गलियारे / भाग 18 / रूपसिंह चंदेल
हेडक्वार्टर में सदाशिवम के साथ उसकी मीटिंग मात्र पन्द्रह मिनट की रही। उसने पत्र दिया, सदाशिवम ने उसे पढ़ा, सम्बध्द सहायक महानिदेशक को बुलाया और तुरंत कार्यवाई का निर्देश दिया। इस दौरान सुधंांशु चुप बैठा रहा। बीच-बीच में सदाशिवम किसी फाइल पर कुछ पढ़ता रहा था। वह उप-महानिदेशक था...सुधांशु से दो पद ऊपर और सामने बैठे नए रंगरूट को वह यह अहसास करवा रहा था।
उस कार्य से सम्बध्द सहायक महानिदेशक, जो एक रैंकर था...अर्थात क्लर्क से विभागीय परीक्षा उत्तीर्ण कर बरास्ते सेक्शन अफसर वह वहाँ तक पहुँचा था और अब उसके रिटायरमेण्ट के दो वर्ष शेष थे, जब जाने लगा, सदाशिवम बोला, आप इस केस को लिंक कर फाइल सहित सेक्शन अफसर को मेरे पास भेज दें...आज ही इसका निबटारा करना है।
यस सर।
सहायक महानिदेशक के जाने के बाद सदाशिवम सुधांशु से मुख़ातिब हुआ, मिस्टर दास...आज शाम फ़ोन पर दलभंजन सिंह को सैंक्शन मिल जाएगी...संभव हुआ तो आर्डर भी फैक्स करवा दूंगा। आप चाहें तो उन्हें फ़ोन पर यह सूचना दे सकते हैं।
यस सर।
ओ.के.। और सदाशिवम ने फाइल पर सिर गड़ाए हुए ही फ़ोन का रिसीवर उठा बजर दबाकर पी.ए. को 'कम इन' कहा।
सुधांशु उठ खड़ा हुआ। सदाशिवम को धन्यवाद देकर वह कमरे से बाहर निकल आया।
सदाशिवम के कमरे के बाहर दो चपरासी बैठे हुए थे। दरअसल वह एक गैलरीनुमा जगह थी, जिसमें लाल कार्पेट बिछी हुई थी। गैलरी के दोनों ओर अफसरों के कमरे थे...तीन-तीन कमरे। छ: अफसरों को देखने के लिए दो चपरासी तैनात थे। सुधांशु ने एक से डी.पी. मीणा का कमरा पूछा।
सर...उधर...। चपरासी उसके साथ गैलरी के बाहर तक गया। वहाँ आमने-सामने दो नेम प्लेट पदों सहित लटक रही थीं...बायीं ओर महानिदेशक और दाहिनी ओर अपर महानिदेशक प्रशासन के कमरे थे। कमरों के बाहर चौकोर हॉलनुमा जगह थी, जहाँ फ़र्श पर लाल कार्पेट बिछी हुई थी।
सुधांशु उन कमरों से परिचित था। प्रशिक्षण और पोस्टिंग में जाने से पूर्व उन दोनों कमरों में सभी को हाजिरी देने जाना पड़ता था।
चौकोर हॉलनुमा जगह से बाहर चपरासी ने बायीं ओर इशारा कर कहा, सर सीढ़ियों के सामने बायीं ओर मुड़ते ही डी.पी. सर का कमरा है। उसने ध्यान दिया कि चपरासी हड़बड़ाहट में था और लौटने की जल्दी थी उसे।
धन्यवाद। कहते ही उसने सोचा, 'कब किसकी घण्टी बज जाए और लपककर चपरासी न पहुँचे तो उसकी शामत आ जाती है। दो अफसरों पर एक चपरासी... अपने चपरासी के अलावा यदि दूसरा पहुँचे तब अफसर त्योरी चढ़ाकर पूछेगा'वह'किदर गया?'
चपरासी अपनी कुर्सी की ओर लौट गया और वह डी.पी. मीणा के कमरे की ओर बढ़ गया।
डी.पी. मीणा के यहाँ भी सुधांशु अधिक देर नहीं रुका। कारण था मीणा की व्यस्तता। लगातार मीणा का इंटरकॉम बज रहा था। उसके बैठे होने पर उसे दो बार अपर महानिदेशक प्रशासन के पास जाना पड़ा था। यही नहीं दो लेखाधिकारी अपनी फाइलें लेकर चर्चा करने के लिए दो बार आ चुके थे। मीणा जब भी उससे कोई बात प्रारंभ करता, व्यवधान आ जाता औेर बात अधूरी छूट जाती। एक बार मीणा ने इस भाव से उसकी ओर देखा मानो वह कहना चाहता था कि 'देखा कितनी व्यस्तता है...बात तो करना चाहता हूँ, लेकिन...।'
सर इजाज़त दें तो दो फ़ोन कर लूं।
श्योर...श्योर ...। और मीणा ने एक लेखाधिकारी को फाइल बढ़ाने के लिए इशारा किया। जब तक वह उस फाइल पर चर्चा करता रहा, सुधांशु ने प्रीति मजूमदार को फ़ोन किया। फ़ोन उसकी माँ कमलिका मजूमदार ने उठाया। यह जानकर कि वह दिल्ली में है, किलकते हुए उन्होंने कहा, सीधे घर क्यों नहीं आए... किदर हैं?
