गद्य कोश पहेली 23 अक्तूबर 2013

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पहचानिये इस प्रसिद्ध कथा को?

कहानी का प्रारम्भ बिलकुल सिनेमाई अंदाज में होता है। जैसे कैमरा भीड़ की चहल पहल को दीखाते हुए बाजार का दृश्य स्थापित करता है और फ़िर लड़के लड़की के मिड शाट और क्लोज अप पर ले आता है। लांग शाट से क्लोज अप की यह सिनेमाई तकनीक उस समय तक तो धुंधली ही थी। कहानी शुरु करते ही वाचक हमें अमृतसर के सलीकेदार तांगे वालों के बीच से गुजारते हुए एक दुकान पर ले आता है। तांगे वालों के जिक्र में ही शहर का मिजाज, नफ़ासत और अन्य शहरों से उसके फ़र्क का पता चल जाता है। यहां के तांगे वाले ( जो अन्य शहरी की तुलना में लगभग असभ्य माने जाते होंगे) भी अपने सब्र का बांध टूटने पर भी सलीका नहीं छोड़ते और जबान की ‘मीठी छुरी’ चलाते हैं।

“क्या मजाल है कि जी और साहब सुने बिना किसी को हटना पडे। यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती नहीं; चलती है, पर मीठी छूरी की तरह महीन मार करती है”। इन्हीं तांगे वालों के बीच से निकल कर लड़का और लड़की एक दुकान पर आ मिलतें हैं। जहां उनका परिचय होता है और प्रथम परिचय में ही लड़का पूछ बैठता है

“तेरी कुड़माई हो गयी”

लड़के की यह साहस और बेबाकी लड़की को ‘धत’ कह कर भागने पर मजबुर कर देती है। लड़का लड़की का इस तरह बात करना उस समय के समाज में कुछ अजीब जरुर लगता है पर यह बातचीत अकारण नहीं है;

“ तुम्हें याद है, एक दिन तांगेवाले का घोड़ा दहीवाली की दुकान के पास बिगड़ गया था । तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाये थे”।

प्राण रक्षा का यही भाव लड़के से निर्भीकता से पुछवा देता है,

“तेरी कुड़माई हो गयी”

लड़की का यह ‘धत’ लड़के की आस बंधा देता है। इस घटना के बाद भी दोनों लगातार मिलते रहते हैं, लड़के ने यह प्रश्न मजाक में कई बार पूछा और लड़की ने हर बार ‘धत’ कहा और एक दिन उसने जब ‘हां’ कहा और ‘रेशम से कढा हुआ शालु’ दीखाया उस दिन लड़के की हालत दर्शनीय हो गयी;

“ रास्ते में एक लड़के को मोरी में धकेल दिया, एक छाबडी़वाले(खोमचे वाले) की दिन- भर की कमाई खोई, एक कुत्ते पर पत्थर मारा और एक गोभीवाली के ठेले में दुध उडे़ल दिया। सामने से नहा कर आती हुइ किसी वैष्णवी से टकराकर अन्धे की उपाधि पायी तब कहीं घर पहुंचा”।

लड़के का यह विक्षिप्त व्यवहार उसकी हताशा का परिणाम है और उस अपराध बोध का भी जिसमें कभी वह लड़की से अपने बारे में नहीं पूछ पाया। उसे अंदाजा नहीं था कि यह सिलसिला इतने कम दिनों में ही खतम हो जायेगा।

कथा के पहले खंड में प्रेम का अंकुरण और अंत हो जाता है। इस प्रेम का पता ना लड़की को लग पाता है ना लड़के को। तभी तो लड़का अपने व्यवहार का कारण नहीं समझ पाता। यहां हम कहानी में लड़के की मनोस्थिति को जान लेते हैं परंतु लड़की के मन की दशा क्या है यह नहीं जान पाते। क्या लड़की इस प्रेम से भिज्ञ है जिसके वशीभूत हो वो हर दूसरे तीसरे दिन टकरा जाते थे। क्या वह ये जान पाती है कि उसके शालु को देख कर लड़के के मन में क्या तुफ़ान उठा है। वह उदास है या नया शालु मिल जाने की बाल सुलभ चपलता से उत्साहित। यह प्रश्न अनुतरित नहीं हैं, कहानी में इसके उत्तर आगे मिल जाते हैं।


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