गलियारे / भाग 19 / रूपसिंह चंदेल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरठ मेडिकल कॉलेज के आई.सी.यू. में सुधांशु अर्ध्दचेतन अवस्था में थे। बीच-बीच में अर्ध्दनिमीलित आंखों से आती-जाती नर्सों और डाक्टरों को देख लेते, लेकिन उन्हें उनके चेहरे धुंधले दिखाई देते। वह यह तो समझ रहे थे कि वह उस समय अस्पताल में थे और यह भी उन्हें याद आ रहा था कि वह सब कैसे हुआ था और ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। तीसरी बार था और कहीं अधिक तेज...वह अपने एक अधिकारी के साथ किसी केस पर चर्चा कर रहे थे कि अचानक उठे दर्द से छटपटा उठे थे। कुर्सी से गिरते बचे थे। अधिकारी ने उन्हें कुर्सी से उतार फ़र्श पर लेटाया था और देर तक घण्टी पर उंगली रख पूरे दफ़्तर में ख़तरे का संदेश दे दिया था। पांच मिनट में सुधांशु दास मेडिकल कॉलेज के लिए रवाना हो गये थे। वह अधिकारी लगातार उनके हृदय के पास मसाज करता रहा था।

मेडिकल कॉलेज पहुँचने से पहले ही सुधांशु बेहोश हो चुके थे। कब से वह वहाँ थे, यह उन्हें याद नहीं आ रहा था, लेकिन स्टॉफ के लोग उन्हें कैसे मेडिकल कॉलेज लेकर आये थे यह अवश्य याद था।

मेडिकल कॉलेज के उस आई.सी.यू. से वह पूर्व परिचित थे। एक वर्ष पहले जब दूसरा हार्ट अटैक हुआ था तब वह मेरठ में ही थे और वहीं उनकी ओपेन हार्ट सर्जरी हुई थी। तीन महीने तक बिस्तर पर पड़े रहने के बाद उन्होंने कार्यालय ज्वाइन किया था और जल्दी ही पूर्ववत स्थिति में आ गए थे। वह अपने को जीवटवाला व्यक्ति कहते और इसीलिए उनकी दिनचर्या पूर्ववत प्रारंभ हो गयी थी।

सुधांशु को जब पहला हार्ट अटैक हुआ तब वह जबलपुर में थे और तब भी अकेले थे। पिछले दोनों अटैक में उन्हें प्रीति की बहुत याद आयी थी और स्वस्थ होने पर उन्होंने चाहा था कि वह कुछ दिनों के लिए उसके पास जाकर रहें, लेकिन दोनों ही अवसरों पर होश रहते उन्हाेंंने अपने अघिकारियों को संक्षेप में केवल इतना ही कहा था कि वे प्रीति को सूचना नहीं देंगे।

'लेकिन क्या प्रीति को उनकी अस्वस्थता की जानकारी प्राप्त नहीं हुई होगी।'हम एक ऐसे विभाग के सदस्य हैं जहाँ खबरें सेकेण्डों में हजारों मील की दूरी तय कर लेती हैं...।'दोंनो बार स्वस्थ होने के बाद वह सोचते रहे थे, लेकिन इस बार मेडिकल कॉलेज ले जाने के लिए कार में लेटाये जाते समय उन्होंने अपने सहायक निदेशक (प्रशासन) दिलीप बत्रा से मंद स्वर में कहा था,प्रीति दास को सूचित कर दो।

ल्ेकिन प्रीति दास को सूचित करने के बत्रा के सभी प्रयास विफल रहे थे। वह सीधे उनसे बात करना चाहता था, लेकिन सफल न हो पाने पर उसने उनके पी.ए. चन्द्रभूषण को कहा था।

चटख लाल साड़ी और उस पर सफेद कोट पहने सामने से आती महिला डॉक्टर को धुंधली आंखों से देख सुधांशु बुदबुदाए, तुम आ गई प्रीति?

जिस क्षण सुधांशु ने यह कहा, डॉक्टर बिल्कुल उनके निकट थी। उन्हें विश्वास हो गया कि वह प्रीति ही थी और उनके होठ पुन: हिले ,प्रीति...। महिला डॉक्टर के क़दम ठिठक गए। वह उनके निकट आयी और पूछा, आपने कुछ कहा?

सुधांशु ने आंखें फाड देखना चाहा कि वह प्रीति दास ही थी न लेकिन तभी उन्हें डॉक्टर की आवाज़ सुनाई दी, नर्स, देखो मरीज को कुछ चाहिए... नर्स...। और दूर से लपककर अपनी ओर आती नर्स को सुधांशु ने देखा। डॉक्टर जा चुकी थी।

मिस्टर दास, आर यू ओ.के.? नर्स उन पर झुकी हुई थी।

यह...। वह फुसफुसाए।

डाक्टर से आप कुछ कह रहे थे?

सुधांशु ने नर्स की ओर अर्ध्दनिमीलित दृष्टि से देखा और आंखें मूंद लीं।

नर्स देर तक उनकी नब्ज देखती रही...और उनसे पुन: कुछ कहे बिना वापस अपने केबिन में लौट गयी थी।