हेडक्वार्टर ऑफिस में...।
उसके इतना कहते ही उसे कमलिका मजूमदार के स्थान पर प्रीति की आवाज़ सुनाई दी।
तुम सुबह से दिल्ली में हो और फ़ोन बारह बजे कर रहे हो?
मैं आफिस के काम से...।
कोई बहाना नहीं...बहकाना किसी और को सुधांशु...अब वक़्त जाया किए बिना सीधे घर आ जाओ... लंच यहीं करना।
प्रीति मुझे अभी रवि के पास जाना है। शाम चार बजे तक घर पहुँच जाउंगा।
यार, यह भी कोई आना हुआ!
मैं हेडक्वार्ट से फ़ोन कर रहा हूँ...लंबी बात नहीं हो पाएगी...ओ.के... शाम चार बजे... ।
प्रीति कुछ कह रही थी, लेकिन सुधांशु ने फ़ोन काट दिया। उसने रवि को फ़ोन मिलाया। उसकी आवाज़ सुनते ही रवि किलक उठा, कब आए... कहाँ हो...कब मिलोगे? आदि प्रश्नों की झड़ी लगा दी उसने...फिर 'एक मिनट सुधांशु' कहा और अंग्रेज़ी में किसी को कुछ बोला। सुधांशु को लगा मानो वह किसी पत्र का उत्तर अपने पी.ए. को डिक्टेट करा रहा था।
एक सेंटेंस बोलकर रवि पुन: फ़ोन पर आया, इधर ही आ जाओ। लंच का आर्डर कर देता हूँ...। क्षणभर के लिए रुक वह आगे बोला, तीन बजे मंत्री जी के साथ मीटिंग है...एक बजे तक आ जाओ।
मैं पहुँचता हूँ। उसे लगा रवि भी बहुत व्यस्त है, लेकिन जब कह दिया है तब जाना ही है। मिले हुए लंबा अंतराल बीत गया है...।
उसने फ़ोन रिसीवर रखा और मीणा की ओर देखा। मीणा बाबुओं के स्थानांतरण पर लेखाधिकारी से चर्चा में व्यस्त था। क्षणभर सुधांशु खड़ा रहा फिर बोला, सर, मुझे इजाज़त दीजिए... ।
किसी गर्लफ्रेंण्ड से मिलने जाना है? मीणा बोला और ठठाकर हंस पड़ा। सुधांशु संकुचित हो उठा। इतने अल्पकालिक परिचय में उसने मीणा से ऐसी टिप्पणी की आशा न की थी। उसने अनुभव किया कि मीणा के सामने बैठे दोंनो लेखाधिकारी मानो मन ही मन मुस्करा रहे थे।
सुधांशु चुप रहा।
ओ.के.। सुधांशु की ओर देखते हुए मीणा बोला, फिर गेस्ट हाउस में मुलाकात होगी। क्षणभर बाद उसने पूछा, जाना कब है?
कल सुबह की फ्लाइट है।
रात मिलते हैं...ओ.के. सुधांशु...गुड लक...।
'तो क्या इसने प्रीति के साथ मेरी बात सुन ली थी?...लेकिन मैंने यह जाहिर ही नहीं होने दिया कि मैं किससे बातें कर रहा था। बातचीत में एक बार प्रीति की माँ को'मां'अवश्य कहा था, लेकिन उससे इसने ऐसी टिप्पण्ाी कैसे कर दी।' मीणा के कमरे से बाहर निकल गेट की ओर जााने वाले गलियारे में चलते हुए उसने सोचा, 'कुछ लोंगो का स्वभाव ही ऐसा होता है। बड़े पद पर पहुँच कर भी वे अपनी पुरानी ...विद्यार्थी जीवन की आदतों पर अंकुश नहीं लगा पाते। इसीलिए मुझे रवि कुमार राय पसंद हैं। उनमें गंभीरता है...खोखली गंभीरता नहीं...उनकी बातचीत में एक अध्ययनशील व्यक्ति बोल रहा होता है।'
हेडक्वार्टर से निकल पांच मिनट चलकर मेन रोड पर बस स्टैण्ड पर उसे एक खाली ऑटो खड़ा दिखा। दूर से ही ड्राइवर को रुकने का इशारा कर उसने क़दम तेज किए और ड्राइवर को नार्थ ब्लॉक कहते हुए वह ऑटो में बैठ गया।
जब वह रवि के चेम्बर में पहुँचा, सवा एक बज रहा था। रवि चार अधिकारियों से घिरा हुआ था। उससे हाथ मिला रवि ने सामने पड़े सोफे पर उसे बैठने का इशारा किया, दस मिनट सुधांशु, और वह पुन: अफसरों से चर्चा में व्यस्त हो गया था।
चर्चा जब समाप्त हुई दो बजने को थे। अफसरों के जाते ही रवि ने घण्टी बजायी, चपरासी के आते ही बोला, लंच...क्या हुआ?
