गलियारे / भाग 2 / रूपसिंह चंदेल

Gadya Kosh से
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दोपहर दो बजकर पचीस मिनट पर वह दफ़्तर पहुँची।

उन्होंने किसी को नहीं बताया था कि उन्हें मीटिंग के लिए जाना है। न पी.ए. को, न प्रशासन के सहायक निदेशक को और न ही सेक्शन अफसर को। सेक्शन अफसर और सहायक निदेशक सुबह से तीन बार पी.ए. से पूछ चुके थे, चन्द्रभूषण मैडम कब तक आ रही हैं?

सर, मुझे कोई सूचना नहीं है। सहायक निदेशक विपिन कुमार के अपने केबिन में घुसते ही चन्द्रभूषण खड़ा हो गया और फुसफुसाया, क्या बकवास है?

विपिन कुमार ने चन्द्रभूषण के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए पूछा, आपने उनके यहाँ फ़ोन किया था?

किया था सर! पी.ए. के स्वर में दयनीयता उभर आयी, मेड ने बताया कि मैम सुबह नौ बजे निकल गई थीं...कुछ बोलकर नहीं गर्इं।

लैब्स में पता करो... शायद उधर गई हों...।

वहाँ भी फ़ोन किया था सर...वहाँ नहीं पहुँचीं।

यार, चन्द्रभूषण। विपिन कुमार ने उसे यों घूरा जैसे प्रीतिदास के दफ़्तर न पहुँचने के लिए चन्द्रभूषण दोषी था, आप पी.ए. बनने काबिल नहीं हैं।

यस सर।

व्वॉट यस सर? विपिन कुमार का स्वर तीखा था, हेडक्वार्टर से फ़ोन पर फ़ोन आ रहे हैं। उन्हें देहरादून प्रोजेक्ट की रपोर्ट भेजनी है...।

सर...।

जैसे ही मैम आएँगी...मुझे तुरंत सूचित करना...।

यस सर। विपिन कुमार पैर पटकता चला गया तो चन्द्रभूषण बुदबुदाता हुआ सीट पर पसर गया, स्साले देहरादून प्रोजेक्ट में चांदी तुझे काटनी है.. और रौब मुझ पर झाड़ रहा है। उसने सोच लिया कि प्रीति दास के आने पर भी वह विपिन कुमार को सूचित नहीं करेगा।

'उस प्रोजेक्ट को लेकर मैडम को अधिक उत्साह नहीं है...मैडम निदेशक हैं और विपिन कुमार सहायक... उनसे दो पद नीचे... फिर भी यह इतनी रुचि क्यों ले रहा है उस प्रोजेक्ट में। इसलिए न कि हेडक्वार्टर आफिस में सांठ-गांठ करके उस प्रोजेक्ट को अपने हाथ में लेना चाहता है। यह तो इस प्रयास में है कि सिध्दांतत: एक बार प्रोजेक्ट रिपोर्ट सबमिट होकर हेडक्वार्टर आफिस और मंत्रालय से स्वीकृति पा ले तो यह उस प्राजेक्ट के इंचार्ज के रूप में अपना स्थानातंरण देहरादून करवा ले। दस करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है। इसके पांच प्रतिशत कहीं नहीं गए... हेडक्वार्टर आफिस में बैठे अपने आकाओं को आधा भी देना पड़ा तो भी...।

फोन की घण्टी बजी, मिसेज प्रीति इज देयर?

अभी तक आयी नहीं सर। चन्द्रभूषण ने स्वर में बनावटी मिश्री घोली और पूछा, सर, में आई नो हू इज आन द लाइन?

डी.पी.।

नमस्कार सर।... मैडम को मैं बता दूंगा, सर। चन्द्रभूषण को डी.पी. से पहले नमस्ते करने का ध्यान नहीं रहा था। यह भयानक त्रुटि थी। फ़ोन उठाते ही पी.ए. को समयानुसार नमस्कार कहना होता है।

सर, आप पटना से बोल रहे हैं? पूछना उचित समझा चन्द्रभूषण ने।

दिल्ली से। डी.पी. के स्वर में चन्द्रभूषण ने अपेक्षाकृत शुष्कता अनुभव की।

सर अपना फ़ोन नंबर दे दीजिए... आते ही फोन...।

मैं कर लूंगा...। डी.पी. का स्वर पहले से अधिक शुष्क हो उठा था।

जी सर।

डी.पी. मीणा से बात ख़त्म कर चन्द्रभूषण अपने केबिन से बाहर निकला और चपरासी सोहन लाल को देखने लगा। सोहन लाल प्रीतिदास के चेम्बर के बाहर स्टूल पर दिन भर बैठा होता था। चन्द्रभूषण जानता था कि उस समय वह वहाँ न होगा, क्योंकि मिसेज दास चेम्बर में न थीं। उसका अनुमान था कि वह मैडम दास को रिसीव करने के लिए चेम्बर के बाहर सड़क की ओर खुलने वाले दरवाज़े के पास खड़ा होगा या चेम्बर के बायीं ओर बने पार्किंग में किसी स्कूटर या मोटर साइकिल पर बेैठा मेन गेट की ओर नजरें गड़ाए होगा।

