गाँधी जी आईले चंपारण / तुषार कान्त उपाध्याय
साँझ के दीया बरा गइल रहे। मुकतेसर के माई खंडी में दिया देखावत बुदबुदात ज़ात रहली। जईसे रोज होला। आ हरेक घर में होला। सांझी के दीया देखावल, घूम-घूम के एक-एक गो कोठरी आ कोना में दीया बाती करत पुरखन के इयाद आ आवे वाला लोगन के जिनगी साथे साथ चलेला।
' हों मुकतेसर! गान्ही बाबा के आईला प ई निलहा साहेब लोग उनकर बात सुनी। तू काल्ह कहत रहल की गान्ही बाबा ओह अफिरिका में आपन बात मनवा देहले। ईजओ मनवा दीहते। हमनी के जवन मन करीत बोईती काटिती। लईकन के भर पेट दुनो बेरा खाएके मिलित।
अंगना में जोरल चुल्ही के जरिये बइठल मुक्तेसर उदास मुंह प हंसी आ गईल। 'बुझाता माइयो जाई गान्ही बाबा संगे साहेब लोग से लड़े।'
माई के आपना साथही बोरा प बैठावत मुक्तेसर धीरे से कहले 'राज कुमार सुकुल कलकाता गईल बाड़े गान्ही बाबा के संगे लिवावे। हमहूँ मोतिहारी जईब। कतना दिन से पीर मुहम्मद मुनिस आ "प्रताप" अख़बार के गणेश शंकर विद्यार्थी चिट्ठी लिख-लिख के भेजत रहले हा शुकुल जी के कहला पर। शुकुल जी पढ़े लिखे जानेले बाकि हिन्दी ना लिखे आवे। कैथी में भोजपुरी लिखेले। विद्यार्थी जी के जिनगी त एह धरती माई खातिर एही कुल काम में बीतेला।'
'सुकुल जी त एही लड़ाई में कतना खेत बेच दिहले। जेलों घूमी आइले। गान्ही बाबा से लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में भेटो क आईल बाड़े। लखनऊ अधिवेशन में इकतालीस बरिस के शुकुल जी अकेले किसान रहले। बाकि सब ट बड़का वकील आ विद्वान लोग रहे।' चुल्ही में लकड़ी खरकावत मुक्तेसर के मेहरारू बोलली।
'बहुरिया पढल होखला के फायदा देखत बाद नु मुकतेसर!' माई के ठिठोली सुन बहुरिया के मुंह चमक गईल। अन्हारआ में चुल्ही के आंच में उनकर मुंह अईसे लागे जैसे आगी में परि के सोना हों जाला। 'बाकि कतना लोग लईकी पढावे पावत बा। अनाज जहाँ से सगरो भेजात रहे, ओही चम्पारन में खाए के लोग तरसे। ई कुल तीन-कठिया के दिहल ह।'
'ई नील के गांठ ना माई, हमनी के खून के गांठ जाला एहिजा से।' बहुरिया के बोली दुःख आ खीस में डूबल रहे।
कई दिन बीत गईल रहे। मुकतेसर चैती खरिहान से घरे पंहुचा के देशा देशी घुमे चल गईल रहले। आज दुपहरिया में लावातला पर मंह हाथ धो के दुवार पर बईथ्ले। बहुरिया सतुवा आ पियाज थरिया में सामने रखत उनका और कुछ जाने खातिर देखली।
'गान्ही बाबा 10 अप्रैल के सुकुल जी संगे पटना आ गईल रहले। मजहरुल हक साहेब उनकर दोस्त हवे, उइजे रुक्ले .11 अप्रैल के मुज़फ्फरपुर पहुच गईले। सुकुल जी उनका के छोड़ के रेल से रात में चारू और घुमत बाड़े। उनका डर बा की निलहा साहेब के लठैत देख मत लेस। देखिह लो, उनका मोतिहारी आईला पर कईसे लोगन के भीड़ जुटी.' मुकतेसर समाचार सुनावे लागल रहले।
