गरीब की बेटी / विक्रम शेखावत
बूढ़ा और अपाहिज हरीराम जवान होती बिटिया की शादी की चिंता मे खटिया पे करवटें बदल बदल कर अपनी नींदे न्योछावर करने के सिवा और कर भी क्या सकता था। घर के अंदर आँगन मे हरीराम की पत्नी रज्जों और उसकी सोलह वर्षीय एकलौती बेटी मुन्नी लेटी हुई थी। रज्जों घर के बाहर चबूतरे पर लेटे हरीराम की चिंता समझती थी।
सुबह पौ फटने से पहले रज्जो हरीराम को चाय देने बाहर आई। हरीराम खटिया पे पैर सिकोड़ कर हाथ का तकिया बना अब भी सोच मे खोया हुआ था। रज्जो के हाथ मे चाय का गिलाश देखकर बैठ गया, गिलाश को हाथ में लिया और पैर नीचे लटकाकर चाय पीने लगा। रज्जो वही पास में नीचे चबूतरे पर बैठ गई।
“आप एक बार प्रधान जी से बात करके देखिये ना”, कुछ देर की शांति के बाद रज्जो ने धीरे से कहा।
“सुना है प्रधान जी ने बिमला की बेटी की शादी मे उन लोगों की काफी मदद की थी”, रज्जो ने पति के चेहरे की तरफ देखते हुये कहा। हरीराम अब रज्जो की बातों को सुनने लगा था और किसी निष्कर्ष पे पहुँचने की कोशिश कर रहा था। उसकी नजरे अब भी शून्य मे कुछ हल खोज रही थी।
“क्या है रे हरिया! कैसे आना हुआ ?”, थोड़ी देर बाद अंदर से एक रौबदार आवाज आई। “अंदर आ जा”, आवाज मे एक निर्देश था।
हरीराम हाथ जोड़ता हुआ अंदर आकर वही जमीन पर बैठ गया। सामने पलंग पर रोबीले चेहरे वाले प्रधान जी बैठे हुक्का गुड्गुड़ा रहा थे।
“हूँ ?”, गर्दन को प्रश्नवाचक मुद्रा मे हिलाकर फिर से प्रधान जी ने आने का कारण पूछा।
हरीराम ने जवाब मे हाथ जोड़ दिये और कुछ देर रुककर बोला,”मालिक, बिटिया की शादी करनी थी। “
“हूँ”, प्रधान जी ने एक गहरा कश लिया और तकिये को गोद में रखकर सोचने लगे। हरीराम की नजरे बड़ी उम्मीद के साथ प्रधान जी के चेहरे पे टिक गई। कुछ देर की चुप्पी के बाद प्रधान जी ने कहा,” कोई लड़का देखा है ?”
“....” हरीराम ने इंकार मे सिर हिलाया।
“ठीक है,मेरी नजर मे एक दो लड़का हैं”, प्रधान जी ने थोड़ी देर सोचकर कहा। “दहेज का भी झंझट नहीं। लड़का विधुर है लेकिन कोई बच्चे वच्चे नहीं है। बहुत पैसे वाले खानदान से ताल्लुक रखता है। शादी का पूरा खर्च वो ही उठाएगा तुम्हें चिंता की जरूरत नहीं।
घर आकर हरीराम ने पत्नी से प्रधान जी से हुई बातें बताई। पति की बात सुनकर रज्जो कुछ देर खामोश हो गई और कुछ सोचने लगी। उधर हरीराम भी गहरी सोचों में डूब गया।
“बिमला ने भी तो अपनी बेटी विधुर से ही ब्याही है, लड़के की उम्र ही कितनी है..... सिर्फ 35 साल, आज उसकी बेटी राज करती है। “, रज्जो ने मन ही मन सोचा।
कुछ दिनो बाद लड़के की माँ, बहन और अन्य सदस्य मुन्नी को देखने और आए, उन्हे मुन्नी बहुत पसंद आई और जाते वक्त पीछे मुन्नी के लिए गहनों और कपड़ों का ढेर छोड़ गए। हरीराम और रज्जो बहुत खुश थे। मासूम मुन्नी भी गहनों और कपड़ों के देख उछलने लगी थी। वो अपनी सहेलियों को ससुराल पक्ष की तरफ से मिली चीजों के बारे मे बताते बताते नहीं थकती। आज इस गरीब परिवार मे खुशी ने अपना दामन फैला दिया था। लेकिन खुशी को गरीब का घर ज्यादा देर रास नहीं आता।
शादी के मंडप पे पचास साल के दूल्हे को देख रज्जो ने हरीराम को को एक तरफ लेजाकर कुछ कहा। हरीराम मंडप से बाहर आया और दूल्हे के परिवार वालों के साथ खड़े प्रधान जी की तरफ हाथ जोड़कर कुछ कहना चाहा। हरीराम का आशय समझ प्रधान जी खुद उसके पास आए और उसे एक तरफ लेजाकर पूछने लगे।
