गलियारे / भाग 32 / रूपसिंह चंदेल

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मे आई कम इन मैम? अमन अरोड़ा की आवाज़ सुनकर प्रीति का चिन्तन भंग हुआ।

कम।

मैम, यह फार्म...मैनें भर दिया है...आप यहाँ हस्ताक्षर कर दें। अटेंशन की मुद्रा में खड़ा अरोड़ा बोला।

अरोड़ा के बताए स्थान पर हस्ताक्षर कर प्रीति ने फार्म उसे लौटा दिया, एनीथिंग मोर?

नथिंग मैम।

लेकिन अरोड़ा गया नहीं। कुछ सोचता खड़ा रहा।

कुछ कहना है? प्रीति के पूछते ही अरोड़ा के चेहरे पर दयनीयता पसर गयी, जी मैम।

हुंह। प्रीति मंद स्वर में बोली।

मैम, मेरी वाइफ जुही अरोड़ा इसी दफ़्तर में यूडीसी है और सेक्शन आफीसर की परीक्षा दे रही है। उसका सेण्टर 'के' ब्लॉक में है मैम।

मुझे आप यह क्यों बता रहे हैं? प्रीति का स्वर सख्त था।

मैम, साहब वहाँ हैं...मेरा मतलब सुधांशु सर से है...मैम, आप उन्हें कह देंगी तो थोड़ा खयाल रखेंगे।

किस बात का खयाल? समझते हुए भी प्रीति ने अनजान बनते हुए पूछा।

मैम, इनविजिलेशन में जो लोग होंगे...।

वह परीक्षा दे ही क्यों रही है?

अरोड़ा निरुत्तरित फ़र्श की ओर देखता रहा।

मिस्टर अरोड़ा, सुधांशु दूसरों से अलग है, पहली बात और दूसरी बात कि जब जूही में इतनी योग्यता नहीं तब वह परीक्षा उत्तीर्ण करके भी एक अयोग्य सेक्शन अफसर बनेगी, इससे अच्छा है कि वह यूडीसी ही रहे।

सॉरी मैम।

आप जा सकते हैं। प्रीति का स्वर पहले से अधिक रूखा था।

अरोड़ा 'प्राण बचे लाखों पाये' वाले भाव से जल्दी से बाहर आ गया। लेकिन वह हार मानने वाला व्यक्ति नहीं था। स्वयं भी इसी प्रकार सेक्शन अफसर बना था। उसका पिता विभाग में लेखाधिकारी था। वह भी उच्च अधिकारियों की चाटुकारिता में व्यस्त रहता था, जिसका लाभ उसे मिला था। उसके दो बेटे थे और दोनों को ही उसने विभाग में नौकरी दिला ली थी। अमन अरोड़ा ने बी.ए. किया ही था कि मंत्रालय की ओर से विभाग को पचास एल.डी.सी और एक सौ पचास यू.डी.सी. भर्ती करने की अनुमति मिली थी। उसके लिए प्रवेश परीक्षा और साक्षात्कार का अधिकार विभाग ने 'के' ब्लॉक के निदेशक को दिया था। उन दिनों 'के' ब्लॉक में निदेशक स्तर का अधिकारी इंचार्ज होता था। अमन के पिता ने कभी उसके साथ काम किया था। अमन की भांति वह भी सेवा अनुभाग का अधिकारी था और सभी अधिकारी उसकी सेवा से प्रसन्न रहते थे। प्राय: वह अफसरों के घर सब्जी-फल अपनी जेब से खरीदकर पहुँचा देता, लेकिन अपनी हल्की हुई जेब की भरपाई दोगुने-चौगुने और कभी-कभी बीस-पचीस गुना रूप में कार्यालय से ही कर लेता था। सेवा अनुभाग कार्यालय के लिए सामान खरीदने तथा रद्दी हुई वस्तुएँ बेचने का दायित्व निर्वाह भी वह करता था। लाखों रुपयों की खरीद और हजारों की बेच में अरोड़ा के पिता का दस से बीस प्रतिशत कमीशन निर्धारित होता था।

अमन को यूडीसी और छोटे बेटे, जो उन दिनों थर्ड इयर में पढ़ रहा था, को एल.डी.सी. के रूप नियुक्त करवाने में सफल रहा था उसका पिता। अफसरों की सेवा विरासत में पाकर दोनों भाइयों ने कम समय में ही सेक्शन अफसर की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर ली थीं। यही नहीं यह उनकी सेवा का ही परिणाम था कि नियुक्ति से लेकर तब तक वे दिल्ली में ही पदासीन थे, जबकि उस विभाग के नियमों में कोई कर्मचारी अधिक से अधिक दस वर्ष दिल्ली में रह सकता था और उच्चाधिकारी पांच वर्ष।

