गिरधरवा माय / विद्या रानी
गिरधरवा माय चालीसे बरसोॅ में साठ बरस के लगै छै। ऊ तेॅ हरदम्मे परेशाने रहै छै। गिरधरवा बाप तेॅ कहिये बैकुन्ठ गेलै। ऊ दूटा बेटा लै केॅ ज़िन्दगी खेपतेॅ जाय रहली छै। बड़का बेटा आशुतोषवा तेॅ पटना जाय केॅ कमावै छै, मतरकि ओकरोॅ आपने पेट मुश्किल सें भरै छै। बची गेलै-यहेॅ गिरधरवा, जे पढ़ै लेॅ गुरूजी कन जैवो नै करै छै। रात-दिन गुल्ली-डंडा, कब्बडी-यहेॅ में समय गुजस्त करै छै। गिरधरवा माय गामोॅ में कुटैनी-पिसैनी करी केॅ खाय छै।
एक दिन भोरे-भोर गिरधरवा माय चिकरेॅ लागलै-"ओ, हे रे, कहाँॅ जाय छैं रे, तोहें पढ़वैं की नै। है स्कूलोॅ के बेरिया में गुल्ली-डंडा जे खेलै छें, की करभैं जिनगी में रे बेटा। हम्में कहिया तक तोरोॅ पेट भरवौ।"
गिरधरवा माय कानै छै, कलपै छै, मतरकि ओकरा पर कोनो असर नै पड़ै छै। ऊ तेॅ भागलोॅ-भागलोॅ गेलै आपनोॅ खेल जमावै लेॅ। गिरधरवा माय माथोॅ पकड़ी केॅ बैठी गेलै। आय घरोॅ में चौ ॅरो नै छै। टुनवाँ माय कन मजूरी उधार छै, मजकि उहौ तब्है नी देतै, जबेॅ ओकरोॅ चौ ॅर कुटाय केॅ ऐतै। दिमागोॅ में यहेॅ चिन्ता भरलोॅ-भरलोॅ गिरधरवा माय साड़ी कोचियावेॅ लागलै। सोचलकै कि नाही लै छी, कोनो काम होतै तेॅ करै लेॅ जैवोॅ। ऊ साड़ी लै केॅ कुइयाँ पर गेलै। साड़ी केॅ पाट पर राखलकै आरू बाल्टी केॅ रस्सी सें बांन्ही केॅ पानी भरै के तैयारी करेॅ लागलै।
हुन्नें सें हरिया माय ऐंगना सें बाहर ऐलै। ओकरोॅ हाथोॅ में जुट्ठोॅ बरतन छेलै, ऊ कुइयाँ के पाटोॅ पर बरतन धोय लेॅ अइलोॅ छेलै। हरिया माय कहलकै, "की दीदी, की रांधलौ।"
गिरधरवा माय नें जवाब देलकै, "अरे, की रांधवोॅ-वही मकय जे भुजलेॅ छेलियै, वही खाय लेवै, के जाय छै दुनु सांझ रांधै लेॅ। गिरधरवा तेॅ सत्तू पसन्द करी लै छै, से हम्में आय चुल्हो नै नेसलेॅ छियै।"
हरिया माय सोचेॅ लागलै कि केना दीदी रहतै, दुनु सांझ खावो नै पारै छै। पता नै मकइयो के भुंजा छै कि नै। कहलकै, "तरकारी बनैलेॅ छियै कदीमा के. लै आनभों दीदी? खैभौ?"
