित्य के कौन से प्रसिद्ध लेखक के द्वारा लिखे पत्र कर अंश हो सकता है यह?
प्रिय भाई,
मुझे बहुत खेद है कि आपके अनेक पत्र मिले पर यथासमय न तो मैं उनके उत्तर दे सका न आपको उसके लिए आवश्यक सामग्री ही भेज सका। इसका मुख्य कारण यही है कि मुझे अपने बारे में कुछ भी लिखने या बात करने में बहुत संकोच महसूस होता है। यह मेरा स्वभाव है। आपने कहीं भी नहीं देखा होगा कि मैंने अपने बारे में कहीं कुछ भी लिखा हो। फिर भी चूँकि आपकी थीसिस के लिए आवश्यक है अत: संक्षेप में अपने जीवन और उस पर पड़े प्रभावों की रूपरेखा लिख रहा हूँ। अनेक मामलों में तिथियाँ मुझे याद नहीं है, जो याद है वह लिख दूँगा। मेरे पिता पाँच भाई थे। दो वहीं रहते थे। तीन अन्य नगरों में। सभी अपने परिवार सहित ख़ुदागंज में इकट्ठे होते। सोने से लदी, बहुत बूढ़ी दादी अपनी अँधेरी कोठरी में पलंग पर लेटी रहतीं और बारी-बारी से बेटों और बहुओं से खुश या नाराज होती रहतीं। मुझे उस कोठरी में जाने का एक ही लालच था कि वे बड़े घड़े में से निकालकर सोंठ की कतली या मूँग के लड्डू देतीं। पर वैसे वे मुझे बहुत पसन्द नहीं थी। मुझे अच्छी लगती थी ‘अइया’। वे किसी रिश्तेदार ताऊ की विधवा पत्नी थीं, जिनका गुजर-बसर का कोई दूसरा जरिया नहीं था, अत: वे हमारे परिवार की आश्रिता थीं। तड़के सुबह उठकर आँगन की कुइयाँ से पानी भरना, बरतन माँजना, चौका लगाना, खाना बनाना, कपड़े धोना, दादी के पाँव दबाना, सुबह चार बजे से रात दस बजे तक वे मशीन की तरह खटती थीं। सब बहुएँ उनके पाँव तो छूती थीं पर उन्हें नौकरानी की तरह झिड़कती भी थीं। ‘बालसखा’ में परियों की कहानी पढ़-पढ़कर कई बार मैं सोचता कि अइया श्रापग्रस्त रानी है। मैं उनको बहुत चाहता था। उन्हीं के कामकाज में हाथ बँटाता रहता और जब फुरसत मिलती तो उनके साथ छत की दीवार पर बैठकर बातें करता। वे गाँव की नाइनों, धोबिनों, भठियारिनों और डकैतों की घरवालियों के किस्से मुझे सुनातीं और मैं उन्हें अपने भूगोल की कक्षा में पढ़े हुए पाठ-समुद्र क्या होता है, बादल कैसे बनते हैं, यू.पी. में आकर वे कैसे बरसते हैं, हॉलैण्ड के बच्चे काठ के जूते पहनते हैं और एस्किमो बारहसिंगा का दूध पीते हैं-ये कथाएँ सुनाया करता था। मेरी आधी झूठी आधी सच्ची कहानियों की सबसे पहली प्रशंसक अइया थी। एक बार तेज बुखार आया और अइया चल बसीं। इधर पत्रकारिता की व्यस्तता के कारण लिखने का उतना समय नहीं मिल पाता है। कुछ जो लिखा वह छपाया नहीं है। आपका सस्नेह, |