'सी' ब्लॉक में केन्द्र सरकार के कई कार्यालय अवस्थित थे। ब्लॉक चार-दीवारी से घिरा हुआ था और उसके पूरब और पश्चिम की ओर गेट थे। प्राय: अधिकारीगण पूरब के गेट से आते-जाते थे।

चन्द्रभूषण मैडम दास के चेम्बर से होकर सड़क की ओर खुलने वाले दरवाज़े पर पहुँचा। दरवाज़े की सिटकनी खुली हुई थी, लेकिन वह बंद था। दरवाज़ा खोल वह बाहर झांका, लेकिन पार्किंग में उसे कोई टू ह्वीलर खड़ा दिखाई नहीं दिया।

वह एक छोटी-सी पार्किंग थी, जहाँ सुविधा से चार और ठूंस-ठांसकर पांच टू ह्वीलर खड़े हो जाते थे। लेकिन उस दिन विपिन कुमार की मारुति खड़ी थी। सोहन लाल को न देख चन्द्रभूषण की परेशानी बढ़ गई, 'अपने साथ मेरी नौकरी भी लेगा यह सोहन लाल...मैडम आ जाये तो गाड़ी का दरवाज़ा कौन खोलेगा...कौन उनका ब्रीफकेस-लंच बॉक्स का थैला गाड़ी से निकालेगा...?'

चन्द्रभूषण ने इधर-उधर देखा, गेट की ओर नजरें दौड़ायीं, उस दरवाज़े की ओर देखा जहाँ से आम तौर पर कार्मचारी आते-जाते थे, लेकिन सोहन लाल उसे नहीं दिखा।

'अब मुझे ही रुकना होगा यहाँ...।' लेकिन तभी उसने सोचा, 'मैं यहाँ रुका और वहाँ मैडम का ही फ़ोन आ जाये, कुछ पूछने-बताने के लिए... नहीं सोहन लाल को ही खोजता हूँ।' वह ब्लॉक के गेट की ओर धीरे-धीरे खिसकने लगा। लेकिन एक बार उसने पीछे मुड़कर कैण्टीन की ओर देखा, जहाँ बाबुओं और कुछ प्र।र। विभाग के सिपाहियों की लाइन लगी हुई थी। यह ऐसी कैण्टीन थी जहाँ बाज़ार भाव से चीजें कम क़ीमत पर मिलती थीं, ...दस से पन्द्रह प्रतिशत कम क़ीमत पर। प्र।र। विभाग के सिपाहियों को उस पर और भी दस प्रतिशत की छूट होती थी।

'बेचारे सिपाही!' चन्द्रभूषण सोचने लगा, 'अपने अफसरों के सामान खरीदने के लिए घण्टो लाइन में लगे रहते हैं। जितना बड़ा अफसर उतने अधिक अर्दली। कपड़े चमकाने से लेकर जूते चमकाने तक और कैण्टीन से सामान, सब्जी-राशन लाने, बच्चों को स्कूल छोड़ने से लेकर बंगले के बगीचे में काम करने तक।'

'मैं उनके विषय में ही क्यों सोच रहा हूँ! मेरे विभाग में भी यह सब होता है और दूसरे विभागों में भी... हक़ीक़त यह है कि इस देश का कौन-सा ऐसा विभाग है, जहाँ अफसरों के यहाँ काम करने के लिए चौथे दर्जे के कर्मचारी नहीं जाते। अगर वह नहीं जाते तब उनके स्थान पर कैजुअल लेबर जाते हैं। बल्कि अधिकतर वही जाते हैं।'

चन्द्रभूषण यह सोच ही रहा था कि तभी उसकी नज़र मारुति की ओट में दाहिनी ओर खड़ी मोटर साइकिल पर बैठे सोहन लाल पर पड़ी। सोहन लाल उसे देख मुस्करा रहा था... मंद-मंद। चन्द्रभूषण उसकी ओर मुड़ा। वह कुछ कहता उससे पहले ही सोहन लाल बोला, सर, सुबह नौ बजे से बैठा हूँ यहाँ। थक गया हूँ बैठे-बैठे... गेट की ओर देखते आंखें दुखने लगी हैं...।

फिर?

