गाड़ीवान, हीरामन और शिक्षक आनंद कुमार / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
गाड़ीवान, हीरामन और शिक्षक आनंद कुमार
प्रकाशन तिथि : 18 जुलाई 2019


बिहार के महान शिक्षक आनंद कुमार के जीवन से प्रेरित ऋतिक रोशन अभिनीत फिल्म 'सुपर थर्टी' टिकट खिड़की पर धन बटोर रही है। फिल्म पहले तीन दिन में पचास करोड़ की आय प्राप्त कर चुकी है। एक सामाजिक सोद्देश्यता वाली फिल्म की टिकट खिड़की पर सफलता सिने विधा को मजबूत बनाती है। खबर यह भी है कि विदेशों में भी फिल्म आय अर्जित कर रही है। फिल्म में निर्देशक और तकनीशियनों की टीम की प्रशंसा की जा रही है परंतु ऋतिक रोशन का जीवंत अभिनय फिल्म का मेरुदंड है।

ऋतिक रोशन ने अपनी लोकप्रिय छवि के परे जाकर आनंद कुमार के अवचेतन में गहरे पैठकर कुछ इस तरह अभिनय किया है कि दर्शक को कभी सितारे ऋतिक की याद नहीं आती। इस तरह केंचुली बदलना आसान काम नहीं होता। सांप अपनी केंचुली समय-समय पर बदलता है, क्योंकि धरती पर रेंगते हुए मार्ग के कंकड़-पत्थर और झाड़ियों के कांटे उसकी केंचुली को हानि पहुंचाते हैं। मनुष्य अपनी त्वचा नहीं बदल सकता। उम्र के साथ त्वचा पर झुर्रियां आ जाती हैं। उम्रदराज व्यक्ति के चेहरे पर आई झुर्रियों में उसके कठिन जीवन की इबारत पढ़ी जा सकती है। हर्फ पढ़ना आसान काम नहीं है।

इस तरह के कुछ प्रयास हुए हैं। मसलन गुरुदत्त की 'साहब, बीबी और गुलाम' में मीना कुमारी ने छोटी बहू का पात्र ऐसे ही अभिनीत किया था। वे बहू की काया में प्रवेश कर गईं परंतु उन्हें यह मालूम नहीं था कि यह वन-वे ट्रैफिक है और वे कभी लौट ही नहीं पाईं। छोटी बहू की तरह बेतहाशा पीते हुए वे सिरोसिस ऑफ लीवर नामक बीमारी की शिकार बन गईं, गोयाकि 'छोटी बहू' ने उन्हें डस लिया।

फणीश्वरनाथ 'रेणु' की कथा 'तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम' से प्रेरित शैलेन्द्र की फिल्म 'तीसरी कसम' में राज कपूर ने गंवई गांव के गाड़ीवान हीरामन की भूमिका का निर्वाह भी ऐसे ही किया था। शूटिंग प्रारंभ होने से पहले 'रेणु' ने शंका व्यक्ति की थी कि राज कपूर जैसा गोरा चिट्‌टा यूरोपियन सा दिखने वाला यह व्यक्ति गंवई गांव के हीरामन का अभिनय कैसे कर पाएगा? शैलेन्द्र ने उन्हें वचन दिया कि अगर रेणु की आशंका सही हुई तो वे फिल्म निरस्त कर देंगे। कुछ दिन की शूटिंग के बाद फणीश्वरनाथ रेणु को रश प्रिंट दिखाया गया तो वे हुमक कर बोले 'ये तो साक्षात हीरामन है'। ऋतिक रोशन द्वारा अभिनीत आनंद कुमार का पात्र भी हीरामन की तरह ही सिद्ध हुआ है। ये दोनों ही प्रयास फिल्म अभिनय के इतिहास में मील के पत्थर सिद्ध होंगे।

