गिलास / शोभना 'श्याम'
"सीमा ...जल्दी से चार गिलास पानी ला और कुछ ठंडा भी बना दे, उफ़ फफ! कितनी गर्मी है बाहर, जान निकली जा रही है ... मॉम ये मेरे दोस्त-हर्ष, अंकित और इरशाद।"
"नमस्ते आंटी!"
"आंटी नमस्ते!"
"सलाम आंटी!"
कहते हुए चारो दोस्त तो बैठक में प्रवेश कर निढाल से सोफे पर पसर गए, लेकिन विशाल की माँ तो उस तीसरे 'नाम' और 'सलाम' में अटकी लॉबी में ही खड़ी रह गयी। सीमा रसोई से पानी लेकर तेजी से बैठक की ओर बढ़ रही थी कि माँ ने बीच में ही रोक लिया।
' "अरे! इनमें से एक वह है वह ... उसके लिए गिलास अलग रखे हुए बर्तनों में से लेकर आ।"
"कैसी बात करती हो मॉम, ऐसा कैसे कर सकते है हम। उसको कितना बुरा लगेगा ...और भाई? जान ले लेगा मेरी। मॉम आजकल ये नहीं होता। कितनी बार समझाया आपको। हम स्कूल कॉलेज सब जगह एक साथ खाते-पीते है।"-सीमा ने फुसफुसा कर कहा।
"होता होगा, मुझे मेरे घर से मतलब है, यहाँ ये नहीं चलेगा, बस।स्स! और तेरी दादी को पता चल गया तो ..."
अचानक बैठक से आता शोर सुनकर दोनों वहाँ भागी। इरशाद सोफे पर ही बेहोश-सा हो गया था। बाकि तीनो दोस्त उस पर हवा करने लगे। "शायद लू लग गयी है इसे" , "बाहर गर्मी भी तो कितनी है" ..."सीमा तुझे पानी लाने को कहा था।"
विशाल की माँ ने झपट कर इरशाद का सर अपनी गोद में ले लिया। अपने पल्लू से उसका पसीना पोंछते हुए चिल्लाईं।
"विशाल, जल्दी से इसके जूते उतार! अंकित बेटा फ्रिज से बर्फ ला। सीमा, पानी दे न जल्दी!"
और उन्होंने पानी का गिलास इरशाद के मुंह से लगा दिया