गलियारे / भाग 20 / रूपसिंह चंदेल
शोभाराम को मिसेज प्रीति दास के बंगले में ताला बंद मिला। वह लगभग एक घण्टा बंगले के बाहर फुटपाथ पर बैठा रहा। पूरा बंगला अंधकार में डूबा हुआ था सिवाय एक चालीस वॉट के बल्ब के जो बंगले में लॉन की ओर जल रहा था। बंगले के सामने फुटपाथ पर तने खड़े खंभे पर टयूब लाइट जल रही थी और उसीकी रोशनी में बंगले के गेट पर लटकता ताला उसे दिखाई दे रहा था। कुछ समय और बीता, लेकिन बंगले में झींगुरों की आवाज़ के अलावा उसे कुछ नहीं सुनाई दिया। उसने घड़ी देखी, साढ़े आठ बज रहे थे। वह साईं बाबा मंदिर की ओर चल पड़ा, 'कुछ प्रसाद ही मिल जाए... भूख कम हो' सोचता हुआ।
रास्ते में खयाल आया कि मैडम के बंगले में ताले की सूचना उसे किसी को देना चाहिए, वर्ना सोमवार को उससे जवाब-तलब किया जायेगा। बीच में दो दिन की छुट्टी है...मामला गंभीर है और उसे इसे टालना नहीं चाहिए। 'शायद साई बाबा मंदिर के पास किसी दुकान में पी.सी.ओ. हो।' उसने क़दम तेज कर दिए, 'चन्द्रभूषण ने अपने घर का फ़ोन नंबर लिखकर दिया था...।' उसे याद आया।
साई बाबा मंदिर पहुँचते नौ बज गये थे। भक्तों की भीड़ देख वह प्रसाद भूल गया और भूल गया अपनी भूख। याद रहा चन्द्रभूषण को फ़ोन करना और मंदिर के पास उसे प्रसाद और फुल-माला की दुकानों के अतिरिक्त कुछ भी नज़र नहीं आया।
'अब!' क्षणभर वह खड़ा हाथ फैलाए भिखारियों और लकदक कपड़ों में सुगन्ध बिखेरते हाथ में प्रसाद और फूल आदि थामे पंक्तिबध्द खड़े भक्तों को देखता रहा, जिनके साफ-सुन्दर चेहरे उसे मोहक लग रहे थे।
'आधी से अधिक दिल्ली भगवान भक्त हो गयी है। शायद ही कोई मंदिर हो जहाँ लंबी लाइनें न लगती हों...क्या कनॉट प्लेस का हनुमान मंदिर, क्या छतरपुर, कालका जी, झण्डेवालान या यमुना बाज़ार के मंदिर...ये सब ठहरे बड़े देव स्थान...दिल्ली वालों में असुरक्षा और भय इस क़दर घर कर गया है कि गली कूंचों में बने छोटे-छोटे मंदिरों में लोग सुबह पांच बजे से भीड़ लगा लेते हैं। औरतें थाल में पता नहीं क्या सजा उसे कपड़े से ढक सुबह पांच बजे मंदिर जाती दिख जाती हैं।'
उसे याद आया शास्त्रीनगर पेट्रोल पंप के सामने का मंदिर। सन् अस्सी-बयासी तक वहाँ कुछ नहीं था। खाली जगह पड़ी थी। कुत्ते वहाँ निवृत्त होते या छोटी झाड़ियों में दिन भर आराम करते थे। किसी को वह जगह जंच गई। उसने वहाँ एक शिवलिंग रखा और सुबह-शाम उसकी पूजा करने लगा। शिवलिंग महात्म्य की चर्चा गुलाबीबाग, शक्तिनगर, शास्त्रीनगर ही नहीं अशोक विहार की सीमाएँ पार कर गयी। कुछ भक्त आने लगे। फिर कुछ गाड़ियाँ आकर रुकने लगीं, जिनसे सजी-धजी स्त्रियाँ और तोंदवाले लोग उतरते और थाल में लायी सामग्री चढ़ा देते। कुछ मनौती मानते और चले जाते। दो-तीन महीनों में वह शिवलिंग छोटे-से मठ में बैठा दिया गया और जिस व्यक्ति न उसकी खोज की थी वह वहाँ सुबह से देर रात तक विराजमान रहने लगा माथे पर तिलक-चंदन लगाए धोती-कुर्ता में।
एक वर्ष बीतते न बीतते वह छोटा-सा तीन फीट गुणा चार फीट, जिसकी ऊँचाई भी तीन फीट ही थी मठ मंदिर का रूप लेने लगा और अगले एक वर्ष में, जहाँ कुत्ते हगते-मूतते या केलि-क्रीड़ा करते थे वहाँ भव्य शिव और हनुमान मंदिर खड़ा हो गया था। मंदिर खड़ा हुआ तो भक्तों की भीड़ भी बढ़नी थी और अब वह यमुना बाज़ार के मंदिर को टक्कर दे रहा है।'
मंदिर में किसी भक्त ने ज़ोर से घण्टा बजाया। वह चौंका, 'शोभाराम यह समय भक्तों और मंदिर के विषय में सोचने का नहीं है। पी.सी.ओ. खोजने का है।'