तैयार है सर।
तुरंत लगाओ।
यार, बहुत मारा-मारी है। सुधांशु के पास बैठते हुए रवि बोला।
मंत्रालय ही ऐसा है।
हाँ...सुबह आठ बजे आ जाता हूँ...उसके बाद कब निकलूंगा...पता नहीं होता। कभी-कभी रात ग्यारह भी बज जाते हैं। घर में माँ इंतज़ार करती हुई थक जाती हैं।
मां जी को क्यों कष्ट दे रहे हैं...शादी करें...अब तो...।
हाँ...सोच मैं भी रहा हूँ...लेकिन रुका हुआ हूँ कि पहले एक मित्र की हो जाए, उसके बाद करूं...उसके अनुभवों से अनुभावित होकर ...।
मित्र...मित्र के अनुभव से...? मैं समझा नहीं...।
लंच शुरू करो...। रवि ने सुधांशु को भेदती नज़र से देखा, आज नृपेन मजूमदार जी रिटायर हो रहे हैं।
आपको कैसे मालूम? सुधांशु चौंका।
मालूम है...दो दिन पहले प्रीति का फ़ोन आया था। उसने बताया था कि तुम आ रहे हो...उसने मुझे भी शाम घर आने के लिए कहा, लेकिन, देख रहे हो न मेरी हालत। तीन बजे मंत्री जी से मिलना है, फिर सचिव ...मैं शायद ही पहुँच पाऊँगा...।
देर से आ जाइएगा...।
निकल पाया तब अवश्य आउंगा...और यदि न भी आ पाऊँ तो ख़ुशखबरी बता अवश्य देना।
कैसी ख़ुशखबरी...?
वह भी बताना होगा।
सच...मैं समझा नहीं।
इंगेजमेण्ट की...मेरा अनुमान है कि आज तुम्हारा और प्रीति का...। रवि ने बात बीच में ही छोड़ दी।
हूँ...उं...। सुधांशु के खाने की गति धीमी हो गयी।
उदास हो गए?
नहीं, लेकिन मैंने यह सब सोचा नहीं और ना ही अपने मां-पिता से कभी इस बारे में चर्चा की।
देखो, सुधांशु...मेरा विश्वास है कि प्रीति एक अच्छी पत्नी सिध्द होगी, क्योंकि वह एक संस्कारवान परिवार से है। वह एक सुयोग्य और सुसंस्कृत मां-पिता की संतान है...और तुम जैसे सरल व्यक्ति के लिए सही जीवन-संगिनी बनने योग्य है। भोजन समाप्त हो जाने पर घण्टी बजाकर उसने चपरासी को प्लेटें हटाने के लिए कहा।
लेकिन यह सब आप कैसे कह रहे हैं?
उस दिन प्रीति के बात करने के बाद उसकी माँ ने मुझसे लंबी बात की थी। तुम्हारे बारे में ही बातें करती रही थीं और यह सलाह भी ली थी कि यदि नृपेन दा के अवकाश प्रहण वाले दिन सभी अतिथियों के सामने वह तुम दोनों की सगाई की धोषणा करें तब तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा।
लेकिन मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
जब तुम एक दूसरे को चाहते हो...तब जानकारी है या नहीं...महत्वपूर्ण नहीं है।
आपने फ़ोन करके मुझे बताया क्यों नहीं?