गिरधरवा मांय कहलकै, "छोड़ी दहु, के ई दरद-पीड़ा में कदीमा के तरकारी खाय छै।" ऊ पानी भरी केॅ राखी लेलकै आरो छौरोॅ सें आपनोॅ मुँह धुवेॅ लागलै। हरिया माय ओकरोॅ दुबलोॅ-पातलोॅ शरीर देखी केॅ दुखी छेलै। ऊ सोचेॅ लागलै-हद्दे छै ई आशुतोषवो, जेहो ठो कमाय छै, घोॅर नै भेजै पारै छै। तहीं सें नी दीदी केॅ एतना दिक्कत होय जाय छै। ई मँहगाई में एतना कम पैसा में केना करी केॅ रहतै हो भाय। हरिया माय सोचतें-विचारतें आपनोॅ घर बरतन लै केॅ चललोॅ गेलै।
हरिया माय के शंका ठीक्के छै। गिरधरवा कन मकइयो के भुंजा नै छेलै। गिरधरवा माय घर आवी केॅ चुपचाप बैठी गेलै। सोचेॅ लागलै कि टुनवा माय कहलेॅ छै कि चौ ॅर कुटाय केॅ अइतौं तेॅ तोरा देभौं। जतना दिन रांधलोॅ छौ, उतना दिनोॅ के मजूरी तेॅ ज़रूरे देभौं। से सांझ केॅ चौ ॅर अइतै तेॅ भात बनतै। आबेॅ गिरधरवा केॅ की देवै-ऊ सोचिये रहलोॅ छेलै कि गिरधरवा आवी गेलै। गिरधरवा माय बोललकै-"हे रे, कहाँ घुमै छेलैं। दौगी-दौगी केॅ पचाय लै छैं, फिनु खाय लेॅ मांगे ॅ लागै छैं।"
गिरधरवा चुप्पे रहलै। सोचलकै कि ऐन्हैं माय गुस्सैलोॅ छै, बेशी जिद करवै तेॅ मारवो करतै। ओकरोॅ दीन-हीन मुद्रा देखी केेॅ गिरधरवा माय केॅ दया आवी गेलै। केन्होॅ टुअर बच्चा छै। बाप तेॅ नहिंये छै, हम्में जे माय छी, सेहो खिलावेॅ नै पारै छियै। वें जाता झाड़ी केॅ सत्तू निकाललकै आरू नीमक दै केॅ दै देलकै।
जिनगी के कोनो ठिकाना नै छै। नैहरा में तसीलदारोॅ के बेटी गिरधरवा माय इहाँ भिखमंगिये बनी गेलोॅ छै। सच्चे कहलोॅ जाय छै-'बाबा केॅ कोठारी, धिया केॅ उपास।'
कोनो काम आवै वाला नै छै। गिरधरवा के बाप जबेॅ छेलै तेॅ वही नैहर में कत्तेॅ मान-सम्मान होय छेलै। एगो-दूगो आदमी लगले रहै छेलै। मेहमान ई खावोॅ, ऊ खावोॅ। आबेॅ हुनकोॅ मरला के पन्द्रह बरस होय गेलोॅ छै, कोय पूछुहौ लेॅ नै आवै छै। ई दुक्खोॅ में गिरधरवा माय केकरोॅ पास जैतै। आपने घरोॅ में दुख-सुख काटतें जाय रहलोॅ छै। बड़को बेटा कमावै छै तेॅ मनमतंगै, कहियो भेजै छै, कहियो नै। जेना दीनानाथ दिन कटावै। समय बदलला पर कोय्यो साथ नै दै छै।
गिरधरवा माय नें सोचलकै कि टुनवा माय केॅ पूछियै कि आज चौ ॅर देभौ कि नै, नै तेॅ हरिया माय सें एक पैला लेॅ केॅ रांधी लेवै। ऊ सोचिये रहलोॅ छेलै कि टुनवा माय डलिया में करीब पाँच सेर चौ ॅर लै केॅ आवी गेलै।
टुनवा माय कहलकै, "हे दीदी, बड़ी देर करी देलकै पपिहवा नें, तहीं सें नै दियेॅ पारलिहौं। सोचलियै कि आपन्है सें पहुँचाय देवै। तहूँ की सोचतिहौ कि टुनवा माय कैन्हीं छै, कही देलियै कि चौ ॅर नै छै, तहियो नै देलकै।"
गिरधरवा माय चिन्तामुक्त होय गेलै। पाँच सेर चौ ॅर, मतलब दस दिन दुनू सांझ दोनो माय-बेटा भात खैवै। फिरू आरू जे मजूरी करवै, से मिलतै। हरियो माय नें कहलेॅ छै-बरी पारै लेॅ। टुनवा माय सें गिरधरवा माय बोललै, "बड़ी अच्छा करलौ हे टुनवा माय, रोइयाँ जुड़ैला सें आशीर्वादे मिलथौं। हम्में तेॅ अभी जाइये रहलोॅ छेलियौं तोरे कन-यही चौ ॅर लेॅ। बैठोॅ।"
