गम की स्याही दिखती है कहाँ? / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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कुछ लिखने बैठी ही थी, कि शहर में आंधी तूफान का मौसम बन गया। ऐसी आंधी चली कि टेबल पर रखे सारे कोरे कागज़ उडऩे लगे। मैं उन्हें जितना संभालती वो उतने ही दूर होते जा रहे थे। मन बहुत उदास था मानो कोई साथी बिछड़ गया हो। आखिर थक हार के मैंने कुछ भी नहीं लिखने का फैसला कर लिया। तभी एक कोरे कागज का टुकड़ा उड़ते हुए आया और कहने लगा लिखो ना लिखती क्यों नहीं? “हम पर तो रोज एक नयी कहानी लिखी जाती है कभी हमारी कहानी भी लिखो न आज हम पर ही कुछ कह दो। मैंने कहा कैसे लिखूं फिर से एक नयी दास्तान, गम की स्याही दिखती है कहाँ?

“मैंने उन कागजों को समेटा और सोचने लगी। कितना पुराना और आत्मीय रिश्ता है मेरा इन कागजों से ठीक वैसा ही जैसा किसी बेटी का अपनी माँ से होता है, जब वो अपने दुखों की गठरी माँ के आँचल में छुप कर खोल देती है और हल्की हो जाती है, जैसे कोई प्रेयसी अपने बरसों के बिछड़े प्रेमी से मिलकर उसके काँधे पर अपना सर रखकर रो लेती है और उसकी रूह में अपना दर्द उड़ेल देती हो।

कुछ ऐसा ही पवित्र रिश्ता है मेरा इन सफेद कागजों के साथ, ये मेरे सच्चे साथी हैं। ये मेरे साथ हमेशा रहते हैं। इनसे मैंने हमेशा अपनी अव्यक्त भावनाएं बांटी हैं वक्त के लम्हों में कैद वो कोमल भावनाएं आज भी सोयी हुई हैं। कितनी सुन्दर कितनी अपनी-सी जिन्हें इन कागजों ने किसी से नहीं कहा बस खुद तक ही रखा।

आप सोच रहे होंगे इतनी बड़ी दुनिया में, रिश्तों की भीड़ में और संबंधों के ताने बानों के बीच इन कागजों से क्यों कर रिश्ता बनाया जाए?

तो चलिए, मैं बताती हूँ इनसे रिश्ता क्यों बनाया जाये, जब सारी दुनिया में आप खुद को तनहा महसूस करे। आपकी बात कोई समझे नहीं। जब मन के सागर में दर्द की लहरें उठने लगीं। आपकी दर्द भरी आह मीलों तक जाकर वापस आ जाये। दूर तक खामोशी का सिलसिला हो। तब आप क्या करेंगे? इन कागजों पर खुद को उड़ेल दीजिये ना इन पर गिरे आंसू अपने गहरे निशान छोड़ते हैं, जिन्हें आप कभी भी स्पर्श करके महसूस कर सकते हैं।

कभी-कभी ऐसा भी होता है ना, जब दर्द अपनी सीमाएं तोडऩे लगता है। उस समय सांसे तो चलती है, लेकिन हम जिंदा नहीं होते। आँखों में हजारों सपने जरूर होते है लेकिन टुकड़ों की शक्ल में, होठों पर हजारों सवाल ऐसे होते हैं जिनके जवाब बने ही नहीं। धड़कने जब भटक कर दिल को तलाशने लगे, जैसे कोई दस्तक किसी दरवाजे का पता पूछने लगे।

आपकी रूह जब देह से जुदा होने लगे, कोई आसपास ना हो, तो आप लिख दीजिये ना एक इबारत कोरे कागजों पर। आप इन पर चाहे कितना गुस्सा होले, नाराज होले, कितने ताने मार ले कटाक्ष कर ले, ये फिर भी खामोशी से आपको खुद में समा लेंगे। ये आप पर हक नहीं जताते, ये आपसे हिसाब नहीं माँगते ये आपके दर्द को जज्ब कर लेते है खुद में। ये आपके सवालों से परेशान नहीं होते बस चुपचाप सुनते हैं। ये आपके सच्चे साथी है।

तो चलिए फिर आज नयी-नयी दास्तां लिखे, अरे-आप क्या सोचने लगे कि अपनी भावनाएं कैसे व्यक्त कर दें सबके सामने तो यही कहूंगी कि आप लिखिए तो सही आपको लिखने के लिए किसी स्याही या कीबोर्ड की जरूरत नहीं होगी बस आंखों वाले पानी से काम चल जाएगा। हां और उसे पढऩा हर किसी के बस की बात भी नहीं है। अब वो नजर ही नहीं किसी के पास जो आँसुओं की जुबान पढ़े। गम की स्याही किसी को नजर नहीं आती उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।

लो फिर एक कागज के टुकड़े ने आकर मेरे कान में कह दिया कि, “कैसे लिखोगी एक नयी दास्ताँ, गम की स्याही दिखती है कहाँ?"