राज कपूर की शिक्षा-दीक्षा पृथ्वी थिएटर के रंगमंच पर हुई थी और अपनी यूरोपियन जीवनशैली के बावजूद उनकी विचार प्रक्रिया ठेठ हिंदुस्तानी की थी। ख्वाजा अहमद अब्बास के प्रभाव के कारण उनका जूता जापानी, पतलून इंग्लिस्तानी होने के बावजूद दिल हिंदुस्तानी ही रहा था।

जब संगीतकार रोशन साहब की मृत्यु हुई तब उनके घर में मात्र इतना ही धन था कि अंत्येष्टि की जा सके। मृत्यु के तेरह दिन बाद ही राजेश रोशन 75 रुपए प्रतिमाह पर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के सहायक नियुक्त हुए और राकेश फिल्मकार जे.ओमप्रकाश के सहायक निर्देशक बने। इस तरह मात्र 150 रुपए प्रतिमाह की आय में बमुश्किल गुजारा किया गया। जे. ओमप्रकाश की एकमात्र पुत्री पिंकी राकेश रोशन से प्रेम करती थी। राकेश रोशन ने अभिनय क्षेत्र में स्वयं को आजमाया और आधा दर्जन असफल फिल्मों में अभिनय के बाद उन्होंने निर्देशन क्षेत्र में प्रवेश किया। जितेन्द्र, ऋषि कपूर और प्रेम चोपड़ा उनके अभिन्न मित्र रहे हैं। सबकी प्रेरणा और प्रोत्साहन से राकेश रोशन ने 'खुदगर्ज' निर्देशित की जिसमें शत्रुघ्न सिन्हा ने बिहारी मानुष की भूमिका बड़े आत्मविश्वास से अभिनीत की और वह उनका श्रेष्ठतम अभिनय रहा।

राकेश रोशन ने शाहरुख खान और सलमान खान के साथ 'करण अर्जुन' प्रारंभ की। दोनों ही सितारों को फिल्म पर यकीन नहीं था। वे प्राय: राकेश का मखौल उड़ाते थे। यहां तक कि राखी ने भी असहज महसूस किया और बड़ी कठिनाई से शूटिंग पूरी हुई। फिल्म को मिली अपार सफलता के बाद उनके आलोचक पशेमान हुए।

उस समय ऋतिक अपने पिता के सहायक निर्देशक थे। वे भी बहुत दु:खी हुए। उन्होंने दिन-रात परिश्रम करके अभिनेता बनने की रियाज प्रारंभ की। यह उनके लिए महज रोजी-रोटी का सवाल नहीं था वरन पिता को सम्मान दिलाने के लिए किया गया धर्मयुद्ध था। अभिनेता संजय खान की पुत्री सुजान ऋतिक से प्रेम करती थी। सुजान ने भी ऋतिक को प्रोत्साहित किया। पिता-पुत्र का पहला प्रयास अत्यंत सफल हुआ और इस टीम ने सफल फिल्मों की शृंखला ही रच दी। ऋतिक और सुजान का विवाह हो गया। राकेश रोशन किफायत में अति करते थे और शायद इसी कारण सुजान और ऋतिक का अलगाव हो गया।

जे. ओमप्रकाश ऋतिक के नाना भी हैं और गुरु भी। राकेश रोशन के संघर्ष से भी ऋतिक ने बहुत कुछ सीखा है। महानगर मुंबई खुद सबसे बड़ा शिक्षक है। गगनचुंबी संगमरमरी इमारतों के नीचे झोपड़पट्टियां छितरी पड़ी हैं। यह संभव है कि इस आर्थिक खाई ने ऋतिक को आनंद कुमार की जीवंत भूमिका के लिए प्रशिक्षित किया। यह भी गौरतलब है कि गाड़ीवान हीरामन और आनंद दोनों बिहार के रहने वाले हैं। जाने क्यों दो महान नदियों के बीच बसा बिहार गरीब क्यों है? सबसे अधिक आईएएस अधिकारी भी इसी राज्य से हुए हैं।

सबसे त्रासद यह है कि हमने आदर्श शिक्षक पनपने ही नहीं दिए। शिक्षा प्रणाली टूटे हुए पहियों के रथ के समान है और उसका सारथी भी नहीं है।