गलियारे / भाग 28 / रूपसिंह चंदेल
डी.पी. मीणा को प्रीति से जब यह ज्ञात हुआ कि निदेशक के टूर पर होने के कारण उसके रिलीव होने में विलंब है तो उसने महानिदेशक से इस बारे में चर्चा की और उनकी अनुमति लेकर देहरादून के संयुक्त निदेशक, जो वहाँ प्रशासन भी देखता था, को फ़ोन करके कहा, सर, महानिदेशक रामचन्द्रन साहब ने आपसे कहने के लिए मुझे आदेश दिया है कि आप प्रीति दास को तुरंत रिलीव कर दें।
मीणा, डायरेक्टर साहब टूर पर हैं।
सर, आप उनसे बात कर लें...प्रीति दास को कल दिल्ली पहुँचना चाहिए।
ल्ेकिन ऐसा हुआ नहीं। निदेशक के आने के बाद ही प्रीति रिलीव हुई और दूसरे दिन दिल्ली के लिए रवाना हो गई। रवाना होने से पूर्व उसने मीणा से बात की अपने ठहरने की व्यवस्था के विषय में और मीणा ने उसे आश्वस्त किया कि वह उसके ठहरने के लिए ऑफिस के गेस्ट हाउस में व्यवस्था कर देगा। जब तक सरकारी आवास नहीं मिलता वह और सुधांशु वहाँ रह सकेंगे।
प्रीति देहरादून से सीधे गेस्ट हाउस गई जहाँ सुबह पारी में तैनात बाबू और चपरासी को उसके आने की सूचना मीणा ने दे रखी थी। प्रीति की गाड़ी के गेट में प्रवेश करते ही चपरासी और बाबू दौडे गए और मैम, आप चलें...सामान पहुँच जाएगा।
प्रीति को बाबू उसके कमरे तक ले गया और चपरासी सामान ढो लाया। सामान अधिक था भी नहीं...केवल दो सूटकेस थे।
हेलो बाबू जब सामान रखवा रहा था, प्रीति ने उसे सम्बोधित करते हुए कहा, गाड़ी रोक लेना...ड्राइवर मुझे हेडक्वार्टर छोड़ता हुआ लौट जाएगा।
जी मैम। बाबू बोला, मैम ब्रेकफास्ट तैयार है...आप मेस में लेंगी या...।
यहीं भेज देना।
जी मैम। बाबू जाने लगा तो प्रीति ने उसे रोका, हेलो...ह्वाट्स युअर नेम?
रमेश दयाल मैम। झुककर प्रीति का अभिवादन करता हुआ दयाल बोला।
दयाल, ड्राइवर को भी ब्रेकफास्ट करवा देना।
जी मैम।
नाश्ता करके प्रीति उसी टैक्सी से मुख्यालय गई। टैक्सी से उतरकर उसने ड्राइवर को 'थैंक्स' कहा और गेट की ओर बढ़ी जहाँ रिसेप्शन में पहले से ही पर्स से निकाल चुकी अपना ट्रांसफर आर्डर दिखाते हुए वह बोली, मेरा खयाल है मिस्टर डी.पी.मीणा ने मेरे गेट पास के लिए आपको कहा होगा।
यस मैम। गेट पास तैयार है। और रिसेप्शनिस्ट ने उसके लिए संभालकर रखा हुआ गेट पास उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, डाेंट माइण्ड मैम, यहाँ सिग्नेचर कर देंगी। वह रजिस्टर में प्रीति
के हस्ताक्षर की मांग रहा था।
प्रीति ने रिसेप्शनिस्ट की ओर देखा, जो एक वर्दीधारी अधेड़ था और हस्ताक्षर कर दिए। गेट पास लेते हुए प्रीति ने नोट किया कि वह एक विजिटर पास था जिसका अर्थ था कि वह चार घण्टे के लिए बनाया गया था।
डयूटी पास नहीं बनाया? वर्दीधारी रिसेप्शनिस्ट की ओर मुख़ातिब होते हुए उसने पूछा। वहाँ कई और लोग पास बनवाने के लिए पंक्ति में खड़े हुए थे और प्रीति के हस्तक्षेप से उनमें एक बेचैनी-सी हो रही थी। उनमें एक वर्दीधारी मध्यम श्रेणी अफसर भी था जो बीच में आ टपकी उस युवती को बार-बार घूर रहा था। उसके अनुसार यह एक प्रकार की अनुशासनहीनता थी।
मैम मुझे कहा नहीं गया था कि ड्यूटी पास...।
मैंने अभी आपको अपना ट्रांसफर आर्डर दिखाया न ...। प्रीति ने पुन: ट्रांसफर आर्डर उसकी ओर बढ़ा दिया।
