गांधीजी और नेहरू समग्र प्रकाशन / जयप्रकाश चौकसे

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गांधीजी और नेहरू समग्र प्रकाशन
प्रकाशन तिथि : 08 जनवरी 2020


महात्मा गांधी समग्र के प्रकाशन के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू समग्र का भी प्रकाशन हो चुका है। महात्मा गांधी समग्र का संकलन और संपादन 1960 में प्रारंभ किया गया था। 'पंडित नेहरू समग्र' पर कार्य 1972 में प्रारंभ हुआ। इस दरमियान कई संपादकों ने काम किया, परंतु माधवन के. पलट एकमात्र फुल टाइम संपादक रहे। इस कार्य में धन की कमी बनी रही और विगत वर्षों में तो धन के सूखे कुएं से बाल्टी चीखती-चिल्लाती खाली लौटती रही। नेहरू समग्र का पहला खंड 1946 तक का है और दूसरा खंड 2 सितंबर 1946 से 27 मई 1964 तक का है। हर किताब में औसतन 600 से 800 पृष्ठ हैं और कुल जमा पंद्रह किताबें हैं। गौरतलब यह है कि नेहरू समग्र में उनके द्वारा लिखी तीन किताबें 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया', 'ग्लिम्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री' तथा 'आत्मकथा' शामिल नहीं की गई हैं। ये प्रकाशित रचनाएं बहुत अधिक संख्या में बिकी हैं और पश्चिम के कुछ विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी शामिल हैं। नेहरू समग्र में लगभग 10 हजार पृष्ठ हैं और उनकी लिखी जिन तीन किताबों को समग्र में शामिल नहीं किया गया है, उनमें भी लगभग दो हजार पृष्ठ हैं।

इस तरह की बातें मीडिया में कही जा रही हैं कि इस वर्ष 26 जनवरी की परेड में सभी प्रांतों की झांकियां शामिल नहीं की जाएंगी। ज्ञातव्य है कि सभी प्रांत अपनी झांकियों की संपूर्ण, सचित्र जानकारी केंद्र सरकार को भेजते हैं। कहा जा रहा है कि केरल की प्रस्तावित झांकी की थीम धर्मनिरपेक्षता है और उसे मंजूरी नहीं मिली है। यह तो व्यवस्था की ईमानदारी है कि जिस आदर्श में उनका विश्वास नहीं है, उसका प्रदर्शन न होने दें। बंगाल सरकार ने झांकी भेजने से इनकार कर दिया है। गौरतलब है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी 26 जनवरी की परेड में शामिल करना चाहा। यह घटना 1963 की है। माधवन के. पलट कहते हैं कि लोकप्रिय धारणा यह है कि नेहरू को गुस्सा बहुता आता था। संभवत: मूर्खता असहनीय हो जाने पर उन्हें क्रोध आता था। उनके समग्र के संपादक ने इसे सुखद आश्चर्य बताया है कि उनके लेखन में कहीं आक्रोश नहीं है, वरन अवाम के लिए चिंता है। आक्रोश से अधिक बहुत कुछ जानने की आकांक्षा उनमें अत्यंत बलवती थी।

नेहरू समग्र में उनके हाथ के लिखे हिंदी के कागज भी शामिल किए गए हैं। कहीं-कहीं नेहरू ने फ्रेंच, जर्मन व अरेबिक शब्दों का इस्तेमाल भी किया है। समग्र में मूूल के साथ उनके अनुवाद भी प्रकाशित किए गए हैं। संसद में भाषण सुनते समय नेहरू कागज पर कुछ रेखा चित्र भी बनाते थे। रेखा चित्र अस्पष्ट हैं और यह बताना कठिन है कि उन्हें बनाते समय उनके अवचेतन में क्या घट रहा था। अपनी मृत्यु के पूर्व उन्होंने अपने टेस्टामेंट में गंगा का विवरण एक कवि की तरह किया है- 'अलस भोर में मंथर गति से बहती गंगा और संध्या के सायों में सांवली-सहमी सी गंगा.... बाढ़ के समय रौद्र रूप धारण करती हुई गंगा, शीतल ऋतु में कोहरे की शाल ओढ़े हुई गंगा...'। प्राय: महान व्यक्तियों के जीवन में कुछ गुप्त बातें होती हैं, परंतु नेहरू समग्र के संपादक का विचार है कि नेहरू ने कभी कुछ गुप्त नहीं रखा। स्वयं को बेझिझक जाहिर किया। 'गुण-अवगुण का डर, भय कैसा, जाहिर हो, भीतर तू है जैसा...' ये पंक्तियां संगीतकार रवींद्र जैन की लिखी हुई हैं, परंतु नेहरू के व्यक्तित्व को बखूबी अभिव्यक्त करती हैं। ज्ञातव्य है कि नेहरू ने भारत में अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव प्रारंभ किए। तत्कालीन सितारे प्राय: उनके मिलने जाते थे। नेहरू के सुझाव पर ही राज कपूर ने फिल्म 'अब दिल्ली दूर' नहीं का निर्माण किया। नेहरूजी ने उस फिल्म के अंतिम दृश्य में शूटिंग की इजाजत पहले दी थी, परंतु अपने एक साथी मंत्री द्वारा ऐतराज करने पर उन्हें राज कपूर को मना करना पड़ा। वर्ष 1947 से 1964 तक फिल्मकारों ने नेहरू के स्वप्न के भारत को सिनेमा द्वारा अभिव्यक्त करने का प्रयास किया। आज कुछ फिल्मकार तो राग दरबारी उलीच रहे हैं और कुछ सितारे तो नागरिकता रजिस्टर के विभाजनकारी मुुद्दों पर खामोश हैं, क्योंकि उन्हें समानांतर सरकार चलाने वाले हुड़दंगियों से भय लगता है।

ज्ञातव्य है कि महान फिल्मकार श्याम बेनेगल ने 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' को छोटे परदे पर प्रस्तुत किया। यह श्याम बेनेगल का जीनियस है कि नेहरू के एक उदात्त विचार को प्रस्तुुत करने के लिए उन्होंने किताब के प्रकाशन के वर्षों बाद लिखे एक नाटक का सहारा लिया। व्यवस्था मन मारकर गांधी का विरोध नहीं करती, क्योंकि गांधीजी की छवि एक संत की है, परंतु बुद्धिजीवी नेहरू उसे आसान शिकार लगते हैं। इस प्रायोजित नेहरू विरोध के दौर में सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल को उन सभी संस्थाओं की यात्रा करना चाहिए। नेहरूवाद के माध्यम से ही कांग्रेस वापसी कर सकती है। उन्हें भाखड़ा नंगल, भिलाई स्टील, एटॉमिक एनर्जी फाउंडेशन, आईआईटी संस्थान, एचएसटी इत्यादि स्थानों की यात्रा करनी चाहिए, जिन्हें नेहरू आधुनिक भारत का तीर्थ मानते थे।