गरीब की माँ / चित्रा मुद्गल

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‘‘तेरे कू बोलने को नईं सकता ?’’

‘‘क्या बोलती मैं !’’

‘‘साआऽली...भेजा है मगज में ?’’

‘‘तेरे कू है न, तू काय को नयी बोलता सेठाणी से ? भड़ुआ अक्खा दिन पावसेर मार कर घूमता अउर...’’

‘‘हलकट, भेजा मत घुमा। सेठाणी से बोला क्या ?’’

‘‘ताबड़तोड़ खोली खाली करने कू बोलती।’’

‘‘तू बोलने को नईं सकती होती आता, मेना मैं अक्खा हिसाब चुकता कर देंगा ?’’

‘‘वो मैं बोली।’’

‘‘पिच्छू ?’’

‘‘बोलती होती मलप्पा को भेजना। खोली लिया, डिपासन भी नईं दिया। भाड़ा भी नईं देता। मैं रहम खाया पन अब्भी नईं चलने का।’’

‘साआऽला लोगन का पेट बड़ा, कइसा चलेगा ! सब समझता मैं...’’

‘‘तेरे को कुछ ज्यादा चढ़ी, गुप-चुप सो जा !’’

‘‘सेठाणी दुपर को आयी होती।’’

‘‘क्या बोलती होती ?’’

‘‘वोइच, खोली खाली करने कू बोलती।’’

‘‘मैं जो बोला था वो बोली क्या ?’’

‘‘मैं बोली, मलप्पा का माँ मर गया, मुलुक को पैसा भेजा, आता मेना मैं चुकता करेगा..’’

‘‘पिच्छू ?’’

‘‘बोली वो पक्का खडुस है। छे मेना पैला मलप्पा हमारा पाँव को गिरा-सेठाणी ! मुलुक में हमारा माँ मर गया। मेरे को पन्नास रुपिया उधारी होना। आता मेना को अक्खा भाड़ा देगा, उधारी देगा। मैं दिया। अजुन तलक वो उधारी पन वापस नईं मिला।

‘‘पिच्छू ?’’

‘‘गाली बकने कू लगी। खडुस शेन्डी लगाता...मेरे को ? दो मेना पैला वो घर को आया, पाँव को हाथ लगाया, रोने को लगा- मुलुक में माँ मर गया। आता मेना में शपथ, अक्खा भाड़ा चुकता करेगा, उधारी देगा। मैं बोली, वो पहले माँ मरा था वो कौन होती ? तो बोला, बाप ने दो सादी बनाया होता सेठाणी ! नाटकबाजी अपने को नईं होना। कल सुबू तक पैसा नईं मिला तो सामान खोली से बाहर...’’

‘‘तू क्या बोली ?’’

‘‘डर लगा मेरे को। बरसात का मेना किदर कू जाना ? मैं बोली सेठाणी, मलप्पा झूठ नईं बोलता...’’

‘‘पिच्छू ?’’

‘‘पिच्छू बोली- दो सादी बनाया तो तीसरा माँ किदर से आया ?’’

‘‘तू, तू क्या बोली ?’’

‘‘मैं बोली....दो औरत मरने का पिच्छू सासरे ने तीसरा सादी बनाया।....’’


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