“सरकार ..... वो ... दूल्हे की उम्र.....”, कहकर हरीराम रुआंसा होकर प्रधान के चेहरे को देखने लगा।
“अरे! सिर्फ 48 साल का ही तो है। आज कल तो इस उम्र मे ही शादी करते हैं लोग, अच्छा इधर आओ, मे तुम्हें ये देना तो भूल ही गया था”, कहकर प्रधान हरीराम को एक तरफ ले गया और तीस हजार के नोटों की तीन गड्डियाँ निकालकर उसके फट्टे से अंगोछे मे लपेटकर उसे थमा दी। नोटों की गड्डियाँ समेटे वो भारी कदमों से घर की तरफ चल पड़ा जहां उसकी मासूम बच्ची अपने से उम्र मे तीन गुणा बड़े प्रोढ़ के साथ माँ-बाप की लाचारी का सौदा कर रही थी।
हरीराम को आता देख पत्नी उसके पास आई, हरीराम ने नोटो की गड्डियाँ उसको थमा दी और खुद बाहर चला गया। रज्जो कुछ देर उस भार को उठाए खड़ी रही जिसके नीचे बेटी की खुशियाँ दबा दी गई थी।
बूढ़े माँ बाप को गुजर बसर के लिए काफी पैसे देकर मुन्नी विदा हो गई। साल दर साल गुजरते गए। मुन्नी अक्सर माँ बाप से मिलने आती। रज्जो बेटी से उसके हाल चाल पूछती और बेटी माँ को अपनी नर्क बन चुकी ज़िंदगी का हाल सुना देती। माँ बेटी कुछ देर आंसू बहा मन हल्का कर लेती। रज्जो फिर पति के सामने बेटी के दुखों का रोना रोती और फिर बूढ़े माँ बाप मिलकर बेटी के दुख में शामिल हो आंसू बहाने लगते।
मुन्नी का पति पैसेवाला मगर शराबी था अक्सर मुन्नी को पीटता रहता था। गुस्से मे वो मासूम मुन्नी को अपने नीचे दबाकर उसपर पालथी मारकर बैठ जाता और शराब पीता रहता। मुन्नी दर्द से कराहती रहती, आखिरकार वो नशे मे धुत हो एक तरफ लुढ़क जाता और तब तक मुन्नी भी बेहोश हो चुकी होती।
एक दिन ऐसी ही तकलीफ़ों से हारकर मुन्नी दुनिया से चल बसी। हरीराम और रज्जो को खबर मिली तो उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई। पड़ौस के लोगों ने लड़के वालों पे दहेज-हत्या का केस करने की सलाह दी। हरीराम प्रधान के पास गया और अपना दुखड़ा सुनाया। प्रधान उसको लेकर लड़के वालों के घर गया। हरीराम आँगन मे पड़े मुन्नी के शव के पास बैठकर रोने लगा। प्रधान जी अंदर जाकर परिवार के लोगों से मिले और बताया की हरीराम दहेज-हत्या का केस करने को कहता है।
सुनकर परिवार के लोग डर गए।
“प्रधान जी आप ही कुछ कीजिये, ऐसे तो बहुत बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा, आप तो जानते हैं हमने दहेज नहीं लिया बल्कि हमने तो आपके ही हाथों से शादी के वक़्त उसको दो लाख रुपए भिजवाए थे।“
“हाँ, वो तो मेने उसको शादी के वक़्त ही दे दिये थे, अब ऐसा करो चार पाँच लाख देकर मामला रफा दफा करवा दो। मे हरीराम को वो पैसे देकर चुप करवा दूंगा”, प्रधान जी ने फुसफुसाकर परिवार वालों को कहा।
कुछ देर बाद प्रधान जी बेटी से लिपटकर रोते हुये हरीराम के पास आए, उसे उठाया और बाहर अपनी जीप मे बैठाकर वापिस गाँव ले गए। अपने घर के बाहर जीप को रोका और हरीराम के फट्टे अंगोछे मे फिर से तीस हजार की तीन गड्डियाँ डालकर कहा, “हरिया वो लोग बहुत पैसे वाले हैं, पुलिस केस मे उनसे लड़ना तुम्हारे बस की बात नहीं। फिलहाल तुम ये पैसे रखो में आगे उन लोगों से बात करूंगा। अब तुम घर जाओ।”
हरीराम भारी कदमों से अपनी इकलौती बैसाखी को बगल मे दबाये अपनी इकलौती बेटी की याद मे फफककर घर की तरफ चल पड़ा।