गरीब कौन / राजकिशोर

Gadya Kosh से
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मेज पर कोका-कोला की आधी पी हुई बोतल रखे हुए, अफसर किसी फाइल के अध्ययन में तल्लीन था। फाइल इस बारे में थी कि राशन की दुकानों के माध्यम से कंडोम वितरित किए जाएँ या नहीं। करीब डेढ़ सौ पन्नों की फाइल थी। ऊपर से नीचे तक सभी अधिकारियों की टिप्पणियाँ भरी पड़ी थीं। कुछ का कहना था कि इससे ग्रामीण इलाकों में जन्म दर में भारी कमी आ सकती है। कुछ का मानना था कि इससे परिवार नियोजन कार्यक्रम हास्यास्पद बन जाएगा और गाँवों में अनैतिकता बढ़ सकती है। टिप्पणियाँ ऐसी थीं, जिनका मतलब हाँ और ना दोनों में निकाला जा सकता था। एक ने इतने बड़े पैमाने पर सप्लाई की समस्याओं पर विस्तार से लिखा था और यह आशंका जताई थी कि चावल और गेहूँ की तरह कंडोम की भी चोरी हो सकती है और उसका कालाबाजार विकसित हो सकता है।

तभी दरवाजे पर खट-खट की आवाज हुई और उसके पहले कि अफसर सिर उठा कर देखे, चपरासी ने प्रवेश किया - 'सर, एक आदमी आपसे मिलने आया है' 'उससे कहो, मैं अभी बेहद बिजी हूँ,' अफसर ने रुआब से कहा। चपरासी बोला, 'उसे कई बार बता चुका हूँ। कहता है, आज बुधवार है और बुधवार को तीन से पाँच बजे तक के बीच कोई भी आदमी अफसरों से मिल सकता है। यह सरकारी कानून है।' अफसर ने घड़ी देखी - साढ़े तीन। चपरासी से कहा, भेज दो।

थोड़ी देर बाद एक अधेड़ आदमी ने कमरे में प्रवेश किया। उसे देखते ही लगता था कि यह उस बेहया वर्ग का सदस्य है जो भारत सरकार तथा राज्य सरकारों के लिए स्थायी सिरदर्द बना हुआ है। गरीबी हटाने की जितनी कोशिश होती है, गरीबी उतनी ही बढ़ती जाती है। यहाँ तक कि गरीबी के बारे में निरंतर चर्चा करनेवालों का एक पूरा विद्वान वर्ग तैयार हो गया है। यह गरीबी पर पलता है, गरीबी पर चलता है और गरीबी के सवालों पर मचलता है। अफसर भी इसी वर्ग का था। लेकिन वह अफसर था। वह गरीब-अमीर सभी से डील करना जानता था। नौकरी शुरू करने से पहले मसूरी में उसे इसी कला में प्रशिक्षित किया गया था।

उस दाढ़ी-मूँछ बढ़े आदमी पर एक नजर डालकर अफसर ने पूछा - महीने में कितने कंडोम इस्तेमाल करते हो? आदमी के चेहरे पर अचरज की लकीरें उभरीं - कंडोम? अफसर को अपनी भूल समझ में आ गई। वह अभी तक अपनी फाइल के प्रभाव से उबरा नहीं था। अफसर ने अपनी आवाज में तनिक तरलता लाते हुए पूछा - तुम्हारा नाम? आदमी ने जेब से एक कार्ड निकाल कर दिखाया। अफसर ने पूछा - यह क्या है? आदमी ने कहा - बीपीएल कार्ड। आप इसे नहीं पहचान सकेंगे। यह सिर्फ गरीबों को दिया जाता है। अफसर - यानी तुम बीपीएल हो। आदमी - सर, अभी तक तो हूँ। पर सरपंच यह कार्ड छीनना चाहता है।

अफसर की त्यौरी चढ़ने लगी। उसे लगा कि उसका कीमती समय बरबाद किया जा रहा है। उसने थोड़ी कड़क आवाज में कहा - तो यहाँ क्यों आए हो? पुलिस के पास जाओ। रिपोर्ट लिखाओ। यह समाज कल्याण विभाग है? आदमी बोला - मैं समझता था कि समाज कल्याण में सब कुछ आ जाता है। अफसर - आता होगा, पर एक आदमी किस-किसका कल्याण कर सकता है। इसीलिए अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग विभाग बनाए गये हैं। आदमी - पर मेरा कल्याण तो आप कर ही सकते हैं। मुझे एक सर्टिफिकेट चाहिए कि मैं गरीब हूँ। किसी गजटेड ऑफिसर से लिखवा कर नहीं ले गया, तो सरपंच मेरा बीपीएल कार्ड छीन लेगा। कहता है, ऊपर से ऑर्डर आया है - गरीबों की संख्या कम करो।

अब अफसर गंभीर हो गया। उसे सिखाया गया था कि किसी को लिख कर कुछ न देना, बाद में फँसने का डर है। अफसर ने पूछा - लेकिन बात क्या है? तुम गरीब हो, तो तुम्हारा बीपीएल कार्ड तुमसे कौन छीन सकता है? आदमी - सर, हुआ यह कि पिछले महीने मेरी घरवाली मर गई। इस महीने बकरी ने तीन बच्चे दिये हैं। सरपंच का कहना है, तुम अब गरीब नहीं रहे। एक तो तुम्हारे परिवार की सदस्य संख्या कम हो गई, जिससे बाकी बचे लोगों की प्रतिव्यक्ति आमदनी बढ़ गई। दूसरे, सरकारी रिकार्ड के मुताबिक पहले तुम्हारे पास एक मवेशी था, अब चार हो गए। गरीबी मापने के लिए सरकार ने जो मानक तैयार किये हैं, उनके आधार पर तुम अब गरीब नहीं रहे। बीपीएल कार्ड सरेंडर कर दो, नहीं तो पुलिस में तुम्हारे खिलाफ धोखाधड़ी की रिपोर्ट लिखानी होगी।

अफसर सोच में पड़ गया। थोड़ी देर तक विचार करने के बाद बोला - देखो, लिख कर तो मैं कुछ नहीं दे सकता। मेरे पास इसका पॉवर नहीं है। पर रास्ता बता सकता हूँ। एक महीने के भीतर दूसरी शादी कर लो और बकरी के बच्चे किसी को दान कर दो। तब तुम्हारा कार्ड तुमसे कोई नहीं ले पाएगा।

अब सोच में पड़ने की बारी आदमी की थी।

इसके बाद क्या हुआ, मुझे मालूम नहीं, पर इतना जानता हूँ कि इस बातचीत के दौरान अफसर ने एक बार भी उस अधेड़ आदमी को कुरसी पर बैठने के लिए नहीं कहा था, जिसकी उम्र उस अफसर से कम से कम पंद्रह साल ज्यादा थी।