अमन ने एक छोटा-सा डी.ओ. (डेमी ऑफिशियल पत्र) डी.पी. मीणा की ओर से एस्टेट ऑफिस, निर्माण भवन के निदेशक मनोज रंजन के नाम तैयार किया, प्रीति का आवेदन पत्र उसके साथ नत्थी किया और एक फाइल में लेकर मीणा के पास गया।

मीणा खाली था और सिगरेट के कश लेकर धुंआ के छल्ले छत की ओर उड़ा रहा था और कुछ सोच रहा था। अरोड़ा ने हल्के से दरवाज़ा नॉक किया।

कम इन। मीणा बोला।

अमन अंदर दाखिल हुआ और सलाम कर फाइल मीणा के आगे बढ़ा दी। सिगरेट का घुंआ अरोड़ा की ओर उछालते हुए मीणा ने डीओ पर दृष्टि डाली, पेन लेकर वाक्यों में परिवर्तन किया और प्रीति के आवेदन फार्म पर नज़र डालते हुए बोला, प्रीति ने इसे चेक कर लिया है?

जी सर। अरोड़ा झूठ बोल गया, क्योंकि उसने प्रीति से फार्म चेक नहीं करवाया था, केवल हस्ताक्षर लिए थे।

फार्म पर सरसरी नज़र डालते हुए मीणा बोला, क्या चेक किया है प्रीति ने...यह देखो, यहाँ उनकी बेसिक पर नहीं लिखी गयी और यह...कौन-से एकमोडेशन की अधिकारिणी हैं यह भी तो भरना होगा। मीणा ने अरोड़ा पर दृष्टि गड़ा दी, इसे किसने भरा था?

सर, मंगतराम ने।

मंगतराम ...वह एल.डी.सी... यार अरोड़ा कितनी बार कहा कि इन लोगों से ये काम मत करवाया करो...स्वयं क्यों नहीं भरा...ये ग़लतियाँ मिसेज दास का फार्म रिजेक्ट करवाने के लिए पर्याप्त हैं।

सर...। अफसर ने जब कोई त्रुटि पकड़ी हो तब उससे अधिक बोलना अफसर को नाराज करना होता है। अरोड़ा मीणा द्वारा अपने लिए 'यार' सम्बोधन से उत्पन्न गुदगुदी और ख़ुशी का आनंद ले रहा था, 'साहब का मूड ठीक है...वर्ना फाइल फेंक देते फ़र्श पर...। यही अवसर है अपनी बात कहने का...। ख़ुदा करे कोई और इस समय प्रकट न हो और मैं अपनी बात कह सकूं।' अरोड़ा सोचता रहा।

फाइल वापस अरोड़ा को देते हुए मीणा बोला, इसे फटाफट टाइप करवाकर किसी से बाई हैण्ड भेजवा दो...लेकिन मंगतराम जैसों को मत भेजना, जो मनोज रंजन को देने के बजाए रिशेप्शन में देकर लौट आएगा।

जी सर।

कोई और उपयुक्त व्यक्ति न हो तो स्वयं चले जाना।

जी सर।

मीणा ने सिर हिलाया, जिसका अर्थ था कि वह वापस जाए। लेकिन अरोड़ा तब भी खड़ा रहा।

कुछ ख़ास बात? अरोड़ा को खड़ा देखकर उसके चेहरे के भाव पढ़ मीणा ने पूछा।

सर, जूही की परसों सेक्शन आफीसर की परीक्षा है।

जूही कौन?

मेरी वाइफ सर...ऊपर ऑडिट सेक्शन चार में है।

ओह...यस...। मीणा की आंखों में चमक उभरी, जिसे अरोड़ा नहीं पकड़ पाया। तुम मुझे यह किसलिए बता रहे हो? मीणा जानता था कि अरोड़ा ने वह प्रसंग क्यों छेड़ा था, लेकिन वह उसीसे सुनना चाहता था।

सर, आपकी मेहरबानी ...सर...।

कहाँ है सेण्टर?