सॉरी मैम। प्रीति से विजिटिंग पास लेकर वर्दीधारी रिसेप्शनिस्ट उसके स्थान पर डयूटी पास तैयार करने लगा था।
आर.के. पुरम में प्ररवि विभाग का मुख्यालय जिस बिल्डिंग में था, उसमें प्रर विभाग और नौसे विभाग के कार्यालय भी थे और रिसेप्शन में प्रर विभाग के वर्दीधारी बाबुओं की डयूटी रहती थी। इस बिल्डिंग का निर्माण अंग्रेंजो ने द्वितीय विश्वयुध्द के दौरान किया था। उसके आस-पास नौ और दो मंजिले भवनों का निर्माण भी उन्होंने करवाया था, जिनमें उनके कार्यालयों के अतिरिक्त अमेरिकी सेना के कार्यालय स्थापित थे। अंग्रेजों के जाने के बाद वहाँ के अधिकांश भवनों में विभिन्न बलों के कार्यालय शिफ्ट किए गए थे। केवल एक ही भवन ऐसा था, जिसमें केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के एक कार्यालय को स्थान दिया गया था। इसी भवन में पोस्ट ऑफिस और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया भी अवस्थित थे। यही एक ऐसा भवन था जिसमें न सेक्योरिटी गार्ड थे और न रिसेप्शन, जबकि शेष सभी नौ भवनों में सेक्योरिटी गार्ड्स तैनात रहते थे।
जब तक प्रीति गेट पास बनवाती रही, देहरादून का टैक्सी ड्राइवर इस आशा में उसकी प्रतीक्षा करता रहा कि लौटकर वह उसके बिल का भुगतान करेगी। टैक्सी से उतर कर वह एकटक रिसेप्शन में खड़ी उसे देखता रहा, लेकिन जब वह अंदर चली गई तब ड्राइवर परेशान हुआ। फिर भी उसने कुछ देर प्रतीक्षा करने का निर्णय किया। बारह बज रहे थे और उसे देहरादून वापस लौटना था। वह बार-बार घड़ी देख रहा था और दो बार रिसेप्शन तक जाकर गलियारे में झांका भी था। गलियारे में आते-जाते लोग तो उसे दिखे लेकिन प्रीति का कहीं अता-पता नहीं था। दूसरी बार जब वह कुछ अधिक ही गलियारे में अंदर चला गया, सेक्योरिटी गार्ड ने टोका, किदर जाना मांगता?
वो मैडम...?
कौन मैडम...इदर तो बहुत सारी मैडम हैं... किसे पूछता?
मैडम प्रीति दास...देहरादून से आई हैं।
उधर रिसेप्शन में पूछने का।
ड्राइवर रिसेप्शन में पहुँचा। रिसेप्शनिस्ट उस दिन विजिटर्स की भीड़ के कारण खीजा हुआ था। ड्राइवर की बात सुनकर खिझलाता हुआ बोला, इधर कोई प्रीति दास मैडम नहीं है।
सर, आध घण्टा पहले वह इधर ही खड़ी थीं पास बनवाने के लिए... ।
क्या चाहता है उनसे?
सर, भाड़ा। गाड़ी का भाड़ा नहीं दिया मैडम ने।
बाद में आकर ले जाना ...मुझे काम करने दो।
सर, मुझे देहरादून जाना है। मैडम देहरादून से आयी हैं।
रिसेप्शनिस्ट ने चुभती नज़र से ड्राइवर को देखा। उसका चेहरा उसे रुआंसा और दयनीय दिखा। वह समझ गया कि अफसर बिना भुगतान किए अंदर चली गई है। उसे ड्राइवर से सहानुभूति हुई। बोला, गाड़ी में बैठो...अभी संदेश भेजता हूँ।
आध घण्टा और बीत गया। ड्राइवर की परेशानी बढ़ती जा रही थी। उसे चावला के शब्द याद आ रहे थे, पैसे मैडम से ले लेना। 'लेकिन यदि मैडम ने न दिए तो...।' ड्राइवर का चेहरा और अधिक उदास हो गया। उसकी बेचैनी बढ़ गयी। वह पुन: रिसेप्शनिस्ट के पास गया। उसे देख रिसेप्शनिस्ट को उसका काम याद आ गया। बोला, अरे मैं भूल गया था...सॉरी। फिर कुछ करता हुआ पूछा, क्या नाम बताया था मैडम का?