सर, पेशाब करने तक नहीं जा पाया। आप किसी और को बैठाइये... पेशाब करने जाऊँ। रोटी चबा आऊँ।

'किसे बैठाऊँ? सभी चपरासियों पर विपिन कुण्डली मारे बैठा है...।' चन्द्रभूषण ने सोचा, 'सोहन लाल को अवश्य ही पेशाब आया होगा।'

जाओ बाथरूम हो आओ... तब तक मैं यहाँ खड़ा रहता हूँ...मैडम आ गईं तो मैं रिसीव कर लूंगा।

सर...पेट में चूहे कूद रहे हैं। सुबह सात बजे दाना डाला था पेट में।

यार, खा लेना... मर नहीं जाओगे बिना खाए... लेकिन अगर मैडम आ गईं और कोई न हुआ तब...तब...नौकरी पर बन आएगी।

सोहन लाल बुदबुदाता हुआ बाथरूम की ओर लपका, लेकिन तभी चन्द्रभूषण को फ़ोन की घंण्टी सुनाई दी तो वह चीखा, सोहन फोन...। और वह अपनी केबिन तक पहुँचने के लिए मिसेज दास के चेम्बर का दरवाज़ा खोल अंदर घुस गया।

सर...। उसे पीछे से सोहन लाल की आवाज़ सुनाई दी।

सॉरी सोहन...। चेम्बर के अंदर से चन्द्रभूषण चीखा।

फोन डी.पी. मीणा का था।

गुड आफ्टर नून सर। चन्द्रभूषण आवाज़ पहचान गया था।

मिसेज दास आ गयीं ? गुनगुनाते-से स्वर में मीणा ने पूछा।

अभी नहीं सर।

कोई सूचना?

नहीं सर।

मीणा चुप रहा।

आते ही मैं बता दूंगा सर।

हूँ ऊँ...।

सर, आप अपना फ़ोन नंबर दे दें... आते ही मैं मैडम से बात करवा दूंगा। चन्द्रभूषण ने याद किया पहले भी वह फ़ोन नंबर मांग चुका था।

मीणा ने बिना कोई उत्तर दिए फ़ोन काट दिया।

मिसेज दास के ऑफिस पहुचने के समय सोहन लाल मोटर साइकिल पर बैठा उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। सी-ब्लॉक के गेट के बाहर जैसे ही उसे दफ़्तर की एम्बेसडर दिखी, वह मोटर साइकिल से उछलकर नीचे गूदा और गेट से कैण्टीन को जाने वाली सड़क पर आ गया। ड्राइवर ने मिसेज दास के चेम्बर के दरवाज़े के ठीक सामने गाड़ी रोकी और बैठा रहा। सोहन लाल ने आगे बढ़कर नमस्ते मैम कहा और अटैंशन की मुद्रा में खड़े होकर गाड़ी का पिछला दरवाज़ा खोला। मिसेज दास उतरीं तो दरवाज़ा बंदकर वह उनके साथ तेजी से चल पड़ा, क्योंकि उसे चेम्बर का दरवाज़ा खोलना था। मिसेज दास से आगे हो उसने चेम्बर का दरवाज़ा खोला, एक नम्बर पर पंखा चलाया और चेम्बर के एक कोने पर तिपाई पर रखे जग से गिलास में पानी ढाल गिलास मिसेज दास की टेबल पर ठीक उनके सामने रख वह फिर बाहर की ओर लपका। गाड़ी से उसे मिसेज दास का ब्रीफकेस और लंच बॉक्स लाना था।

चेम्बर में पहुँच मिसेज दास सीधे बाथरूम गईं।

ड्राइवर ब्रीफकेस पकड़े नीचे खड़ा था। सोहन लाल को देखते ही भुनभुनाया, 'तेरे को कितनी मर्तबा बोला कि ब्रीफकेस लेकर जाया कर। धूप में कितनी देर से खड़ा हूँ... तेरे भेजे में बात समाती क्यों नहीं?

तू नहीं ला सकता था? सोहन लाल भी अकड़ गया।

मैं तेरा ड्राइवर हूँ?

मैडम का तो है... उनका ब्रीफकेस है... मेरा नहीं...।

तू मूझे बताएगा, मैं किसका ड्राइवर हूँ...तू बताएगा।

मैं क्यों बताऊँगा...यह तो दफ़्तर में दर्ज है... बल्कि डिपार्टमेण्ट में दर्ज है कि तू ड्राइवर है.. और किसका है यह तुझे पता है...।

तू आजकल घनी बकवास करने लगा है। मैं कहे देता हूँ... अपनी औक़ात में रह...तू चपरासी है और चपरासी ही रह...अफसर मत बन...वर्ना अच्छा न होगा...।

राणा, तू पीकर आया है? सोहन लाल ने चुटकी ली।

हाँ पीकर आया हूँ...तेरे बाप की पी?

