गरीब बौद्धिक / रूपसिंह चन्देल
वह खासे बौद्धिक हैं. अपने दायरे और कार्यक्षेत्र में चर्चित. अनेक सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं से सम्मानित और पुरस्कृत. दुनिया की दृष्टि में सम्पन्न. दिल्ली जैसे महानगर के पॉश इलाकों में दो मकान. कीमत करोड़ों की, लेकिन अपने को गरीब कहते हैं. कुछ लोग गरीब होने के उनके तर्क को सही मानते हैं. उनका मानना है कि पांच-सात करोड़ की सम्पत्ति आज के संदर्भ में कुछ भी नहीं, क्योंकि इस देश का एक अल्प शिक्षित मंत्री पांच वर्षों में उससे पचास-सौ गुना अधिक अपने खाते में जमा कर लेता है जबकि उन्हें बौद्धिक हुए पैंतीस वर्ष हो चुके हैं. इस दौरान वह कितने ही सौ पृष्ठ कागज काले कर चुके और देश-विदेश में कितने ही विश्वविद्यालयों में भाषण भी दे आए, लेकिन पांच-सात करोड़ पर ही अटके पड़े हुए हैं.
बौद्धिक होने से पहले वह गरीब नहीं थे, लेकिन बौद्धिक होते ही जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि अमेरिका का एक बौद्धिक चंद दिनों में ही करोड़ों में खेलने लगता है तब वह उनसे अपनी तुलना करने लगे और सार्वजनिक तौर पर अपने गरीब होने की घोषणा करने लगे. एक दिन एक हिन्दी दैनिक का एक पत्रकार उनकी गरीबी पर बातचीत करने के लिए पीतम पुरा स्थित उनके निवास पर पहुंचा. उन्होंने खुलकर बातचीत की और सिद्ध कर दिया कि वह गरीब हैं. पत्रकार के साथ उनकी बातचीत उस अखबार में प्रकाशित हुई. उनके घर से कुछ दूर चौराहे पर बैठने वाले भिखारी ने उसे पढ़ा. वह उन्हें जानता था, क्योंकि उसने भी कभी बौद्धिक होने का भ्रम पाला था लेकिन समय के साथ दौड़ नहीं पाया और भीख मांगने की स्थिति तक पहुंच गया. अखबार में उनकी बातचीत पढ़कर देर तक भिखारी गुमसुम रहा, फिर भीख मांगने वाला कटोरा उठाकर वह उनकी कोठी की ओर चल पड़ा. जिस समय वह वहां पहुंचा वह कहीं जाने के लिए गाड़ी में बैठने के लिए घर से बाहर निकले ही थे.
वह गाड़ी की ओर बढ़े कि भिखारी सामने आ गया और उनकी ओर कटोरा बढ़ाकर खड़ा हो गया. वह जल्दी में थे. भिखारी कॊ घूरकर देखा और पर्स से पांच का नोट निकालकर कटोरे में डालने लगे, लेकिन भिखारी ने नोट लेने से इंकार करते हुए कहा, “सर, मैंने कल के अखबार में आपकी बातचीत पढ़ी है. आप मुझसे अधिक गरीब हैं – मैं यह कटोरा आपको देने आया हूं. इसकी आवश्यकता मुझसे कहीं अधिक आपको है सर!”