प्रीति दास।
रिसेप्शनिस्ट ने रजिस्टर देखा और ड्राइवर से पूछा, मैडम ने तो डयूटी पास बनवाया है? उन्हें वापस जाना है?
वापस नहीं जाना...।
रिसेप्शनिस्ट सोच में पड़ गया,अच्छा, आप रुको। उसने अपने साथ सिविल ड्रेस में बैठे एक युवक से कहा, मैं प्ररवि विभाग तक जा रहा हूँ...तुम लोगों के पास बना देना। और वह पुन: ड्राइवर की ओर मुख़ातिब होकर बोला, इधर ही रुकना।
रिसेप्शनिस्ट प्ररवि विभाग में डी.पी.मीणा के पी.ए. के पास गया। प्राय: मीणा के पी.ए. के ही फ़ोन उसके पास आते थे लोगों के पास बनवा देने के लिए। वह मीणा को भी पहचानता था, क्योंकि एक बार मीणा के एक रिश्तेदार युवक को उसके चेम्बर तक पहुँचाने का गौरव उसने प्राप्त किया था और मीणा से धन्यवाद सुनकर उस दिन सारा दिन प्रसन्न रहा था। वह जानता था कि प्ररवि विभाग उसके विभाग के वित्त का ऑडिट करता है और बहुत-से आर्थिक पहलुओं पर उसकी अनुमति के बिना उसका विभाग एक क़दम भी आगे बढ़ाने में अक्षम रहता है, इसलिए परवि विभाग के अफसरों को वह सदैव सम्मान की दृष्टि से देखता और उन्हें आदर देता।
मीणा के पी.ए. ने रिसेप्शनिस्ट को बताया, मैम साहब के साथ महानिदेशक रामचन्द्रन साहब से मिलने गई है।
ड्राइवर को देहरादून वापस लौटना है। रिसेप्शनिस्ट के सामने ड्राइवर का उदास चेहरा घूम रहा था।
आने पर मैं मैम को कह दूंगा।
आप ध्यान रखेंगे। रिसेप्शनिस्ट ने कहा और हड़बड़ाता हुआ, लगभग दौड़ता हुआ, रिसेप्शन की ओर लौट गया।
लगभग एक घण्टा बाद चपरासी ने पी.ए. को बताया कि मीणा सर अकेले वापस लौट आए हैं।
मैम दास...?
वह साथ नहीं थीं साहब के।
हो सकता है साहब उन्हें उनके कमरे में, जिसमें उज्वल सूद बैठते थे, छोड़ आए हों। दौड़कर देख आओ।
सर, आप घण्टी का खयाल रखेंगे।
तू दौड़ जा...मैं बाहर ही खड़ा हूँ। ख़ुद ही सुन लूंगा।
पी.ए. अपने केबिन के बाहर खड़ा हो गया, जहाँ से मीणा का चेम्बर पचीस क़दम दूर था।
चपरासी हाथ हिलाता हुआ लौट रहा था, जिसका अर्थ था कि प्रीति दास उस कमरे में भी नहीं थीं। तभी चपरासी ने पी.ए. को आखों से इशारा किया जिसका अर्थ था कि प्रीति दास उसके पीछे आ रही हैं। पी.ए. ने मुड़कर देखा, लेकिन वह प्रीति से कुछ भी कहने का साहस नहीं जुटा पाया। प्रीति उसके बगल से गुजरती हुई मीणा के कमरे में चली गई। पी.ए. काफ़ी देर तक केबिन के बाहर खड़ा सोचता रहा कि वह मीणा के चेम्बर में जाए या नहीं। तभी फ़ोन की घण्टी बजी। फ़ोन रिसेप्शनिस्ट का था, सर, मैडम से बात हुई?
अभी आई हैं। बात करके आपको रिंग करता हूँ।
सर, ड्राइवर बहुत परेशान है।
उससे अधिक आप परेशान लग रहे हैं...आपका रिश्तेदार है ड्राइवर?
सर, कैसी बातें कर रहे हैं...रिश्तेदार की ही मदद की जानी चाहिए... आखिर इंसानियत भी कोई चीज होती है। रिसेप्शनिस्ट खीज उठा।
होती है भाई, लेकिन इन अफसरों को यह पाठ कौन पढ़ाए। अफसर बनते ही यह पाठ ये लोग भूल जाते हैं।
सर, आप अंदर जाकर मैडम को बोलो...या...।
या क्या?
