गर्दिश में आसमान का तारा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 02 जून 2020
आज राज कपूर को गुजरे 32 वर्ष हो चुके हैं। उनकी फिल्में देश-विदेश में देखी जा रही हैं। उनकी फिल्मों के सैटेलाइट द्वारा प्रदर्शन के अधिकार अधिक आय अर्जित कर रहे हैं। आम आदमी के सुख-दुख को अभिव्यक्त करने वाली फिल्में आज भी सामयिक बनी हुई हैं। उनकी मृत्यु के बाद पूना के निकट ग्राम सोनी में उनका फार्म हाउस बेच दिया गया। इसी सौदे के बाद खरीदने वाले से फिल्मकार डॉ. जब्बार पटेल ने फिल्म विधा सिखाने वाले स्कूल की स्थापना की आज्ञा मांगी थी। आज्ञा प्राप्त होने के बाद भी जाने किन कारणों से संस्थान खुल नहीं पाया। यह संभव है कि माध्यम पढ़ाने की क्षमता रखने वाले शिक्षक मिल नहीं पाए। सभी क्षेत्रों में शिक्षक मिलना कठिन हो रहा है। फार्म हाउस के बाद आर.के.स्टूडियो बेच दिया गया। परिवार ने धन की आवश्यकता होने के कारण और कुछ नहीं बेचा। उनके पुत्रों ने उनकी मृत्यु के बाद 32 वर्षों में मात्र तीन फिल्में ही बनाईं। संभवत: इसी कारण स्टूडियो बेच दिया गया।
‘राम तेरी गंगा मैली’ के प्रदर्शन के बाद राज कपूर ‘रिश्वत’ और ‘घूंघट के पट खोल’ नामक दो फिल्में बनाना चाहते थे। ‘रिश्वत’ की पटकथा लिखने के लिए विजय तेंदुलकर से प्रार्थना की गई थी। कथा विचार तेंदुुलकर को पसंद आया था। ‘घूंघट के पट खोल’ कबीर के दोहे से प्रेरित विचार था कि ईश्वर किसी घूंघट के पीछे छिपा नहीं। ये घूंघट स्वयं मनुष्य की बुद्धि पर पड़ा है। धन-संपत्ति, रूप-यौवन इत्यादि का अहंकार। ज्ञातव्य है कि ‘जागते रहो’ के पहले दृश्य में ही कलकत्ता की सड़क पर जगह-जगह कबीर के पोस्टर लगे हैं और गीत का प्रारंभ ही कबीर की उलटबासी की तरह होता है कि ‘रंगी को नारंगी कहें, मावा को खोया कहें..’ इत्यादि।
‘जिस देश में..’ के दृश्य में नायक एक संकल्प लेता है। पार्श्व गीत है- ‘कबीर सोया क्या करे उठ न रोवे दु:ख, जाका बासा गोर में सो क्यों सोवे सुख, जीवन-मरण विचार कर पूरे काम निवार, जिन पथों तुम चलना सोई पंथ सवार...।’ राज कपूर और उनके सभी साथी कबीरमय रहे हैं। क्षिति मोहन दास ने कबीर का अनुवाद बांग्ला भाषा में किया था। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कबीर को समझा और विचार प्रक्रिया में शामिल किया ‘घूंघट के पट खोल’ के लिए कबीर प्रेरित गीत रवींद्र जैन ने लिखा- ‘गुण, अवगुण का डर भय कैसा, जाहिर हो भीतर तू है जैसा।’
‘घूंघट’ की मुख्य पात्र पागल खाने में केवल एक वाक्य बार-बार बोलती है कि हत्या उसने नहीं की। व्यवस्था यह जालसाजी रचती है कि शोषित व्यक्ति पर ही शोषण करने का आरोप लगाया जाता है। सफाई देते-देते आदमी मिट जाता है। व्यवस्था के दस्ताने मुखौटे और मास्क हमेशा रहस्यमय रहे हैं। ‘रिश्वत’ का मुख्य पात्र ग्रामीण स्कूल का हेडमास्टर रहा है। उसका पुत्र केंद्र में मंत्री है। सेवानिवृत्त होने पर हेड मास्टर से निवेदन किया जाता है कि वह अपने पुत्र से मिले और क्षेत्र की समस्याओं की जानकारी उसे दे। रेल यात्रा में विभिन्न विचारधारा के लोग मिल-जुलकर यात्रा करते हैं। भोजन और सुख-दुख बांटते हैं। रेल का डिब्बा विविधता में एकता का प्रतीक बन जाता है। घर से भागे युुवा प्रेमियों के प्राण ऑनर किलर्स से बचाए जाते हैं। एक चोर भी यात्रा कर रहा है। ‘जागते रहो’ का घटनाक्रम बहुमंजिला में घटित होता है। ‘रिश्वत’ में वही सब रेल यात्रा में घटित होता है। आम आदमी के साथ साधु, शैतान, चोर, ठग सभी यात्रा कर रहे हैं। बुराई और अच्छाई, जीवन यात्रा में हमसफर हैं। आधी रात के बाद रेल दिल्ली पहुंचती है। मास्टर साहब का बैग चोरी चला गया है। मास्टर साहब पैदल ही पुत्र के निवास की ओर चल देते हैं। पहचान-पत्र नहीं होने के कारण सुरक्षाकर्मी उन्हें बंगले में नहीं जाने देता। सुबह के इंतजार में मास्टर साहब बंगले के आसपास चलते हुए पीछे के हिस्से में पहुंचते हैं। किचन गार्डन का द्वार खुला है। मास्टर साहब यह देखकर सन्न रह जाते हैं कि उनका पुत्र रिश्वत ले रहा है। वे बेल्ट निकालकर पुत्र को पीटते हैं। मंत्री पुत्र ने उन्हें पिता कहकर संबोधित किया है, इसलिए सुरक्षा कर्मचारी मास्टर साहब को रोक नहीं पाते। वे असमंजस में ठगे से खड़े रहते हैं। मास्टर साहब पुत्र को पीटते हुए सड़क तक ले आते हैं। उनका बेल्ट टूट जाता है। वे मंत्रालय की ओर संकेत करके कहते हैं कि उनका पुत्र इस सड़ांध भरी व्यवस्था का पुत्र है? यह वह नहीं जिसे उन्होंने पाला-पोसा और पढ़ाया था।
देश के शरीर की अंतड़ियों में रिश्वत, अमीबा की तरह सिस्ट बनाकर रहती है। एक मारो तो दूसरा पैदा हो जाता है। आयुर्वेद में लिखा है कि मोटी सौंफ का सेवन अमीबा सिस्ट तोड़ता है। जीवन मूल्यों की मोटी सौंफ कहां से लाएं? इत्तफाक है कि आज इंदौर विवि के उप कुलपति रहे प्रोफेसर चंदेल का भी निर्वाण दिवस है।