बकवाद मत कर बचन सिंह राणा...औकात पहचान तू भी...तू ड्राइवर है और वही रहेगा, लेकिन मैं यू.डी.सी. तक पहुँचूंगा...समझा...और सुन...तू क्या मैडम के घर से ब्रीफकेस उठाकर गाड़ी में नहीं रखता होगा...फिर...? सोहन लाल ने आगे की सीट पर रखा लंच बॉक्स उठाया और राणा के हाथ से ब्रीफकेस झटक चेम्बर की ओर बढ़ा।

स्साली शाम होने को आई... न पानी नसीब न खाना और ऊपर से चपरासियों की धौंस सुनो...। राणा बुदबुदाया, सुने मेरा 'ये'...। गाड़ी का दरवाज़ा खोलते हुए आखिरी शब्द उसने इतना ऊँचा बोला कि सोहन लाल सुन ले।

मैं सुबह से अब तक छप्पन भोग लगाता रहा हूँ यहाँ मोटर साइकिल पर बैठा हुआ...। चेम्बर की ओर बढ़ते हुए सोहन लाल ने भी ऊँची आवाज़ में कहा और गाड़ी की ओर देखा।

बचन सिंह राणा पार्किंग में ले जाने के लिए गाड़ी घुमा रहा था।

ब्रीफकेस मिसेज दास की टेबल के साथ बने रैक पर रख सोहन लाल लंच बॉक्स पकड़े खड़ा रहा। मिसेज दास बाथरूम में थीं और फ्लश चलने की आवाज़ सोहन लाल को स्पष्ट सुनाई दे रही थी। लगभग दस मिनट बाद मिसेज दास बाथरूम-कम टॉयलेट से बाहर निकलीं। लेकिन अपने पीछे दरवाज़ा खुला छोड़ आयीं। लंच बॉक्स मेज पर रख सोहन लाल ने तेजी से बढ़कर बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया। तब तक दास कुर्सी पर बैठ चुकी थीं। सोहन लाल जितनी तेजी से बाथरूम का दरवाज़ा बंद करने गया उतनी ही तेजी से पलट आया और लंच बॉक्स उठाता हुआ बोला, मैम, लंच लगा दूं?

आम दिनों में वह ऐसा नहीं कहता। एक बजते ही वह प्लेटें, छुरी-कांटे, नमक-कालीमिर्च की डिब्बियाँ, पानी का गिलास और लंच बॉक्स सोफे के साथ पड़ी टेबल पर चुपचाप रख जाता, लेकिन उस दिन बात कुछ और थी। मिसेज दास से पूछना आवश्यक होता, जब वह लंच के बाद दफ़्तर आतीं। शुरू में वह ग़लती कर चुका था। तब मिसेज दास पोस्ंटिग में आयी ही थीं और उस दिन की भांति ही विलंब से दफ़्तर पहुची थीं। वह सदैव अपना लंच घर से लेकर आती थीं। लेकिन मीटिंग में हेडक्वार्टर आफिस जाने या किसी से मिलने जाने पर प्राय: लंच वहीं करना होता तब अपना लंच वह घर वापस ले जातीं। रात मेड माया या लेब्रा साशा के काम आ जाता था वह।

पहली बार विलंब से आने पर सोहन लाल ने बिना पूछे उनका लंच सजा दिया था। मिसेज दास ने उसे बुलाकर हटवाया भी नहीं। शाम तक जब वह यों ही सजा रहा तब सोहन लाल ने साहस जुटा विनम्रतापूर्वक पूछा, मैडम, आपने लंच...।

लगाने से पहले तुमने पूछा था?

सोहन लाल चुप। पूछता वह कभी नहीं, फिर उस दिन क्यों पूछता, वह कहना चाहता था, लेकिन कहाँ वह चपरासी... डिपार्टमेण्ट में सबसे नीचे पायदान पर खड़ा और कहाँ निदेशक ... डिपार्टमेण्ट में सबसे ऊपर के पायदान से दो सीढ़ियाँ नीचे बैठे व्यक्ति से वह कैसे पूछ सकता था।

वापस गाड़ी में रख देना। मिसेज दास ने कहा था।

जी मैम। सोहन लाल जाने के लिए वापस मुड़ा।

चन्द्रभूषण आया है?

जी मैम।

भेज दो।

जी मैम।

बिना आवाज़ दरवाज़ा खोल सोहन लाल लंच बॉक्स पकड़े बाहर निकल गया।

एक मिनट बाद शार्ट हैण्ड नोट बुक, पेंसिल और कुछ डाक संभाले चन्द्रभूषण, गुड आफ्टर नून मैम' कहता चेम्बर में प्रविष्ट हुआ और डाक मिसेज दास की टेबल पर रखकर अटैंशन की मुद्रा में खड़ा हो गया।

कोई डाक पैड नहीं है? उस दिन के टाइम्स ऑफ इंडिया पर नज़र दौड़ाती हुई मिसेज दास बोलीं। तीन अखबार...टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दू और इकोनॉमिक टाइम्स' सुबह नौ बजे से पहले हिन्दी अधिकारी उनकी मेज पर रख जाता था। उसका काम था, दफ़्तर के सभी अधिकारियों के पास सुबह दफ़्तर खुलने से पहले अख़बार पहुँचाना। यह आदेश सरकार के थे कि अफसरों को उनके पदानुसार एक से तीन अख़बार और पत्रिकाएँ सरकारी ख़र्च पर दी जायें। सरकारें अफसरों से चलती हैं और अफसरों को अख़बार जैसी चीजें खरीदने की चिन्ता से मुक्त रखना सरकारें अपना कर्तव्य समझती हैं।