'तहरो ओकरा में लागे के बा बबुआ। समिधा बने बा एह यज्ञ में।'
मुकतेसर माई के बात सुन के गदगदा गईले। उनकर माई सातवां पास रहे। दिन दुनिया के खबर रखे वाली। पतोह चुने में एकही शर्त रहे–लईकी पढ़ल चाहीं। गाँधी जी के आवेके खबर सभे के रहे। मुकतेसर के माई के एह गान्ही बाबा के नावे से हुलास रहे।
मुक्तेसर आज भोरही मोतिहारी पौंच गिल रहले। मुज़फ्फर्पुर वाली रेल तीन बजे दिन में स्टेशन पहुचल। हजारों लोग के भीड़ जमा रहे। लोगन के का मालूम की ई भारत में गाँधी जी के पहिला सत्याग्रह आन्दोलन होई. बिना गोली डंडा चलवले अंग्रेजन की देश छोड़े पर मजबूर कर दी। मोतिहारी पहुच्ला केक दिन बाद गाँधी जी जसौलि पट्टी गाँव जाये खातिर निकल्ले। खबर रहे की एक दिन पाहिले ओहिजा के ईगो किसान संपत्ति नष्ट क के जमींदार के लोग निचोही घावें पिताले रहले। रस्ते में जिला कलेक्टर डब्लू बी हेकोक्क के आदेश वाला नोटिस मिलल।
गाँधी जी के चंपारण छोड़े के. ऊ कहा माने वाला रहले। जेल भेज दिहल गईले। 18 अप्रैल के अदालत में जज के सामने गाँधी जी के पेश कईल गईल। गाँधी जी जज के सामने दिहल दलील इतिहास के नया रूप दिहलस। लोगन के खीस आ जुटान देख दू दिन के बाद सरकार उनका के छोड़ दिहलस।
हजारों किसान आपन गवाही दिहले। अँगरेज़ साहेब लोग के घुड़की कवनो काम ना आईल .10जुन के जाच समिति बने के तय भैईल। 3 अक्टूबर 1917 के समिति के रिपोर्ट आ गैईल .29 नवम्बर 1917 के चंपारण अग्ररियन (कृषि भूमि) अधिनियम विधान परिषद् में रखल गैईल। 1 मई 1918 के गवर्नर जनरल के दस्तखत से कानून बन गैईल।
गाँधी जी समझ गैईले की ई कूल्ह कष्ट के कारण शिक्षा के कमी बा। ऊ मोतिहारी, भितिहरवा आ मधुबन में स्कूलन के स्थापना करवले। बुनियादी स्कूल, जे अपना खर्चा पर, लोगन के सहयोग से नीव रखवले।
गाँधी जी के भारत में पहिला सत्याग्रह सफल भैईल। गाँधी जी एह देश, एकरा लोग आ उनकरा तकलीफ से परिचय भैईल। गाँधी जी के जी जान लगा देबे वाला कई गो साथी मिलले। राजेंद्र प्रसाद, गोरख प्रसाद, राज कुमार शुकुल, राम दयाल सिंह, खदेरन राय, सच्चिदा नन्द सिन्हा कतना नाव लिहल जाऊ।
ई जीत राजकुमार शुकुल आ उनका अईसन कतने लोगन के रहे। मुकतेसर आ उनका माई लेखा लोग एह यज्ञ के हवन खातिर समिधा बनले।
100 बारिस बीत गैईल ओह जीत के. देश आजाद बा। बाकिर ई कहल जा सकेला की देश के खेतिहर किसान खुश बा। शिक्षा के सरकारी तंत्र टूट फूट के फेर से शोषण के ओही चक्र तैय्यारी करत नइखे बुझात? का मिलल। मुकतेसर मिलिहें त पुछिहे ज़रूर। तैयार रहब।