मैं पास बनाकर ड्राइवर को अंदर भेज दूं।
अपने साथ मेरी नौकरी भी लोगे। पी.ए. बोला, आपका अफसर ...क्या नाम है उसका...भाड़ में जाए नाम...मीणा के साथ अक्सर चाय पीने आता है।
सर, आप मौका देखकर बात कर आओ... अब देखो न सर, भूखा-प्यासा ड्राइवर हलाकान हो रहा है, जबकि उसे अभी पांच-छ: घण्टे का सफ़र तय करना है।
फोन बंदकर पी.ए. ने बजरंगबली का नाम लिया और मीणा के चेम्बर का दरवाज़ा खोला, मे आई कम इन सर? कहता हुआ अंदर झांका।
मीणा प्रीति से हंसकर कुछ कह रहा था। दरवाज़ा खुलते ही चेहरे पर गंभीरता ओढ़ उसने सिर हिलाया, जिसका अर्थ था कि पी.ए. अंदर दाखिल हो सकता है।
पी.ए. विनम्रतापूर्वक धीमे स्वर में बोला, मैम ड्राइवर आपका इंतज़ार कर रहा है।
क्यों? प्रीति अनभिज्ञता प्रकट करती हुई बोली।
भाड़ा के लिए रुका हुआ है।
मीणा ने पी.ए. को घूरकर देखा, जिसका अर्थ था कि यह बात कहते हुए उसने यह क्यों नहीं सोचा कि एक अफसर के सामने दूसरे अफसर से इस प्रकार की बात नहीं कही जानी चाहिए।
ओ.के.। प्रीति दास के चेहरे पर तनाव आ गया, जिसे मीणा ने स्पष्ट अनुभव किया।
प्रीति ने पर्स खोला, उलटा-पलटा और मीणा से बोली, सॉरी सर, पैसे गेस्ट हाउस में ही छूट गए।
नो प्राब्लम प्रीति ...रिलैक्स...। मीणा पी.ए. की ओर मुड़ा, कैशियर को बोलो कि मैंने ड्राइवर का भुगतान करने के लिए कहा है...।
यस सर। पी.ए. मुड़ा। मीणा ने उसे रोका, सुनो।
जी सर।
कैशियर को कहना कि ड्राइवर से रसीद ले लेगा।
यस सर।
पी.ए. चला गया तो मीणा बोला, रिलेैक्स प्रीति...ये सब यहाँ होता रहता है। यहाँ जितने भी निदेशक टुअर पर आते हैं...सभी का भुगतान मुख्यालय को करना पड़ता है। तुम क्या समझती हो कि वे टुअर पर आने का भत्ता अपने कार्यालय से अग्रिम लेकर नहीं आते होंगे। ऐसे खर्चे मिसलेनियस कोड के अंतर्गत हमे करने पड़ते हैं। अफसर होने के कुछ लाभ मिलने ही चाहिए। डोंट वरी।
प्रीति मीणा के तुम कहने पर चौंकी लेकिन प्रकट नहीं होने दिया। 'मीणा मुझसे कई वर्ष सीनियर हैं... उनका बेतकल्लुफ मुझे तुम कहना अस्वाभाविक नहीं लगना चाहिए... ।' उसने सोचा था।
प्रीति ने 'वरी' को उसी दिन तिलांजलि दे दी थी जिस दिन वह अफसर बनी थी। उसने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को यह सब करते देखा था और तय कर लिया था कि अफसर होने की संपूर्ण प्राप्त और अप्राप्त सुविधाएँ भोगना नए अवतार में उसका अधिकार है। उसने मीणा के सामने पर्स उलटने-पलटने का नाटक किया था, जबकि पर्स के एक खाने में वह सारी रक़म पड़ी हुई थी जो उसे स्थानांतरण भत्ते के रूप में देहरादून कार्यालय से मिली थी।
थैंक्स सर। मैं कल कैशियर को पैसे दे दूंगी। प्रीति ने कहा।
मैंने कहा न कि चिन्ता मत करो। क्षणभर के लिए मीणा रुका, हाँ, हम क्या बात कर रहे थे! वह पुन: क्षणभर के लिए रुका, ओ.के... सुधांशु के शेरो शायरी की बात चल रही थी... तो वह आलेख भी लिखता है...कहीं देखा नहीं...।
पटना के किसी अंग्र्रेजी समाचार पत्र में प्रकाशित हुए हैं शायद...और एक या दो टाइम्स ऑफ इंडिया में...।
और कविताएँ...?
उनके विषय में मुझे जानकारी नहीं है।
यह बला कैसे पाल ली सुधांशु ने! और मीणा ठठाकर हंसा।
प्रीति चुप रही।