गिरीश कर्नाड का (बसंत) उत्सव / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 30 जनवरी 2020
मौसम की एक करवट का नाम बसंत है और इसे एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। शशि कपूर की गिरीश कर्नाड द्वारा निर्देशित फिल्म ‘उत्सव’ का प्रारंभ भी बसंत से होता है। उमंग और तरंग का वातावरण गिरीश कर्नाड ने बड़ी प्रभावोत्पादकता से बनाया है। हर मकान, गली, आंगन में लोग मस्ती में डूबे हैं। इस फिल्म में वात्सायन का पात्र अमजद खान ने अभिनीत किया था। रेखा फिल्म की नायिका हैं। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने शास्त्रीय रागों का जमकर प्रयोग किया है। बसंत देव ने फिल्म के गीत लिखे थे। गिरीश कर्नाड ने ‘शूद्रक’ और समकालीन नाटककार के नाटकों का सामंजस्य करके फिल्म की पटकथा लिखी है। भारतीय रंगमंच पर गिरीश कर्नाड ने प्रयोग किए हैं। लोक कथाओं को भी अपने नाटक का हिस्सा बनाया है। ‘हयवदन’ का सफल मंचन कई शहरों में किया गया है। अमरीश पुरी और अमोल पालेकर क्रमश: पहलवान और कवि की भूमिकाएं ‘हयवदन’ में कर चुके हैं। यह गिरीश कर्नाड का जीनियस है कि उन्होंने रंगमंच पर पात्रों के स्वप्न को अनोखे ढंग से प्रस्तुत किया। रंगमंच पर दो कठपुतलियां दो पात्रों को अभिनीत करती हैं। मंच पर सो रहे पात्रों के स्वप्न का विवरण ये कठपुतलियां अभिनीत करने वाली कलाकार प्रस्तुत करती हैं। ज्ञातव्य है कि पृथ्वीराज कपूर ने भी दो नाटकों के सामंजस्य से बना नाटक एंडरसन थिएटर कंपनी के लिए किया था।
इस फिल्म की पटकथा अमिताभ बच्चन को सुनाई गई थी और उनकी रजामंदी भी प्राप्त कर ली गई थी। बेंगलुरु में शूटिंग शुरू होते ही उन्हें वहां जाना था, परंतु पारिवारिक कारणों से वे ऐसा नहीं कर पाए। क्या आंकी-बांकी रेखा की मौजूूदगी ने परिवार की दीवार में दरारें पैदा कर दीं? फिल्म का बजट और वितरण अधिकार का समीकरण भी सुुपर स्टार के फिल्म का भाग होने के आधार पर आकल्पित किया गया था, परंतु शशि कपूर की भाग्य रेखा ने सब गड़बड़ कर दिया। इस फिल्म में उन्हें भारी घाटा उठाना पड़ा। शशि कपूर की ‘कलयुग’ और गोविंद निहलानी निर्देशित ‘विजेता’ में रेखा अभिनय कर चुकी थीं। शशि कपूर और रेखा हमेशा मित्र रहे। फिल्म उद्योग में मित्रता एक पूंजी है। एक कोष है, जिसमें से जितना निकालो, उतना ही बढ़ता है। एक तरह का अक्षय कोष है।
शेक्सपियर के ‘हैमलेट’ से प्रेरित पहली हिंदुस्तानी फिल्म किशोर साहू ने बनाई थी। विशाल भारद्वाज ने भी शेक्सपियर के नाटकों का चरबा प्रस्तुत किया है। टाटा थिएटर पर इस तरह के नाटक प्रस्तुुत किए जाते हैं। हाल ही में ‘टाइपकास्ट’ नामक नाटक प्रस्तुत किया गया था। जातिवाद के कारण एक प्रेमकथा टूट जाती है। ज्ञातव्य है कि मनोरंजन जगत में ‘टाइपकास्टिंग’ का अर्थ है- कलाकार बार-बार एक सी भूमिकाएं करे। जैसे इफ्तखार लगातार इंस्पेक्टर की भूमिका करते रहे। यह विजय तेंदुलकर का जीनियस है कि उन्होंने नाटक का नाम ही टाइपकास्ट रखा। आशय स्पष्ट है कि हिंदुस्तान में जातिवाद की जड़ें अत्यंत गहरी हैं और तर्कप्रधान वैज्ञानिक सोच इस किले में सेंध नहीं लगा पाया है।
कलकत्ता स्थित न्यू थिएटर्स फिल्म कंपनी ने शिशुर भादुड़ी रचित नाटक ‘सीता’ से प्रेरित सफल फिल्म बनाई थी। उन्होंने विद्यापति में पृथ्वीराज कपूर को राजा की भूमिका दी। फिल्म ‘विद्यापति’ भी बसंत उत्सव से प्रारंभ होती है। राजा अपने बचपन के मित्र विद्यापति को राजकवि का दर्जा देते हैं। जब राजा एक लंबे समय तक चलने वाला युद्ध लड़ रहे थे, उनकी पत्नी विद्यापति के काव्य से प्रेरित होकर कवि से प्रेम करने लगी। राजमहल की यह प्रेमकथा अवाम को पता चल गई। युद्ध में विजय प्राप्त करके राजा लौटे तो उन्हें ज्ञात हुआ कि घर के एक अंतरंग रिश्ते में वे पराजित हो चुके हैं। लोकमत यह था कि रानी को दंडित किया जाए, परंतु सहृदय राजा, रानी को क्षमा करना चाहते थे। लोकमत के दबाव के सामने उन्हें झुकना पड़ा।
विद्यापति के असफल होने का कारण यह था कि राजा की भूमिका सुदर्शन व्यक्तित्व के धनी पृथ्वीराज कपूर ने अभिनीत की थी और विद्यापति की अत्यंत साधारण से दिखने वाले अभिनेता ने। किसी भी पात्र को अभिनीत करने के लिए कलाकार का चयन महत्वपूर्ण होता है। बहरहाल, शशि कपूर और गिरीश कर्नाड की ‘उत्सव’ में एक गीत लता मंगेशकर और आशा भोसले ने गाया है। यह गीत सहेलियों पर फिल्माया जाना था। लता मंगेशकर और आशा भोसले के बीच उन दिनों मतभेद चल रहे थे। अत: दोनों ने गीत अलग-अलग रिकॉर्ड किया। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने गजब की मिक्सिंग की जिससे लगा कि बहनों ने साथ में गाया है। गीत के बोल थे- रात शुरू होती है आधी रात को। मनुष्य के लोभ-लालच ने बसंत ऋतु को ही समाप्त कर दिया है।