गम की शाम पर शाम ही तो है / जयप्रकाश चौकसे

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गम की शाम पर शाम ही तो है
प्रकाशन तिथि : 03 दिसम्बर 2019


फिल्म कलाकार स्वरा भास्कर केरला से प्रकाशित 'द वीक' के लिए सारगर्भित लेख लिखती हैं। प्राय प्रत्येक पखवाड़े वे सामाजिक विषय पर लेख लिखती हैं। स्वरा भास्कर की माता श्रीमती इरा भास्कर भी पढ़ाती थीं और वे इतनी लोकप्रिय थीं कि छात्र उन्हें हमेशा घेरे रहते थे। वर्तमान में फिल्म सितारे प्रशंसकों से घिरे रहते हैं और नेता भी किराए की जुटाई भीड़ से घिरे रहते हैं। पहले शिक्षक ही समाज का सबसे बड़ा सितारा होता था। कुछ समय बीतने पर अच्छा शिक्षक एक खोई प्रजाति हो जाएगा। उन्हें डायनासोर की तरह खोजना होगा। संभव है कि स्टीवन स्पीलबर्ग 'द लॉस्ट टीचर' नामक फिल्म बनाएं और वह फिल्म भारत की सभी भाषाओं में डब की जाए। प्रोफेसर इरा भास्कर अपने छात्रों की गृहकार्य कॉपियों में छात्रों द्वारा लिखे गए उत्तर से अधिक लंबे नोट्स लिखती थीं। उनके छात्र प्राय: उनके घर आकर शिक्षा प्राप्त करते रहे। वे घर आए छात्रों को नाश्ता भी कराती थीं। भास्कर परिवार में इरा और उनके छात्रों को लेकर मजाक गढ़े जाते थे। प्रोफेसर इरा अपने साधनहीन छात्रों के फटे कपड़े भी सिल देती थीं। उनके द्वारा की गई सिलाई जीवनभर उधड़ी नहीं। उनमें से कुछ छात्र जीवनभर भास्कर परिवार से संवाद बनाए रहे। याद आती है हबीब फैजल की ऋषि कपूर और नीतू सिंह अभिनीत फिल्म 'दो दूनी चार'। इस फिल्म में गणित के अध्यापक के जीवन की कठिनाइयों के विवरण के साथ परिवार की एकजुटता और संघर्ष क्षमता का विवरण भी दिया गया था। फिल्म के क्लाइमैक्स में शिक्षा को समर्पित टीचर जीवन में पहली बार अपने शिक्षा मूल्य से समझौता करने जा रहा है। ईमान की राह पर पहली बार उनके कदम लड़खड़ाए हैं। उसी समय उनका एक भूतपूर्व छात्र उनके चरण छूता है और बताता है कि उनकी शिक्षा के कारण ही वह सफल व्यक्ति बन पाया। इस मुलाकात से अपने शिक्षा मूल्यों के प्रति उसका विश्वास लौट आता है और डगमगाते कदम पुनः अपनी शक्ति पाते हैं। वह समझौते से इनकार कर देते हैं। यह गणित शिक्षक दुग्गल को केंद्र में रखकर बनाई गई फिल्म है, परंतु उनकी पत्नी की भूमिका में नीतू सिंह ने अपनी अभिनय क्षमता की जमीन पर कदम जमाए रखे। एक तरह से हबीब फैजल की पटकथा के घाट पर शेर और बकरी साथ-साथ पानी पीते नजर आते हैं। खबर है कि हबीब फैजल अपने 'वनवास' से लौट आए हैं और पुन: आदित्य चोपड़ा के लिए काम कर रहे हैं।

प्रोफेसर इरा भास्कर ने अपने छात्रों को स्वतंत्र विचार प्रक्रिया को विकसित करना सिखाया। कुछ छात्रों ने अपने जीवन में लोकप्रियता की लहर के विपरीत तैरकर भी दिखाया। इरा जैसे शिक्षक अपने छात्रों की विचार प्रक्रिया में हमेशा मौजूद रहते हैं। आज इरा भास्कर को यह जानकर गहरी पीड़ा होती है कि व्यवस्था का विरोध करने वाले छात्रों को राष्ट्रद्रोही या नक्सलवादी कहकर पुकारा जाता है, उन पर पुलिस डंडे भांजती है। व्यवस्था ने जेएनयू की फीस इतनी बढ़ा दी है कि मध्यम वर्ग से आया छात्र प्रवेश ही न ले सके। किसी भी संस्था को समाप्त करने के लिए यह नई तरकीब ईजाद की गई है कि उसे सुनसान करते हुए कालांतर में बियाबान कर दिया जाए। सूने क्लास रूम, गलियारों में सन्नाटा गूंजता रहे। कुछ छात्र प्रोफेसर इरा के पास आकर पूछते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए? वे उन्हें अपने जीवन मूल्यों पर डटे रहने की प्रेरणा देती हैं। उनका संकेत होता है कि कोई रात ऐसी नहीं जिसका सवेरा न हो, रात जितनी संगीन होगी सुबह उतनी ही रंगीन होगी। ज्ञातव्य है कि यह बलराज साहनी और नूतन अभिनीत फिल्म का गीत है। उस फिल्म में नूतन एक फिल्म सितारे की भूमिका अभिनीत करती हैं। उनके परिवार के सदस्यों में यह प्रतिस्पर्धा जारी है कि नूतन के कमाए हुए धन को कौन अधिक लूट पाता है। नूतन अभिनीत पात्र का गाइड गुरु फिलॉसफर पात्र बलराज साहनी द्वारा अभिनीत किया गया था। क्या गजब साम्य है यथार्थ और फंतासी में कि स्वरा भास्कर अभिनय क्षेत्र में सक्रिय हैं और प्रोफेसर इरा भास्कर अपने छात्रों की प्रेरणा बनी हुई हैं। वे विश्वास दिलाती हैं कि दिल नाउम्मीद नहीं नाकाम ही तो है, लंबी है गम की शाम पर शाम ही तो है, सभी को इंतजार है सुनहरी सुबह का।