जी, आपके पास सबमिट है मैम।

फिर उसमें क्यों नहीं रख रहे...? अख़बार पर नजरें गड़ाए हुए ही दास बोलीं।

सॉरी मैम। और चन्द्रभूषण पैड खोलकर डाक उसमें रख उसे बाँधने लगा।

ये लिफाफे कौन खोलेगा?

सॉरी मैम। चन्द्रभूषण ने पुन: क्षमा मांगी और लिफाफे निकाल उन्हें खोलने लगा। तभी ड्राअर से कैंची निकाल उसकी ओर बढ़ती हुई दास बोलीं, इससे काटकर लेटर बाहर निकालो... कहीं फाड़ न देना।

जी मैम। कैंची से लिफाफे काट पत्र बाहर निकालकर डाक पैड में रखते हुए चन्द्रभूषण सोचता रहा, 'लगता है मैडम का मूड कुछ उखड़ा हुआ है।' लेकिन तभी सोचाा, 'सीधे कहाँ बोलती हैं... सदैव भोहें चढ़ी रहती हैं।'

'बताऊँ अभी...बताना तो होगा ही।' वह पुन: सोचने लगा।

पत्र डाक पैड में रख उसे बाँध चन्द्रभूषण ने डाक पैड फाइलों के ऊपर रखा, कैंची मिसेज दास के सामने बिना आवाज़ टेबल पर रखे शीशे के ऊपर रख, खाली लिफाफों को पकड़े अटैंशन की मुद्रा में खड़ हो गया।

मिसेज दास की नजरें अख़बार पर गड़ी थीं।

'बताऊँ...?' चन्द्रभूषण पशोपेश में था।

तभी फ़ोन की घण्टी बजी। मिसेज दास ने इशारा किया कि वह उठाए। जैसे ही चन्द्रभूषण फ़ोन उठाने के लिए आगे बढ़ा दास ने टोका, हेडक्वार्टर ऑफिस से हो तो ही मुझे देना... अन्यथा कह देना मैं मिनिस्ट्री से लौटी नहीं हूँ...मीटिंग के लिए गई हूँ।

निर्देश सुन चन्द्रभूषण ने फ़ोन उठाया। डी.पी. मीणा था।

कौन...?

नमस्कार सर, मैं चन्द्रभूषण...।

दिन में किसी अफसर के कितनी ही बार फ़ोन आने पर हर बार चन्द्रभूषण को उससे नमस्कार, गुड मार्निंग, आफ्टर नून सर कहना होता। यही सरकारी कायदा था। वही नहीं, अफसर भी एक ही अफसर के अनेक फ़ोन आने पर...भले ही पांच मिनट बाद आए... उससे इसी प्रकार बातें करते थे। ऐसा न करना अशिष्टता माना जाता था।

चन्द्रभूषण...। चन्द्रभूषण ने इस बार शहद सना स्वर सुना, मैडम का कुछ अता-पता...?

नहीं सर...कोई सूचना नहीं।

यार, कैसे पी.ए. हो...पता करो...थाने जाकर रपट दर्ज करवाओ... ।' और डी.पी. मीणा का अट्टहास सुना चन्द्रभूषण ने, लेकिन चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आने दी।

मिसेज दास रह-रहकर अख़बार से नजरें हटाकर उसकी ओर देखती जा रही थीं।

आते ही बता दूंगा सर।

कोई नहीं...बता देना मेरा फ़ोन था.. और यह भी कि शाम छ: बजे की मेरी फ्लाइट है।

श्योर सर।

उधर से फ़ोन कट गया।

किसका था ?

मीणा सर थे। चन्द्रभूषण ने मिसेज दास की ओर उड़ती नज़र डाली और सामने रखे कंप्यूटर की ओर देखने लगा।

मिसेज दास ने अख़बार मेज पर रखा और बोलीं, 'सिट डाउन।

कुर्सी पर बैठता हुआ चन्द्रभूषण बोला, मीणा सर कह रहे थे कि छ: बजे की उनकी फ्लाइट है।

दास का चेहरा भाव-हीन रहा। कोई प्रतिक्रिया न दे वह ब्रीफकेस से एक फाइल निकाल उसे खोलते हुए बोलीं, टेक डिक्टेशन।

चन्द्रभूषण अस्त-व्यस्त हो उठा। उसने तेजी से कॉपी खोली, पेंसिल संभाली, कॉपी के कुछ पेज मोड़े जिससे तेजी से लिखते समय पन्ना पलटने में आसानी रहे और डिक्टेशन के लिए तैयार हो तनकर बैठ गया।