सर, 'के' ब्लॉक में।

ओ.के. जूही से बोलो कि पी.ए. के माध्यम से वह मुझसे मिल ले।

थैंक्यू सर। अरोड़ा का चेहरा खिल उठा और वह तेजी से चेम्बर से निकल मीणा के पी.ए. के पास गया डी.ओ. टाइप करवाने।

पी.ए. ने टाइप राइटर पर डी.ओ. फार्म चढ़ाया ही था कि डी.पी. का बजर सुनाई दिया।

नमस्ते सर।

आना।

यस सर।

टाइप राइटर यथावत छोड़कर पी.ए. शार्टहैण्ड नोटबुक और पेंसिल ले मीणा के चेम्बर में दाखिल हुआ।

अमन अरोड़ा की पत्नी जुही आएगी तो उसे सीधे भेजने से पहले मुझसे पूछ लेना।

जी सर। पी.ए. फिर भी खड़ा रहा।

जाओ ...यही कहना था।

'यह बजर पर भी कह सकते थे।' पी.ए. ने राहत की सांस ली, क्योकि वह सोच रहा था कि मीणा ने उसे डिक्टेशन देने के लिए बुलाया था। डिक्टेशन उसे घटिया काम लगता था। घटिया इसलिए कि मीणा किसी भी केस में अस्पष्ट रहता था। वह उतना ही अस्पष्ट डिक्टेशन देता था और कम से कम पांच बार उसे ठीक करता और टाइप करवाता था।

धन्यवाद सर। पी.ए. लौटकर डीओ टाइप करने लगा। अरोड़ा उसके पास ही खड़ा रहा, लेकिन दो मिनट बाद यह सोचकर कि जब तक पीए टाइप कर रहा था वह जाकर जूही को सूचित कर दे कि जितनी जल्दी संभव हो वह मीणा सर से मिल ले।

आप टाइप करो ...मैं पांच मिनट में आया।

यह क्या लिखा है? पीए ने टाइप करने से पहले डा्रॅफ्ट पढ़ लिया था और मीणा की काट-छांट में दो स्थानों में उसे पढ़ने में असुविधा हुई थी।

अरोड़ा ने उसकी आशंका दूर की जिसे उसने एक ओर पेंसिल से लिख लिया।

आप पांच मिनट बाद आ आइए। पीए के कहते ही अरोड़ा पत्नी से मिलने चला गया। सुनकर जूही का चेहरा खिल उठा, अब कोई रोक नहीं सकता मुझे सेक्शन अफसर बनने से। फुसफुसाते स्वर में वह बोली।

कुछ देर में जाकर साहब से मिल लेना।

अभी चली जाऊँ?

अभी मुझे एक डीओ साइन करवाना है। और अरोड़ा सीढ़ियो की ओर बढ़ गया।

मीणा से डीओ पर हसक्षर करवाकर जब अरोड़ा अपनी सीट पर लौटा, जूही को अपनी सीट के पास उपस्थित पाया।

जाकर पी.ए. से मिल लो...। अरोड़ा ने फुसफुसाते स्वर में जूही से कहा।

मीणा के पीए ने जूही को देखते ही मुस्कराकर पूछा, साहब से मिलना है मैडम अरोड़ा?

जी।

पी.ए. ने बजर देकर पूछा, सर, मैडम जूही अरोड़ा मिलना चाहती हैं।

भेज दो।

जाइये मैडम...साहब खाली हैं।

मीणा के चेम्बर का दरवाज़ा खोल जब जूही ने अंदर दाखिल होने की इजाज़त मांगी, मीणा ने प्रसन्न स्वर में कहा, यस, कम इन।

जूही के अंदर दाखिल होते ही मीणा ने अपनी मेज पर लगे स्विच से चेम्बर के बाहर की हरी बत्ती के स्थान पर लाल बत्ती जला दी, जिसका अर्थ था कि किसी को भी अंदर दाखिल होने की इजाज़त नहीं थी।

बोलें। मीणा ने मुस्कराते हुए कुर्सी की ओर इशारा कर जूही को बैठने के लिए कहा।

जूही के लिए यह एक बड़े सम्मान की बात थी।

बैठ जाइए मिसेज अरोड़ा। मीणा रोबीले स्वर में बोला।

जूही अपने को समेट कुर्सी पर बैठ गयी।

किसलिए मिलना चाहती थीं आप? एक दृष्टि जूही पर डाल मीणा एक फाइल पर कुछ लिखता रहा।

सर, परसों मेरा पेपर है।

हुंह...कहाँ है?

सर, 'के' ब्लॉक में।

क्या चाहती हो?