प्रीति से नंबर लेकर तुम्हें फ़ोन किया था, लेकिन तुम सीट पर नहीं थे...फिर मैं भूल गया...। रवि ने घड़ी देखी...तीन बजने में दस मिनट थे। वह हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ, सॉरी सुधांशु...इस मुलाकात में मज़ा नहीं आया...। क्षणभर के लिए वह रुका, बेस्ट ऑफ लक...हम फिर मिलेंगे...।
रवि मेज की ओर लपका और एक फोल्डर उठाया और पी.ए. को फ़ोन पर आदेश दिया, मेरे आने तक आप रुकेंगे...। फिर सुधांशु की ओर मुड़कर बोला, आओ... ।
चपरासी को रवि पहले ही घण्टी बजाकर अपने जाने की सूचना दे चुका था। चपरासी उसके लिए दरवाज़ा खोलकर खड़ा हुआ था।
लंबे डग भरता मंत्री के चेम्बर की ओर बढ़ते हुए रवि ने सुधांशु का हाथ दबाया और मुस्कराकर पुन: शुभकामना दी और बायीं ओर गैलरी में मुड़ गया। क्षणभर सुधांशु उसे जाता देखता रहा...'एकदम तना हुआ आत्मविश्वास से लबालबा...यही अंतर है प्रापर आई.ए.एस. औेर एलाइड में चयनित अफसरों में।' और वह बाहर जाने के लिए रिसेप्शन की ओर बढ़ गया।
रविकुमार राय, जिसे सुधांशु रवि राय कहने लगा था, के यहाँ से निकलकर वह सीधे प्रीति के यहाँ पहुँचा। प्रीति व्यग्र-सी बाहर टहल रही थी। उसे लगा जैसे वह उसी का इंतज़ार कर रही थी। जैसे ही ऑटो उसके बंगले के सामने रुका प्रीति की नजरें ऑटो पर जा टिकीं। इस ओर सुधांशु का ध्यान गया, लेकिन ऑटोवाले की ओर मुड़कर पर्स से पेैसे देते हुए उसने यूं प्रदर्शित किया मानो उसने उस ओर ध्यान नहीं दिया था।
प्रीति गेट की ओर लपकी और उसे खोलते हुए 'हाय सुधांशु' बोली। सुधांशु ने पीछे मुड़कर देखा और 'हाय' कह आगे बढ़ आया।
मैं तुमसे बात नहीं करूंगी। मुंह बनाती हुई प्रीति बोली।
सॉरी प्रीति...रवि के पास चला गया था...यू नो...।
नो...तुम जान-बूझकर लेट आए हो। ममी कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हैं।
रियली? सुधांशु मुस्कराया।
तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है।
नहीं...लेकिन क्या आण्टी ही मेरा इंतज़ार कर रही थीं?
और कौन करेगा? होठ दांतो तले दबा प्रीति मंद-मंद मुस्कराती हुई बोली।
चलो, मिल लेता हूँ आण्टी से...माफी मांग लेता हूँ।
वहाँ बहुत लोग हैं...दिल्ली में पापा और ममी की ओर के सभी रिश्तेदार एकत्र हैं। ममी उनसे घिरी हुई हैं।
कोई बारात आने या जाने वाली है? सुधांशु ने चुटकी ली।
पापा के स्वागत के लिए सभी एकत्र हुए हैं। नौकरी लगने में जिस प्रकार किसी युवक की ज़िन्दगी में नयी शुरूआत होती है रिटायरमेण्ट के बाद भी जीवन की एक नयी शुरूआत होती है।
वॉव...तुम तो भई फिलासफर हो रही हो।
बहुत हुआ मजाक...चलो मेरे कमरे में...।
यहाँ क्यों नहीं। भीड़ से यहाँ अधिक सुकून है।
यहीं बैठते है। उसने शोभित को आवाज़ दी, जो ट्रे में पानी के तीन गिलास लिए कमरे से निकलता उसे दिखा था।
आया दीदी।
इधर भी पानी...।
जी दीदी।
थोड़ी ही देर में शोभित पानी ले आया।
दो कुर्सियाँ उधर लॉन में रख जाओ... ।
जी दीदी।
दरअसल धर के सभी कमरों में मेहमान छाए हुए हैं...दोपहर से सभी का आना शुरू हो गया था...शोभित और नौकरानी के पैर घिस गये होंगे...तभी से दोनों दौड़ रहे हैं। क्षणभर के लिए वह रुकी, तुम्हे असुविधा अनुभव हो रही होगी। लेकिन मेरे कमरे में मेरे मामा के ग्रैण्ड चिल्ड्रेन उधम मचा रहे हैं...इसलिए... ।
यहाँ बैठने का मेरा निर्णय सही था?
शोभित कुर्सियाँ ले आया।
कोल्ड ड्रिंक, चाय या कॉफी!
कॉफी...लेकिन रहने दो...शोभित वैसे ही परेशान है...। सुधांशु शोभित की ओर मुड़ा, रहने दो बेटा।
अरे वाह...बुजुर्गवार की बात मत मानना शोभित।
शोभित मुस्कराया, जी दीदी।
और थोड़ी ही देर में शोभित दो कॉफी ले आया।
उस दिन नृपेन मजूमदार के उस सरकारी बंगले को अच्छी प्रकार सजाया गया था। लॉन में चारों ओर लाइटिंग की व्यवस्था थी... फेंस में भी रंग-बिरंगे छोटे बल्ब लटकाए गए थे। वास्तव में ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वहाँ कोई महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम होने वाला था।
शाम पांच बजे के लगभग प्रीति सुधांशु को लेकर अपने कमरे में गई, क्योंकि लॉन में कैटरर के लोग आ गए थे। एक दूसरी पार्टी भी आ गई थी, जो एक ओर मंच तैयार करने लगी थी। उनके साथ कुछ वाद्ययंत्र भी थे।
प्रीति के कमरे में जाते हुए सुधांशु कमलिका मजूमदार से टकरा गया। अरे तुम आ गए? मैं प्रीति से तुम्हारे बारे में ही पूछने जा रही थी। कमलिका मजूमदार बोलीं।
सुधांशु ने आगे बढ़कर उनके चरणस्पर्श किए।
आशीर्वाद में कमलिका का हाथ स्वत: सुधांशु के सिर पर जा पहुँचा।
सच यह था कि कमलिका मजूमदार ने पहले ही एक कमरे से दूसरे कमरे में जाते हुए प्रीति के साथ लॉन में बैठे सुधांशु को देख लिया था। वह प्रीति से यह पूछने जा रही थीं कि वह भलीभांति सुधांशु के बारे में आश्वस्त हो ले। उसे स्पष्टतया बता दे कि उन लोगाें की क्या योजना है। लेकिन सुधांशु के चरणस्पर्श को उन्होंने सकारात्मक भाव से ग्रहण किया और जो कुछ सोचकर बेटी की ओर जा रही थीं उसे मन में ही रहने दिया। लेकिन उहापोह की स्थिति फिर भी बनी रही उनकी। अंतत: उन्होंने प्रीति से नहीं बल्कि सुधांशु से बात साफ़ कर लेना उचित समझा। अवसर देख उन्होंने शोभित से सुधांशु को बुला लाने के लिए कहा। उस समय सभी रिश्तेदार गपशप में मशगूल थे और बाहर कैटरर के लोग मेज-कुर्सियाँ लगा रहे थे। रोशनी वाले पहले ही अपनी व्यवस्था कर चुके थे।
आपने बुलाया माँ जी?
