गलियारे / भाग 11 / रूपसिंह चंदेल
एम.ए. के दूसरे वर्ष सुधांशु ने अधिक परिश्रम किया। उसे प्रो. शांतिकुमार के शब्द याद आ रहे थे, सिविल सेवा परीक्षा आसान नहीं है सुधांशु। मैंने उसके फेर में युवकों को जीवन बर्बाद करते देखा है। अंतत:...।
'सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण करने का स्वप्न नहीं त्यागना, लेकिन केवल उसे ही लेकर बैठे रहना मुझ जैसे अर्थाभाव में जीने वाले के लिए उचित नहीं होगा।' उसने सोचा, 'एम.फिल। में भी अपने को रजिस्टर्ड करवा लूंगा और सिविल सेवा परीक्षा के लिए भी...।'
एम.ए. में उसे प्रथम श्रेणी मिली। प्रीति ने हॉस्टल फ़ोन कर परिणाम जाना और यह जानकर कि उसे चौसठ प्रतिशत अंक मिले वह चीखी थी, वेल डन सुधांशु...तुमने बाजी मार ली।
खाक...बाजी मारी...। सुधांशु बहुत प्रसन्न नहीं था। उसे आशा थी कि गोल्ड मेडल उसे ही मिलेगा। लेकिन गोल्ड मेडल मिला था विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के एक प्रोफेसर के पुत्र को। वह उसे जानता था और यह भी जानता था कि वह इतना प्रतिभाषाली नहीं था कि गोल्ड मेडल उसे मिलता।
'क्या परीक्षा परिणामों में भी धांधली होती है।' उसने सोचा, 'होती ही होगी...इस देश में कुछ भी संभव है। यह विश्वविद्यालय अपवाद कैसे रह सकता है। बॉटनी डिपार्टमेण्ट के विभागाध्यक्ष को अपने पुत्र के अंकों में हेरा-फेरी करने के कारण ही पद से हाथ धोना पड़ा था।'
'लेकिन कितने लोगों की चोरी पकड़ में आती है। कुछ खुल्लमखुल्ला यह सब करते रहते हैं...डंके की चोट पर और उनका बाल भी बांका नहीं होता। वर्षों तक यहाँ के एक हिन्दी विभागाध्यक्ष ने प्रतिवर्ष यही किया...उनसे लाभान्वित होने वालों में छात्राएँ ही थीं विशेष रूप से। लेकिन वही, जिन्हें उनकी शर्तें स्वीकार थीं। उनके द्वारा नियुक्त की गई छात्राओं की खासी संख्या है यहाँ के कॉलेजों में और आज भी एक-दो कृतज्ञ छात्राएँ उनके बुढ़ापे की लाठी बनी हुई हैं। उनके बूते ही वह व्यक्ति हिन्दी के कार्यक्रमों में शिरकत करता है। उनके कंधे पर हाथ रख वह बहुमंजिले भवनों की मंजिल-दर मंज़िल सीढ़ियाँ चढ़ता कार्यक्रमों की अध्यक्षता करता है। विश्वविद्यालय प्रशासन...वी.सी... उसके बारे में जानते थे, लेकिन वह ऊँची पहुँच वाला व्यक्ति था। उसका मामा केन्द्र में मंत्री था।' उसका दम घुटने लगा था सोचते हुए। उस दिन वह हॉस्टल से बाहर लॉन में निकल आया ओर एक पेड़ की छाया में खड़ा हो गया। गर्मी थी।
'उस छात्र का पिता भी तेज तर्रार है। प्राय: क्लास नहीं लेता...हफ्ते में कभी एक दिन दिखता है...लेकिन प्रशासन उसकी मूंछ का बाल भी टेढ़ा नहीं कर सकता, क्योंकि उसका एक निकट सम्बंन्धी भी केन्द्रीय मंत्री है...। वह दिन भर अपने जुगाड़ों में व्यतीत करता है या मीटिगों, सेमीनारों, वायवा आदि के बहाने शहर से बाहर होता है।' उसने लंबी सांस ली, 'उसने अपने पुत्र की नौकरी पक्की कर ली...कौन रोक सकता है उसे। वह उसे मनचाहे कॉलेज में पहले एडहॉक, फिर रेगुलर लगवा लेगा...और मैं...।' उसका दिमाग़ चकराने लगा। उसने आंखे बंद कर लीं। वह देर तक सोचता रहा। कितना समय बीत गया, उसे पता नहीं चला। उसके सोचने पर विराम लगा जब हॉस्टल के पोर्च में गाड़ी रुकने और तेजी से दरवाज़ा खुलने-बंद होने की आवाज़ से उसका ध्यान भंग हुआ। उसने आंखें खोली। उसे विश्वास नहीं हुआ। गाड़ी से प्रीति उतर रही थी।
हाय...। प्रीति ने उसे देख लिया था। वह दौड़ती हुई उसके पास आई और उससे चिपट गयी।
अरे...अरे...प्रीति...।...यह क्या?' प्रीति को अपने से अलग करता हुआ वह बोला।
मैं बहुत ख़ुश हूँ...तुमने कमाल कर दिया।
मुझे छोड़ो तो...तुम्हारा ड्राइवर ...हॉस्टल...।
प्रीति के अप्रत्याशित आलिंगन से वह इतना घबड़ा गया कि शब्द गले में ही फंस गए।
कोई ड्राइवर नहीं...खुद ही ड्राइव करके आयी हूँ और भाड़ में जायें हॉस्टल के लड़के... ।
अच्छा मुझे छोड़ो...दम घुट रहा है।
प्रीति ने उसके गाल को हल्के से छुआ और बोली, मैं इतनी दूर इसलिए नहीं आई कि तुम बोर करोगे...तुम्हारे परीक्षा परिणाम को सेलीब्रेट करने आई हूँ। उसका हाथ पकड़ हॉस्टल की ओर खींचती हुई वह बोली, तैयार हो लो...फ़िल्म देखने चलेंगे...।
मेरा मूड नहीं है। कमरे की ओर घिसटता हुआ वह बोला।
मेरा मूड है और तुम्हे मेरे मूड का खयाल रखना है। मेरे पास दो ख़ुशियाँ हैं...एक-डैड ने चार दिन पहले गाड़ी खरीदी और आज पहली बार मैं इसे सफलता पूर्वक ड्राइव कर यहाँ तक ले आई और दूसरी ख़ुशी तुम्हारा परीक्षा परिणाम। हिस्ट्री में फर्स्ट डिवीजन कितनों को मिलता है?
क्यों? प्रोफेसर अनिल कृष्णन के पुत्र को छिहत्तर प्रतिशत मिले हैं...।
ओ.के.। प्रीति कुछ देर चुप उसके साथ चलती रही। सीढ़ियाँ चढ़ती हुई वह बोली, यार वह प्रोफेसर का बेटा जो है...लेकिन तुमने जो पाया वह अधिक महत्त्वपूर्ण है।
वह चुप रहा।
अब ना नुकर नहीं। तुम तुरंत तैयार हो लो। मैं यहीं कॉरीडार में खड़ी हूँ...। उसने तुरंत संशोधित किया, नहीं, मैं नीचे कार में हूँ...तुम दस मिनट में नीचे आ जाओ। सीधे कनॉट प्लेस चलेंगे। और वह तेजी से सीढ़ियाँ उतरने लगी।