ज्ूही की ज़ुबान तलवे से चिपक गयी।

ओ.के.। लापरवाही प्रकट करता हुआ मीणा बोला और फाइल फ़र्श पर फेंककर जूही के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं, चिन्ता की बात नहीं। मैं बोल दूंगा वहाँ के ज्वाइण्ट डायरेक्टर को...।

धन्यवाद सर। जूही उठने को हुई कि मीणा ने उसे बैठने का इशारा किया।

जूही के लिए यह एक और सम्मान की बात थी। वह गदगद थी।

मीणा जूही के चेहरे पर नजरें गड़ाए रहा। गोरी, हल्का लंबाई लिए गोल चेहरा, गुलाबी होठ, सुंदर नाक, हिरणी जैसी आंखें, माथे पर चन्द्राकार झूलती लट, भौंरे जैसे काले बाल और सुडौल देहयष्टि। जूही इतनी सुन्दर है, यह उसने कभी ध्यान नहीं दिया था।

आपके बच्चे...?

सर, एक बेटा है...चार वर्ष का...।

कौन देखभाल करता है?

सासू माँ सर।

ओ.के... एक तकलीफ कर सकती हो?'

सर...।

मेरी बेगम साहबा दो दिनों के लिए जयपुर गयी हैं...उनकी माँ बीमार हैं। परसों आएँगी। आप मेरे लिए आज और कल रात का डिनर तैयार कर देंगी।

सर, क्यों नहीं। इसमें मुझे ख़ुशी मिलेगी। जूही का चेहरा खिल उठा। उतना बड़ा अफसर उसे सेवा का अवसर दे रहा था।

सर, आप समय बता दें...अरोड़ा साहब आपके यहाँ डिनर पहुँचा देंगे।

ना...ना...आपको यह तकलीफ मेरे यहाँ ही करनी होगी। अपने हजबैण्ड को बोलना कि वह आफिस के बाद आपको मेरे यहाँ छोड़ देंगे...चाबी मुझसे ले लेंगे घर की...यू नो मुझे अपने किचन का बना खाना ही पसंद आता है। मैं आपको आपके घर ड्रॉप करवा दूंगा।

जी... स...र...। जुही का स्वर बुझा हुआ था।

मीणा ने एक भरपूर दृष्टि जुही पर डाली जो मेज पर नजरें गड़ाए रात के बारे में सोच रही थी और सोच रही थी एक सेक्शन अफसर के रुतबे...भविष्य में होने वाली पदोन्नतियों के बारे में...।

सर, मैं जाऊँ? काफ़ी देर बाद जूही बोली।

हाँ...तो रात का डिनर आपके हाथों का बना मिलेगा...?

सर...।

गुड लक। मीणा धीमे स्वर में बोला।

लेकिन जुही सोच में इतना डूबी हुई थी कि मीणा को कुछ कहे बिना उसके चेम्बर से बाहर निकल आयी।

मीणा ने रात दस बजे अमन अरोड़ा को फ़ोन कर कहा कि जुही रात उसके यहाँ ही रहेगी और सुबह पांच बजे वह उसे उसके घर छोड़ जाएगा। अरोड़ा ने मीणा की बात केवल सुनी, प्रतिक्रिया देने का साहस उसमें नहीं था। रातभर वह जागता रहा और सोचता रहा कि जुही को सेक्शन अफसर बनवाने के लिए उसे इतनी बड़ी क़ीमत चुकानी पडेगी यह उसने कभी नहीं सोचा था और अब जब फंदा उस पर कसा जा चुका है तब वह उसे काटने का साहस नहीं कर सकता। उसकी आत्मा ने उसे बार-बार धिक्कारा...नपुसंक, कापुरुष और भी न जाने क्या-क्या कहा, लेकिन घूम फिरकर मन आश्वस्त करता रहा, 'भूल जाओ अमन...जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता हेै और मान लो जुही मेरे अनजाने किसी के साथ सम्बन्ध बना लेती...। व्यक्ति को उदार होना चाहिए... यदि जुही को आपत्ति होती तब वह मुझसे कहती...माना कि इंकार का परिणाम भयावह होता, हमारे स्थानंतरण...डिमोशन, यहाँ तक कि डिस्चार्ज...कुछ भी हो सकता था। कार्यालय की खरीद में लाखों के घपलों की जानकारी मीणा को है...उसका बड़ा भाग उसीकी जेब में जाता है और जाता मेरे ही माध्यम से है। वह किसी से भी मेरे विरुद्व रिश्वत मांगने की अर्जी दिलवा सकता है और तब...उस नर्क से दो दिन का यह नर्क बुरा नहीं, जो बेहतर भविष्य की गारण्टी होगा।'

अरोड़ा को नींद आयी ही थी कि आंखों में नींद की खुमारी भरे जुही ने घण्टी बजा दी थी। मीणा स्वयं ड्राइव करके उसे उसके घर के पास छोड़ गया था और छोड़ते समय उस रात पुन: आने की हिदायत भी दे गया था।