बेटा सुधांशु, तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।
जी... ।
हम उधर... जिधर मंच बनाया जा रहा था, हाथ के इशारे से उधर चलने के लिए कहती हुई कमलिका मजूमदार उधर बढ़ीं, उधर एकांत है।
जी माँ जी... ।
बंगले के एक कोने में फेंस के पास जाकर वह रुक गयीं॥ सुधांशु फेंस के पार सड़क पर गुजरते वाहनों को देख रहा था, लेकिन उसके कान कमलिका मजूमदार के उन शब्दों को सुनने के लिए विकल थे जो वह कहने वाली थीं। पांच मिनट तक दोनाें ही चुप रहे।
बेटा, प्रीति ने तुमसे कुछ बताया? कमलिका के शब्द कानों से टकराते ही सुधांशु उनकी ओर मुड़ा और कुछ ऐसे भाव से देखने लगा जिसका अर्थ था कि उसे कुछ भी नहीं मालूम।
तो उसने कुछ भी नहीं बताया?
किस विषय में माँ जी! उसका चेहरा गंभीर था।
कुछ देर चुप रहीं कमलिका मजूमदार। मानो उपयुक्त शब्द तलाश रही थीं। लगभग पांच-सात मिनट बीत गए।
तुम जानते हो वह तुम्हे कितना चाहती है। कमलिका के चेहरे पर संकोच के भाव स्पष्ट थे।
सुधांशु चुप रहा।
उसने तुमसे इस बारे में बात भी की थी और हमें यह कहा था कि तुम भी उसे चाहते हो और...और...। कमलिका मजूमदार की आंखें छलछला आयीं। आगे बोल नहीं फूटे। देर तक वह अपने को प्रकृतिस्थ करने का प्रयत्न करती रहीं।
जी माँ जी... । लेकिन...। उसने देखा उसके इतना कहने मात्र से ही कमलिका मजूमदार का चेहरा खिल उठा था।
हाँ बेटा...कुछ कहना चाहते थे?
जी... आपको मेरी पृष्ठभूमि के बारे में भी प्रीति ने बताया होगा। मेरे मां-पिता अपढ़...किसान हैं। आप लोगाें ने इस बारे में सोचा है?
सोचा है बेटा...मजूमदार साहब के पिता भी अपढ़ थे और मेरे पिता सचिव थे...। तुम मजूमदार साहब से पूछना...कभी मेरी ओर से उनके मां-बाबा के प्रति सम्मान में कोई कमी आयी हो...और वे भी मुझे बहू नहीं बेटी मानते थे।
सुधांशु चुप रहा।
तुमने अपने ममी-पापा से बात की?
बात तो नहीं की...लेकिन मेरा विश्वास है कि उन्हें आपत्ति नहीं होगी। मेरी ख़ुशी उनके लिए सर्वोपरि है।
सुनकर मन हल्का हो गया बेटा...मेरे यही इकलौती बेटी है...यही बेटा भी...उसका सुख-दुख ही हमारा सुख-दुख होगा।
सुधांशु उनके चेहरे की ओर देखता रहा।
कमलिका मजूमदार इतना भाव विह्वल थीं कि आगे बढ़कर उन्होंने सुधांशु का माथा चूमा और यह भी नहीं देखा कि पास में ही मंच तैयार कर रहे लोग उन्हें ऐसा करते देख रहे थे।
सुधांशु संकोच से विजड़ित हो गया था।
रात आठ बजे के लगभग आठ गाड़ियों का काफ़िला नृपेन मजूमदार के बंगले के सामने रुका। आगे की गाड़ी से मजूमदार साहब और उनके साथ दो अधिकारी उतरे। पीछे की गाड़ियों में स्टॉफ के अन्य लोग थे...एक डिप्टी सेक्रेटरी, दो अण्डर सेक्रेटरी, सेक्शन अफसर और चार बाबू। अंदर की सजावट देख सभी की आंखें चकाचौंध थी।
प्रीति, कमलिका सहित सभी रिश्तेदारों ने नृपेन दा का फूल-मालाओं से स्वागत किया और साथ आए मेहमानों को साग्रह बैठने का निवेदन। नृपेन मजूमदार साथी अधिकारियों को अपने परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों का परिचय दे रहे थे। सुधांशु सभी के पीछे दुबका खड़ा था। उस पर नज़र पड़ते ही नृपेन मजूमदार चीखे, सुधांशु, उधर किदर...आगे आओ... कब आए... ?