रिस्पेक्टेड सर... द मैटर वाज डिस्कस्ड विद द एडीशनल सेक्रेटरी ...विदिन ब्रैकेट पी... ।

डिक्टेशन जब समाप्त हुआ, शाम सात बज रहे थे।

इसे टाइप करके मेरी टेबल पर रख जाना और जाकर ड्राइवर को बोलो कि गाड़ी लगाए। और मिसेज दास बाथरूम चली गईं।

ड्राइवर चन्द्रभूषण के केबिन में ही बैठा था।

राणा, गाड़ी लगा दो। ड्राइवर को देख चन्द्रभूषण बोला।

मैडम जा रही हैं सर? सोहन लाल ने मिसेज दास के चेम्बर के बाहर की लाल बत्ती बुझाकर हरी जला दी और चन्द्रभूषण के पास आकर पूछा।

हाँ...।

आप नहीं जा रहे सर? चन्द्रभूषण को टाइप करने के लिए बैठते हुए देख सोहन लाल ने पूछा।

मुझे अभी लोहा पीटना है।

लोहा तो अब नहीं पीटते सर। अब कंप्यूटर बाबा हैं न...।

चन्द्रभूषण कुछ नहीं बोला। राणा जा चुका था। सोहन लाल फ्रिज से, जो चन्द्रभूषण के केबिन के बाहर रखा हुआ था, लंच बॉक्स निकाल रहा था और गुनगुना रहा था, लागा झुलनियाँ का धक्का...बलम कलकत्ता चले।

मिसेज दास ने घण्टी बजायी। सोहन लाल लंच बॉक्स पकड़े दौड़कर गया। पांच मिनट बाद वह लौट आया और चन्द्रभूषण से बोला, सर अपन भी चले।

मैडम का कमरा कौन बंद करेगा?

मैं...।

कमरा अभी नहीं बंद करना।

क्यों सर?

यह लेटर टाइप करके मैडम की टेबल पर रखना है।

सोमवार को सुबो आके रख देना सर।

सोमवार की सुबह किसने देखी है... आज शुक्रवार है...फिर दो दिन की छुट्टी... मैं सोमवार को न आ पाऊँ...।

आएँगे क्यों नहीं सर?

क्योंकि मर भी सकता हूँ...कुछ भी हो सकता है...।

सर, ऐसा न बोलें...। आप सोमवार आएँगे...हम सभी आएँगे और सर... आवाज़ धीमी करके सोहन लाल बोला, सर, अगर मरना ही हो तो विपिन कुमार मरे... दफ़्तर को तंग कर रखा है उसने... आप क्यों मरें सर...।

चन्द्रभूषण टाइप करता रहा। एक स्थान पर उसे अपना शार्टहैण्ड में लिखा शब्द पकड़ में नहीं आ रहा था। देर तक बैठा सोचता रहा और सोहन लाल उसे देखता रहा खड़ा, लेकिन बहुत माथा-पच्ची करने के बाद भी जब शब्द पकड़ में नहीं आया तब उसने उस शब्द के लिए स्थान रिक्त छोड़ दिया और आगे टाइप करने लगा।

चन्द्रभूषण को पुन: टाइप करता देख सोहन लाल बोला, तो मैं चलूं सर!

चन्द्रभूषण टाइप करता रहा। बोला नहीं।

सर मैं शोभाराम को बोल देता हूँ। उसकी क्लोजिंग है। एडमिन में बैठा है। वह मैडम का कमरा बंद कर देगा।

ओ.के.।

गुड नाइट सर। चन्द्रभूषण की ओर देखे बिना सोहन लाल आगे बढ़ गया।

चन्द्रभूषण को गैलरी में सोहनलाल के जाने की आवाज़ सुनाई देती रही कुछ देर तक।

एडमिन सेक्शन में दो लोगों के बातें करने की आवाजें आ रही थीं। चन्द्रभूषण ने पहचाना। उनमें एक शोभाराम और दूसरा उसी सेक्शन का बाबू राकेश गुप्ता था। उनके अतिरिक्त पूरा दफ़्तर जा चुका था। उन दोनों की डयूटी दफ़्तर बंद करवाकर सेक्योरिटी में चाबी जमा करने की थी।

साढ़े सात बजे शोभाराम चन्द्रभूषण के केबिन में आया और बोला, सर, पूरा दफ़्तर खाली है...।

हुंह...। 'सिन्सेरिटि' की स्पेलिंग को लेकर चन्द्रभूषण द्विविधा में पड़ गया था और आगे टाइप करना रोककर कंप्यूटर में पड़ी डिक्शनरी में उस शब्द की सही स्पेलिंग देखना चाह रहा था, लेकिन डिक्शनरी उसे मिल नहीं रही थी। उसे खीज हुई। वह 'ई' और 'आई' को लेकर पशोपेश में था।

सर...।

क्या है...क्यों दिमाग़ खराब कर रहा है?

