गद्य गीत -1 /अबोध बन्धु बहुगुणा
Gadya Kosh से
जैन अछाणि मा कट्ट साँकि नि कटाई वैन क्य जंण कि प्रेम केंकु ब्वदन। जु ऐरणि पर नि ऐंठे गयो वै तैं पिड़ाअ परचो कखै होण! जै कि आंख्यों कि बर्खा मा चोळ्योंन स्वाति नकछेत्राअ बुंद नि पाया वैकु कनै बोले सकेंद कि वैकि छत्ति का भित्र भि कळ्यजि ह्वेली। जैन रात भर गैणा नि गण्या, नया-दिनै झुसमुस औंद देखणाअ वैका जोग कखै होणन।
इनो भयंकर आनंद छ ये प्रेम मा। आंसु हैंसणा छन अर फूल रोंणाँ। पाफड़-पात को पाणि जनो हृदय देखा दौं यांका आनंद मा कनो बिवलौणू छ। आंखि इसमिरत्यों का पंख पैर्यी चखुलि-सि कनि रिटणि छन। मन मोयेंद-मोयेंद बाण लग्यां हिर्णे तरौं कनो मूर्छित पड्यूं छ अर प्राण बुलेंद कुच्छुन तड़कै ह्वला। ना यांका कट्यां कि क्वी द्वै च, ना यांकि कखि क्वी सुणे च।