उनके 'कब आए' का उत्तर न देकर सुधांशु आगे बढ़ गया और हाथ जोड़कर सभी को नमस्कार किया। मजूमदार साहब ने उसकी ओर मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। सकुचाते हुए सुधांशु ने अपना हाथ बढ़ा दिया, लेकिन नृपेन मजूमदार ने उसका हाथ थाम उसे और आगे खींच गले लगा लिया। सुधांशु इस बात के लिए तैयार नहीं था। वह अचकचा गया।
वह कुछ सोच ही रहा था कि नृपेन मजूमदार उसका हाथ पकड़े हुए ही साथ आए लोगों की ओर उन्मुख हुए और बोले, बहुत ही प्रतिभाषाली युवक ...सुधांशु कुमार दास। पटना के प्ररवि विभाग के निेदेशक कार्यालय में सहायक निदेशक...वेल रेड ब्वॉय।
अधिकारियों की आंखें आपस में मिलीं, संकेतों में कुछ कहा-सुना गया, जिसे न नृपेन मजूमदार ने देखा और न ही सुधांशु ने। तभी उन्हें नृपेन मजूमदार की आवाज़ सुनाई दी, मेरी बेटी प्रीति से एक वर्ष सीनियर था कॉलेज में सुधांशु ...दोनों अच्छे मित्र हैं...।
सुधांशु नृपेन मजूमदार से अपना हाथ छुड़ाना चाहता था, लेकिन उनकी पकड़ सख्त तो नहीं थी, लेकिन ढीली भी न थी कि वह उनके हाथ से अपना हाथ सरका लेता। 'प्रीति का वह सीनियर और अच्छा मित्र है।' नृपेन मजूमदार के यह कहने के साथ ही उसने अधिकारियों की ओर देखा और उनकी नजरों में एक अलग तरह की गुफ़्तगू जैसा होते देख वह समझ नहीं पाया कि वह नृपेन मजूमदार की बात पर थी या किसी अन्य बात पर।
रात बारह बजे तक मंच पर रवीन्द्र संगीत और पार्टी चलती रही। जब प्रीति ने पिता को बताया कि सुधांशु बहुत अच्छा सितार बजा लेता है, उन्होंने उसका सतार वादन सुनने की इच्छा व्यक्त की। तब तक उनके सहयोगी और स्टॉफ के लोग उपस्थित थे।
सुधांशु ने वर्षों से सितार का अभ्यास नहीं किया था... सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में व्यस्त रहने के समय से तो बिल्कुल ही नहीं...लेकिन नृपेन मजूमदार को वह निराश नहीं करना चाहता था। मंच पर बैठे संगीतकार से सितार ले उसने सधे हाथों सितार बजाना प्रारंभ किया और यह क्या...उसने अनुभव किया कि वह कुछ भी नहीं भूला था। केवल पन्द्रह मिनट ही बजाया उसने लेकिन सभी मंत्रमुग्ध थे। उसके मंच से उतरते ही प्रीति दोड़कर उसके निकट आयी, यार क्या सितार बजाया तुमने...तुम्हारे हाथ चूमने का मन कर रहा है...लेकिन...।
लेकिन ...?
काश! तुम अकेले होते!
सुधांशु चुप अपनी सीट की ओर बढ़ा। प्रीति उसके साथ रही।
साढ़े बारह बजे तक नृपेन मजूमदार के भावी जीवन की सुख कामना के साथ सभी मेहमान जा चुके थे। सहयोगी भी और रिश्तेदार भी। कैटरिंग सर्विस वाले अपना सामान समेटने लगे और मंच सजाने वाले अपना। लाइटिंग वालों को अपले दिन सुबह सब ले जाना था। शोभित बाहर बैठा सामान समेटने वालों पर दृष्टि रख रहा था।
नृपेन मजूमदार इतना थक चुके थे कि बाहर खड़े रहने में अपने को असमर्थ पा रहे थे। उन्होंने एक बार चारों ओर देखा, लेकिन न प्रीति उन्हें दिखी और न ही सुधांशु। 'शायद वह प्रीति के साथ होगा।' उन्होंने सोचा और अंदर जाने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ने लगे, तभी उन्हें ड्राइवर की आवाज़ सुनाई दी, सर, सर...।
नृपेन मजूमदार पलटे, रुके और प्रश्नात्मक दृष्टि से ड्राइवर को देखने लगे।
सर कल आना है?
