गाइड और वहीदा की खामोशी की आधी सदी / जयप्रकाश चौकसे

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गाइड और वहीदा की खामोशी की आधी सदी
प्रकाशन तिथि :13 अप्रैल 2015


आनंद पोतदार ने सूचना दी कि 10 अप्रैल को विजय आनंद की वहीदा रहमान व देव आनंद अभिनीत गाइड के प्रदर्शन को पचास वर्ष हो गए हैं। कुछ फिल्में पुरानी शराब की तरह अधिक परिपक्व व ज्यादा नशीली हो जाती हैं। दवाओं की तरह कुछ फिल्मों की भी एक्सपायरी डेट होती है तो इसी तर्ज पर शराब की मेच्युरिटी अर्थात परिपक्वता से उसका मूल्य बढ़ जाता है, 'गाइड' आरके लक्ष्मण के भाई नारायण का अंग्रेजी भाषा में लिखा उपन्यास है, जिसे पढ़कर 'गुडअर्थ' की लेखिका पर्ल एस. बक देव आनंद से मिलीं हिंदी व अंग्रेजी संस्करण बनाने के लिए। रेड डेनोविस्की अंग्रेजी संस्करण निर्देशित करेंगे और चेतन आनंद हिंदी संस्करण। दोनों संस्करणों की शूटिंग साथ-साथ चलेगी, गोयाकि अंग्रेजी के फिल्म के शॉट के बाद उसी स्थान पर हिंदी संस्करण की शूटिंग होगी। चेतन आनंद इस व्यवस्था से नाखुश थे तो विजय आनंद को कहा गया कि वह निर्देशन करें। विजय आनंद ने कहा कि अंग्रेजी संस्करण की शूटिंग होने के बाद वे हिंदी संस्करण बनाएंगे, और इस वक्त का लाभ लेकर वे अपने संस्करण की नई पटकथा लिखेंगे। विजय आनंद की 'काला बाजार' का अपराधी नायक क्लाइमैक्स में एक झूठ बोलकर सजा से बच सकता था परंतु वह सत्य बोलकर सजा काटने को चुनता है और इसी कारण सत्य के प्रति आग्रह रखने वाली नायिका उसके जेल से छूटने का इंतजार करती है। यह गौरतलब है कि इसी क्लाइमैक्स से प्रेरित 'गाइड' विजय आनंद ने लिखी और 'काला बाजार' के नायक देव आनंद और वहीदा रहमान गाइड के भी कलाकार हैं।

काला बाजार के आखरी दृश्य में देव आनंद सजा काटकर बाहर आते हैं तो वहीदा उनका इंतजार कर रही है और 'गाइड' में जेल के बाहर वहीदा और नायक की मां इंतजार कर रहे हैं परंतु अधिकारी उन्हें बताता है कि अपने अच्छे व्यवहार के कारण उन्हे 6 महीने पहले ही आजाद कर दिया गया है। नायक की मां वहीदा से खफा हैं कि अपने बेटे के जीवन में उसके आते ही वह अपराधी बना परंतु वहीदा उन्हें मनाकर अपने साथ ले जाती हैं और अपना पक्ष प्रस्तुत करती हैं। 'गाइड' की रोजी (वहीदा) एक नया पात्र है। नया चरित्र-चित्रण है। वह एक तवायफ की बेटी है और उसकी मां उसके तवायफ बन जाने के भय से एक उम्रदराज और अमीर आदमी से उसकी शादी कर देती है। इस उम्रदराज आदमी को पुरानी इमारतों की खोज और शोध का जुनून है तथा पत्नी केवल पैर रखने का कालीन मात्र है। गाइड राजू से रोजी की मुलाकात होती है और रोजी अपनी 'दिखावटी शादी' के प्रपंच के खिलाफ विद्रोह करती है। उसकी बगावत को शैलेन्द्र ने यूं अभिव्यक्त‌ किया है, 'कांटों से खींच के ये आंचल, तोड़ के सारे बंधन बांधी पायल, आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है।'

शैलेन्द्र और विजय आनंद पहले 'काला बाजार' कर चुके थे और निर्देशक के आकल्पन को शैलेन्द्र ने आत्म सात करके थीम को गहराई और धार देने वाले गीत रचे हैं। यहां तक कि शैलेन्द्र के बीमार पड़ने पर विजय आनंद ने सैट लगाने के बाद भी एक माह तक शैलेन्द्र के स्वस्थ होने का इंतजार किया। सजायाफ्ता नायक पर भोले ग्रामीण महात्मा की छवि उसके अनचाहे उस पर लाद देते हैं और छवि को ढोते-ढोते, वह उसे अपना असल व्यक्तित्व बना लेता है। इस फिल्म की आत्मा तो रोजी का पात्र है, इसीलिए इसे वहीदा का श्रेष्ठतम अभिनय मान सकते हैं क्योंकि 'प्यासा' का केंद्रीय पात्र तो शायर है। काला बाजार की सत्यवादी नायिका का एक ही रंग है परंतु रोजी के अनेक रंग है। 'गाइड' की शूटिंग के दरमियान रोजी निर्देशक विजय आनंद की ओर आकर्षित हुईं और विजय तो पहले से ही उन्हें चाहता था।

परंतु मजहब की दीवार के कारण उनका विवाह नहीं हुआ। वहीदा फिल्म विरासत का अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं और उनकी कुंजी से ही गुरुदत्त और विजय आनंद के असली स्वरूप को जाना जा सकता है परंतु वे पचास वर्ष से अपनी खामोशी और गरिमा को साधे हुए हैं। आज हम 'गाइड' की आधी सदी के साथ वहीदा की गरिमापूर्ण खामोशी का भी जश्न मना सकते हैं।