गांधीजी कभी मर नहीं सकते / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
गांधीजी कभी मर नहीं सकते
प्रकाशन तिथि : 02 अक्तूबर 2012


महात्मा गांधी के जन्म को १४३ वर्ष हो गए और निर्वाण को चौंसठ वर्ष हो गए हैं। आज उनकी समाधि पर अनेक लोग एकत्रित होंगे, उनके आदर्श को मानने का दावा करने वाले और उनके विरोधी भी मौजूद होंगे। यह भारत का चरित्र है कि हम मनुष्य को देवता बनाते हैं या दानव मान लेते हैं, परंतु उसे मात्र मनुष्य मानने में हमें कठिनाई होती है।

भारत में जगह-जगह गांधीजी की मूर्तियों पर मालाएं डाली जाएंगी और अनेक जगह मूर्ति पर परिंदों द्वारा की गई गंदगी को भी साफ करने की चेष्टा होगी। संभवत: कुछ लोग गांधीजी की किताब या उन पर लिखी किताब बांचने का कष्ट करें। फिल्ममय भारत में टेलीविजन पर सर रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' या श्याम बेनेगल की 'द मेकिंग ऑफ महात्मा' या अनुपम खेर की 'मैंने गांधी को नहीं मारा' प्रसारित हो सकती है, परंतु टीआरपी के कारण राजकुमार हीरानी की 'लगे रहो मुन्नाभाई' दिखाने की प्रबल संभावना है।

यह जिज्ञासा है कि क्या पाकिस्तान में कोई उन्हें याद करेगा? १९४६ में कलकत्ता में हुए दंगों की आग का शमन गांधीजी ने किया था और उन दिनों वे एक मुसलमान के घर ठहरे थे। क्या इनमें से कोई परिवार पाकिस्तान जा बसा है तो उनके वंशज याद करें कि उनकी जान किसने बचाई थी। क्या लंदन की डॉक स्ट्रीट के उस घर के किसी वर्तमान निवासी को ज्ञात है कि १९३१ में गांधीजी और चार्ली चैपलिन की यहीं मुलाकात हुई थी?

क्या अंग्रेज हुकूमत में कार्यरत किसी कर्मचारी को मालूम है कि अब वह गोलमेज कहां रखी है, जिसके गिर्द बैठकर अंग्रेज और भारतीय नेता किसी समझौते तक पहुंचना चाहते थे और केवल तीसरे गोलमेज सम्मेलन में मोहम्मद अली जिन्ना को आमंत्रित नहीं किया गया था? वह कौन था, जिसने शरारत करके जिन्ना का निमंत्रण किसी दराज में छुपा दिया और उस गुम गए निमंत्रण को भी विभाजन का एक मामूली-सा कारण माना जा सकता है। प्रेमपत्रों के नहीं पहुंचने के कारण कुछ प्रेमकथाएं दुखांत में बदली हैं। मोहम्मद अली जिन्ना गांधीजी का इतना आदर करते थे कि लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल के विभाजन (१९०५) के बाद बनी मुस्लिम लीग में शामिल होने का निमंत्रण जिन्ना ने दो दशक तक इस निर्ममता से ठुकराया कि कट्टर लीगी जिन्ना को कांग्रेस का एजेंट कहने लगे थे। इतिहास की पटकथाओं में भूमिकाओं की अदला-बदली प्राय: होती है। भारत जिस कदर गांधी को भूला है, उससे अधिक संवेदनहीनता से पाकिस्तान जिन्ना को भूला है। दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहानसबर्ग में कुछ समय पूर्व ही गांधीजी की मूर्ति स्थापित हुई है और पहली बार एक देश ने सदी पूर्व हुई गलती के लिए क्षमा मांगी है।

ज्ञातव्य है कि मोहनदास करमचंद गांधी को जायज टिकट होने के बाद एक अंग्रेज ने रेलवे कर्मचारियों को बुलाकर उन्हें प्लेटफॉर्म पर फेंक दिया था। अश्वेतों के साथ इसी तरह का व्यवहार होता था। उस दिन प्लेटफॉर्म पर जो व्यक्ति फेंका गया, वह वकील मोहनदास करमचंद गांधी था, परंतु कुछ ही क्षणों बाद जो उठा, वह महात्मा गांधी था, जिसने अंग्रेजों की दासता से भारत सहित अनेक देशों को स्वतंत्र कराया। हमें आज उस अंग्रेज के वंशजों को धन्यवाद देना चाहिए कि उसके एक अन्याय ने हमें मुक्त कराया और उपनिवेशवाद को खत्म किया, जहां कभी सूर्य अस्त नहीं होता था। जीवन के मामूली-से दिखने वाले क्षणों में ही इतिहास बीज बोता है और उस समय मौजूद कोई भी व्यक्ति उस क्षण के महत्व का आकलन नहीं कर पाता, इसीलिए हर क्षण का मूल्य हृदय की धड़कन की तरह समझना आवश्यक है। दरअसल गांधीजी के अधिकांश सिद्धांत और आदर्श सर्वकालीन हैं और आज के दौर में उनकी उपयोगिता पर सवाल उठाना मूर्खता है। वे हर कालखंड में सार्थक रहेंगे। गांधीजी ने अपने जीवन में फिल्म नहीं देखी, परंतु कथा फिल्म के प्रारंभिक कालखंड में गांधीजी का प्रभाव सर्वत्र था और सिनेमा में गांधीजी के मूल्यों की स्थापना उसी समय हुई है और केवल यही माध्यम है, जिसने उन मूल्यों को कमोबेश आज तक अक्षुण्ण रखा है। मेरी लिखी किताब 'महात्मा और सिनेमा' हिंदी तथा अंग्रेजी संस्करणों में इसी माह जारी होने वाली है। प्रकाशक का ई-मेल है uttam@morya.com और accountsmorya@yahoo.co.in