सर, मैंने कहा...।

कह न ... क्या कहा था?

सर, साढ़े सात बज चुके... दफ्तर कब का खाली हो चुका...।

तुम्हें किसने रोका हुआ है?

सर, आपके कारण...।

चन्द्रभूषण ने एक बार सोचा कि उस शब्द का स्थान भी वह रिक्त छोड़ दे, लेकिन तत्काल यह विचार आते ही कि शायद राकेश गुप्ता उसकी द्विविधा दूर कर दे उसने काग़ज़ के टुकड़े पर हिन्दी में 'सिन्सेरिटि' लिखा और शोभाराम को देकर कहा, जाकर गुप्ता जी से इसकी स्पेलिंग लिखवा लाओ।

जी सर शोभाराम जब चलने लगा वह बोला, अभी आध घण्टा का काम है।

शोभाराम बिना उत्तर दिए चला गया। उस शब्द के लिए रिक्त स्थान छोड़ उसने आगे टाइप करना प्रारंभ कर दिया। अभी उसने एक पंक्ति भी पूरी टाइप नहीं की थी कि राकेश गुप्ता आकर खड़ा हो गया, चन्द्रभूषण जी, आपने मुझे भी कन्फ्यूज कर दिया।

कोई गल्ल नहीं। टाइप करते हुए चन्द्रभूषण बोला, याद आ गई... । उसने हाथ रोका और बोला, एस आई एन-सी ई आर आइ टी वाई ।

फिर तो मैं सही था... ये देखिये ...यही लिखकर लाया था। गुप्ता ने काग़ज़ का टुकड़ा चन्द्रभूषण की ओर बढ़ाते हुए कहा।

गुप्ता जी, आप सही क्यों न होंगे...अंग्रेजी में एम.ए. जो हैं...वह भी आगरा विश्वविद्यालय से। पुन: टाइपिगं प्रारंभ करते हुए चन्द्रभूषण बोला।

इस क्लर्की में सब एम.ए. सेम।ए. ऐसी-तैसी में मिल गए चन्द्रभूषण जी... वर्ना मैं भी आदमी था काम का...। चन्द्रभूषण के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठता हुआ गुप्ता बोला।

मुझे अफ़सोस होता है आपके विषय में सोचकर। दस सेकेण्ड के लिए काम रोका चन्द्रभूषण ने, आज आप किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर होते।

कहीं प्रोफेसर होता या नहीं, लेकिन जिस कॉलेज में था... कानपुर के डी.ए.वी. कॉलेज में... रीडर के पद पर तो अवश्य ही होता। गुप्ता के चेहरे पर मायूसी छा गई।

बुरा न मानें तो एक बात कहूँ?

बुरा क्यों मानना।

आप प्रतिबध्द न थे अध्यापन के प्रति...।

वह बात नहीं चन्द्रभूषण जी... होता नहीं तब ज्वायन ही क्यों करता वहाँ, लेकिन पारिवारिक स्थितियाँ ऐसी थीं कि विवश होकर इस डिपार्टमेण्ट में आना पड़ा। एक ऑडिटर (यू.डी.सी.) का वेतन तब एक लेक्चरर से अधिक था। दूसरा कारण यह था कि मैं तब वहाँ लीव वेकेन्सी में था ... जिनकी जगह पर था वह दो वर्ष के लिए स्टडी लीव पर थे...।

उनके आने के बाद आप खाली थोड़े ही रहते...। टाइप करते हुए ही चन्द्रभूषण बोला, दो वर्ष का अनुभव काम आता... कहीं रेगुलर लग जाते। कहीं क्या वहीं लग सकते थे।

घर वालों का दबाव था कि जब एक परमानेण्ट नौकरी मिल रही है और प्राध्यापकी से अधिक वेतन है तब मुझे उसे ही पकड़ना चाहिए और मैंने डी.ए.वी. छोड़ दिया। मेरे छोड़ते ही तीन दिन के अंदर उन्होंने दूसरे बंदे को रख लिया था। आज वह सीनियर रीडर है वहाँ।

होगा ही...आपसे अधिक नौकरी करेगा। सारी ज़िन्दगी पढ़ाने के नाम पर मौज की होगी उसने ...और आप नौकरी लगने के बाद चार स्टेशन देख आए... आज तक कहीं सेटल नहीं हुए... सरकारी मकान न होता तो किसी मकान मालिक की धोंस सह रहे होते...।

अब बीती को रोने से क्या लाभ चन्द्रभूषण जी। गुप्ता उठ खड़ा हुआ। चन्द्रभूषण ने देखा उसका चेहरा मुर्झाया हुआ था।

अभी कितना रह गया? गुप्ता ने पूछा।

चन्द्रभूषण ने शार्टहैण्ड नोट बुक के पन्ने गिने...पांच...फिर बोला, पांच पेज हैं ...दस मिनट से अधिक न लगेंगे।

तब तक मैं दफ़्तर के सभी कमरे चेक करके आता हूँ। कोई खुला न छूट गया हो।

गुप्ता चन्द्रभूषण के केबिन से निकला ही था कि फ़ोन घनघना उठा। चन्द्रभूषण ने झटके से फ़ोन उठाया और छूटते ही बोला, गुड इवनिगं मैम।

राकेश गुप्ता रुक गया।

सॉरी...।चन्द्रभूषण बोला, आप कहाँ से बोल रहे हैं?