दुनू बैठी केॅ बतियावेॅ लागलै। गिरधरवा मांय चुल्होॅ ठो जारी केॅ अदहन चढ़ाय देलकै। लकड़ी-गोइठा के धुइयाँ सें औसरा भरी गेलै। जे अँगना सूनोॅ, टूअर, अनाथ जेना लागै छेलै, से ठो लक्ष्मीवान लागेॅ लागलै। होन्हौ ऊ गाँव में कतना हेनोॅ घोॅर छेलै, जहाँ दोनो सांझ चूल्हा नै जरै छेलै।
टुनवा माय हड़बड़ाय केॅ आपनोॅ घर गेली, "बड्डी काम छौं" कही केॅ। हिन्नें भात रांधि केॅ गिरधरवा माय सोचलकै कि आबेॅ तरकारी के की करलोॅ जाय। वें ऐंगना में उगलोॅ लत्ती में परोलोॅ केॅ खोजेॅ लागलै। उहाँ सें चार ठो परोल तोड़ी केॅ आगिन में पकाय लेलकै। सिल-पाटी पर लहसुन-मिरचाय दै केॅ चटनी पीसी लेलकै। लहसुनो वहेॅ बाड़ी में लागलोॅ छेलै। आबेॅ खाली गिरधरवा के आसरा देखै छेलै कि कबेॅ आवै बच्चा खाय लेॅ-भुखलोॅ-पियासलोॅ खेलतेॅ रहै छै, हे भगवान।
हुन्नें गिरधरवा सब्भै के साथ मछरी मारै छेलै। दू बरस के बच्चा कतना मछरी मारेॅ पारतियै। दू चार ठो पोठिया, एक ठो गरैय लै केॅ घोॅर अइलोॅ।
"माय गे, मछरी पकाय दे।"
गिरधरवा माय खुश होय केॅ दुखी होय गेलै, "हे रे, तेल तेॅ नै छै। चोखा बनाय दियौ-आगिन मेॅ पकाय केॅ।" गिरधरवा राजी होय गेलै। गिरधरवा माय सोचलकै कि कतना बुद्धिमान बच्चा छै। गरीबी बच्चे सें बुधिमान बनाय दै छै।
राति में दुनु माय-बेटा खाय-पीवी केॅ सुतलोॅ। गिरधरवा खिस्सा सुनावै के जिद करेॅ लागलै। ओकरी माय आपने जिनगी के खिस्सा सुनावेॅ लागलै-केना छः भाय के एक्के बहिन छेलां। सब्भै के पियारी, केना ओकरोॅ बियाह होलै आरू केना ओकरोॅ दुनियाँ उजड़ी गेलै। आपनें दू ठो बेटा केॅ लैकेॅ ई अपार संसार-समूह में आपनोॅ नांव खेवै लेॅ विवश छै-रे बेटा, जेना ओकरा दुख होलै, होनोॅ सात घरोॅ के दुश्मनो केॅ नै हुवेॅ।
गिरधरवो कानेॅ लागलै, "माय गे, ई खिस्सा कैन्हे कहै छैं। माय हमरोॅ बुक बान्हलोॅ नै रहै छौ, कानि भरै छियौ। हमरा बड़ा होवेॅ लेॅ दे नी माय, तेॅ तोरा खूब आराम देवौ।"
"केना आराम देभैं बेटा। पढ़ै लेॅ कहै छियौ तेॅ खेलै छें, कमावै के लायक नै बनभें, तेॅ केना आराम देभैं।"
गिरधरवा चुप रही गेलै। ओकरा आपनोॅ भूल मालूम होय गेलै। दुनु माय-बेटा सुजनी बिछाय केॅ सूती गेलै।
गिरधरवां सपना में देखलकै कि ऊ हठाते बड़ोॅ होय गेलोॅ छै आरू माय केॅ आपनोॅ साथ शहर लै केॅ गेलोॅ छै। ओकरोॅ खूब सेवा करै छै। वहाँ वें नौकरी करेॅ लागलोॅ छै। सपन्हैं में गिरधरवा खूब हरखित होलै, खूब अघैलै। भोरे उठी केॅ माय केॅ कहलकै, " हे गे माय, आबेॅ हम्में पढ़वौ।
हमरा बोरिया आरू सिलोट दै दहीं। "गिरधरवा माय ओकरा बोरिया आरू सिलोट दै देलकै आरू सोचलकै कि शायद रातकोॅ खिस्सा के असर छै, मतरकि के कहेॅ पारेॅ। वें आपनोॅ हाथोॅ में अँचरा के छोर लै केॅ उठाय-उठाय केॅ बुदबुदैलै," हे भगवान, भँसलोॅ घोॅर तोंही बसावै छौ, हमरो घर देखिहौ।