गहनतम अनुभूतियों का रसपान कराती-संवेदना एवं अभिव्यक्ति / सुरंगमा यादव

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भूमिका पुस्तक का दर्पण होती है, जिसमें पुस्तक का मुखड़ा प्रतिबिंबित होता है। किसी पुस्तक में भूमिका के दो रूप देखे जा सकते हैः पहला, रचनाकार द्वारा व्यक्त किए गए स्वयं के उद्गार; दूसराः किसी अन्य साहित्यकार, स्नेही या आत्मीय जन द्वारा लिखी गयी भूमिका। इसमें शुभेच्छा का भाव प्रमुख होता है। भूमिका पुस्तक प्रकाशन से पूर्व अस्तित्त्व में आती है जिसमें पुस्तक की उन विशेषताओं तथा अंशों को उजागर किया जाता है, जिसे पढ़कर पाठक में पुस्तक पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न हो सके।

समीक्षा पुस्तक प्रकाशन के पश्चात् लिखी जाती है। समीक्षक तटस्थ भाव से पुस्तक की विशेषताओं तथा कमजोर पक्षों को रेखांकित करता है। विषय-विस्तार, भाषा -शैली, संप्रेषण, सामाजिक सरोकार आदि को दृष्टिगत रखकर समीक्षक कृति की परख करता है। समीक्षा पाठक के मस्तिष्क पर रचना की रेटिंग-सी कर देती है।

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी का लेखन- फलक बहुत विस्तृत है। गद्य और और पद्य साहित्य की विविध विधाओं के साथ- साथ बालकविताओं तथा पाठ्य पुस्तकों की रचना भी आपने की है। आप न केवल एक सहृदय साहित्यकार हैं: बल्कि एक जागरूक पाठक भी है। भूमिका तथा समीक्षा लेखन आप की सर्जनशीलता का एक प्रमुख आयाम है। भूमिका लिखना हो या समीक्षा आप कृति का सर्वांगपूर्ण अवलोकन और अध्ययन करने के उपरान्त ही अपनी लेखनी चलाते हैं। आपकी पारखी दृष्टि आलोच्य कृति का तटस्थ मूल्यांकन करके ऐसा निचोड़ प्रस्तुत करती है कि पाठक पुस्तक के हर पक्ष से परिचित हो जाता है। सद्यः प्रकाशित ‘संवेदना एवं अभिव्यक्ति’ हाथ में आने पर यह ये विचार और भी प्रबल हो गया। ‘संवेदना एवं अभिव्यक्ति’ में आपने स्वयं की कृति सहित कुल 14 रचनाकारों की रचनाओं पर सारगर्भित समीक्षात्मक लेख लिखे हैं।

डॉ. जेन्नी शबनम की चार कृतियों- लम्हों का सफ़र- काव्य संग्रह, प्रवासी मन- हाइकु संग्रह, नवधा- विविध काव्य विधा संग्रह तथा मरजीना- क्षणिका संग्रह, डॉ. कविता भट्ट –मीलों चलना है- काव्य- संग्रह तथा काँठा माँ जून– हिन्दी हाइकु का गढ़वाली में अनुवाद, कृष्णा वर्मा -सिंदूरी भोर-हाइकु संग्रह, डॉ. भीकम सिंह–सिवानों पे गाँव-हाइकु-संग्रह तथा थके से सहयात्री-चोका- संग्रह, रचना श्रीवास्तव-सपनों की धूप-हाइकु- संग्रह, सुदर्शन रत्नाकर-मन मल्हार गाए, बोलो न निर्झर, युग बदल रहा है; क्रमशः सेदोका, छोटी कविताएँ तथा काव्य- संग्रह, डॉ. हरदीप कौर सन्धु-रंग शहूदी-द्विपदी कविताएँ, रश्मि विभा त्रिपाठी-मन की परिधि-काव्य संग्रह, डॉ. मीना अग्रवाल-बातें करती हवा-हाइकु -संग्रह, रामेश्वर काम्बोज-नवगीत की भूमिका, डॉ. पद्मजा शर्मा- आसमान को छूना है, शिव डोयले-शब्दों के मोती, पुरुषोत्तम श्रीवास्तव ‘पुरु’-अनुभूति के पल तथा रेखा रोहतगी-मन मुखिया,हाइकु- संग्रहों पर अपनी लेखनी चलाकर सुधी पाठकों का मार्ग प्रशस्त किया है।

पुस्तक की भूमिका में आप लिखते हैं- “हमारे भावप्रवण साथियों ने चाहे छोटी-बड़ी कविताएँ लिखी हों, चाहे जापानी शैली के हाइकु, ताँका, चोका, सेदोका आदि रचे हों, उनमें हमारी समूची भारतीयता दूध-मिसरी की तरह घुल गई है, उनमें संस्कृति की सुगंध रच-बस गई है। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपने अग्रजों की रचनाओं के साथ-साथ युवा साथियों के साहित्य की गहनतम अनुभूतियों का आनंद प्राप्त करने का भी अवसर मिला है।”

पुस्तक के कुछ प्रमुख उद्धरण हैं- डॉ. जेन्नी शबनम की कविताओं में जीवन की जद्दोजेहद के साथ संतप्त मन लिये आगे बढ़ने का संघर्ष है-लम्हों का सफ़र।

कोहरा ढक ले/अठखेलियाँ सारी/प्रिय-संग की।

डाकिया आँखें/मन के ख़त भेजे/ प्रिय न पढ़े।

सर्द न होना/चाय की प्याली जैसे/अधर धरो।- ( मीलों चलना है/ डॉ. कविता भट्ट )

उपर्युक्त ये तीन हाइकु केवल हाइकु नहीं, वरन् किसी कुशल कैमरामैन द्वारा लिए गए स्नैपशॉट प्रतीत होते हैं।

डॉ. भीकम सिंह वही हाइकुकार हैं, जिनके पास चित्रकार की कल्पना, कैमरामैन की सटीक दृश्य को क्लिक करने की सूझ-बूझ और कवि के शब्द-चित्रांकन की क्षमता मौजूद है-सिवानों पे गाँव।

कवयित्री डॉ. हरदीप कौर सन्धु को शब्द-सिद्धि प्रप्त है । वह आसपास के शब्दों में प्राण फूँककर उनको जीवंत कर देती हैं ।प्राण प्रतिष्ठा होने पर उनके शब्द श्लोक का रूप धारण कर लेते हैं-रंग शहूदी।

21 कृतियों का समग्रता में परिचय कराने वाली ‘संवेदना एवं अभिव्यक्ति’ पुस्तक में दो लेख- भाव जगत के मोती तथा बहुवर्णी भावों का गुलदस्ता क्रमशः मरजीना तथा बातें करती हवा, कृति के नाम निर्धारण से पूर्व लिखी गयी भूमिकाएँ है, इसी कारण इनमें कृति के नामों का उल्लेख नहीं आ सका है।

संवेदना एवं अभिव्यक्ति(विमर्श ) : -प्रथम संस्करण: 2024, मूल्य: 280 रुपये (सज़िल्द), पृष्ठ: 104, प्रकाशक: अयन प्रकाशन, जे- 19/ 139, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली- 110059

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