कल...। क्षणभर तक वह सोचते रहे कि क्या उन्हें कल ऑफिस जाना है! कुछ देर पहले ही सबने उनके भावी सुखी जीवन की कामना की थी...अब तो वह अवकाश प्राप्त बाबू मात्र हैं...।'मन नहीं मन मुस्कराये,'इंसान पर दफ़्तर किस क़दर प्रविष्ट हो जाता है कि वह उसे अवकाश ग्रहण के बाद भी भूल नहीं पाता।'
ड्राइवर उनका आदेश सुनने के लिए उनके चेहरे की ओर देख रहा था।
आनंद, अब मैं आपका अफसर नहीं रहा...आज शाम से ही...। एक दीर्घ निश्वास ली उन्होंने।
नहीं सर...आप मेरे लिए सदैव मेरे अफसर रहेंगे।
मुस्कराये नृपेन मजूमदार...फीकी मुस्कान। उन्हें खड़ा देख कमलिका बाहर निकल आयीं, 'कुछ ख़ास बात?'
नहीं। वह ड्राइवर के निकट गये, आनंद, अगर कभी तुम्हारी सेवा की आवश्यकता हागी तब अवश्य याद करूंगा। कल नहीं...सरकार की बहुत सेवा कर ली...अब आराम करूंगा।
थैंक्यू सर। ड्राइवर जाने के लिए पलटा। उन्होंने उसे रोका, आनंद, एक मिनट।
आनंद उनके निकट चला गया, सर।
आनंद के निकट आने तक उन्होंने जेब से पर्स निकाल लिया था। पांच सौ का नोट उसे देने के लिए वह एक क़दम आगे बढ़े, सर...सर...। कहता हुआ आनंद अत्यधिक संकुचित हो उठा।
ले लो आनंद...आपने साहब की बहुत सेवा की है। कमलिका मजूमदार, जो पति के निकट आ खड़ी हुई थीं, बोलीं।
आनंद ने नोट थाम लिया। मजूमदार ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, तुमने बहुत सहा है आनंद, लेकिन मैं भी मजबूर था। नौकरी ही ऐसी थी। तुमने भी नौकरी के लिए परिवार की परवाह नहीं की...इस देश में ड्राइवरों की दशा अच्छी नहीं है। भावूक हो उठे नृपेन मजूमदार।
सर, आप सबकी मेहरबानी बनी रहे...। आनंद की आंखे गीलीं थीं।
मैं जब तक यहाँ हूँ...और उसके बाद कलकत्ता जाने पर भी...जब भी मेरे लायक कोई सेवा होगी...बताने में संकोच मत करना।
जी सर। आनंद जानता था कि अवकाश प्राप्त करने या ट्रांसफर पर जाने वाला हर अफसर यही कहता है। लेकिन या तो वे सहायता करने में असमर्थ हो चुके होते हैं या इन भावुक क्षणों से उबर चुके होते हैं।
अच्छा, आनंद...एक बज चुके... तुम्हे सुबह ऑफिस जाना है...।
सर...। आनंद ने हाथ जोड़ दिए।
नृपेन मजूमदार झटके से मुड़े और बंगले की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। कमलिका उनके पीछे हो लीं।
नृपेन मजूमदार ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठ गये और कमलिका से बोले, प्रीति और सुधांशु को बुलाना कमल।
लेकिन कमलिका मजूमदार को प्रीति को बुलाने नहीं जाना पड़ा। पिता के ड्राइंगरूम में आने की आहट प्रीति को मिल गयी थी। बाबा बुला रहे हैं। प्रीति ने सुधांशु से कहा और वह ड्राइंगरूम में जा पहुँची। सुधांशु भी उसके पीछे गया।
आओ, सुधांशु। माफ़ करना...तुमसे दो बातें भी नहीं कर सका।
आप बहुत व्यस्त थे अंकल।
हाँ। दीर्घ निश्वास ली नृपेन मजूमदार ने, लेकिन अब कल से बिल्कुल खाली हो जाउंगा।
खाली क्यों बाबा...आपने ज़िन्दगी भर पुस्तकें खरीदीं, खसा पुस्तकालय है आपका...कितनी पुस्तकें पढ़ी आपने? प्रीति बोली, पचास...सौ या दो सौ...। दफ़्तर ने आपको खरीदने की फुर्सत तो दी, लेकिन वह घर तक आपका पीछा करता रहा और उन पुस्तकों को आपके इसी दिन का इंतज़ार था।
मुस्कराये मुजूमदार साहब। उन्हें लगा कि प्रीति ने उन्हें रास्ता दिखा दिया है, यू आर राइट माई ब्वॉय।'
मजूमदार जब भी प्रीति को सम्बोधित करते 'माई ब्वॉय' कहते।
कम हियर यंग मैन। उन्होंने सुधांशु को अपने पास सोफे पर बैठने के लिए बुलाया, जो तब तक प्रीति के साथ उनके निकट ही खड़ा था।
सुधांशु के बैठने के बाद देर तक सभी चुप रहे। सुधांशु नहीं समझ पा रहा था कि अकस्मात सभी चुप क्यों हो गये।
देर तक चुप रहने के बाद बहुत ही सधे स्वर में धीरे, मानो वह कोई दूसरे ही नृपेन मजूमदार थे, उन्होंने कहना प्रारंभ किया, फिर आप दोनों ने निर्णय कर ही लिया है?