फोन मेरठ से था...सुधांशु कुमार दास के कार्यालय से।

जी सर...। चन्द्रभूषण के चेहरे का रंग उड़ गया था, जी मैम को गये डेढ़ घण्टा से ऊपर हो गया सर...घर नहीं पहुँची होंगी।...पता नहीं सर। मेड तो है...हो सकता है वह मार्केट गई हो...। चन्द्रभूषण रुका और उधर की बात सुनने लगा, वेरी सैड सर, मैं मैडम से संपर्क करके उन तक सूचना पहुँचाने का प्रयत्न करूंगा सर।

उधर से कुछ कहा गया।

श्योर सर।

बात कर चन्द्रभूषण कुर्सी पर पसर गया, एक और मुसीबत गुप्ता जी।

कोई ख़ास बात?

यहाँ आम बात कुछ होती भी है? मैंने पता नहीं किस घड़ी यह घटिया नौकरी करने का विचार किया था।

दुखी क्यों हो रहे हैं...बात क्या है?

गुप्ता जी, दास साहब ...यानी सुधांशु कुमार दास को हार्ट अटैक हुआ है... मेरा खयाल है यह उनका तीसरा अटैक है... वे लोग एक घण्टा से मैडम दास के बंगले पर फ़ोन ट्राई कर रहे हैं...वहाँ कोई है नहीं शायद।

फिर?

खबर तो भेजवानी ही होगी...दास साहब के कार्यालय का सहायक निदेशक बोल रहा था।

लेकिन मैडम को फ़ोन क्यों किया?

क्योंकि वह अभी भी उनकी बीबी हैं।

मतलब दोनों का तलाक नहीं हुआ? राकेश गुप्ता चन्द्रभूषण की ओर और झुक गया।

इससे हमें-तुम्हें क्या? हो या ना हो...फोन आया है तो सूचना तो देनी ही होगी...तीसरा अटैक है...।

ड्रग्स ...ड्रिंक ...सुधांशु सर ने अपने को तबाह कर लिया चन्द्रभूषण जी... । राकेश गुप्ता पुन: कुर्सी पर बैठ गया,आप यक़ीन नहीं करेंगे...जीनियस इंसान थे वह ...ब्रिलियण्ट...अच्छा लेखक-कवि भी...अंग्रेजी में लेख और हिन्दी में कविताएँ लिखते थे सुधांशु सर...हिन्दू और टाइम्स ऑफ इंडिया में उनके लेख छपते थे...हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ। लेकिन यह सब बाइस-तेईस साल पहले की बात होगी...हो सकता है उससे भी अधिक समय हुआ हो...मैं तब पटना में पोस्टेड था और वह मेरे बॉस थे। मैडम की तब एँट्री हुई ही थी डिपार्टमण्ट में...ट्रेनिगं में आयी थीं वहाँ...।

दोनों की शादी बाद में हुई थी?

नहीं जी... पहले ही हो चुकी थी। मैडम ने शादी के बाद आई.ए.एस. कियाँ...बस उसके बाद...। राकेश गुप्ता अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया कि फ़ोन की घण्टी पुन: घनघनाई।

नमस्कार...चन्द्रभूषण...।

उधर की बात सुनने के बाद चन्द्रभूषण बोला, सर आदमी भेज रहा हूँ जी बोलिए सर। और चन्द्रभूषण फ़ोन करने वाले का फ़ोन नंबर लिखने लगा।

फोन कट गया तो चन्द्रभूषण ने गुप्ता से कहा, गुप्ता जी, शोभाराम को पैसे देकर मैडम के बंगले दास साहब के अटैक की सूचना देने के लिए दौड़ा दीजिए... वह मेरठ मेडिकल कॉलेज में भर्ती हैं। वहाँ के सहायक निदेशक प्रशासन का फ़ोन नंबर दे रहा हूँ। अधिक जानकारी उनसे मिल जाएगी। चन्द्रभूषण ने पर्स से पचास का नोट निकाला और राकेश गुप्ता को देकर कहा, तब तक मैं इसे समाप्त करता हूँ।

ओ.के. सर। पचास का नोट लेकर गुप्ता शोभाराम को खोजने चला गया जो कमरों के ताले चेक कर रहा था।