गाँव की लड़की / अन्तरा करवड़े

Gadya Kosh से
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शहर के नामी पब्लिक स्कूल के प्रांगण में गहमा गहमी थी। आज प्राईमरी टीचर्स के इण्टरव्यू होने थे। ढेर सारी फेड़ेड़ मेकअप में सजी सजी सँवरी¸ सलवार सूट से लेकर पाश्चात्य कपड़ों में लिपटी कन्याएँ¸ गृहिणियाँ वहाँ थी। कोई अपने पहले के अनुभव बाँट रही थी तो कुछ अपने अंतर्राष्ट्रीय शिक्षण के तमगे लहरा रही थी। किसी को वक्त काटने के लिये जॉब चाहिये था तो कोई इंडिपेंडेंसी फील से परिचित होना चाह रही थी।

इतनी जगमगाहट के बीच¸ फीके नारंगी रंग पर बैंगनी फूलों की सुरूचिपूर्ण कढ़ाई वाली कलफ लगी सूती साड़ी पहने एक लड़की सकुचाई सी बैठी थी। पाश्चात्य शैली में सजाई हुई बैठक में¸ सोफा सेट¸ टीपॉय¸ शोकेस के बीच मोंढ़े सी रखी हुई वह थोड़ी सी आतंकित अवश्य थी लेकिन इसका असर उसके आत्मविश्वास पर नहीं पड़ पाया था। उसके आस - पास के सभी अपने व्यवहार से ही उसे "आऊट ड़ेटेड़" या "रिजेक्टेड़ पीस" जैसा किये दे रही थी।

तभी उनके बीच एक ढ़ाई साल का बालक रोता - रोता दाखिल हुआ। उसकी हाफ पैण्ट गन्दी और गीली थी¸ नाक बह रही थी। धूल में खेलकर आने के कारण आँसुओं से चेहरे पर काले निशान बन गये थे। वह करूणार्द्र स्वर में रोता हुआ¸ अपनी माँ को ढूँढ़ता हुआ वहाँ चला आया था और उसे वहाँ न पाकर उसकी हिचकियाँ बँधी जा रही थी। सारा वातावरण "ओ माय गॉड"¸ "वॉट अ डर्टी किड"¸ "वेयर इज हिज केयरलेस मदर?" जैसे जुमलों से भर गया। नन्हा बालक गोदी में लिये जाने के लिये हर किसी की ओर हाथ बढ़ाता लेकिन उस नन्हे देवदूत को देखकर किसी भी शहरी का दिल नहीं पसीजा।

तभी सूती साड़ी वाली¸ मोढ़े सी गाँव की लड़की ने अपने नयन पोंछे और उस बालक को प्यार से गोदी में लिया। उसके गंदे होने और उससे स्वयं के गंदे हो जाने की परवाह किये बिना! पास ही के गुसलखाने में ले जाकर उसने उसे साफ किया¸ मीठी बातें करने से उसका रूदन बंद हुआ। बालक की टी शर्ट की जेब में उसका नाम - पता लिखा था। वह झट रिसेप्शन पर जाकर सारी जानकारी के साथ उस नन्हे मुन्ने को दे आई जहाँ से माईक पर विधिवत घोषणा कर उसे उसकी माँ के पास सौंप दिया गया।

सूती साड़ी वाली से रिसेप्शन पर उसका नाम - पता आदी पूछा गया। वह वापिस वेटिंग रूम में पहुँची तब उसने पाया कि सारा पाश्चात्य माहौल अब उसे न सिर्फ हिकारत वरन्‌ मजाक की दृष्टि से भी देख रहा था। उसने पास लगे काँच में स्वयं को देखा¸ जगह - जगह गीले धब्बे¸ धूल के दाग। लगता था जैसे बिना इस्त्री की मुचड़ी सी साड़ी पहनी है। वह पसीना - पसीना हो आई। अब क्या खाक इंटरव्यू देगी यहाँ जहाँ पहले से ही इतनी लायक युवतियाँ है! एक नि:श्वास छोडकर वह चल दी। उसके जाने के दस मिनट बाद ही वह इंटरव्यू पोस्ट पोण्ड होने की खबर दी गई और वह वेटिंग रूम "ओह माई गॉड"¸ "हाऊ डिसगस्टिंग" और "सो सॅड" जैसे जुमलों के साथ खाली हुआ।

तीसरे ही दिन सूती साड़ी वाली के घर उस शाला का नियुक्ति पत्र आ पहुँचा। उनकी भाषा में वह एक प्रेक्टिकल थिंकर थी और इसीलिये चुनी गई...