प्रीति ने चमकती आंखें सुधांशु पर गड़ा दीं, लेकिन वह आंखें सिकोड़े सामने सोफे पर बैठी उसके ही चेहरे पर नजरें गड़ाए कमलिका मजूमदार के पैरों पर नजरें टिकाए कुछ सोचता रहा।
ड्राइंगरूम में सन्नाटा छाया रहा। बाहर सड़क पर कुत्तों के भौंकने की आवाजे आ रही थीं और कोई वाहन हू...हू की आवाज़ के साथ बंगले के सामने से गुजर रहा था।
देर तक मजूमदार साहब प्रीति और सुधांशु के चेहरों की ओर बारी-बारी से देखते रहे। प्रीति सुधांशु के चेहरे पर नजरें गड़ाए थी और सुधांशु यथावत कमलिका मजूमदार के पेरों पर।
बात यह है बरखुरदार। नृपेन मजूमदार काफ़ी देर की चुप्पी के बाद बोले, हम इस बंगले को अधिक दिनों तक रोकना नहीं चाहते, क्योंकि, कलकत्ता में मेरा अपना मकान खाली है और उसमें कुछ काम भी करवाना है। इसलिए मैं किसी अंतिम निर्णय पर पहुँचना चाहता हूँ। मेरा मतलब...क्यों प्रीति...?
जी बाबा...।
मैं समझती हूँ कि सुधांशु तैयार है। कमलिका बोलीं।
क्यों सुधांशु ...मैं तुमसे ही सुनना चाहता हूँ। नृपेन मजूमदार बोले।
उस क्षण प्रीति के दिल की धड़कन तेज हो गई थी।
जी अंकल...आण्टी ने ठीक कहा...लेकिन आप लोग और खासकर प्रीति एक बार और सोच लें...मैं बेहद साधारण किसान परिवार से हूँ। मेरे मां-पिता अपढ़ हैं। क्या प्रीति को...आपको यह स्वीकार होगा? मन कड़ाकर साहस जुटा सुधांशु बोला।
व्वाई नॉट? प्रीति तपाक से बोली, कितनी ही बार इस विषय पर बात हो चुकी है...मुझे उनको लेकर कोई परेशानी नहीं है। जैसे वे तुम्हारे ममी-पापा...वैसे ही मेरे।
शाबाश बेटी... ऐसा ही होना चाहिए। मेरे मां-बाबा भी अपढ़ थे और तेरी माँ एक सेक्रेटरी की बेटी... महानगर में पली-बढ़ी, लेकिन निभाया न उनके साथ...और ऐसा निभाया कि लोग आज भी याद करते हैं। इसने मेरी माँ और बाबा को पढ़ना-लिखना सिखाया। वे दोनों रवीन्द्र और बंकिम को लगभग पूरा पढ़ गये थे...बेटा तू है न अपनी माँ की सुयोग्य बेटी... ।
अब तो कोई परेशानी नहीं सुधांशु! प्रीति बोली।
सुधांशु चुप रहा। वह अभी भी घबड़ाहट अनुभव कर रहा था और घबड़ाहट थी पीढ़ियों को लेकर। जिस पीढ़ी के नृपेन मजूमदार और कमलिका थीं, उसकी पीढ़ी सोच-समझ और आचरण में उनसे बिल्कुल भिन्न तैयार हुई थी।
तुम चुप क्यों हो? प्रीति ने पूछा। नृपेन मजूमदार बेटी की ओर प्रशंसात्मक भाव से देख रहे थे।
ओ.के.। लंबी सांस खींच सुधांशु ने हामी भरी।
और उसके बाद नृपेन मजूमदार, कमलिका और प्रीति कैसे सुधांशु के ममी-पापा से मिलेंगे, कैसे दोनों की सगाई होगी और कब शादी...इस पर सुबह चार बजे तक चर्चा करते रहे थे। सुधांशु केवल उनकी हाँ में हाँ मिलाता रहा था।
योजना यह बनी कि दो दिन का अवकाश लेकर उसी माह सुधांशु अपने ममी-पापा को बनारस ले आएगा जहाँ मजूमदार परिवार सुबह की फ्लाइट से पहुँच जायेंगे और किस होटल में ठहरेंगे यह पहले से ही निश्चित करके वह सुधांशु को बता देंगे। वहीं सभी मिलेंगे और सुधांशु के ममी-पापा से भावी कार्यक्रम तय कर लेंगे।