उसने एक दुकानदार से पूछा और उसके बताए अनुसार पी.सी.ओ. की दुकान खोजने में सफल रहा।
चन्द्रभूषण के बेटे ने बताया, पापा अभी तक घर नहीं पहुँचे। दफ़्तर से लेट निकले थे...आ रहे होंगे।
बेटा उन्हें बताना कि मैडम दास के बंगले में ताला बंद है।
अंकल ...पापा अभी आने ही वाले हैं। आप थोड़ी देर बाद फ़ोन कर लीजिएगा।
मैं पी.सी.ओ से फ़ोन कर रहा हूँ बेटे।
अंकल थोड़ी देर बाद कर लेना...पापा को यह सब आप ही बता देना।
'अजब बच्चा है।' किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा शोभाराम सोचता रहा, 'चलो शोभाराम, एक बार और मैडम के बंगले की ओर...।' उसने घड़ी देखी साढ़े नौ बजने वाले थे। वह तेजी से बंगले की ओर बढ़ा। दूर से ही बंगले के गेट पर ताला लटकता देख वह उल्टे पांव पलट पड़ा। पी.सी.ओ वाला दुकान बंद कर रहा था। उसने लपककर आवाज़ दी, भाई साहब, एक फ़ोन और...मेहरबानी होगी।
किधर करना है? भोजपुरी लहजे में पी.सी.ओ. वाले ने पूछा, जो पान की दुकान भी चलाता था।
लोकल...शाहदरा...।
कर लो। फ़ोन उठाकर उसके सामने रखता हुआ वह बोला।
हेलो, मैं शोभाराम चपरासी बोल रहा हूँ। अब तक वह इतना खीज चुका था कि उसने जानबूझकर अपने नाम के साथ चपरासी शब्द जोड़ा।
शोभाराम...बोलो...मैडम को बता दिया? चन्द्रभूषण की आवाज़ सुन शोभाराम की जान में जान आयी।
सर, आपके बेटे ने बताया होगा।
यार, ये बच्चे कहाँ कुछ बताते हैं। टी.वी. से चिपके बैठे हैं। तुमने फ़ोन किया था?
जी सर।
मैडम मिलीं?
वही तो दुख है सर।
क्यों?
मैडम के बंगले में अँधेरा छाया हुआ है सर।
सो गयी होंगी...आज दिन भर मीटिंग में थीं...थक गई होंगी।
सर, सोयेगा कोई तभी न जब हाज़िर होगा। बंगले में ताला लटक रहा है।
यार, शोभाराम, वहाँ सुधांशु सर को सीरियस हार्ट अटैक पड़ा है...।
सर, उन्होंने मैडम को बता दिया होता कि उन्हें अटैक पड़ने वाला है...तब शायद वह कहीं न जातीं...।
क्या बोल रहे हो? हर समय तुमहारा मज़ाक अच्छा नहीं लगता। एक भले आदमी...।
सर, आप बताएँ मैं कहाँ से खोज लाऊँ प्रीति दास को! अब ये पी.सी.ओ. भी बंद होने वाला है। आप आगे जिसे चाहें फ़ोन करें।
क्या मतलब?
मतलब यह कि अब मैं फ़ोन पर भी आपको कुछ बता न पाऊँगा। इस इलाके में यह इकलौता पी.सी.ओ. रात में खोजे से मिल गया...दूसरा खोजना मेरे वश में नहीं और जब ये भाई साहब इसे बंद करने जा रहे हैं तब दूसरे भी क्या खुले मिलेंगे।
हाँ, दस बज रहा है। चन्द्रभूषण ने क्षणभर कुछ सोचा, फिर बोला, शोभाराम, तुम मैडम के बंगले की ओर से निकल जाओ... तब तक मैं विपिन सर को फ़ोन करके वस्तुस्थिति बता देता हूँ। वर्ना सोमवार को मैडम भले ही कुछ न कहें...ये हरामी का बीज हम दोनों का जीना हराम कर देगा।
जैसा हुकम सर। मैं उधर से होकर घर चला जाऊँगा। आदर्श नगर जाना है सर। बहुत दूर है यहाँ से। रात बारह बजेगा...मेरे घर वाले परेशान होंगे। आप बताइये मैं उन्हें कैसे बताऊँ कि मैं यहाँ बंगला झांकता घूम रहा हूँ। और शोभाराम ने चन्द्रभूषण की बात सुने बिना ही फ़ोन काट दिया। लेकिन इस बार वह मिसेज दास के बंगले की ओर न जाकर घर जाने के लिए बस पकड़ने बस स्टैण्ड की ओर चला गया।
शनिवार-रविवार भी मिसेज प्रीति दास के बंगले में ताला बंद रहा। उनकी कार भी नहीं थी। बाद में ज्ञात हुआ कि वह माया और अपने लेब्राडोर साशा के साथ अपनी मसौरी बहन से मिलने जयपुर चली गई थीं, जिसकी अनुमति उन्होंने पहले ही हेडक्वार्टर ऑफिस से ली थी।